हरियाणा के ऐतिहासिक स्थल, भवन और स्मारक
भवन व स्मारक:
मध्यकालीन हरियाणा की इस श्रेणी में किले, मस्जिदे, मकबरे, बाग, बावड़ियां इतियादी आती हैं:-
- पानीपत के शेख बुली कलंदर शाह का मकबरा व करनाल के पास यमुना नहर का पुल जिसे मुगल पुल कहा जाता है।
- पानीपत का काबुली बाग, नारनौल का शाह कुली खां का बगीचा और पिंजौर का मुगल उद्यान मध्य कालीन हरियाणा की अन्य प्रमुख पुरातात्विक धरोहर हैं।
- रोहतक की दीनी मस्जिद तथा हिसार की बहुत सी इमारतों का निर्माण पठान शासकों ने इसी समय करवाया।
- मध्यकालीन हरियाणा के स्मारकों में नारनौल की इमारतों का अपना ही स्थान है। इनमें जलमहल और छता मुकुंद दास प्रमुख हैं। नारनौल की एक अन्य इमारत शेरशाह सूरी द्वार निर्मित उसके दादा इब्राहिम सूरी का मकबरा है। यह इमारत उस समय की स्थापत्य कला का एक सुंदर नमूना है।
गुर्जर-प्रतिहार काल से सम्बधित कलायत में ईटों से निर्मित दो मंदिरों को छोड़कर दुर्भाग्य से एक भी स्मारक नहीं बचा है। फिर भी खुदाईयों में हमें भवनों व मंदिरों के अवशेष व स्तंभ आदि प्राप्त हुए हैं। इन वस्तुओं से हमें उस काल की धार्मिक, सांस्कृतिक व आर्थिक इतिहास का कुछ ज्ञान प्राप्त होता है।

हिसार का गुजरी महल
- हरियाणा के हिसार का ऐतिहासिक स्थल – गुजरी महल का निर्माण 1354 में फिरोजशाह तुगलक ने करवाया था।
- यह संरचना भी ताजमहल की तरह ही अमीट प्रेम की निशानी है, जो फिरोजशाह तुगलक ने अपनी प्रेमिका गुजरी के लिए बनवाया था।
- इस महल को बनने में दो साल का वक्त लगा।
- इस किले के अंदर – दीवान-ए-आम और बारादरी भी मौजूद हैं।
हिसार का अग्रोहा धाम
- अग्रोहा धाम एक खूबसूरत हिन्दू धार्मिक स्थल है जो हरियाणा के हिसार (अग्रोहा) में स्थित है।
- यह मंदिर अग्रसेन महाराजा और देवी महालक्ष्मी को समर्पित है।
- इस स्थल का निर्माण सन् 1976 में किया गया था, जो 1984 में पूरी तरह बनकर तैयार हुआ।


लाट की मस्जिद- हिसार
- हिसार के किले के अंदर फिरोज़शाह ने एक मस्जिद का निर्माण करवाया था, जिसे लाट की मस्जिद के नाम से जाना जाता है।
- यह तुगलक भवन निर्माण शैली का एक अद्भुत नमूना है।
- मस्जिद भवन के साथ एक ‘एल’ आकार का तालाब और लाट (स्तंभ) है, जो अपने आप में अनूठा है।
- इसकी वास्तुकला, संस्कृत के लेख, धरती में दबा लाट का भाग इस बात की पुष्टि करते हैं कि फिरोजशाह ने इसे कहीं से उखाड़ कर यहां स्थापित करवाया होगा।
शिखर दुर्ग – अग्रोहा (हिसार
- यह शिखर दुर्ग सन् 1777 में, महाराजा पटियाला के दीवान् – नानूमल द्वारा अग्रोहा थेह पर नगर की रखवाली व सुरक्षा के लिए बनवाया गया था।


बड़सी दरवाजा – हांसी (हिसार)
- कलात्मक रूप के लिए प्रमुख बड़सी दरवाजा, अपने अग्र भाग पर दोनों ओर हिंदू स्थापत्य कला के प्रतीक पूर्ण विकसित कमल पुष्प, राजस्थानी मेहराब, सजावटी खिड़कियां व झरोखे संजोय हुए हैं।
- सम्राट पृथ्वी राज भट्ट द्वारा बनवाए जाने संबधी एक शिलालेख इसके अग्र भाग पर अंकित है।
- एक अन्य शिलालेख, जिसमें सुलतान अलाउद्दीन खिलजी को बड़सी दरवाजे का निर्माता कहा गया है। इसके अनुसार अलाउद्दीन खिलजी ने सन् 1303 ई0 में इसका निर्माण करवाया था।
हांसी का ‘दरगाह चार कुतुब’
- हांसी शहर में स्थित यह प्राचीन स्मारक ‘चार कुतुब की दरगाह’ के नाम से प्रसिद्ध है।
- जमालुद्दीन हांसी (1187-1261), बुरहानुद्दीन (1261-1300), कुतुबउद्दीन मुनव्वर (1300-1303) और रूकनूद्दीन (1325-1397) अपने समय के महान सूफी संत थे और इन्हें कुतुब का दर्जा हासिल था।
- इसे यह भी गौरव प्राप्त है कि यहां एक ही परिवार के लगातार चार सूफी संतों की मजार एक ही छत के नीचे है, इसलिए इसका नाम दरगाह चार कुतुब है।
- इस दरगाह के उतरी दिशा में एक गुबंद का निर्माण सुलतान फिरोजशाह तुगलक ने करवाया।


इब्राहिम लोदी की मजार, पानीपत
- 1526 में पानीपत में, इब्राहिम लोदी और बाबर के बीच युद्ध हुआ, जिसमें इब्राहिम लोदी की पराजय हुई और वह मारा गया। मरणोपरांत युद्ध स्थल पर ही इब्राहिम लोदी को दफनाया दिया गया।
- बाद में अंग्रेजों ने लाखोरी ईटों से उस स्थान पर एक बहुत बड़ा चबूतरा बनवाया तथा एक पत्थर पर उर्दू में इस कब्र के बारे में लिखवाया।
हांसी का दुर्ग
- इस काल की सबसे प्राचीन इमारतों में हांसी का दुर्ग है।
- पृथ्वीराज चौहान ने मुग़ल शासकों से रक्षा के लिए इसदुर्ग का निर्माण कराया था। कालान्तर में मुग़ल शासकों ने इस दुर्ग पर अधिकार कर लिया था।
- बाद में पठान शासकों द्वारा तथा 18वीं सदी में जार्ज टाम्स द्वारा इसका पुनः निर्माण किया गया।
- यह दुर्ग आज भी टूटी-फूटी दशा में मौजूद हैं, जो हमें प्राचीन समय में इस स्थान के सामरिक महत्व की जानकारी देता है।


काबुली बाग, पानीपत
- पानीपत के निकट ‘काबुली बाग’ में एक मस्जिद तथा तालाब बना हुआ जो कि बाबर ने पानीपत की प्रथम लड़ाई की विजय की खुशी में और अपनी प्रिय रानी ‘मुसम्मत काबुली बेगम’ की याद में बनवाया था।
- भारत में, मुगल वास्तु शिल्प कला की यह प्रथम इमारत है जिसका निर्माण कार्य सन 1529 में पूरा हुआ।
सलारजंग गेट, पानीपत
- पानीपत नगर के मध्य स्थित यह त्रिपोलिया दरवाजा प्राचीन आबादी का प्रवेश द्वार है जिसका निर्माण ब्रिटिश काल में हुआ था।
- प्राचीन वास्तुकला का उत्कृष्ट नमूना कहलाने वाला यह दरवाजा नवाब सालारजंग के नाम से भी जाना जाता है।


काला अम्ब, पानीपत
- 1761 में पानीपत का तीसरा युद्ध अफगान सरदार अहमद शाह अब्दाली और मराठा सरदार- सदा शिवराय भाऊ के मध्य, पानीपत से 8 किलोमीटर दूर पूर्व दिशा में काला-अंब में हुआ था जिसमें मराठों की पराजय हुई।
- कहा जाता है कि इस स्थान पर आम का एक वृक्ष था। पानीपत के तीसरे युद्ध में मराठों का इतना खून बहा की धरती लाल हो गई जिसके कारण यह आम का वृद्ध वृक्ष भी काला पड़ गया था, तभी से इस स्थान को काला-अंब के नाम से जाना जाता है।
- इस स्थान पर हरियाणा सरकार ने वार हीरोज मेमोरियल और के संग्रहालय स्थापित किया गया है।
ख्वाजा की सराय, फरीदाबाद
- फरीदाबाद जिले के गांव सराय ख्वाजा में लगभग 300 वर्ष पुरानी एक सराय है। इस सराय के नाम पर ही गांव का नाम सराय ख्वाजा पड़ा।
- यह सराय पीर ख्वाजा ने बनवाई थी।
होडल की सराय, तालाब और बावड़ी – फरीदाबाद
- होडल में भरतपुर के राजा सूरजमल ने एक सुंदर सराय तालाब और एक बावड़ी बनवाई थी। आज भी इनके खंडहर यहां देखने को मिलते हैं।
- होडल के रानी सती तालाब के समीप बलराम की स्मारक छतरी और दादी सती जसकोर की समाधि भी मौजूद है।

महल और बाराखंबा छतरी, होडल (फरीदाबाद)
- फरीदाबाद जिले में स्थित इस महलनुमा हवेली का निर्माण 1754 से 1764 ईस्वी के बीच भरतपुर के राजा सूरजमल के ससुर चौधरी काशीराम सोरोत ने करवाया था।
- महारानी किशोरी राजा सूरजमल की धर्मपत्नी और चौधरी काशीराम की पुत्री थी।
- सूरजमल से संबंध होने के उपरांत चौधरी काशीराम को सोरोतोंके 24 गांव का चौधरी बना दिया गया और इन गांव से मिलने वाले राजस्व से चौधरी काशीराम ने एक शानदार हवेली और कचहरी भवन का निर्माण करवाया।
मटिया किला, पलवल
- हरियाणा के पलवल में स्थित यह मुगलकालीन किला अब खंडहर हो चुका है।
- शेरशाह सूरी के काल में पलवल के गाँव-बुलवाना में बनवाई गई मीनार तथा गाँव-अमरपुर में 150 वर्ष पुराना गोल मकबरा अफगान कला का प्रतीक है।


कुंजपुरा और तरावड़ी के किले, करनाल
- करनाल के कुंजपुरा नामक स्थान पर छोटी-छोटी ईटों से बनी हुई एक हवेली थी, जिसका अब प्रवेशद्वार ही बचा है इसे कुंजपुरा के नवाब निजावत खान ने सन 1765 के आसपास बनवाया था।
- करनाल के तरावड़ी नामक स्थान पर एक सराय है जिसका निर्माण शाहजहां के शासनकाल में हुआ था। इसे भ्रमवश आज भी पृथ्वीराज चौहान द्वारा बनवाया गया दुर्ग मानते हैं जबकि राजपूत काल में बनाए जाने वाले दुर्ग और मुगलकालीन सराय के वास्तुशिल्प में मौलिक भिन्नताएं होती हैं।
कोस मीनार, कोहण्ड – करनाल
- शेरशाह सूरी ने ऐतिहासिक जीटी रोड का निर्माण करवाया था और जनता की सुविधाओं के लिए मार्ग के प्रत्येक कोस पर एक मीनार खड़ी करवाई थी जिसको कोस मीनार कहा गया।
- शेरशाह सूरी के काल की तस्वीर के रूप में हरियाणा क्षेत्र में मौजूद सुदृढ़ ढांचे में निर्मित ये ऐसी मीनारें हैं जो ऊपर से पतली और नीचे से चौड़ी हैं| शायद इस तरह के निर्माण के पीछे निर्माताओं का उद्देश्य यह था कि जी टी रोड से आते हुए दूर से ही यह ज्ञात हो जाए कि उनके अगले पड़ाव की दूरी अब कितनी शेष है अथवा वे कहां तक आ चुके हैं।


चनेटी स्तूप, जगाधरी
- जगाधरी नगर में स्थित इस स्तूप का प्रथम विवरण चीन के विद्वान यात्री ह्वेनसांग के यात्रा संस्मरण से प्राप्त होता है जो यहां सम्राट हर्षवर्धन के शासनकाल में आए थे।
- हेनसांग ने लिखा है कि यह स्तूप शत्रुघ्न गांव से पश्चिम की ओर यमुना के दाएं तट प्रदेश में स्थित है और यहां इसके अलावा दसियों अन्य स्तूप भी हैं।
- यह भी लिखा है कि शत्रुघ्न में एक बहुत बड़ा बौद्ध मठ भी है जिसमें सैकड़ों भिक्षुक निवास करते हैं, इसका निर्माण संभवत: सम्राट अशोक के समय किया गया था।
रंगमहल, बुड़िया-यमुनानगर
- शाहजहाँ शासनकाल में यमुनानगर के बुडिया नामक प्राचीन कस्बे के जंगलों में रंग महल का निर्माण करवाया गया था जो उस समय आमोद प्रमोद का प्रमुख स्थान रहा होगा।
- इसकी दीवारों पर बनाए गएभित्तिचित्र आजकल धूमिल हो चुके हैं।


जल महल, नारनौल
- ऐतिहासिक स्मारक जल महल नारनौल जिले में स्थित है।
- इसका निर्माण सन 1591 में नारनौल के जागीरदार शाह कुली खान ने करवाया था।
- पानीपत के द्वितीय युद्ध में शाह कुली खान ने ‘हेमू’ को पकड़ा था और इसी खुशी में अकबर ने शाह कुली खान को नारनौल की जागीर सौपी थी।
- जल महल का निर्माण लगभग 11 एकड़ के विशाल भूखंड पर किया गया।
मिर्जा अली जाँ की बावड़ी, नारनौल
- नारनौल शहर को बावड़ी और तालाबों का शहर कहा जाता है। यद्यपि नगर की बहुत सी प्राचीन बावडीयों का अस्तित्व अब नहीं रहा परंतु मिर्जा अली जाँ की बावड़ी आज भी जिर्णोअवस्था में विद्यमान है।
- इस ऐतिहासिक बावड़ी का निर्माण मिर्जा अली जाँ द्वारा 1650 ई० के आसपास करवाया गया था।


इब्राहिम खान का मकबरा, नारनौल
- इस मकबरे का निर्माण शेरशाह सूरी ने अपने दादा ‘इब्राहिम खान’ की याद में सन 1543-44 में करवाया था।
- इब्राहिम खान का यह मकबरा एक विशाल गुंबद के आकार का है।
- लोदी शासनकाल में इब्राहिम खान नारनौल के जागीरदार रहे थे।
- मकबरे के भीतरी भाग में इब्राहिम खान की कब्र है जिस पर शाही खानदान का निशान भी अंकित है।
चोर गुम्बद, नारनौल
- नारनौल नगर कि उत्तर-पश्चिम दिशा में एक ऊंचाई वाले स्थान पर निर्मित ऐतिहासिक स्मारक – चोर गुंबद का निर्माण जमाल खान नामक एक अफगान ने अपने ही समाधि स्थान के रूप में करवाया था।
राय मुकुन्द दास का छत्ता (बीरबल का छत्ता), नारनौल
- नारनौल की सघन आबादी के बीच स्थित इस ऐतिहासिक स्मारक का निर्माण शाहजहां के शासनकाल में नारनौल के दीवान राय मुकुंददास माथुर ने करवाया था।
- यह स्मारक नारनौल के मुगलकालीन ऐतिहासिक स्मारकों में सबसे बड़ा है।
- यद्यपि यह बीरबल के छत्ते के नाम से भी प्रसिद्ध है किंतु इसके निर्माण में बीरबल से इसका कोई संबंध नहीं है।
तावडू के मकबरे – गुरुग्राम (गुडगाँव)
- तावडू गावं में बने अनेक मकबरों का निर्माण उत्तर इस्लामिक काल में संभवत सन 1500 के आसपास हुआ था।
- इनमें से एक मकबरे का जीर्णोद्धार सन 2007 में इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चरल हेरीटेज नामक संस्था ने किया है। इस परिसर में सात-आठ मकबरे हैं जो संरक्षित घोषित नहीं हुए हैं।
तावडू का किला – गुरुग्राम (गुडगाँव)
- गुडगाँव के सोहना से 17 किलोमीटर दूर पर्वतीय रास्ते से होते हुए हरियाणा राजस्थान मार्ग पर स्थित तावडू नामक ग्राम में स्थित एक प्राचीन किले के विभिन्न अवशेषों से तावडू के इतिहास की जानकारी मिलती है।
- इस किले के चारों ओर ऊंची ऊंची दीवारें बनी हुई हैं।
- इस समय तावडू स्थित इस किले को वहां का थाना बना दिया गया है।
सोहना का किला, सोहना (गुरुग्राम)
- भरतपुर के राजा जवाहर सिंह के समय गुरुग्राम के सोहना में एक किले का निर्माण करवाया गया जो खंडहर के रूप में आज भी विद्यमान है।
- गुरुग्राम में स्थित सोहना-शहर 18 वीं शताब्दी में सोहन सिंह नामक राजा द्वारा बसाया गया था।
जींद का किला–जफ़रगढ़
- सन् 1775 में जगपत सिंह ने जींद को जीतकर यहां पर एक विशाल किले का निर्माण करवाया और विजयनगर के पहले राजा बने।
- आज भी इस ऐतिहासिक किले के भग्नावशेष मीलों दूर से दिखाई देते हैं।
रानी तालाब – जींद
- यह तालाब जींद शहर के मध्य स्थित जींद की शान है।
- जींद रियासत के राजा रघुबीर सिंह ने श्रीहरि कैलाश मंदिर यानि भूतेश्वर मंदिर का निर्माण अमृतसर के स्वर्ण मंदिर की तर्ज पर करवाया था।
- रघुबीर सिंह ने 1864 से 1880 तक राज किया था। 1887 में उनकी मृत्यु हो गई थी। रानी तालाब के निर्माण की सही तिथि किसी किताब में नहीं है।
- कहा जाता है राजा ने यहां एक सुरंग भी बनवायी थी, जिसके अवशेष आज भी देखे जा सकते हैं। यह सुरंग, तालाब को महल से जोड़ती थी।
- इसको बनाने के पीछे कारण ये था कि रानी स्नान कर लोगों की नजरों में आए बिना सीधे महल में जा सके। महारानी अपने महल से इस तालाब में सुरंग के रास्ते से नहाने और पूजा करने आती थी। इसी कारण इसे बाद में रानी तालाब कहा जाने लगा। इसे शाही परिवार का पूल भी कहा जाता था।
- तालाब में भगवान शिव का मंदिर है जिसे कैलाश मंदिर और भूतेश्वर मंदिर भी कहा जाता है। इस मंदिर का नाम भूतेश्वर मंदिर इसलिए पड़ा, क्योंकि यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है, जिन्हें यहां भूतनाथ कहा जाता है।
तोशाम की बारादरी -भिवानी
- भिवानी में तोशाम की पहाड़ी पर यह बारादरी स्थित है।
- लोक-समाज में यह बारादरी पृथ्वीराज चौहान की कचहरी के नाम से प्रसिद्ध है।
- इस भवन की विशेषता यह है कि इसमें एक भी चौखट का प्रयोग नहीं किया गया है और इसमें 12 द्वार इस तरह से स्थापित किए गए हैं कि केंद्रीय कक्ष में बैठा हुआ व्यक्ति चारों और देख सकता है| प्रत्येक कक्ष द्वार 5 मीटर ऊंचा है और इसके चारों और बैठने के लिए एक चबूतरा बना हुआ है।
महम की बावड़ी, महम (रोहतक)
- रोहतक जिले के महम शहर में एक बावड़ी बनी हुई है जो कि मुगल स्थापत्य कला का नमूना है।
- यह बावड़ी शाहजहां के शासनकाल में सैदू कलाल ने बनवाई थी।
- इस बावड़ी की लंबाई 275 फुट, चौड़ाई 95 फुट है और इसकी 4 मंजिलें हैं।
- इसमें अंदर जाने के लिए 108 सीढ़ियां हैं, इसके बाद चौक आता है और उसके बाद कुआं है।
गऊ-कर्ण तालाब, रोहतक
- गऊ कर्ण नामक तालाब रोहतक शहर में स्थित है जिसका निर्माण 1558 ई० में करवाया गया था।
- सन 2004-2005 में इस तालाब का नवीकरण किया गया।
- प्राचीन तालाब पर उत्तर में जनाना घाट एवं पश्चिम तथा पूर्व में 6 मर्दाना घाट और पूर्व में गौ घाट था।
माधोगढ़ का किला, महेन्द्रगढ़
- महेंद्रगढ़ से 15 किलोमीटर दूर सतनाली सड़क मार्ग पर अरावली पर्वत श्रंखला की पहाड़ियों के बीच सबसे ऊंची चोटी पर माधोगढ़ का ऐतिहासिक किला स्थित है|
- पर्वत की तलहटी में माधोगढ़ नामक गावं बसा है।
- ऐसा माना जाता है कि इसका निर्माण राजस्थान के सवाई माधोपुर के शासक माधोसिंह ने करवाया था।
- लगभग 800 वर्ग गज के क्षेत्र में फैले इस किले में 30 कोठियां बनी हुई है।
राजा नाहर सिंह की हवेली, बल्लभगढ़
- यह हवेली बल्लभगढ़ में स्थित है।
- दुर्ग प्राचीर के भीतर स्थित इस किले को बनवाने की योजना राजा बल्लू के शासनकाल में बनवाई गई थी जिसे उनके पुत्र किशन सिंह ने पूरा किया।
बागवाला तालाब, रेवाड़ी
- इस तालाब का निर्माण सन 1807 में राय गुर्जरमल ने करवाया था।
- वर्तमान में यह तालाब शुष्क हो चुका है।
राव तेजसिंह तालाब, रेवाड़ी
- यह रेवाड़ी के पुराने टाउन हॉल के समीप स्थित है।
- इस कलात्मक तालाब का निर्माण राव तेजसिंह द्वारा सन 1810-1815 के बीच करवाया गया।
बुआ का तालाब, झज्जर
- झज्जर में दिल्ली झज्जर मार्ग पर 300 साल पुराना बुआ का तालाब काफी प्रसिद्ध है।
- यह जगह दो प्रेमियों के मिलने और बिछड़ने की दास्तां की गवाह है, इस तालाब ने बुआ नाम की एक लड़की के प्रेम को परवान चढ़ते हुए भी देखा और उसे अपने प्रेमी के विरह की आग में जलते हुए भी देखा।
पुण्डरीक सरोवर, पुण्डरी – कुरुक्षेत्र
- यह सरोवर हरियाणा के पुण्डरी नामक कस्बे में स्थित है ऐसी मान्यता है कि सतयुग से आज तक इस विशाल सरोवर का जल कभी समाप्त नहीं हुआ।
थानेसर का शेख चिल्ली का मकबरा – कुरुक्षेत्र
- इसे दारा शिकोह ने सूफी संत शेख चिल्ली की याद में बनाया था।
- यह मुगल काल की स्थापत्य कला का एक बेजोड़ नमूना है।
- इसकी सुंदरता को देखकर इसे हरियाणा के ताज महल की संज्ञा दी गई है।
श्रीकृष्ण संग्रहालय, कुरूक्षेत्र
- श्री कृष्ण संग्रहालय की स्थापना कुरुक्षेत्र में की गई जो वर्ष 1991 में अपने वर्तमान भव्य और दर्शनीय स्वरूप में बनकर तैयार हुआ।
- श्री कृष्ण संग्रहालय कुरुक्षेत्र-पेहवा मार्ग पर ब्रह्मसरोवर और सन्निहित सरोवर के मध्य काली कमली वाले मैदान में स्थित है।
- यह मुख्यतः श्री कृष्ण एवं महाभारत के चरित्रों के माध्यम से जनसाधारण में आध्यात्मिक चेतना के पुनर्जागरण के साथ-साथ श्री कृष्ण के आदेशों के प्रति लोकर्षण उत्पन्न करता है।
गरम जल का चश्मा, सोहना (गुरुग्राम)
- अरावली पर्वतीय श्रंखला की गोद में बसा, हरियाणा के गुड़गांव जिले का विश्वविख्यात स्थान- सोहना अपने गरम जल के स्रोतों के कारण अपनी पहचान दूर-दूर तक कायम कर चुका है।
- ये गर्म पानी के स्त्रोत, चर्म- रोगों के उपचार के लिए प्रसिद्ध हैं।
इन सभी इमारतों से हमें मध्य कालीन हरियाणा के हतिहास की जानकारी प्राप्त करने में बड़ी सहायता मिलती है।
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