हरियाणा के प्रमुख त्यौहार (Festivals in Haryana)
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भारत का उत्तरी राज्य हरियाणा अपने मस्तमौला अंदाज के साथ ही त्यौहार मनाता है। अनादि काल से यह भारतीय संस्कृति और सभ्यता का उद्गम स्थल रहा है। यहां के त्यौहार उत्साह, उमंग एवं हर्षोल्लास के साथ मनाए जाते हैं। हरियाणा राज्य भारत की समृद्ध, शानदार संस्कृति को विभिन्न प्रकार के मेलों और त्यौहारों में मनाता है जो पूरे देश में यहाँ एक ही धूमधाम और खुशी के साथ मनाए जाते हैं।
हरियाणा के विभिन्न त्यौहार निम्नलिखित हैं:
तीज का त्यौहार
श्रावण मास के शुक्लपक्ष की तृतीया (तीज) को हरियाणा में झूळों (पींघ) का त्यौहार मनाया जाता है जिसे ‘तीज’ के नाम से जाना जाता है। वैसे ‘तीज’ एक लाल रंग का प्यारा सा कीट होता है जो मिट्टी में रहता है और बरसात के दिनों में तीज त्यौहार के समय ही दिखाई पड़ता है। इस दिन सभी लड़कियां वे अपने हाथों और पैरों पर मेहंदी लगाती हैं और झूला झूलती हैं। पींघ-पाटड़ी, बहन की कोथली के लिए बनाये जाने वाले पकवान जैसे कि – गुलगुले, सुह्वाली, नमकीन, भुजिया, बतासे-मखाणे, शक्कर-पारे इत्यादि और कुछ लोकगीत जैसे कि – पींघ ऊँची चढ़ा के सासू का नाक तोड़ना, बागों में झूले-झूलना इत्यादि तथा नीम पे निम्बोली लगना, वातावरण में सावन के लोकगीतों की स्वर-लहरियां इस त्यौहार की पहचान और इस उत्सव को मनाने के भिन्न-भिन्न रस्म और रिवाज हैं।
इस त्यौहार से बहुत से त्यौहारों की शुरुआत होती है जो कि देवोत्थान एकादशी (“देवठणी ग्यास) तक चलते हैं। इसीलिए कहावत बनी है –
- आई तीज बिखेर-गी बीज: तीज को गाँव में एक साल में आने वाले सब त्योहारों की शुरुवात माना जाता है, इसी के सन्दर्भ में “आई तीज बिखेर-गी बीज” की कहावत कही जाती है, जिसका मतलब है कि तीज आ गई है, अब इसके साथ ही साल के त्योहारों की शुरुवात हो गई है, अब एक के बाद एक त्यौहार लगातार आयेंगे और मनाये जायेंगे।
- आई होऴी भर ले-गी झोऴी: होली के त्यौहार के बाद तीज तक कोई भी देशी और बड़ा त्यौहार नहीं आता इसलिए ऐसा कहा जाता है कि जो बीज त्योहारों के “तीज” बिखेर के गयी थी, “होली” उनकी झोली भर के ले गयी है।
रक्षा-बंधन
- यह त्योहार सावन माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है जो पूरे भारतवर्ष में भाई-बहन के अटूट प्यार का प्रतीक है, जब बहनें भाइयों की कलाइयों पर राखी (पोह्ची) बांधती हैं और भाई बहन की हर संकट में मदद करने का प्रण लेते हैं।
- इसमें भाई को टीका लगाना, फिर राखी बांधना और मिठाई खिलाना और फिर भाई का बहन को शगुन देना जिसके साथ उसके दुःख-सुख में हर पल उसके साथ खड़े रहने का वचन दोहराया जाता है।
- इस त्यौहार की महता इस बात से और भी बढ़ जाती है कि इस दिन सार्वजनिक वाहनों खासकर हरियाणा सरकार की बसों में बहनों के लिए यात्रा नि:शुल्क होती है।
गूगा नवमी
- यह त्यौहार रक्षा-बंधन के ठीक नौ दिन बाद बध्विन माह की कृष्ण पक्ष की नवमी को आता है|
- इस दिन बहनों के द्वारा भाइयों के हाथों पे रक्षा-बंधन के दिन बाँधी गई राखियों को उतार के गूगा जी को सौंपने का दिन होता है।
- गाँव की गली-गली में गूगा जी के प्रवर्तक डेरू और मोर-पंख वाली नीली पताका ले, गीत गाते हुए आपकी राखी पताका पे बंधवाने आते हैं।
- गूगा नवमी एक आध्यात्मिक त्योहार है, जिसमें सांप-पूजा होती है।
- लोग गूग्गा-पीर या ज़हीर-पीर की पूजा करते हैं जो खतरनाक सांप के द्वारा काटे हुए लोगों को ठीक करने की शक्ति के लिए प्रतिष्ठित किया गया था।
दशहरा
यह त्यौहार अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दसवीं को आता है। दशहरा भगवान राम जी की रावण पर विजय की याद में मनाया जाता है। इस त्यौहार के स्थानीय आकर्षण होते हैं:
- लड़कियों द्वारा सांझी-रंगोली बनाना, सांझी भिन्न प्रकार की होती हैं जैसे: गोबर – गारा – मडकन – कपास की सांझी, मोज़े-सितारे और रंगों की सांझी। सांझी बनाने की तैयारियां दस-दिन पहले से ही शुरू हो जाती हैं।
- फिर दशहरे वाली रात सांझी को लडकियां इक्कट्ठी हो जोहड़ों में बहाने जाती हैं।
- लड़के गाँव के जोहड़-कल्लर-गौरों पे खुलिया लाठियों के साथ चाँद की चांदनी रातों में गींड खेलते हैं। हालाँकि आज बदलते परिवेश में ये चीजें कम जरूर हो गई हैं परन्तु आज से पांच-सात साल पहले तक भी इन चीजों को ले के युवक-युवतियों का उत्साह देखते ही बना करता था। पुराने दौर में दशहरे की रात गाँव के घरों में जितने भी पुराने मटके होते थे उनको उठा कर गली में पटका जाता था और फोड़ा जाता था ताकि पीने के पानी के पुराने बर्तनों की जगह नए बर्तन ले सकें और युवकों में इस बात की होड़ लगती थी कि किसने सबसे ज्यादा मटके फोड़े।
कार्तिक स्नान
कार्तिक माह के प्रथम पक्ष की रातों को गाँव की बहु-बेटियां कुँए-तालाबों पर स्नान टोलियाँ बना कार्तिक स्नान के गीत गाती हुई स्नान करने जाया करती थी। इस स्नान के इतने इंतजाम होते थे कि हर कुँए-जोहड़ पर बुर्जियां ओर बुर्ज बनाए गए थे, जोहड़ों में सीढियां उतारी गई होती थी ताकि हमारी बहु-बेटियों के स्नान को सुविधा हो सके।
- इस वक्त की ख़ास बात यह होती थी कि जिस पहर में बहुत-बेटियां स्नान करने जाती थी, गाँव का हर युवक-बुजुर्ग उस पहर के दौरान कुँए-तालाबों के पास से भी नहीं गुजरता था।
- आज के दिन वैसे तो वो वाले कुँए-तालाब ही नहीं रहे और जहां रहे वहाँ भाईचारा नहीं रहा और बदलते परिवेश ऩे सब-कुछ लील लिया है, वरना आज से दस साल पहले तक कार्तिक की रातों में गाँव के चारों ओर के कुँए-जोहड़ों से लोकगीतों की स्वर-लहियाँ छाल मारा करती थी।
- इस मधुरिमा भरे वातावरण और सोहार्द का सबसे बड़ा मूल होता था गाँव के “गाम और गोत” का नियम।
- जैसा कि गाम और गोत के नियम के अनुसार गाँव की छत्तीस बिरादरी की बेटी आपकी बहन बताई गई और मानी गई है, तो कोई चाहकर भी उधर जाना चाहता था तो इस शर्म में अपने-आप कदम रोक लिया करता था कि नहीं उधर तो मेरी बहनें होंगी, मैं उधर कैसे जा सकता हूँ।
दीवाली (दीपावली)
यह त्यौहार कार्तिक मास की अमावस्या को आता है। विश्व प्रसिद्ध इस त्यौहार को हरियाणा में पूरे धूम-धाम से मनाया जाता है। “छोटी दिवाली” सबसे पहले आती है और धार्मिक संस्कार और परंपराओं को पूरी ईमानदारी और भक्ति के साथ मनाया जाता है। हरियाणवी दिवाली के ख़ास आकर्षण इस प्रकार हैं:
- साल भर से खेतों से इक्कट्ठी की हुई गीदड़ की पीढ़ी (कुर्सी) को मिटटी का तेल दाल जलाया जाता है, घर में मिटटी के नए बर्तन खरीदे जाते हैं, जिनमें मटका, काप्पन, दिए, चुग्गे प्रमुख होते हैं। मटका-काप्पन पीने के पानी के लिए होते हैं और दिए-चुग्गे, घी-तेल के दिए जला घर की मुंडेरों पे लगाए जाते हैं।
- सार्वजनिक जगहों पर दिए जलना: गाँव के हर घर का फर्ज होता है कि वो कम से कम एक दिया गाँव की चौपाल (परस) और चौराहों पे जरूर जला के आता है।
- घर में दिए जलाने का नियम: घर की पानी निकासी की नाली यानि मोरी के द्वार पर एक दिया और घर की धन की तिजोरी पर एक घी के दिए जोत जरूर जलाई जाती है।
- पशुओं के लिए ख़ास: दिवाली के दिन से एक दिन पहले यानी आधी-दिवाली जिसको गाँव में गिर्डी कहते हैं को दिन में घर के सारे पशुओं को जोहड़ों में नहला के लाया जाता है। फिर उनके सींगों और खुर्रों पर तेल लगाया जाता है। फिर उनके लिए साल भर से खेतों से इक्कट्ठे किये हुए मोर-पंखों और रस्सी की बनी गांडली पहनाई जाती है| और फिर अगले दिन पूरे गाँव वालों की नजर इस बात पे होती है कि किसके जानवर सबसे ज्यादा सुन्दर लग रहे हैं। हालाँकि कि बदलते परिवेश में इसको ले लोगों में उत्साह भी घटता जा रहा है और लोग मोर-पंख की अपने हाथों से बने हुई गंडलियों की जगह आजकल बाजारू मालाएं ला के पहना देते हैं।
- पटाखे-चलाना: छोटे बच्चे इस दिन रात को पटाखे चलाते हैं और फुलझड़ी फोड़ते हैं।
- हीडों हाथों में ले गाँव की फेरी निकालना: एक प्रकार की जड़ जिसमे जिसे “हिड़ो” कहतें हैं। हालांकि पहले इसमें अधिक लोग भाग लेते थे लेकिन आज कल भी मेरे जैसे बचे हैं जिनमें हीड़ो का नाम सुनते की रोम-रोम मचल उठता है और सहसा मुंह से फूट पड़ता है “हीड़ो रै हीड़ो, आज गिर्डी तड़कै दिवाली हीड़ो रै हीड़ो….” यह स्वर-भेरी होती थी जिससे गाँव की गलियाँ गूँज उठती थी। पता नहीं लोग क्यों आज के जमाने को ज्यादा शालीन और सभ्य बताने पे तुले रहते हैं, जहां की तीज-त्योहारों को सामूहिक रूप के मनाने के नाम पर सबकी नानी सी मरी दिखती है।
- खील-बताशे-हलवा-खीर खाना: अब जब इतनी साड़ी चीजें जिस त्यौहार पे होती हों तो भला फिर खाने-पीने की बात पीछे क्यों रहे| हर तरह के पकवानों की खुसबू हर घर से निकलती है फर्क सिर्फ इतना है की आज के जमाने में हर कोई अपने घर में घुसा खाता है पहले लोग झोली भर के गलियों में निकल मिल कर खाते थे।
ईद
- यह गाँव के मुस्लिम समुदाय का सबसे मुख्य त्यौहार है। इस दिन हर भाई एक दूसरे के गले मिलकर अल्लाह की अरदास करता है।
देव-उठनी ग्यास
- यह त्यौहार मंगसर (मार्गशीर्ष) माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाया जाता है।
- वो दिन जिस दिन के बाद से ब्याह-शादियों का शीतकालीन स्तर शुरू हो जाता है।
- इस अवसर के एक मुख्य लोकगीत का मुखड़ा: “ओळएं-कोळएं धरें जंजीर, जियो दुल्हन तेरे बीर बीर”।
- इस दिन गुड़ या चीनी के मीठे चावल बनाए जाते हैं और शादी वाले घर में शादी के दिन से पहले भी मीठे-चावल बनते हैं, जिनको खुद भी खाया जाता है और बांटा भी जाता है। इन चावलों को बरात के नाम के चावल कहा जाता है।
लोहड़ी का त्यौहार
- लोहड़ी, मकर संक्रांति से एक दिन पहले हरियाणा राज्य में मनाई जाती है।
- पंजाबियों के समुदाय के लिए, लोहड़ी का त्यौहार एक बहुत ही खास त्यौहार है।
- सभी स्थानीय लोग अलाव के चारों ओर इकट्ठा होते हैं और मिठाई, फूला हुआ चावल और पॉपकॉर्न को आग की लपटों में फेंक देते हैं।
- वे गाने गाकर और अभिवादन का आदान-प्रदान करके खुद को महफिल में शामिल करते हैं।
- नवविवाहित दुल्हन और नवजात बच्चे की पहली लोहड़ी बेहद महत्वपूर्ण है।
मकर- सक्रांति (सकरात)
बड़े बुजुर्गों की मान-मनुहार के इस त्यौहार को – पौह महीने (पौष मास) में जब सूर्य मकर राशि पर आता है तब इस पर्व को मनाया जाता है। वर्तमान शताब्दी में यह त्योहार जनवरी माह के चौदहवें या पन्द्रहवें दिन ही पड़ता है। इस त्यौहार के ख़ास आकर्षण:
- सुबह उठते ही हर किसी को स्नान करना होता है।
- घर के आगे आग सुल्गानी होती है जिसपे कि गली में आते-जाते लोग ठंड में कंपकपाते अपने हाथ-पैर शेंक सकें।
- अपने सामर्थ्य अनुसार दान-पुन करना होता है, जिसमें की गाँव की डूमनी को सूट और शगुन देना प्रमुख होता है।
- नई-नवेली दुल्हनें घर और आस-पड़ोस के बुजुर्गों (बूढ़े-बूढ़ियाँ दोनों) को शाल-कम्बल-चद्दर भेंट करती हैं और बदले में सीघ्र ही संतानवती होने का वर और शगुन पाती हैं।
- पुराने जमाने में जब चरखे होते थे तो औरतें इक्कट्ठी हो चरखे काता करती थी और बच्चे आसपास खेला करते थे और सब रेवड़ी-मूंगफली खाया करते थे, पर अब तो वो नज़ारे सिर्फ ख्यालों के हो के रह गए हैं| पता नहीं लोग नए जमाने के नाम पे पुराने जमाने का इतना खुलापन और सोहार्द भी कैसे दांव पे लगाते जा रहे हैं कि किसी के पास अपने गाँव-ननिहाल जा इन खुशियों को मनाने तक की न तो फुर्सत और न ही उत्साह।
- नई ब्याही लड़कियों की ससुराल भाइयों का सीधा ले के जाना।
- इस दिन कई जगहों पर बच्चे पतंग उड़ाते हैं और पतंगबाजी की प्रतिस्पर्धा करते हैं।
बैसाखी का त्यौहार
बैसाखी का त्यौहार हरियाणा राज्य में पंजाबियों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है जिसे बसंत ऋतू के आने, पेड़-पौधों और फसलों में नए अंकुर फूटने की ख़ुशी में हर्षित संगीत और नृत्य के साथ मनाया जाता है। यह हर साल 13 अप्रैल को पड़ता है और 36 साल में एक बार 14 अप्रैल को पड़ता है। इससे जुड़े कुछ बिंदु निम्नलिखित हैं:-
- इस विशेष दिन को सिखों के दसवें गुरु (गुरु गोबिंद सिंह) ने वर्ष 1699 में खालसा धर्म की स्थापना की थी। इस दिन सिख गुरुद्वारों में जाते हैं और कीर्तन सुनते हैं। धार्मिक संस्कारों और परंपराओं के खत्म हो जाने के बाद, मीठा सूजी आम जनता को परोसा जाता है।
- इस त्योहार को मकई की कटाई शुरू करने से पहले आराम करने के अंतिम अवसर के रूप में भी चिह्नित किया जाता है।
- इसी दिन दीन-बंधू सर छोटूराम की जयंती भी मनाई जाती है।
मेख (बैसाखी का हरियाणवी रूप)
- मेख का दिन गेहूं की पक चुकी फसल की कटाई करने का सबसे सटीक दिन माना गया है।
होली और फाग
यह त्यौहार फागुन माह की पूर्णिमा को हरियाणा में सबसे बड़े त्यौहार के तौर पर मनाया जाता है। लोगों में इस त्यौहार का जोश एक सप्ताह पहले से ही चढ़ना शुरू हो जाता है। रंग, कोरडे और पानी के इस त्यौहार के ख़ास आकर्षण इस प्रकार है:
- होली वाले दिन, रात में होलिका-दहन का कार्यक्रम होता है, जिसमे स्त्रियाँ होली की आग में से नारियल (गोला) को घूमाकर प्रार्थना करती है और अपनी इच्छानुसार फल-कामना करती है| होलिका दहन के दौरान, प्रहलाद को बचाने का कार्य देखने लायक होता है।
- रंगों के इस त्यौहार को हरियाणा राज्य में ‘दुल्हंदी- होली’ के नाम से भी जाना जाता है।
- फाग वाले दिन गाँव के युवकों का टोली बनाकर , ढोल लेकर पूरे गाँव की फेरी लगा के आना और पूरे गाँव की भाभियों को चुनौती देते चलना और भाभियों की ये जिद्द की मेरे आगे देखूं कौन ठहर सकता है का जोश और उमंग से लबालब वातावरण, ये सब अद्भुत दृश्य होता है हरियाणा में होली का।
- हरियाणा में इस त्यौहार को एक-दुसरे को रंग लगाकर और पानी डालकर इस त्यौहार को बहुत हंसी खुशी और अहल्डपन के साथ मनाया जाता है।
- हरियाणा में कई जगहों पर होली के एक सप्ताह पहले से कुश्ती दंगल शुरु हो जाते हैं।
सीली-सात्तम
- यह चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की सप्तमी को मनाया जाता है।
- सीली-सात्तम को माना जाता है कि होली-फाग से पहले से भी चला देवर-भाभी का कोरडे का खेल इस विराम ले लेता है यानी होली-फाग के भी सात दिन बाद। और इसी के साथ वो कहावत लागू हो जाती है कि “आई होली भर ले गई झोली”।
- इसके बाद अगला बड़ा त्यौहार आती है – तीज, जो त्योहारों के मौसम का नया बीज बो के जाती है और फिर यह सिलसिला साल-दर-साल यूँ ही चलता जाता है।
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