Accounting Concept

लेखांकन क्या है ?

What Is Accounting In Hindi – Definition of Accounting In Hindi – accounting kya hai ?

लेख एवं अंकन दो शब्दों के मेल से वने लेखांकन में लेख से मतलब लिखने से होता है तथा अंकन से मतलब अंकों से होता है । किसी घटना क्रम को अंकों में लिखे जाने को लेखांकन (Accounting) कहा जाता है ।

किसी खास उदेश्य को हासिल करने के लिए घटित घटनाओं को अंकों में लिखे जाने के क्रिया को लेखांकन कहा जाता है । यहाँ घटनाओं से मतलब उस समस्त क्रियाओं से होता है जिसमे रुपय का आदान-प्रदान होता है ।

सरल शब्दों में लेखांकन का आशय वित्तीय लेन देनों को क्रमबद्व रूप में लेखाबद्व करने, उनका वर्गीकरण करने, सारांश तैयार करने एवं उनको इस प्रकार प्रस्तुत करने से है, जिससे उनका विश्लेषण व निर्वचन हो सके। लेखांकन में सारांश का अर्थ तलपट बनाने से है और विश्लेषण व निर्वचन का आधार अन्तिम खाते होते है, जिनके अन्र्तगत व्यापार खाता, लाभ-हानि खाता तथा चिटटा/स्थिति विवरण या तुलन पत्र तैयार किये जाते है।

Accounting ko हिंदी mein लेखांकन kaha jata है। ये process होता है जो की Financial Aspects (वित्तीय पहलुओ) को record रखता है। Accounting का process किसी भी organization या business में हो रहे financial transactions के बारे में लिखित रूप में जानकारी रखता है।

Accounting में जितना विज्ञान है उतना ही कला भी। ये पैसों के लेनदेन को रिकॉर्ड करता है, वर्गीकृत यानि क्लासिफ़ाइ करते है, और उनके सारांश तैयार करके उनको इस प्रकार प्रस्तुत करते है, जिससे उनका विश्लेषण या निर्वचन हो सके।

Accounting एक विशेष प्रमुख से संबंधित सभी लेनदेन को क्रमबद्व करता है। Account या खाता किसी भी व्यक्ति या चीज़ से संबंधित लेनदेन के सारांश रिकॉर्ड को दर्शाता है। उदाहरण स्वरूप: जब कोई एंटिटी अलग अलग suppliers और consumers के साथ लेनदेन करती है, तो प्रत्येक suppliers और consumers एक अलग खाता होगा।

खाता tangible तथा intangible किसी भी चीजों से संबंधित हो सकता है जैसे की – ज़मीन, बिल्डिंग्स, फर्नीचर, etc. किसी खाते के बाएं हाथ को डेबिट (‘डॉ’) पक्ष कहा जाता है, जबकि दाएं हाथ को क्रेडिट (‘क्र’) पक्ष कहा जाता है।

उदाहरण

किसी व्यवसाय में बहुत बार वस्तु खरीदा जाता है, बहुत बार विक्री होता है । खर्च भी होता रहता है आमदनी भी होता रहता है, कुल मिलाकर कितना खर्च हुआ कितना आमदनी हुआ किन-किन लोगों पर कितना वकाया है तथा लाभ या हानि कितना हुआ, इन समस्त जानकारियों को हासिल करने के लिए व्यवसायी अपने वही में घटित घटनाओं को लिखता रहता है । यही लिखने के क्रिया को लेखांकन कहा जाता है । अतः व्यवसाय के वित्तीय लेन-देनों को लिखा जाना ही लेखांकन है ।

लेखांकन के प्रारंभिक क्रियाओं में निम्नलिखित तीन को शामिल किया जाता है :

    • अभिलेखन (Recording) :

      लेन-देन को पहली बार वही में लिखे जाने के क्रिया को अभिलेखन कहा जाता है । अभिलेखन को रोजनामचा कहते हैं अर्थात Journal भी काहा जाता है ।

    • वर्गीकरण (Classification) :

      अभिलेखित मदों को अलग-अलग भागो में विभाजित कर लिखे जाने के क्रिया को वर्गीकरण कहा जाता है । वर्गीकरण को खाता (Ledger) भी कहते हैं ।

    • संक्षेपण (Summarising) :

      वर्गीकृत मदो को एक जगह लिखे जाने के क्रिया को संक्षेपण कहा जाता है । संक्षेपण को परीक्षासूची (Trial balance) भी कहते हैं ।

आधुनिक युग में व्यवसाय के आकर में वृद्धि के साथ-साथ व्यवसाय की जटिलताओं में भी वृद्धि हुई है। व्यवसाय का संबंध अनेक ग्राहकों, आपूर्तिकर्ताओं तथा कर्मचारियों से रहता है और इसलिए व्यावसायिक जगत में सैकड़ों, हजारों या लाखों लेन-देन हुआ करते हैं। सभी लेन-देन हुआ करते हैं। सभी लेन-देनों को मैखिक रूप से याद रखना कठिन व असम्भव है। हम व्यवसाय का लाभ जानना चाहते हैं और यह भी जानना चाहते हैं कि उसकी सम्पत्तियाँ कितनी हैं, उसकी देनदारियाँ या देयताएँ कितनी हैं, उसकी पूँजी कितनी है आदि-आदि। इन समस्त बातों की जानकारी के लिए लेखांकन की आवश्यकता पड़ती है।

लेखांकन की विशेषताएँ क्या है ?

लेखांकन की निम्नलिखित विशेषताएँ है :

  • लेखांकन व्यवसायिक सौदों के लिखने और वर्गीकृत करने की कला है ।
  • विश्लेषण एवं निर्वचन की सूचना उन व्यक्तियों को सम्प्रेषित की जानी चाहिए जिन्हें इनके आधार पर निष्कर्ष या परिणाम निकालने हैं या निर्णय लेने हैं।
  • यह सारांश लिखने, विश्लेषण और निर्वचन करने की कला है।
  • सौदे मुद्रा में व्यक्त किये जाते हैं।
  • ये लेन-देन पूर्ण या आंशिक रूप से वित्तीय प्रकृति के होते हैं ।

लेखांकन के लाभ क्या है ?

लेखांकन के निम्नलिखित लाभ है :

  • कोई भी व्यक्ति कितना भी योग्य क्यों न हो, सभी बातों को स्मरण नहीं रख सकता है। व्यापार में प्रतिदिन सैकड़ों लेन-देन होते हैं, वस्तुओं का क्रय-विक्रय होता है। ये नकद और उधार दोनों हो सकते हैं। मजदूरी, वेतन, कमीशन, आदि के रूप में भुगतान होते हैं। इन सभी को याद रखना कठिन है। लेखांकन इस आभाव को दूर कर देता है।
  • लेखांकन से व्यवसाय से संबंधित कई महत्वपूर्ण सूचनाएँ प्राप्त होती हैं जैसे :
    लाभ-हानि की जानकारी होना।
    सम्पत्ति तथा दायित्व की जानकारी होना ।
    कितना रुपया लेना है और कितना रुपया देना है ।
    व्यवसाय की आर्थिक स्थिति कैसी है, आदि।
  • अन्य व्यापारियों से झगड़ें होने की स्थिति में लेखांकन अभिलेखों को न्यायालय में प्रमाण के रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है। न्यायालय प्रस्तुत किये लेखांकन को मान्यता प्रदान करता है।
  • वित्तीय लेखा से कर्मचारियों के वेतन, बोनस, भत्ते, आदि से संबंधित समस्याओं के निर्धारण में मदद मिलती है।

लेखांकन के कार्य क्या है ?

लेखांकन के छः कार्य निम्नलिखित है :

 

  1. लेखात्मक कार्य (Recordative Function) :

    लेखांकन का यह आधारभूत कार्य है। इस कार्य के अन्तर्गत व्यवसाय की प्रारम्भिक पुस्तकों में क्रमबद्ध लेखे करना, उनकों उपयुक्त खातों में वर्गीकृत करना अर्थात उनसे खाते तैयार करना और तलपट बनाने के कार्य शामिल हैं।

  2. व्याख्यात्मक कार्य (Interpretative Function) :

    इस कार्य के अंतगर्त लेखांकन सूचनाओं में हित रखने वाले पक्षों के लिए वित्तीय विवरण व प्रतिवेदन का विश्लेषण एवं व्याख्या शामिल है। तृतीय पक्ष एवं प्रबंधकों की दृष्टि से लेखांकन का यह कार्य महत्वपूर्ण माना गया है।

  3. संप्रेषणात्मक कार्य (Communicating Function) :

    लेखांकन को व्यवसाय की भाषा कहा जाता है। जिस प्रकार भाषा का मुख्य उद्देश्य सम्प्रेषण के साधन के रूप में कार्य करना है क्योंकि विचारों की अभिव्यक्ति भाषा ही करती है, ठीक उसी प्रकार लेखांकन व्यवसाय के वित्तीय स्थिति व अन्य सूचनाएँ उन सभी पक्षकारों को प्रदान करता है जिनके लिए ये आवश्यक हैं।

  4. वैधानिक आवश्यकताओं की पूर्ति करना (Meeting Legal Needs) :

    विभिन्न कानूनों जैसे – कम्पनी, अधिनियम, आयकर अधिनियम, बिक्री कर अधिनियम, आदि द्वारा विभिन्न प्रकार के विवरणों को जमा करने पर बल दिया जाता है। जैसे – वार्षिक खाते, आयकर रिर्टन, बिक्रीकर रिर्टन आदि। ये सभी जमा किये जा सकते हैं यदि लेखांकन ठीक से रखा जाए।

  5. व्यवसाय की सम्पत्तियों की रक्षा करना (Protecting Business Assets) :

    लेखांकन का एक महत्वपूर्ण कार्य व्यवसाय की सम्पतियों की रक्षा करना है। यह तभी सम्भव है, जबकि विभिन्न सम्पतियों का उचित लेखा रखा जाये।

  6. निर्णय लेने में सहायता करना (Facilitating Decision Making) :

    लेखांकन महत्वपूर्ण आँकड़े उपलब्ध कराता है जिससे निर्णयन कार्य में सुविधा होती है।

लेखांकन के उद्देश्य क्या है ?

लेखांकन के निम्नलिखित प्रमुख उद्देश्य है –

  • लेखांकन का प्रथम उद्देश्य सभी व्यावसायिक लेन-देनों का पूर्ण एवं व्यवस्थित रूप से लेखा करना है। सुव्यवस्थित ढंग से लेखा करने से भूल की संभावना नहीं रहती और परिणाम शुद्ध प्राप्त होता है।
  • लेखांकन का दूसरा उद्देश्य एक निश्चित अवधि का लाभ-हानि ज्ञात करना है।
  • लेखांकन का एक उद्देश्य संस्था की वित्तीय स्थिति के संबंध में जानकारी प्राप्त करना है।
  • लेखांकन का एक कार्य वित्तीय वाली सूचनाएँ प्रदान करना है जिससे प्रबंधकों को निर्णय लेने में सुविधा हो, साथ ही सही निर्णय लिये जा सकें। इसके लिए वैकल्पिक उपाय भी लेखांकन उपलब्ध कराता है।
  • व्यवसाय में कई पक्षों के हित होते हैं, जैसे कर्मचारी वर्ग, प्रबंधक, लेनदार, विनियोजक आदि। व्यवसाय में हित रखने वाले विभिन्न पक्षों को उनसे संबंधित सूचनाएँ उपलब्ध कराना भी लेखांकन का एक उद्देश्य है।

उद्देश्य के आधार पर लेखांकन के प्रकार क्या है ?

विभिन्न उद्देश्यों की पूर्ति हेतु अलग-अलग प्रकार की लेखांकन पद्धतियाँ विकसित हुई हैं। इन्हें लेखांकन के प्रकार कहा जाता है।

उद्देश्य के आधार पर लेखांकन के मुख्य प्रकार निम्नलिखित हैं :

  • वित्तीय लेखांकन (Financial Accounting) : वित्तीय लेखांकन वह लेखांकन है जिसके अंतर्गत वित्तीय प्रकृति वाले सौदों को लेखाबद्ध किया जाता है। इन्हें सामन्य लेखाकर्म भी कहते हैं और इन लेखों के आधार पर लाभ-हानि या आय विवरण तथा चिट्ठा तैयार किया जाता है।
  • लागत लेखांकन (Cost Accounting) : लागत लेखांकन वित्तीय लेखा पद्धति की सहायक है। लागत लेखांकन किसी वस्तु या सेवा की लागत का व्यवस्थित व वैज्ञानिक विधि से लेखा करने की प्रणाली है। इसके द्वारा वस्तु या सेवा की कुल लागत तथा प्रति इकाई लागत का सही अनुमान लगाया जा सकता है। इसके द्वारा लागत पर नियंत्रण भी किया जाता है। यह उत्पादन, विक्रय एवं वितरण की लागत भी बताता है।
  • प्रबंध लेखांकन (Management Accounting) : यह लेखांकन की आधुनिक कड़ी है। जब कोई लेखा विधि प्रबंध की आवश्यकताओं के लिए आवश्यक सूचनाएँ प्रदान करती है, तब इसे प्रबंधकीय लेखाविधि कहा जाता है।

Golden Rules Of Accounting क्या है ?

  1. व्यक्तिगत लेखा(Personal Account)

    व्यक्ति एवं संस्था से सम्बंधित लेखा को व्यक्तिगत लेखा कहते है । जैसे मोहन का लेख, शंकर वस्त्रालय का लेखा व्यक्तिगत लेखा हुआ ।

    व्यक्तिगत लेखा का नियम (Rule of Personal Account)

    पाने वाले को नाम (Debit The Receiver)

    देने वाले को जमा (Credit The Giver)

    स्पष्टीकरण :

    जो व्यक्ति कुछ प्राप्त करते हैं उन्हें Receiver कहा जाता है और उन्हें Debit में रखा जाता है । जो व्यक्ति कुछ देते है, उन्हें Giver कहा जाता है और उन्हें Credit में रखा जाता है।

    उदाहरण :

    मोहन को 1000 रुपया दिया गया, मोहन 1000 रुपया ले रहा है वह Receiver हुआ इसलिए उन्हें Debit में रखा जायेगा ।

    सोहन से 1000 रुपया प्राप्त हुआ । सोहन 1000 रुपया देय रहा है वह Giver हुआ । इसलिए उन्हें Credit किया जायेगा ।

  2. वास्तविक लेखा (Real Account)

    वस्तु एवं सम्पति से संबंधित लेखा को वास्तविक लेखा कहतें है । जैसे रोकड़ का लेखा, साईकिल का लेखा वास्तविक लेखा हुआ ।

     

    वास्तविक लेखा का नियम (Rule of Real Account)

    जो आवे उसे नाम (Debit what comes in )

    जो जावे उसे जमा (Credit What goes out)

    स्पष्टीकरण :

    व्यवसाय में जो वस्तुएँ आती है उसे Debit में रखा जाता है और व्यवसाय से जो वस्तुएँ जाती है उसे Credit में रखा जाता है ।

    उदाहरण :

    मोहन से 1000 रुपये प्राप्त हुआ । एक 1000 रुपया आ रही है इसलिए उसे Debit में रखा जाता है ।

    सोहन के हाथ घड़ी बेची गया । घड़ी जा रहा है इसलिए उसे Credit में रखा जायेगा ।

  3. अवास्तविक लेखा (Nominal Account)

    खर्च एवं आमदनी से सम्बन्धित लेखा को अवास्तविक लेखा कहा जाता है । जैसे किराया का लेखा, ब्याज का लेखा अवास्तविक लेखा हुआ ।

    अवास्तविक लेखा का नियम (Rule of Nominal Account)

    सभी खर्च एवं हानियों को नाम (Debit all expenses and losses)

    सभी आमदनी एवं लाभों को जमा (Credit all incomes and gains)

    व्यवसाय में जो खर्च होता है उसके नाम को Debit किया जाता है । इसी प्रकार जो आमदनी होता है उसके नाम को Credit किया जाता है ।

सम्पत्तियाँ (Assets) क्या है ?

सम्पत्तियाँ से आशय उद्यम के आर्थिक स्त्रोत से है जिन्हें मुद्रा में व्यक्त किया जा सकता है, जिनका मूल्य होता है और जिनका उपयोग व्यापर के संचालन व आय अर्जन के लिए किया जाता है।

इस प्रकार हम कह सकते हैं कि सम्पत्तियाँ वे स्त्रोत्र हैं जो भविष्य में लाभ पहुँचाते हैं।

उदाहरण के लिए, मशीन, भूमि, भवन, ट्रक, आदि।

इस तरह सम्पत्तियाँ व्यवसाय के मूलयवान साधन हैं जिन पर व्यवसाय का स्वामित्व है तथा जिन्हें मुद्रा में मापी जाने वाली लागत पर प्राप्त किया गया है।

 

सम्पत्तियों के निम्नलिखित प्रकार है :-

 

  • स्थायी सम्पत्तियाँ (Fixed Assets)

    स्थायी सम्पत्तियों से आशय उन सम्पत्तियों से है जो व्यवसाय में दीर्घकाल तक रखी जाने वाली होती हैं और जो पुनः विक्रय के लिए नहीं हैं।

     

    उदाहरण – भूमि, भवन, मशीन, उपस्कर आदि।

     

  • चालु सम्पत्तियाँ (Current Assets)

    चालु सम्पत्तियाँ से आशय उन सम्पत्तियों से है जो व्यवसाय में पुनः विक्रय के लिए या अल्पावधि में रोकड़ में परिवर्तित करने के लिए रखी जाती हैं। इसलिए इन्हें चालू सम्पत्तियाँ, चक्रीय सम्पत्तियाँ और परिवर्तनशील सम्पत्तियाँ भी कहा जाता है।

    उदाहरण :

    देनदार, पूर्वदत्त व्यय, स्टॉक, प्राप्य बिल, आदि।

     

  • अमूर्त सम्पत्तियाँ (Intangible Assets)

    अमूर्त सम्पत्तियाँ वे सम्पत्तियाँ हैं जिनका भौतिक अस्तित्व नहीं होता है, किन्तु मौद्रिक मूल्य होता है।

    उदाहरण – ख्याति, ट्रेड मार्क, पेटेण्ट्स, इत्यादि।

  • मूर्त सम्पत्तियाँ (Tangible Assets)

    मूर्त सम्पत्तियाँ वे सम्पत्तियाँ हैं जिन्हें देखा तथा छुआ जा सकता हो अर्थात जिनका भौतिक अस्तित्व हो।

    उदाहरण –

    भूमि, भवन, मशीन, संयंत्र, उपस्कर, स्टॉक, आदि।

     

  • क्षयशील सम्पत्तियाँ (Wasting Assets)

    क्षयशील सम्पत्तियाँ वे सम्पत्तियाँ हैं जो प्रयोग या उपभोग के कारण घटती जाती हैं या नष्ट हो जाती हैं।

    उदाहरण –

    खानें, तेल के कुँए, आदि।

पूँजी (Capital) क्या है ?

उस धनराशि को पूँजी कहा जाता है जिसे व्यवसाय का स्वामी व्यवसाय में लगाता है। इसी राशि से व्यवसाय प्रारम्भ किया जाता है।

पूँजी को दो निम्नलिखित भागों में विभाजित किया जाता है :-

    1. स्थिर पूँजी :- सम्पत्तियों को प्राप्त करने के लिए जो धनराशि लगाई जाती है, वह स्थित पूँजी कहलाती है, जैसे – मशीनरी तथा संयंत्र का क्रय, भूमि तथा भवन का क्रय।
    2. कार्यशील पूँजी :- पूँजी का वह भाग जो व्यवसाय के दैनिक कार्यों के लिए इस्तेमाल होता है, कार्यशील पूँजी कहलाता है।

 

कार्यशील पूँजी = चालू सम्पत्तियाँ – चालू दायित्व

लेनदार (Creditor) क्या है ?

जिस व्यक्ति, संस्था, फर्म, कम्पनी या निगम, आदि को उधार क्रय के लिए या ऋण के लिए व्यापारी द्वारा धन देय होता है, वे व्यापारी के लेनदार कहे जाते हैं।

देनदार (Debtor) क्या है ?

वे व्यक्ति, संस्था, फर्म, कम्पनी या निगम, आदि जिनसे धन वसूलना रहता है अथवा जिनके पास संस्था की राशि देय है, उन्हें देनदार (Debtor) कहा जाता है।

खर्च (Expenditure) क्या है ?

सम्पत्ति, माल अथवा सेवाएँ प्राप्त करने के लिए किया गया कोई भी भूटान अथवा सम्पत्ति का हस्तान्तरण खर्च कहलाता है।

खर्च के प्रकार

खर्च दो प्रकार के होते हैं :-

  1. पूँजीगत व्यय (Capital Expenditure)

    स्थायी सम्पत्तियों के क्रय अथवा उनके मूल्य में वृद्धि करने के उद्देश्य से किया गया गैर-आवर्ती व्यय पूँजीगत खर्च कहलाता है।

    उदाहरण

    भूमि, भवन, मशीन, उपस्कर, आदि क्रय करने अथवा इसके निर्माण हेतु किया गया व्यय पूँजीगत व्यय है। पूँजीगत व्यय दीर्घकालीन लाभ प्रदान करता है।

  2. आयगत व्यय (Revenue Expenditure)

    आयगत व्यय वह व्यय है जो आवर्ती प्रकृति का होता है और उसका लाभ एक लेखांकन अवधि में ही प्राप्त हो जाती है। सभी आगत खर्चों को व्यापारिक एवं लाभ-हानि खाते में डेबिट किया जाता है। आयगत खर्च वर्तमान लाभोपार्जन क्षमता बनाए रखने में सहायक होते हैं।

व्यय (Expenses) क्या है ?

आगम की प्राप्ति के लिए प्रयोग की गई वस्तुओं एवं सेवाओं की लागत को व्यय कहते हैं।

व्यय के उदाहरण :-

विज्ञापन व्यय, कमीशन, ह्रास, किराया, वेतन, आदि।

Goods क्या है ?

जिन वस्तुओं का कोई व्यापारी व्यापर करता है, वह उसका माल (Goods) कहलाता है, जैसे – यदि कोई व्यापारी गेहूँ का व्यापर करता है तो गेहूँ उसका माल कहलाएगा।

यदि फर्नीचर का व्यापार करता है तो फर्नीचर उसका माल कहलाएगा।

तो हम इसे ऐसे भी कह सकते है कि जब किसी वस्तु का निर्माण या क्रय, बिक्री करने के उद्देश्य से होता है तो वह माल कही जाती है।

आय (Income) क्या है ?

आगम में से व्यय घटाने पर जो शेष बचता है, उसे आय (Income) कहा जाता है।

आय = आगम – व्यय

आगम (Revenue) क्या है ?

आगम से आशय व्यवसाय की आय से है। इसका अभिप्राय नियमित रूप से प्राप्त होने वाली आय या आवर्ती प्रकृति की आय से भी है। आगम से पूँजी में अभिवृद्धि होती है।

आगम का उदाहरण

माल के विक्रय से प्राप्तियाँ, अर्जित ब्याज, अर्जित कमीशन, अर्जित किराया, अर्जित लाभांश, अर्जित बट्टा, आदि।

दायित्व (Liabilities) क्या है ?

वह, धन जो व्यावसायिक उपक्रम को दूसरों को देना है, दायित्व कहा जाता है ; जैसे लेनदार, देय बिल, ऋण एवं अधिविकर्ष इत्यादि।

इस प्रकार दायित्व देयताएँ हैं, ये सभी राशियाँ हैं, जो लेनदारों को भविष्य में देय हैं।

दायित्व के निम्नलिखित प्रकार है :-

 

  • स्थायी दायित्व – दीर्घकालिक या स्थायी दायित्वों से अभिप्राय ऐसे दायित्वों से है जिनका भुगतान एक लम्बी अवधि के पश्चात होना है।

    उदाहरण के लिए ऋण-पत्र दीर्घकालिक ऋण, दीर्घकालिक जमाएँ।

  • चालू ऋण -चालू ऋण वे ऋण कहलाते हैं जिनका भुगतान अल्प अवधि में किया जाना है। जैसे देय विपत्र, विविध लेनदार, बैंक अधिविकर्ष, अदत्त व्यय आदि।

Prepaid Expense क्या है ?

जो खर्च पहले ही चूका दिया जाता है उसे Prepaid Expense(पूर्वदत्त व्यय ) कहा जाता है।

Accrued Income क्या है ?

जो आमदनी प्राप्त होना बाकी होता है, उसे Accrued Income (उपार्जित आय ) कहा जाता है।

Good Will क्या है ?

What Is Good Will In Hindi – Goodwill Meaning in Hindi – Goodwill Meaning Kya Hai ?

अतिरिक्त लाभ अर्जित करने को Good Will कहा जाता है।

दूसरे शब्दों में हम यू भी कह सकते है कि वह युक्ति जिसके द्वारा व्यवसायी अधिक लाभ अर्जित करने में सफल होता है उसे Good Will (ख्याति )कहा जाता है। Goodwill जिसे हम ख्याति भी कहते है,उसका मतलब होता है प्रतिष्ठा ,किसी भी व्यापार में अपनी अच्छी services और products को बेचकर बनाई हुई प्रतिष्ठा,नाम ,respect इत्यादि कह सके है ,अपनी अच्छी services देकर बनाया हुआ नाम जो आपकी sales बढ़ाता हो goodwill कहलाता है

Goodwill का मतलब है, किसी भी व्यापार में अपनी अच्छी Service और अच्छी Products को बेचकर कमाया हुआ नाम। जिस नाम और ईज़्ज़त की वजह से वह व्यापारी अन्य व्यापारियों से ज्यादा सामान बेचता है। और ज्यादा सामान बेचने से वह ज्यादा पैसा कमाता है।

Example Of Good Will – Goodwill का उदाहरण

उदाहरण के तौर पर Company A जो की कुछ महीनो पहले ही शुरू हुई है, उसने बाजार में अपना Toothpaste लाया। क्या सिर्फ कुछ दिनों में ही उसके Toothpaste बाजार में पहले से बिक रहे Colgate के Toothpaste से ज्यादा बिकने लगेंगे ? नहीं ना ? तो इसका कारण क्या है ? इसका कारण है, की बाजार में नई आने से अभी इस कंपनी को या उसके Toothpaste को कोई जानता नहीं है। जबकि Colgate भारत में पहली बार 1957 में शुरू हुई थी।

इस से पहले हम Assets और Liabilities तथा उसके प्रकार के बारे में जान चुके है। आज हम एक और Asset के बारे में जानेंगे जो है, Goodwill. हम जानेंगे की Goodwill क्या है और इसी Entry किस जगह पर की जाती है ? तो आइए जानते है, Goodwill Meaning in Hindi क्या है ? Goodwill का मतलब है, किसी भी व्यापार में अपनी अच्छी Service और अच्छी Products को बेचकर कमाया हुआ नाम। जिस नाम और ईज़्ज़त की वजह से वह व्यापारी अन्य व्यापारियों से ज्यादा सामान बेचता है। और ज्यादा सामान बेचने से वह ज्यादा पैसा कमाता है। उदाहरण के तौर पर Company A जो की कुछ महीनो पहले ही शुरू हुई है, उसने बाजार में अपना Toothpaste लाया। क्या सिर्फ कुछ दिनों में ही उसके Toothpaste बाजार में पहले से बिक रहे Colgate के Toothpaste से ज्यादा बिकने लगेंगे ? नहीं ना ? तो इसका कारण क्या है ? इसका कारण है, की बाजार में नई आने से अभी इस कंपनी को या उसके Toothpaste को कोई जानता नहीं है। जबकि Colgate भारत में पहली बार 1957 में शुरू हुई थी। उसने इतने सालो में अपनी Products से अपना ऐसा नाम बना लीया है की बहुत से लोग Toothpaste को Toothpaste नहीं बल्कि Colgate के नाम से जानते है। जैसे जब वो नया Toothpaste खरीदने जाएंगे तब दुकानदार से कहेंगे एक नया Colgate देना भाई। इन चीज़ो की वजह से ही नई Company A का Toothpaste Colgate के Toothpaste से बहुत कम ही बिकेगा।

जिस से Company A की तुलना में Colgate को ज्यादा मुनाफा होगा। इन्ही चीज़ो से बने Colgate के नाम को Goodwill कहते है। इस Goodwill की वजह से Colgate के toothpaste की बिक्री बड़ी। और इस वजह से इस Goodwill को Colgate की Asset कहेंगे। लेकिन इसे देख या छु नहीं सकते इसे लिए इसको Intangible Asset कहेंगे। इस तरह Goodwill एक Intangible Asset है, जिसकी वजह से कंपनी अपने प्रतिस्पर्धिओ से ज्यादा Products बेच सकती है।

एक निवेशक के नजरिए से हमें यह जरूर जानना चाहिए की किसी भी कंपनी की Goodwill की किमत कैसे पता करे ? तो इसका जवाब है, उसकी Balance Sheet में से। Goodwill एक Intangible Asset होने की वजह से इसकी किमत हम कंपनी की Balance Sheet में Non – Current Assets में से देख सकते है। लेकिन यह भी जान ले की आपको Goodwill ज्यादातर उन्ही कंपनीओ की Balance Sheet में से मिलेगी जो बहुत सालो से चल रही है। क्युकी Colgate के उदाहरण से हमने जाना की Goodwill एक दिन या कुछ महीनो में नहीं बनती है। इसको बनने में सालो लग सकते है। और वह भी अगर कंपनी अच्छी Products और Service दे तो ही।

व्यापार में Goodwill बनाना क्यु जरुरी है ?

Colgate के उदाहरण से हमने देखा की Goodwill Company की Products को बाकी Products से ज्यादा बिकने में मदद करती है। इस लिए किसी भी व्यापार में Goodwill बनाना बहुत ही आवश्यक है।

Patent Right क्या है ?

किसी ख़ास वस्तु को बनाने का जो अधिकार प्राप्त हुआ होता है Patent Right कहा जाता है।

Mortgage Loan क्या है ?

सम्पत्ति के बंधक के बदले लिए गए कर्ज को Mortgage Loan (बंधक ऋण )कहा जाता है। बंधक एक ऋण है जिसमें संपत्ति या अचल संपत्ति को संपार्श्विक के रूप में उपयोग किया जाता है। उधारकर्ता ऋणदाता (आमतौर पर एक बैंक) के साथ एक समझौते में प्रवेश करता है जिसमें उधारकर्ता को नकद अग्रिम प्राप्त होता है, फिर वह एक निर्धारित समय अवधि पर भुगतान करता है जब तक वह पूरी तरह से ऋणदाता को वापस भुगतान नहीं करता है।

बंधक (Mortgage)कानूनी रूप से बाध्यकारी है और उधारकर्ता को नोट की शर्तों पर चूक होने पर उधारकर्ता के घर के खिलाफ कानूनी दावा करने का अधिकार देने में नोट सुरक्षित करता है।

बंधक आमतौर पर मासिक भुगतान के रूप में भुगतान किया जाता है जिसमें ब्याज और सिद्धांत शामिल होते हैं। प्रिंसिपल उधार ली गई मूल राशि का पुनर्भुगतान है, जो शेष को कम करता है। दूसरी ओर, ब्याज पिछले महीने के लिए मूल राशि उधार लेने की लागत है।

Bank Overdraft क्या है ?

बैंक से अधिक निकाले गये राशि को Bank Overdraft कहा जाता है। जब कोई खाता शून्य तक पहुंच जाता है तो एक ओवरड्राफ्ट उधार संस्था से क्रेडिट का विस्तार होता है। एक ओवरड्राफ्ट व्यक्ति को धन वापस लेने की अनुमति देता है भले ही खाते में कोई धन न हो या वापसी को कवर करने के लिए पर्याप्त न हो। असल में, ओवरड्राफ्ट का मतलब है कि बैंक ग्राहकों को एक निश्चित राशि उधार लेने की अनुमति देता है।

आपका बैंक अपने ओवरड्राफ्ट को कवर करने के लिए अपने स्वयं के धन का उपयोग करने का विकल्प चुन सकता है। एक और विकल्प ओवरड्राफ्ट को क्रेडिट कार्ड से जोड़ना है। यदि बैंक आपके ओवरड्राफ्ट को कवर करने के लिए अपने स्वयं के धन का उपयोग करता है, तो यह आमतौर पर आपके क्रेडिट स्कोर को प्रभावित नहीं करेगा।

ओवरड्राफ्ट सुरक्षा आपको अपने चेकिंग खाते को प्रबंधित करने के लिए एक मूल्यवान टूल प्रदान करती है।

इस तरह हम कह सकते है कि एक बैंक ओवरड्राफ्ट बैंक चालू खाते पर लचीली (Flexible) उधार सुविधा है जो मांग पर चुकाया जा सकता है।

लेखांकन विज्ञान है अथवा कला ?

लेखांकन व्यवसाय के लेखे एवं घटनाओं को, मुद्रा में प्रभावपूर्ण विधि से लिखने, वर्गीकृत करने और सारांश में व्यक्त करने एवं उनके परिणामों की व्याख्या करने की कला है।

लेखांकन एक विज्ञान है क्योंकि इसमें विषय-वस्तु का क्रमबद्ध तथा व्यवस्थित अध्ययन किया जाता है। लेखांकन के अपने सिद्धांत व नियम हैं।

अतः लेखांकन एक विज्ञान है और साथ ही साथ यह एक कला भी है।

कर लेखांकन (Tax Accounting) क्या है ?

भारत और अन्य देशों में सरकारी काम-काज के लिए की प्रकार के कर लगाये जाते हैं, जैसे – आयकर, सम्पदा कर, बिक्री कर, उपहार कर, मृत्यु कर आदि।

कर व्यवस्थाओं के लिए विशेष प्रकार की लेखांकन पद्धति अपनायी जाती है। कर व्यवस्थाओं के अनुसार रखे जाने वाले लेखांकन को कर लेखांकन (कर लेखांकन (Tax Accounting)) कहा जाता है।

सरकारी लेखांकन (Government Accounting ) क्या है ?

केन्द्रीय सरकार, राज्य सरकार एवं स्थानीय सरकार जो लेखांकन पद्धति अपनाती हैं, उसे सरकारी लेखांकन कहा जाता है।

सामाजिक लेखांकन (Social Accounting ) क्या है ?

किसी राष्ट्र की आर्थिक क्रियाओं को उचित ढंग से क्रमबद्ध करना ही सामाजिक लेखांकन (Social Accounting ) कहलाता है। ये क्रियाएँ विभिन्न कार्य संबंधी वर्गों में बाँटी जाती हैं। लेखांकन की यह विधि किसी राष्ट्र में निर्धारित अवधि में हुए सामाजिक-आर्थिक परिवर्तनों को वृहत रूप में प्रकट करती हैं, इसे राष्ट्रीय लेखांकन भी कहा जाता है।

मानव संसाधन लेखांकन (Human Resource Accounting )क्या है ?

लेखांकन जगत में मानव शक्ति के मूल्यांकन एवं लेखों में दर्ज कर वित्तीय परिणामों को प्रदर्शित करने के एक नयी प्रणाली विकसित होने लगी है जिसे मानव संसाधन लेखांकन (Human Resource Accounting ) कहा जाता है।

लेखांकन में लेखांकन के विभिन्न कदम (Steps) क्या है ?

लेखांकन के निम्नलिखित कदम (Steps) है :

    1. आर्थिक घटनाएॅ :- व्यावसायिक संगठनों का सम्बन्ध आर्थिक/वित्तीय घटनाओं से होता है, जिन्हें मुद्रा के रूप में मापा जा सकता है। माल का क्रय, मशीनरी का क्रय, वस्तुओं एवं सेवाओं की बिक्री, इत्यादि आर्थिक घटनाएॅ है।

 

    1. व्यावसायिक लेन-देनों की पहचान करना :- इसका अभिप्राय यह निर्धारित करना है कि किन लेन-देनों का लेखा किया जाए अर्थात उन घटनाओ की पहचान करना जिनका अभिलेखन किया जाना है।

 

    1. लेन-देनों का मापन :- लेखा पुस्तकों में उन्हीं लेन-देनों का अभिलेखन किया जाता है, जिनका मूल्यांकन मुद्रा के रूप में सम्भव है। उदाहरण के लिए, माल की आपूर्ति हेतु आदेश देना, कर्मचारियों की नियुक्ति महत्वपूर्ण घटनाएॅ है, पर इनका लेखा नहीं किया जाता है, क्योंकि ये मुद्रा के रूप में मापनीय नहीं है।

 

    1. अभिलेखन :- लेखा-पुस्तकों में वित्तीय स्वभाव के लेन-देनों का लेखा तिथिवार नियमानुसार किया जाता है। अभिलेखन इस प्रकार किया जाता है कि परम्परा के अनुसार इनका सारांश तैयार किया जा सके।

 

    1. सम्प्रेषण :- लेखांकन सूचनाओं का उपयोग विभिन्न प्रकार के लोग व संगठन करते है। अतः लेन-देनों का अभिलेखन इस प्रकार किया जाता है एवं सारांश इस प्रकार तैयार किया जाता है कि लेखांकन सूचनाएॅ आन्तरिक एवं बाहय उपयोगकर्ताओं के लिए उपयोगी हो सकें। लेखांकन सूचना लेखा प्रलेखों के माध्यम से नियमित रूप से सम्प्रेषित की जाती है।

 

    1. संगठन :- संगठन से अभिप्राय किसी व्यावसायिक उ़द्यम से है, जिसका उददेश्य लाभ कमाना है या लाभ कमाना नही है।

 

  1. सूचना में अभिरूचि रखने वाले उपयोगकर्ता :- लेखांकन सूचना के आधार पर विभिन्न उपयोगकर्ता निर्णय लेते है। सूचनाओं के उपयोगकर्ताओं में निवेशक, लेनदार, बैक, वित्तीय संस्थाएॅ, प्रबन्धक, कर्मचारी आदि उल्लेखनीय है।

Topic

लेख एवं अंकन दो शब्दों के मेल से वने लेखांकन में लेख से मतलब लिखने से होता है तथा अंकन से मतलब अंकों से होता है । किसी घटना क्रम को अंकों में लिखे जाने को लेखांकन (Accounting) कहा जाता है ।

किसी खास उदेश्य को हासिल करने के लिए घटित घटनाओं को अंकों में लिखे जाने के क्रिया को लेखांकन कहा जाता है । यहाँ घटनाओं से मतलब उस समस्त क्रियाओं से होता है जिसमे रुपय का आदान-प्रदान होता है ।

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