सविधान की विशेषताए की जानकारी

भारतीय संविधान की प्रमुख विशेषताएँ

सबसे लंबा लिखित संविधान:
    • भारत का संविधान विश्व के सभी लिखित संविधानों में सबसे लंबा है। यह एक अति व्यापक, और विस्तृत दस्तावेज़ है।
    • मूलतः (1949) संविधान में एक प्रस्तावना, 395 अनुच्छेद (22 भागों में विभाजित) और 8 अनुसूचियाँ थीं।
      • वर्तमान में (2019), इसमें एक प्रस्तावना, लगभग 470 अनुच्छेद (25 भागों में विभाजित) और 12 अनुसूचियाँ शामिल हैं।
विस्तृतता के कारण:
      • भौगोलिक कारक अर्थात् देश की विशालता और उसकी विविधता।
      • ऐतिहासिक कारक जैसे भारत सरकार अधिनियम, 1935 का प्रभाव, जो बहुत बड़ा था।
      • केंद्र और राज्य दोनों के लिये एक ही संविधान।
      • संविधान सभा में विधिवेत्ताओं का प्रभुत्व।
      • विस्तृत प्रशासनिक प्रावधान।
विभिन्न स्रोतों से प्राप्त:
स्रोत
उधार ली गई सुविधाएँ 

भारत सरकार अधिनियम, 1935

संघीय योजना, राज्यपाल का कार्यालय, न्यायपालिकालोक सेवा आयोगआपातकालीन प्रावधान, प्रशासनिक विवरण

ब्रिटिश संविधान

संसदीय सरकार, विधि का शासन, विधायी प्रक्रिया, एकल नागरिकता, कैबिनेट प्रणाली, विशेषाधिकार रिट, संसदीय विशेषाधिकार, द्विसदनीयता

अमेरिकी संविधान

मौलिक अधिकारन्यायपालिका की स्वतंत्रतान्यायिक समीक्षाराष्ट्रपति पर महाभियोगसर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को हटाना, उपराष्ट्रपति का पद

आयरिश संविधान

राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतराज्यसभा के सदस्यों का नामांकन, राष्ट्रपति के चुनाव की पद्धति

कनाडा का संविधान

एक मज़बूत केंद्र के साथ संघ, केंद्र में अवशिष्ट शक्तियों का निहित होना, केंद्र द्वारा राज्यों के राज्यपालों की नियुक्ति, सर्वोच्च न्यायालय का सलाहकार क्षेत्राधिकार

ऑस्ट्रेलियाई संविधान

समवर्ती सूची, व्यापार, वाणिज्य और अंतर-संचालन की स्वतंत्रता, संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक

जर्मनी का वाइमर संविधान

आपातकाल के दौरान मौलिक अधिकारों का निलंबन

सोवियत संविधान (USSR, अब रूस)

प्रस्तावना में मौलिक कर्तव्य, न्याय का आदर्श (सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक)

फ्राँसीसी संविधान

प्रस्तावना में गणतंत्र और स्वतंत्रतासमानता तथा बंधुत्व के आदर्श

दक्षिण अफ्रीकी संविधान

संविधान संशोधन की प्रक्रिया, राज्यसभा के सदस्यों का निर्वाचन

जापानी संविधान

विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया

कठोरता और लचीलेपन का मिश्रण:
    • भारत का संविधान न तो कठोर है और न ही लचीला है, बल्कि दोनों का मिश्रण है।
    • अनुच्छेद 368 में दो प्रकार के संशोधनों का प्रावधान है:
      • कुछ प्रावधानों में संसद के विशेष बहुमत, अर्थात् प्रत्येक सदन के उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत तथा प्रत्येक सदन की कुल सदस्यता के बहुमत द्वारा संशोधन किया जा सकता है।
      • कुछ अन्य प्रावधानों में संसद के विशेष बहुमत तथा कुल राज्यों के आधे से अधिक सदस्यों के अनुमोदन से संशोधन किया जा सकता है।
    • संविधान के कुछ प्रावधानों को सामान्य विधायी प्रक्रिया के अनुसार संसद के साधारण बहुमत द्वारा संशोधित किया जा सकता है।
      • ये संशोधन अनुच्छेद 368 के अंतर्गत नहीं आते
एकात्मक पूर्वाग्रह वाली संघीय प्रणाली:
    • भारत का संविधान संघीय शासन प्रणाली स्थापित करता है। 
    • संविधान की संघीय विशेषता के अंतर्गत- द्वैध शासन प्रणालीलिखित संविधान, शक्तियों का विभाजन, संविधान की सर्वोच्चता, कठोर संविधान, स्वतंत्र न्यायपालिका और द्विसदनीयता जैसी सामान्य विशेषताएँ पाई जाती हैं।
    • हालाँकि भारतीय संविधान में कई एकात्मक या गैर-संघीय विशेषताएँ भी हैं, जैसे कि एक सुदृढ़ केंद्र, एकल संविधान, एकल नागरिकता, संविधान की नम्रता, एकीकृत न्यायपालिका, केंद्र द्वारा राज्यपाल की नियुक्ति, अखिल भारतीय सेवाएँ, आपातकालीन प्रावधान इत्यादि। 
    • संविधान में कहीं भी ‘संघ’ शब्द का प्रयोग नहीं किया गया है।
    • दूसरी ओर अनुच्छेद 1 भारत को ‘राज्यों का संघ‘ बताता है, जिसका अर्थ है: 
      • भारतीय संघ राज्यों के बीच किसी समझौते का परिणाम नहीं है तथा 
      • किसी भी राज्य को संघ से अलग होने का अधिकार नहीं है।
    • भारतीय संविधान को विभिन्न रूप से ‘स्वरूप में संघीय लेकिन भावना में एकात्मक’, के.सी. व्हेयर द्वारा ‘अर्द्ध-संघीय, मॉरिस जोन्स द्वारा सौदाकारी संघवाद, ग्रैनविल ऑस्टिन द्वारा ‘सहकारी संघवाद, आइवर जेनिंग्स द्वारा केंद्रीकरण की प्रवृत्ति वाला संघ’ के रूप में वर्णित किया गया है।
संसदीय शासन प्रणाली:
    • भारत के संविधान ने अमेरिकी राष्ट्रपति शासन प्रणाली के बजाय ब्रिटिश संसदीय शासन प्रणाली को चुना है।
    • संविधान न केवल केंद्र में बल्कि राज्यों में भी संसदीय प्रणाली स्थापित करता है।
    • भारत में संसदीय सरकार की विशेषताएँ हैं:
      • नाममात्र और वास्तविक कार्यकारी अधिकारियों की उपस्थिति
      • बहुमत दल का शासन
      • कार्यपालिका की विधायिका के प्रति सामूहिक जिम्मेदारी
      • विधायिका में मंत्रियों की सदस्यता
      • प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री का नेतृत्व
      • निचले सदन (लोकसभा या विधानसभा) का विघटन
    • भले ही भारतीय संसदीय प्रणाली काफी हद तक ब्रिटिश पैटर्न पर आधारित है, लेकिन दोनों में कुछ मूलभूत अंतर हैं।
      • उदाहरण के लिये, भारतीय संसद ब्रिटिश संसद की तरह संप्रभु निकाय नहीं है।
      • भारतीय राज्य का एक निर्वाचित प्रमुख (गणतंत्र) होता है जबकि ब्रिटिश राज्य का एक वंशानुगत प्रमुख (राजतंत्र) होता है।
संसदीय संप्रभुता और न्यायिक सर्वोच्चता का संश्लेषण:
    • संसद की संप्रभुता का सिद्धांत ब्रिटिश संसद से जुड़ा है, जबकि न्यायिक सर्वोच्चता का सिद्धांत अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट से जुड़ा है।
    • अमेरिकी संविधान भारतीय संविधान (अनुच्छेद 21) में निहित विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया’ के विरुद्ध ‘विधि की उचित प्रक्रिया’ का प्रावधान करता है। 
    • इसलिये भारतीय संविधान के निर्माताओं ने संसदीय संप्रभुता के ब्रिटिश सिद्धांत और न्यायिक सर्वोच्चता के अमेरिकी सिद्धांत को उचित रूप से संयोजित किया गया।
      • एक ओर सर्वोच्च न्यायालय न्यायिक समीक्षा की पनी शक्ति के माध्यम से संसदीय कानूनों को असंवैधानिक घोषित कर सकता है
      • दूसरी ओर संसद अपनी संवैधानिक शक्ति के माध्यम से संविधान के बड़े हिस्से में संशोधन कर सकती है।
एकीकृत और स्वतंत्र न्यायपालिका:
    • भारतीय संविधान एक ऐसी न्यायिक प्रणाली स्थापित करता है, जो एकीकृत होने के साथ-साथ स्वतंत्र भी है। 
    • देश में एकीकृत न्यायिक प्रणाली के शीर्ष पर सर्वोच्च न्यायालय है। इसके नीचे राज्य स्तर पर उच्च न्यायालय हैं। 
    • उच्च न्यायालय के अंतर्गत अधीनस्थ न्यायालयों का एक पदानुक्रम होता है, अर्थात ज़िला न्यायालय और अन्य निचली अदालतें। 
    • न्यायालयों की यह एकल प्रणाली केंद्रीय कानूनों के साथ-साथ राज्य कानूनों को भी लागू करती है। 
    • सर्वोच्च न्यायालय एक संघीय न्यायालय है, अपील की सर्वोच्च न्यायालय/अदालत है, नागरिकों के मौलिक अधिकारों का गारंटर है और संविधान का संरक्षक है।
    • संविधान ने न्यायाधीशों के कार्यकाल की सुरक्षा, न्यायाधीशों के लिये निश्चित सेवा शर्तें आदि सहित इसकी स्वतंत्रता सुनिश्चित करने हेतु विभिन्न प्रावधान किये हैं।

मौलिक अधिकार:

  • भारतीय संविधान का भाग III सभी नागरिकों को छह मौलिक अधिकारों की गारंटी देता है: 
    • भारतीय संविधान का भाग III सभी नागरिकों को छह मौलिक अधिकारों की गारंटी देता है:
अधिकार
अनुच्छेद 

समानता का अधिकार

14-18

स्वतंत्रता का अधिकार

19-22

शोषण के विरुद्ध अधिकार

23-24

धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार

25-28

सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकार

29-30

संवैधानिक उपचारों का अधिकार

32

राज्य के नीति निदेशक सिद्धांत:
    • डॉ. बी.आर. अंबेडकर के अनुसार राज्य के नीति निदेशक सिद्धांत भारतीय संविधान की एक ‘नई विशेषता’ है। 
    • इन्हें संविधान के भाग IV में सूचीबद्ध किया गया है। 
    • इन्हें तीन व्यापक श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है:
      • समाजवादी
      • गांधीवादी
      • उदार बुद्धिजीवी 
    • मौलिक अधिकारों के विपरीत ये निर्देश गैर-न्यायोचित हैं अर्थात इनके उल्लंघन के लिये  न्यायालय इन्हें लागू नहीं कर सकता है। 
    • संविधान स्वयं घोषित करता है कि ‘ये सिद्धांत देश के शासन में मौलिक हैं और कानून बनाने में इन सिद्धांतों को लागू करना राज्य का कर्त्तव्य होगा’।
मौलिक कर्त्तव्य:
    • मूल संविधान में नागरिकों के मौलिक कर्त्तव्यों का प्रावधान नहीं था।
    • स्वर्ण सिंह समिति की सिफारिश पर 42वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1976 द्वारा आंतरिक आपातकाल (1975-77) के दौरान इन्हें जोड़ा गया था।
    • 86वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2002 ने एक और मौलिक कर्त्तव्य जोड़ा।
    • संविधान के भाग IV-A (जिसमें केवल एक अनुच्छेद 51-A शामिल है) में ग्यारह मौलिक कर्त्तव्यों का उल्लेख है।
    • मौलिक कर्त्तव्य नागरिकों को यह स्मरण कराते हैं कि अपने अधिकारों का प्रयोग करने के साथ-साथ उन्हें अपने देश, समाज और साथी नागरिकों के प्रति अपने कर्त्तव्यों के संबंध में भी सचेत रहना चाहिये। 
    • ये भी गैर-न्यायोचित प्रकृति के हैं।
एक धर्मनिरपेक्ष राज्य:
    • भारत का संविधान एक धर्मनिरपेक्ष राज्य का प्रतीक है। 
    • यह किसी विशेष धर्म को भारतीय राज्य के आधिकारिक धर्म के रूप में मान्यता नहीं देता है। 
    • भारतीय संविधान धर्मनिरपेक्षता की सकारात्मक अवधारणा को मूर्त रूप देता है अर्थात् सभी धर्मों को समान सम्मान देना या सभी धर्मों की समान रूप से रक्षा करना।
सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार:
    • भारतीय संविधान ने लोक सभा और राज्य विधानसभाओं के चुनावों के आधार के रूप में सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार को अपनाया है।
    • प्रत्येक नागरिक जिसकी आयु 18 वर्ष से कम नहीं है, उसे जाति, नस्ल, धर्म, लिंग, साक्षरता, धन आदि के आधार पर बिना किसी भेदभाव के वोट देने का अधिकार है।
    • 61वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1988 द्वारा वर्ष 1989 में मतदान की आयु 21 वर्ष से घटाकर 18 वर्ष कर दी गई।
एकल नागरिकता: 
    • भारतीय संविधान संघीय है और इसमें दोहरी राजनीति (केंद्र तथा राज्य) की परिकल्पना की गई है, लेकिन इसमें केवल एकल नागरिकता  अर्थात् भारतीय नागरिकता का प्रावधान है।
    • भारत में सभी नागरिक चाहे वे जिस भी राज्य में पैदा हुए हों या रहते हों, पूरे देश में नागरिकता के समान राजनीतिक और नागरिक अधिकारों का आनंद लेते हैं तथा उनके साथ कोई भेदभाव नहीं किया जाता।
स्वतंत्र निकाय:
    • भारतीय संविधान भारत में लोकतांत्रिक सरकार प्रणाली की सुरक्षा के लिये प्रमुख स्तंभों के रूप में स्वतंत्र निकायों की स्थापना करता है:
      • स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने हेतु निर्वाचन आयोग। 
      • केंद्र व राज्य सरकारों के खातों का लेखा-परीक्षण करने हेतु भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक। 
      • अखिल भारतीय सेवाओं और उच्च केंद्रीय सेवाओं में भर्ती के लिये परीक्षा आयोजित करने तथा अनुशासनात्मक मामलों पर राष्ट्रपति को सलाह देने हेतु संघ लोक सेवा आयोग। 
      • राज्य सेवाओं में भर्ती के लिये परीक्षा आयोजित करने तथा अनुशासनात्मक मामलों पर राज्यपाल को सलाह देने हेतु प्रत्येक राज्य में राज्य लोक सेवा आयोग
आपातकालीन प्रावधान:
    • भारतीय संविधान में राष्ट्रपति को किसी भी असाधारण स्थिति से प्रभावी ढंग से निपटने में सक्षम बनाने के लिये विस्तृत आपातकालीन प्रावधान हैं
    • इन प्रावधानों को शामिल करने के पीछे तर्क यह है कि देश की संप्रभुता, एकता, अखंडता व सुरक्षा, लोकतांत्रिक राजनीतिक प्रणाली और संविधान की रक्षा की जाए।
    • संविधान में तीन प्रकार की आपात स्थितियों की परिकल्पना की गई है:
      • युद्ध या बाहरी आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह के आधार पर राष्ट्रीय आपातकाल (अनुच्छेद 352)। 
      • राज्यों में संवैधानिक तंत्र की विफलता (अनुच्छेद 356) या केंद्र के निर्देशों का पालन करने में विफलता (अनुच्छेद 365) के आधार पर राज्य आपातकाल (राष्ट्रपति शासन) 
      • भारत की वित्तीय स्थिरता या ऋण के खतरे के आधार पर वित्तीय आपातकाल (अनुच्छेद 360)।  
त्रिस्तरीय सरकार:
    • मूल रूप से भारतीय संविधान में दोहरी राजनीति का प्रावधान था और इसमें केंद्र तथा राज्यों के संगठन एवं शक्तियों के संबंध में प्रावधान थे।
    • 73वें और 74वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1992 ने सरकार का एक तीसरा स्तर (यानी स्थानीय) जोड़ा है जो विश्व के किसी अन्य संविधान में नहीं पाया जाता है।
      • 73वें संशोधन अधिनियम, 1992 ने संविधान में एक नया भाग IX और एक नई अनुसूची 11 जोड़कर पंचायतों (ग्रामीण स्थानीय सरकारों) को संवैधानिक मान्यता दी।
      • 74वें संशोधन अधिनियम, 1992 ने संविधान में एक नया भाग IX-A और एक नई अनुसूची 12 जोड़कर नगर पालिकाओं (शहरी स्थानीय सरकारों) को संवैधानिक मान्यता दी।
सहकारी समितियाँ:
    • 97वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2011 ने सहकारी समितियों को संवैधानिक दर्जा और संरक्षण दिया।
भारतीय संविधान की आलोचनाएँ क्या हैं?
आलोचना
खंडन

उधार लिया गया संविधान

संविधान निर्माताओं ने भारतीय परिस्थितियों के अनुरूप उधार ली गई विशेषताओं को अनुकूलित और संशोधित किया ताकि उनकी कमियों को दूर रखा जा सके।

भारत सरकार अधिनियम, 1935 की कार्बन कॉपी

हालाँकि कई प्रावधान उधार लिये गए थे, किंतु संविधान केवल एक प्रति नहीं है। इसमें महत्त्वपूर्ण परिवर्तन और परिवर्धन शामिल हैं।

गैर-भारतीय या भारतीय विरोधी

विदेशी स्रोतों से उधार लिये जाने के बावजूद संविधान भारतीय मूल्यों और आकांक्षाओं को दर्शाता है।

गैर-गांधीवादी

हालाँकि यह स्पष्ट रूप से गांधीवादी नहीं है, किंतु  संविधान गांधी के अनेक सिद्धांतों के साथ संरेखित है।

हाथी के आकार (Elephantine)का

भारत की विविधता और जटिलता को प्रबंधित करने के लिये संविधान की विस्तृत प्रकृति आवश्यक है।

वकीलों का स्वर्ग

स्पष्टता और प्रवर्तनीयता के लिये कानूनी भाषा आवश्यक है।

निष्कर्ष
  • भारतीय संविधान एक गतिशील और अनुकूलनीय दस्तावेज़ है, जो भारत की जटिल विविधता और विकसित होते सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य को दर्शाता है। कठोरता और लचीलेपन का इसका मिश्रण, एकात्मक पूर्वाग्रह के साथ संघीय संरचना व मौलिक अधिकारों एवं कर्तव्यों का समावेश इसे शासन के लिये एक लचीला ढाँचा बनाता है। आलोचनाओं के बावजूद संविधान के उधार तत्त्वों को भारतीय आवश्यकताओं के अनुरूप सावधानीपूर्वक संशोधित किया गयाजिससे राष्ट्र के लोकतांत्रिक सिद्धांतों और संस्थानों को आकार देने में इसकी प्रासंगिकता एवं स्थायी महत्त्व सुनिश्चित हुआ।

भारत का संविधान: अर्थ, संरचना, अधिनियम, मुख्य विशेषताएँ, महत्त्व और संबंधित तथ्य

  • किसी राज्य का संविधान मूल सिद्धांतों या स्थापित परंपराओं का एक मौलिक समूह होता है जिसके आधार पर राज्य के द्वारा शासन का संचालन किया जाता है। यह सरकार की संस्थाओं के संगठन, शक्तियों और सीमाओं के साथ-साथ नागरिकों के अधिकारों एवं कर्तव्यों के मध्य एक संतुलन की तरह कार्य करता है। यह देश के सर्वोच्च कानून के रूप में भूमिका निभाता है, जो सरकार के कामकाज, व्यक्तिगत स्वतंत्रताओं की सुरक्षा एवं सामाजिक व्यवस्था के रखरखाव के लिए एक रूपरेखा प्रदान करता है।
  • भारत का संविधान भारतीय गणराज्य का सर्वोच्च कानून है। यह देश की राजनीतिक व्यवस्था के लिए रूपरेखा तैयार करता है, सरकार की संस्थाओं की शक्तियों एवं उत्तरदायित्वों को परिभाषित करता है। संविधान के द्वारा मौलिक अधिकारों की रक्षा के साथ- साथ शासन के सिद्धांतों को भी रेखांकित किया जाता है। संविधान में देश के प्रशासन का मार्गदर्शन करने वाले नियमों और विनियमों का एक समूह होता है।
भारत का संविधान

भारतीय संविधान विश्व के सबसे लंबे एवं विस्तृत लिखित संविधानों में से एक है। भारतीय संविधान की संरचना के विभिन्न घटकों को इस प्रकार देखा जा सकता है:

  • भाग (Parts): संविधान में “भाग” का तात्पर्य समान विषयों या प्रवृत्तियों से संबंधित अनुच्छेदों के समूह से है। भारतीय संविधान विभिन्न भागों में विभाजित है, प्रत्येक भाग देश के कानूनी, प्रशासनिक या सरकारी ढांचे के विशिष्ट पहलू से संबंधित है।
    • मूल रूप से, भारतीय संविधान में 22 भाग थे।
    • वर्तमान में, भारतीय संविधान में 25 भाग हैं।
  • अनुच्छेद (Articles): “अनुच्छेद” संविधान के अंतर्गत एक विशिष्ट प्रावधान या खंड को संदर्भित करता है, जो देश के कानूनी और सरकारी ढांचे के विभिन्न पहलुओं का विवरण प्रदान करता है।
    • संविधान के प्रत्येक भाग में क्रमानुसार क्रमांकित कई अनुच्छेद होते हैं।
    • मूलत: भारतीय संविधान में 395 अनुच्छेद थे।
    • वर्तमान में, भारतीय संविधान में 448 अनुच्छेद हैं।
  • अनुसूचियाँ (Schedules) – “अनुसूची” संविधान से सम्बंधित एक सूची या तालिका को संदर्भित करती है जो संवैधानिक प्रावधानों से संबंधित कुछ अतिरिक्त जानकारी या दिशानिर्देशों का विवरण प्रदान करती है।
    • अनुसूचियाँ स्पष्टता और पूरक विवरण प्रदान करती हैं, जिससे संविधान अधिक व्यापक और कार्यात्मक बन जाता है।
    • मूल रूप से, भारत के संविधान में 8 अनुसूचियाँ थीं। वर्तमान में, भारतीय संविधान में 12 अनुसूचियाँ हैं।
  • भारतीय संविधान का निर्माण 1946 में गठित एक संविधान सभा द्वारा किया गया था। संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ. राजेंद्र प्रसाद थे।
  • 29 अगस्त 1947 को संविधान सभा में भारत के स्थायी संविधान का मसौदा तैयार करने के लिए एक प्रारुप समिति के गठन का प्रस्ताव रखा गया था। तदनुसार, डॉ. बी.आर. आंबेडकर की अध्यक्षता में प्रारुप समिति गठि की गई थी।
  • प्रारुप समिति के द्वारा संविधान को तैयार करने में 2 वर्ष, 11 महीने और 18 दिनों का कुल समय लगा।
  • कई विचार-विमर्श और कुछ संशोधनों के बाद, संविधान के प्रारुप को संविधान सभा द्वारा 26 नवंबर 1949 को पारित घोषित किया गया था। इसे भारत के संविधान की “अंगीकृत तिथि के रूप में जाना जाता है।
  • संविधान के कुछ प्रावधान 26 नवंबर 1949 को लागू हो गए थे। हालाँकि, संविधान का अधिकांश भाग 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ, जिससे भारत एक संप्रभु गणराज्य बन गया। इस तिथि को भारत के संविधान के “अधिनियमन तिथि” के रूप में जाना जाता है।

भारतीय संविधान विश्व के सभी लिखित संविधानों में सबसे विस्तृत है। भारतीय संविधान के व्यापक और विस्तृत दस्तावेज होने में योगदान देने वाले कई कारक हैं, जैसे देश की विशाल विविधता को एकता में समायोजित करने की आवश्यकता, केंद्र और राज्यों दोनों के लिए एक ही संविधान, संविधान सभा में कानूनी विशेषज्ञों और जानकारों की उपस्थिति आदि।

भारतीय संविधान के अधिकाँश प्रावधान 1935 के भारत शासन अधिनियम के साथ-साथ विभिन्न अन्य देशों के संविधानों के प्रमुख प्रावधानों संशोधित करके भारतीय परिस्थितियों के अनुरुप अपनाया गया है।

संविधानों को वर्गीकृत किया जाता है – कठोर (इसमें संशोधन के लिए एक विशेष बहुमत की आवश्यकता होती है) और लचीला (इसमें सामान्य बहुमत से संशोधन किया जा सकता है )।

  • भारतीय संविधान न तो कठोर है और न ही लचीला, बल्कि दोनों व्यवस्थाओं का एक मिश्रण है।

भारतीय संविधान सरकार की एक संघीय प्रणाली स्थापित करता है और इसमें संघ के सभी सामान्य लक्षण शामिल होते हैं।

  • हालाँकि, इसमें बड़ी संख्या में एकात्मक या गैर-संघीय विशेषताएँ भी शामिल हैं।

भारतीय संविधान ने ब्रिटिश संसदीय शासन प्रणाली को अपनाया है। संसदीय प्रणाली विधायी और कार्यकारी अंगों के मध्य सहयोग और समन्वय के सिद्धांत पर आधारित है।

भारत में संसदीय संप्रभुता और न्यायिक सर्वोच्चता के मध्य समन्वय स्थापित किया गया हैं, अर्थात् भारतीय संविधान में विधि के निर्माण के लिए विधायिका के अधिकार और संवैधानिक सिद्धांतों के आलोक में इन विधियों की समीक्षा और व्याख्या करने के लिए न्यायपालिका की शक्ति के मध्य एक संतुलन बनाया गया है।

  • हालाँकि विधि बनाने का अंतिम अधिकार संसद को है, न्यायपालिका संविधान के संरक्षक के रूप में कार्य करती है तथा न्यायपालिका द्वारा यह सुनिश्चित किया जाता है कि संसदीय कार्य संवैधानिक मानदंडों के अनुसार हों तथा मौलिक अधिकारों की रक्षा के अनुरूप हों।

भारतीय संविधान के द्वारा देश में एक एकीकृत और स्वतंत्र न्यायिक प्रणाली स्थापित की गई है।

  • एक एकीकृत न्यायिक प्रणाली का अर्थ है कि न्यायालयों की एक एकल प्रणाली, जिसमें सर्वोच्च न्यायालय, उच्च न्यायालय और अधीनस्थ न्यायालय शामिल हैं, जो केंद्र सरकार और राज्य सरकार द्वारा निर्मित कानूनों की संविधान की मूल अवसरंचना अनुरूप समीक्षा करती है।
  • एक स्वतंत्र न्यायिक प्रणाली का अर्थ है कि भारतीय न्यायपालिका स्वायत्त रूप से संचालित होती है, जो सरकार की कार्यकारी और विधायी शाखाओं के प्रभाव से स्वतंत्र है।

भारतीय संविधान में सभी नागरिकों को छह मौलिक अधिकारों की गारंटी प्रदान की गईं है, जिससे देश में राजनीतिक लोकतंत्र के विचार को बढ़ावा मिलता है। वे कार्यपालिका और विधायिका के मनमाने कानूनों के लागू होने से प्रतिबंधित करते हैं।

भारतीय संविधान में DPSP के रूप में सिद्धांतों का एक समूह शामिल है, जो उन आदर्शों को दर्शाते है जिन्हें राज्य को नीतियाँ और कानून बनाते समय ध्यान में रखना चाहिए।

  • नीति-निर्देशक तत्त्व सामाजिक और आर्थिक लोकतंत्र के आदर्श को बढ़ावा देकर भारत में एक ‘कल्याणकारी राज्य‘ स्थापित करने का प्रयास करते हैं।

मौलिक कर्तव्य भारतीय संविधान में उल्लिखित नैतिक और नागरिक दायित्वों का एक समूह है।

  • ये कर्तव्य नागरिकों को एक मजबूत और सामंजस्यपूर्ण राष्ट्र बनाने की दिशा में योगदान करने के लिए एक मार्गदर्शक के रूप में कार्य करते हैं।

भारतीय संविधान किसी विशेष धर्म को भारतीय राज्य के आधिकारिक धर्म के रूप में नहीं मानता है। इसके बजाय, यह अनिवार्य करता है कि राज्य को सभी धर्मों के साथ समान व्यवहार करना चाहिए तथा किसी विशेष धर्म के पक्ष में या उसके विरुद्ध भेदभाव करने से परहेज करना चाहिए।

भारतीय संविधान लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनावों के आधार के रूप में सार्वभौम वयस्क मताधिकार को अपनाता है।

  • प्रत्येक नागरिक जो 18 वर्ष से कम आयु का नहीं है,उसे जाति, नस्ल, धर्म, लिंग, साक्षरता, धन आदि के आधार पर किसी भी भेदभाव के बिना वोट देने का अधिकार है।

एकल नागरिकता भारत में एक संवैधानिक सिद्धांत है जिसके तहत सभी नागरिकों को, चाहे वे किसी भी राज्य में पैदा हुए हों या रहते हों, पूरे देश में नागरिकता के समान राजनीतिक और नागरिक अधिकार प्राप्त हैं, और उनके बीच कोई भेदभाव नहीं किया जाता है।

भारतीय संविधान ने कुछ स्वतंत्र निकायों की स्थापना की है जिन्हें भारत में लोकतांत्रिक शासन प्रणाली के रक्षक के रूप में परिकल्पित किया गया है।

भारतीय संविधान में राष्ट्रपति को किसी भी असाधारण स्थिति से प्रभावी ढंग से निपटने के लिए आपातकालीन प्रावधान मौजूद हैं।

  • इन प्रावधानों को शामिल करने का तर्क देश की संप्रभुता, एकता, अखंडता और सुरक्षा, लोकतांत्रिक राजनीतिक प्रणाली और संविधान की रक्षा करना है।

त्रि-स्तरीय सरकार का अर्थ है सरकार की शक्तियों और दायित्वों को तीन स्तरों पर विभाजित किया जाता है – केंद्र सरकार, राज्य सरकारें और स्थानीय सरकारें (पंचायतें और नगरपालिकाएं)।

  • इस विकेंद्रीकृत प्रणाली के द्वारा क्षेत्रीय और स्थानीय मुद्दों को ध्यान में रखते हुए योजनाओं का निर्माण किया जाता है, जो भागीदारीपूर्ण लोकतंत्र और जमीनी स्तर के विकास को बढ़ावा देती है।

2011 के 97वें संविधान संशोधन अधिनियम ने सहकारी समितियों को संवैधानिक दर्जा और संरक्षण प्रदान किया।

  • विधि का शासन: संविधान विधि के शासन पर आधारित प्रशासन के लिए रुपरेखा स्थापित करता है, यह सुनिश्चित करता है कि कोई भी व्यक्ति, सरकारी अधिकारियों सहित, विधि से ऊपर नहीं है।
  • अधिकारों की सुरक्षा: यह नागरिकों को मौलिक अधिकारों की गारंटी देता है, जैसे वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, धर्म की स्वतंत्रता आदि की रक्षा करता है, साथ ही साथ इन अधिकारों के उल्लंघन होने पर कानूनी निवारण के लिए तंत्र भी प्रदान करता है।
  • सरकार की संरचना: संविधान सरकार की संरचना को चित्रित करता है, तथा सरकार के कार्यकारी, विधायी और न्यायिक शक्तियों और सीमाओं को परिभाषित करता है। शक्तियों के इस पृथक्करण के सिद्धांत से जांच और संतुलन को बढ़ावा मिलता है।
  • लोकतांत्रिक सिद्धांत: सार्वभौम वयस्क मताधिकार जैसे प्रावधानों के माध्यम से संविधान निःशुल्क और निष्पक्ष चुनावों के माध्यम से शासन में नागरिकों की भागीदारी सुनिश्चित करके लोकतांत्रिक सिद्धांतों को बनाए रखता है।
  • स्थिरता और निरंतरता: संविधान शासन में स्थिरता और निरंतरता प्रदान करता है, जो क्रमिक सरकारों को मार्गदर्शन देने और राजनीतिक व्यवस्था में अचानक परिवर्तन को रोकने के लिए एक ढांचे के रूप में कार्य करता है।
  • राष्ट्रीय एकता: भारतीय संविधान लोगों की विविधता को मान्यता प्रदान करता है तथा इस विविधता को ध्यान में रखते हुए विभिन्न प्रावधानों के माध्यम से राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा प्रोत्साहित किया जाता है, साथ ही राष्ट्र के प्रति सामान्य नागरिकता और निष्ठा की भावना को भी बढ़ावा दिया जाता है।
  • कानूनी ढांचा: संविधान कानूनी आधार के रूप में कार्य करता है जिस पर सभी कानून और विनियम आधारित होते हैं, कानूनी प्रणाली में निरंतरता और सुसंगतता प्रदान करते हैं।
  • अनुकूलनशीलता (Adaptability): एक स्थिर ढांचा प्रदान करते हुए, संविधान बदलती सामाजिक आवश्यकताओं और मूल्यों को समायोजित करने के लिए आवश्यक संशोधनों की भी अनुमति प्रदान करता है, जो समय के साथ इसकी प्रासंगिकता सुनिश्चित करता है।
  • 1935 का भारत सरकार अधिनियम – संघीय योजना, राज्यपाल का कार्यालय, न्यायपालिका, लोक सेवा आयोग, आपातकालीन प्रावधान और प्रशासनिक विवरण।
  • ब्रिटिश संविधान – सरकार की संसदीय प्रणाली, विधि का शासन, विधायी प्रक्रिया, एकल नागरिकता, कैबिनेट प्रणाली, विशेषाधिकार रिट, संसदीय विशेषाधिकार और द्विसदनीय प्रणाली।
  • अमेरिकी संविधान – मौलिक अधिकार, न्यायपालिका की स्वतंत्रता, न्यायिक समीक्षा, राष्ट्रपति पर महाभियोग, सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को हटाना और उपराष्ट्रपति का पद।
  • आयरिश संविधान – राज्य के नीति निदेशक तत्त्व, राज्यसभा के लिए सदस्यों का मनोनयन और राष्ट्रपति के चुनाव की विधि।
  • कनाडाई संविधान – एक मजबूत केंद्र के साथ संघ, केंद्र में अवशिष्ट शक्तियों का निहित होना, केंद्र द्वारा राज्य के राज्यपालों की नियुक्ति और सर्वोच्च न्यायालय का सलाहकार क्षेत्राधिकार।
  • ऑस्ट्रेलियाई संविधान – समवर्ती सूची, व्यापार, वाणिज्य और अंतर्व्यापार की स्वतंत्रता, और संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक।
  • जर्मनी का वाइमर संविधान – आपातकाल के दौरान मौलिक अधिकारों का निलंबन।
  • सोवियत संविधान (USSR, वर्तमान में रूस)– प्रस्तावना में मौलिक कर्तव्य और न्याय का आदर्श (सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक)।
  • फ्रांसीसी संविधान – गणतंत्र और प्रस्तावना में स्वतंत्रता, समानता एवं बंधुत्व के आदर्श।
  • दक्षिण अफ़्रीकी संविधान – संविधान में संशोधन और राज्य सभा के सदस्यों के चुनाव की प्रक्रिया।
  • जापानी संविधान – विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया।
अनुसूची
विषय – वस्तु
विवरण
अनुसूची Iराज्यों के नाम और उनका क्षेत्रीय क्षेत्राधिकार एवं केंद्रशासित प्रदेशों के नाम और उनका विस्तार
अनुसूची IIपरिलब्धियाँ, भत्ते, विशेषाधिकार आदि से संबंधित प्रावधानयह अनुसूची विभिन्न संवैधानिक पदाधिकारियों जैसे राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, राज्यपाल आदि के वेतन का विवरण प्रस्तुत करता है।
अनुसूची IIIशपथ और प्रतिज्ञान के प्रपत्रयह अनुसूची विभिन्न संवैधानिक गणमान्य व्यक्तियों जैसे सांसदों, विधायकों, सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों आदि के लिए शपथ और प्रतिज्ञान के प्रपत्र प्रदान करती है।
अनुसूची IVराज्य सभा में सीटों का आवंटनयह अनुसूची राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में राज्यसभा (राज्यों की परिषद) की सीटों का आवंटन निर्धारित करती है।
अनुसूची Vअनुसूचित क्षेत्रों और अनुसूचित जनजातियों के प्रशासन और नियंत्रण के संबंध में प्रावधान
अनुसूची VIअसम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम राज्यों में जनजातीय क्षेत्रों के प्रशासन के संबंध में प्रावधान
अनुसूची VIIसंघ सूची, राज्य सूची और समवर्ती सूची के अनुसार संघ और राज्यों के बीच शक्तियों का विभाजन।वर्तमान में, संघ सूची में 100 विषय (मूल रूप से 97), राज्य सूची में 61 विषय (मूल रूप से 66) और समवर्ती सूची में 52 विषय (मूल रूप से 47) शामिल हैं।
अनुसूची VIIIसंविधान द्वारा मान्यता प्राप्त भाषाएँ।मूल रूप से इसमें 14 भाषाएँ थीं लेकिन वर्तमान में 22 भाषाएँ हैं जैसे असमिया, बंगाली, बोडो, गुजराती, हिंदी आदि।
अनुसूची IXसंविधान द्वारा मान्यता प्राप्त भाषाएँ।मूल रूप से इसमें 14 भाषाएँ थीं लेकिन वर्तमान में 22 भाषाएँ हैं जैसे असमिया, बंगाली, बोडो, गुजराती, हिंदी आदि।
अनुसूची IX“यह अधिनियम राज्य विधानसभाओं के उन अधिनियमों और विनियमों से संबंधित है जो भूमि सुधार और जमींदारी प्रथा के उन्मूलन से जुड़े हैं, जबकि संसद अन्य मामलों से संबंधित है।”यह अनुसूची 1951 के प्रथम संशोधन अधिनियम द्वारा जोड़ी गई थी, जो उन कानूनों को सरंक्षण प्रदान करती है जिन्हें मौलिक अधिकारों के उल्लंघन के आधार पर चुनौती नहीं दी जा सकती है।
अनुसूची Xदल-बदल के आधार पर संसद और राज्य विधानमंडलों के सदस्यों की अयोग्यता से संबंधित प्रावधान।यह अनुसूची 1985 के 52वें संशोधन अधिनियम द्वारा जोड़ी गई थी, जिसे दल-बदल विरोधी कानून के रूप में भी जाना जाता है।
अनुसूची XIपंचायतों की शक्तियों, प्राधिकार और उत्तरदायित्वों के विषय में विवरण।यह अनुसूची 1992 के 73वें संशोधन अधिनियम द्वारा जोड़ी गई थी।
अनुसूची XIIनगर पालिकाओं की शक्तियों, प्राधिकार और उत्तरदायित्वों के विषय में विवरण।यह अनुसूची 1992 के 74वें संशोधन अधिनियम द्वारा जोड़ी गई थी।
भाग (Parts)विषय – वस्तु
Iसंघ और उसका क्षेत्र
IIनागरिकता
IIIमौलिक अधिकार
IVराज्य के नीति निर्देशक तत्त्व
IV-Aमौलिक कर्तव्य
Vसंघ सरकार
VIराज्य सरकार
VIIIकेंद्र शासित प्रदेश
IXपंचायतें
IX-Aनगर पालिकाएँ
IX-Bसहकारी समितियाँ
Xअनुसूचित एवं जनजातीय क्षेत्र
XIसंघ एवं राज्यों के मध्य संबंध
XIIवित्त, संपत्ति, अनुबंध और मुकदमे
XIIIभारत के क्षेत्र के भीतर व्यापार, वाणिज्य और अंतर्व्यापार
XIVसंघ और राज्यों के अधीन सेवाएँ
XIV-Aन्यायाधिकरण
XVचुनाव
XVIकुछ वर्गों से संबंधित विशेष प्रावधान
XVIIराजभाषाएँ
XVIIIआपातकाल | प्रावधान
XIXविविध
XXसंविधान में संशोधन
XXIअस्थायी, संक्रमणकालीन एवं विशेष प्रावधान
XXIIसंक्षिप्त शीर्षक, प्रारंभ, हिंदी में आधिकारिक पाठ और निरसन
नोट – भाग-VII (पहली अनुसूची के भाग B में राज्य), 1956 के 7वें संवैधानिक संशोधन द्वारा हटा दिया गया है।
  • निष्कर्षतः, भारतीय संविधान राष्ट्र के लोकतांत्रिक आदर्शों और आकांक्षाओं का प्रमाण है। इसका निर्माण सावधानीपूर्वक किया गया है, जो ऐतिहासिक संघर्षों और दूरदर्शी सिद्धांतों पर आधारित है, और यह भारत को एक अधिक न्यायपूर्ण, समावेशी और समृद्ध समाज की ओर ले जाने का मार्गदर्शन प्रदान करता है। भारतीय संविधान अपने मूल्यों को बनाए रखने, विविधता के बीच एकता को बढ़ावा देने और प्रत्येक नागरिक के अधिकारों और स्वतंत्रताओं की रक्षा करने के लिए महत्त्वपूर्ण है, इस प्रकार यह आने वाली पीढ़ियों के लिए एक उज्जवल भविष्य सुनिश्चित करता है।
  • संविधानवाद – संविधानवाद एक ऐसी प्रणाली है जहां संविधान सर्वोच्च होता है और संस्थाओं की संरचना और प्रक्रियाएं संवैधानिक सिद्धांतों से संचालित होती हैं। यह एक ढांचा प्रदान करता है जिसके अंतर्गत राज्य को अपना कार्य संचालन करना पड़ता है। यह सरकार पर भी सीमाएँ आरोपित करते है।
  • संविधानों का वर्गीकरण – दुनिया भर के संविधानों को निम्नलिखित श्रेणियों और उप-श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है:
प्रकार (Type)
स्वरुप
उदाहरण
संहिताबद्ध (Codified)एकल अधिनियम में (दस्तावेज़)संयुक्त राज्य अमेरिका, भारत
असंहिताबद्ध (Uncodified)पूर्णतः लिखित (कुछ दस्तावेज़ों में)
आंशिक रूप से अलिखित
इज़राइल, सऊदी अरब
न्यूज़ीलैंड, यूनाइटेड किंगडम
भारत का संविधान क्या है?

भारत का संविधान देश का सर्वोच्च कानून है, जो इसके शासन ढांचे, अधिकारों और कर्तव्यों को रेखांकित करता है। यह भारत को एक संप्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य के रूप में स्थापित करता है, जो अपने नागरिकों के लिए न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व सुनिश्चित करता है।

भारत का संविधान कब अपनाया गया था?

भारत का संविधान 26 नवंबर 19 को अपनाया गया था, लेकिन भारतीय संविधान को 26 जनवरी , 1950 को लागू किया गया था

भारतीय संविधान के ‘पिता’ के रूप में किसे जाना जाता है?

डॉ. बी.आर. आंबेडकर को भारतीय संविधान के पिता के रूप में जाना जाता है, क्योंकि उन्होंने प्रारूप समिति के अध्यक्ष के रूप में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई और भारतीय संविधान के प्रावधानों को आकार देने में उन्होनें महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।

हम संविधान दिवस कब मनाते हैं?

हमारे देश में प्रत्येक वर्ष 26 नवंबर को भारत के संविधान को अपनाने के उपलक्ष्य में संविधान दिवस मनाया जाता है।

भारत के संविधान का दर्शन क्या है?

भारत के संविधान का दर्शन कई प्रमुख सिद्धांतों जैसे संप्रभुता, समानता, न्याय, स्वतंत्रता, बंधुत्व, गरिमा, धर्मनिरपेक्षता, संघवाद, लोकतांत्रिक सिद्धांत आदि के आसपास घूमता है।

भारतीय संविधान की विशेषताओं का वर्णन करते हुए भारतीय संविधान के गुण एवं अवगुण

संविधान अर्थात किसी देश का उसकी राजनीतिक व्यवस्था का वह बुनियादी सांचा-ढ़ांचा जिसके निर्धारण के अनुसार उसकी जनता शासित होती है।

संविधान की निम्न विशेषताएं है – 
  1. यह राज्य की विधायिका कार्यपालिका और न्यायपालिका जैसे प्रमुख अंगो का स्थापन करता है।
    2. यह राज्य की कार्यपालिका विधायिका और न्यायपालिका के शक्तियों का व्याख्या करता है एवं उनके दायित्वों का सीमांकन करता है।
    3. यह राज्य की कार्यपालिका, विधायिका तथा न्यायपालिका का पारस्परिक एवं जनता के साथ संबंधों का विनियमन करता है। 
    4. यह राज्य की ‘आधार’ विधि को निर्धारित करता है।
    5. यह राजव्यवस्था के मूल सिद्धांतों का निर्धारण करता है।
    6. वस्तुत:  प्रत्येक संविधान उसके संस्थापकों एवं निर्माताओं के आदर्शों, सपनों तथा मूल्यों का प्रतिबिंब होता है।
    7.  संविधान जनता की विशिष्ट सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक प्रकृति, आस्था एवं आकांक्षाओं पर आधारित होता है।
  • ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता के बाद भारतीय गणराज्य का वर्तमान संविधान 26 जनवरी 1950 को पूर्ण रूप से लागू हुआ जिसके उपरांत भारतीय इतिहास में पहली बार भारत एक आधुनिक संस्थागत ढांचे के साथ पूर्ण संसदीय लोकतंत्र बना।  26 नवंबर 1949 को भारतीय संविधान सभा द्वारा निर्मित ‘भारत का संविधान’ पूर्व के ब्रिटिश संसद द्वारा लाए गए अधिनियम या चार्टर का ही विकसित रूप माना जाता है । इसका एक कारण यह भी है कि वर्तमान संविधान में 1935 के भारत शासन अधिनियम के बहुत से भाग निहित है। जैसे- द्विसदनात्मक विधानमंडल, केंद्र-राज्य संबंध,  केंद्र राज्य की शक्तियों का बंटवारा,  केंद्रीय बैंक की व्यवस्था, इत्यादि।
  • संविधान सभा द्वारा निर्मित, विश्व का सबसे लंबा एवं लिखित ‘भारतीय संविधान’ में कई विशेषताएं है।  विभिन्न राजनीतिक विद्वानों ने अपने – अपने शब्दों से कई प्रकार के गुण एवं अवगुण की व्याख्या किए हैं। जिसे निम्न प्रकार से वर्णित किया जा सकता है ।
भारतीय संविधान की विशेषताएं – 
  1. निर्मित संविधान होना,
  2. प्रस्तावना का निहित होना,
  3. शक्ति का स्रोत जनता होना,
  4. संविधान का स्वरूप स्पष्ट होना
  5. समानता के सिद्धांत को धारण करना,
  6. बंधुत्व को बढ़ावा देना,
  7. भारत के राजनीतिक एवं भौगोलिक परिचय को स्पष्ट करना,
  8. नागरिकों को मौलिक  अधिकार देने के साथ-साथ कर्तव्य का बोध कराना,
  9. संसदीय प्रणाली अपनाना,
  10. केंद्र राज्य संबंध की व्याख्या करना, 
  11. संविधान संशोधन के लिए लचीला एवं कठोर प्रवृत्ति रखना,
  12. ढांचा से संघात्मक और आत्मा से एकात्मक होना,
  13. स्वतंत्र न्यायपालिका होना,
  14. स्वतंत्र निर्वाचन आयोग की व्यवस्था होना।
1. निर्मित संविधान होना – 
  • भारतीय संविधान एक निर्मित संविधान का उदाहरण है अर्थात भारत का संविधान प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधियों से बने
    संविधान सभा द्वारा बनाया गया है। इस संविधान सभा में संविधान सभा के सदस्यों के अलावा पत्रकारों, बुद्धिजीवियों एवं आमजनों को भी शामिल होने के लिए एवं अपनी राय देने के लिए अनुमति थी।
2. प्रस्तावना का निहित होना – 
  • 9 दिसंबर 1946 को संविधान सभा के गठन होने के बाद 13 दिसंबर 1946 को पंडित जवाहरलाल नेहरू द्वारा संविधान सभा में उद्देशिका प्रस्तुत किए गए, जिसमें संविधान के उद्देश्य, रूपरेखा एवं दर्शन निहित थे। संविधान पूर्ण होने के बाद इस उद्देशिका को प्रस्तावना का रूप दे दिया गया, जिसमें संपूर्ण संविधान का संक्षेप में दर्शन, उद्देश्य निहित है। कोई अधिनियम भारतीय संविधान के अनुरूप है या नहीं है प्रस्तावना इसको स्पष्ट करने में सहायक होता है, इसलिए इसे संविधान का दर्पण भी कहते हैं।
3. शक्ति का स्रोत जनता को होना-
  •  भारतीय संविधान के प्रस्तावना में वर्णित प्रथम शब्द ‘हम भारत के लोग’ स्पष्ट करता है कि भारतीय संविधान के शक्ति का स्रोत जनता है एवं प्रस्तावना के अंत में वर्णित शब्द ‘अंगीकृत, अधिनियमित एवं आत्मार्पित करते हैं’  यह स्पष्ट करता है कि भारत की जनता संविधान निर्माण करने के बाद स्वयं को संविधान के प्रति अर्पित कर दिए हैं अर्थात हमारे देश में संविधान ही सर्वोच्च है, जिसका स्रोत जनता है।
4. संविधान का स्वरूप स्पष्ट होना –
  •  भारतीय संविधान अपने प्रस्तावना के माध्यम से अपने स्वरूप को स्पष्ट करती है कि भारत प्रभुत्वसंपन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य होंगे। हाला की प्रस्तावना में समाजवादी और पंथनिरपेक्ष शब्द 42 वें संविधान संशोधन 1976 के बाद जोड़े गए हैं किंतु इससे पूर्व भी भारतीय संविधान अपने इसी स्वरूप को अनुपालन कर रहे थे।
5. समानता के सिद्धांत को धारण करना –
  • विविधता से परिपूर्ण भारत जैसे देश में भारतीय संविधान समानता के सिद्धांत को पूर्ण रूप से धारण किए हुए हैं। भारतीय संविधान ना सिर्फ सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय पर केंद्रित है बल्कि यह विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म व उपासना की स्वतंत्रता को भी प्रेरित करती है। उदाहरण के लिए अनुच्छेद 19 से अनुच्छेद 22। संविधान प्रत्येक नागरिक के लिए प्रतिष्ठा और अवसर की समता का सिद्धांत को पालन करती है एवं सार्वभौमिक मताधिकार का भी व्यवस्था करती है । समता के सिद्धांत को पालन के लिए संविधान ना सिर्फ भेदभाव को निषेध करती है बल्कि सामाजिक,आर्थिक और राजनीतिक रूप से पिछड़े हुए नागरिक के लिए विशेष प्रावधान की भी करती है। उदाहरण के लिए अनुच्छेद 14 से अनुच्छेद 18।
6. बंधुत्व  को बढ़ावा देना- 
  • भारत जैसे देश, जहां भिन्न-भिन्न संस्कृति के लोग, अलग अलग धार्मिक आस्था रखने वाले लोग रहते हैं, ऐसे में बंधुत्व को बढ़ावा देना अति आवश्यक है। भारतीय संविधान में बंधुत्व को बढ़ावा देने के लिए कई प्रकार के प्रावधान है। जैसे एकल नागरिकता, अनुच्छेद 51 क में  मौलिक कर्तव्य,  सार्वभौमिक मताधिकार, मौलिक अधिकारों को सीमित रखना, अनुच्छेद ’19 के 2 से 6′ तक स्वतंत्रता के अधिकारों का युक्तियुक्त निर्बंधन करना ।
7. भारत के राजनीतिक एवं भौगोलिक परिचय को स्पष्ट करना- 
  • भारतीय संविधान भारत के राजनीतिक एवं भौगोलिक परिचय को स्पष्ट रूप से वर्णित करती है। संविधान के भाग 1 में अनुच्छेद 1  स्पष्ट करती है कि भारत राज्यों का संघ होगा एवं भारत के राज्य क्षेत्र का क्षेत्र, संघ राज्य क्षेत्र का क्षेत्र और वे क्षेत्र जो भारत द्वारा अर्जित किए गए हैं या भारत में समाविष्ट हुए हैं वो भारत का राज्य क्षेत्र होंगे ।
8. नागरिकों को मौलिक अधिकार देने के साथ-साथ कर्तव्य का बोध कराना- 
  • किसी भी लोकतांत्रिक देश की आदर्शता उसकी जनता के मानवीय स्थिति पर निर्भर करती है। भारत का संविधान अपने नागरिकों को राज्य के विरुद्ध मौलिक अधिकार प्रदान करती है जिससे वे अपना भौतिक एवं नैतिक विकास कर सके तथा राज्य के उन कृत्यों का विरोध कर सकें जो मानवता संविधान एवं लोकतांत्रिक मूल्यों के विरुद्ध है। अनुच्छेद 13 में संविधान स्पष्ट करता है कि सर्वोच्च न्यायालय नागरिकों के मौलिक अधिकार के संरक्षक होंगे एवं राज्य द्वारा कोई भी विधि नागरिक के मौलिक अधिकार को हनन नहीं कर सकती है। संविधान द्वारा अनुच्छेद 14 से 18 तक समता का अधिकार दिया गया है, अनुच्छेद 19 से 22 तक स्वतंत्रता का अधिकार दिया गया है, अनुच्छेद 23 और 24 में शोषण के विरुद्ध अधिकार दिया गया है, अनुच्छेद 25 से 28 तक धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार दिया गया है, अनुच्छेद 29 और 30 में सांस्कृतिक संरक्षण का अधिकार दिया गया है, वही अनुच्छेद 32 में संवैधानिक उपचारों का अधिकार दिया गया है। 

              ‘कर्तव्य के बिना अधिकार अधूरा है’ इस सिद्धांत का पालन करते हुए 42 वें संविधान संशोधन 1976 द्वारा नागरिकों के लिए मौलिक कर्तव्य का प्रावधान किया गया, जो देश के बंधुत्व को बढ़ाने के लिए भी आवश्यक है।

9. संसदीय प्रणाली अपनाना – 
  • भारत में संसदीय प्रणाली अपनाई गई है। संसदीय प्रणाली में सरकार बनाने के लिए जहां जनता का बहुमत प्राप्त करना आवश्यक है वहीं इस प्रणाली में कार्यपालिका विधायिका के प्रति जिम्मेवार होती है अर्थात कार्यपालिका जनप्रतिनिधि के प्रति जिम्मेवार होती है, जो भारत जैसे विविधता से परिपूर्ण देश के लिए जनता का सरकार, संविधान एवं एकात्मक व्यवस्था पर विश्वास बनाए रखने के लिए बहुत आवश्यक है। इस प्रणाली में संसद का निचला सदन या किसी राज्य विधानमंडल का निचला सदन सरकार को बर्खास्त कर सकती है अर्थात जनता के द्वारा चुने गए प्रतिनिधियों के माध्यम से सरकार को बर्खास्त किया जा सकता है। इस प्रणाली में एक संवैधानिक प्रमुख होता है तो दूसरा वास्तविक प्रमुख होता है जो संवैधानिक प्रमुख के नाम पर शासन चलाता है एवं वास्तविक प्रमुख विधायिका के प्रति जिम्मेवार होता है।
10. केन्द्र – राज्य संबंध की व्याख्या करना –
  • भारतीय संविधान के भाग 1 में स्पष्ट कर दिया गया है कि भारत जोकि इंडिया है, राज्यों का संघ होगा। संसदीय प्रणाली होने के कारण केन्द्र एवं राज्य का अपना अपना सरकार होता है। भारतीय संविधान केन्द्र एवं राज्य के सरकारों की शक्तियों को सीमांकित करती है । अनुसूची सात के माध्यम से केंद्र एवं राज्य सरकार के विषयों को सूचित करती है । भारतीय संविधान स्पष्ट रुप से केन्द्र राज्य के विधायी,  प्रशासनिक एवं वित्तीय संबंध को व्यवस्थित करती है। जैसे अनुच्छेद 245-255 तक विधायी संबंध का चर्चा करना , अनुच्छेद 256 से प्रशासनिक संबंधों पर चर्चा करना, अनुच्छेद 268-293 तक केन्द्र -राज्य के वित्तीय संबंधों का चर्चा करना।
11. संविधान संशोधन के लिए लचीला एवं कठोर प्रवृत्ति रखना – 
  • परिवर्तन संसार का नियम है अर्थात किसी भी देश की परिस्थिति हर काल में एक समान नहीं रहती है। इस कारण राजव्यवस्था में भी परिवर्तन की आवश्यकता होती है। भारत का संविधान में संशोधन की व्यवस्था ना तो अमेरिका की तरह कठोर है और  ना ही इंग्लैंड की तरह लचीला बल्कि यह दोनों का समन्वय है, अर्थात ना तो यहां संशोधन करना बहुत ज्यादा जटिल है और  ना ही बहुत आसान । भारत में संशोधन के लिए तीन प्रक्रिया अपनाई गई है । संसद के दोनों सदनों में साधारण बहुमत द्वारा, संसद के दोनों सदनों में विशेष बहुमत द्वारा, संसद के दोनों सदनों में विशेष बहुमत एवं राज्यों की सहमति के द्वारा।
12. ढांचा से संघात्मक और आत्मा से एकात्मक होना-  
  • भारतीय संविधान के पिता माने जाने वाले बाबा भीमराव अंबेडकर के शब्दों में भारत का संविधान ढांचा से संघात्मक है और आत्मा से एकात्मक है । अर्थात प्रशासन को सुचारू रूप से चलाने के लिए दोहरी राजनीतिक प्रणाली की व्यवस्था की गई है किंतु देश की एकता और अखंडता की मजबूती के लिए एकात्मक व्यवस्था में राजनीतिक प्रणाली को निहित किया गया है। संघात्मक व्यवस्था का उदाहरण है केंद्र एवं राज्य में शक्तियों और कार्यों का वितरण होना, केंद्र एवं राज्य का अपनी सरकार होना, केंद्र एवं राज्य का अपना विधानमंडल होना, केंद्र एवं राज्य का अपना वित्तीय शक्ति होना। वही एकात्मक व्यवस्था का उदाहरण है शक्तियों का वितरण केंद्र के पक्ष में होना, राज्यों के विषयों पर केंद्र का क्षेत्राधिकार होना, राज्यों के पृथक संविधान का अभाव होना, इकहरी नागरिकता होना, संविधान संशोधन में केंद्र की शक्ति होना, राष्ट्रपति द्वारा राज्यपाल की नियुक्ति होना, राज्यों का राज्यसभा में समान प्रतिनिधित्व अभाव होना, राज्यों के वित्तीय संबंध में केंद्र पर निर्भर होना, संकटकाल में संविधान का बिना संशोधन के  अनुच्छेद 352 356 और 360 के अनुरूप एकात्मक कर लेना।
13. स्वतंत्र न्यायपालिका होना – 
  • भारत में दोहरी राजनीतिक प्रणाली अपनाई गई है अर्थात केंद्र एवं राज्य की अपनी-अपनी सरकारें एवं विधानमंडल की व्यवस्था की गई है। केंद्र एवं राज्यों के बीच शक्तियों का वितरण कर दिया गया है, अतः ऐसे में यदि केंद्र एवं राज्य की सरकार के बीच शक्तियों को लेकर वाद- विवाद होती है तो इसे सुलझाने के लिए एक स्वतंत्र न्यायपालिका की आवश्यकता है जो भारतीय संविधान द्वारा प्रावधान किया गया है। भारत की न्यायपालिका ना केवल केंद्र एवं राज्य के बीच विवाद को समझाती है बल्कि यह   नागरिकों के मौलिक अधिकार को संरक्षण भी देती है । भारत में उच्चतम न्यायालय एवं उच्च न्यायालय को अभिलेख न्यायालय का दर्जा प्राप्त है, इस कारण भारतीय न्यायपालिका विधायिका एवं कार्यपालिका के कार्यों को न्यायिक पुनरीक्षण के द्वारा संविधान के किसी उपबंध से  असंगत होने पर अवैध घोषित कर सकती है।
14. स्वतंत्र निर्वाचन आयोग की व्यवस्था होना- 
  • किसी भी लोकतांत्रिक देश में मतदान को महापर्व माना जाता है, इसलिए निष्पक्ष मतदान के लिए भारतीय संविधान में स्वतंत्र निर्वाचन आयोग की व्यवस्था की गई है जोकि अर्द्ध न्यायिक संस्था भी है एवं इससे संबंधित वर्णन अनुछेद 324 से 329 तक किए  गए हैं। भारत जैसे विविधताओं से भरे देश में लोकतंत्र के प्रति लोगों का विश्वास मजबूत करने के लिए निर्वाचन आयोग का स्वतंत्र होना बहुत ही महत्वपूर्ण है।   निर्वाचन आयोग राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, सांसद और विधायकों का चुनाव कराती है। निर्वाचन आयोग द्वारा चुनाव की घोषणा के बाद स्वत: आचार संहिता लागू हो जाती है, जिसके उपरांत सरकार की शक्तियां नाम मात्र की रह जाती है एवं चुनाव से संबंधित समस्त प्रशासनिक निर्णय चुनाव आयोग द्वारा लिए जाते हैं ।
  • इसके अलावे अन्य कई भारतीय संविधान के गुण है।  जैसे कि राज्य के नीति निदेशक तत्व होना जहां सरकारों को राज्य के प्रशासन के चलाने के लिए आधार दिए गए हैं। अनुच्छेद 21 के द्वारा व्यक्ति के गरिमामय जीवन का अधिकार देना। महिलाओं, अनुसूचित जाति और  जनजाति के लिए विशेष प्रावधान देना।  कुछ विशेष क्षेत्रों के लिए भी विशेष प्रावधान देना।  ऐसे बहुत सारे और भी गुण भारतीय संविधान में निहित है जो कि भारतीय संविधान को एक आदर्श संविधान का रूप देती है। किंतु इसके बावजूद कई राजनीतिक विद्वानों द्वारा इनके आलोचनात्मक पक्ष भी रखें गए हैं जैसे कि – 
  1. अत्यधिक लंबा होना
  2. वकीलों के लिए स्वर्ग होना 
  3. बहुत सा शब्दों का व्याख्या ना होना। उदाहरण के लिए  संविधान में अल्पसंख्यक शब्द का वर्णन किया गया है किंतु अल्पसंख्यक शब्द को परिभाषित नहीं किया गया है
  4. संविधान का दो तिहाई भाग 1935 के भारत शासन अधिनियम से लिया जाना और अन्य देशों के संविधान से लिया जाना जिस कारण से इसे उधार का भी संविधान कहा जाता है । 
निष्कर्ष – 
  • इन कमियों के बावजूद भी भारत का संविधान को एक आदर्श संविधान के रुप में उदाहरण दिया जा सकता है और इसका सबसे बड़ा प्रमाण है कि संविधान के लागू होने के  इतने वर्षों के बाद भी लोगों के संविधान के प्रति विश्वास एवं आस्था बना रहना एवं भारतीय लोकतंत्र का दिनोंदिन मजबूत होना।

भारतीय सविधान

संघ सरकार

उपराष्ट्रपति

महान्यायवादी

प्रधानमंत्री एवं मंत्री-परिषद

संसद

उच्चतम न्यायलय

राज्य सरकार

पंचायती राज

जिला परिषद

शहरी स्थानीय स्वशासन

चुनाव आयोग

संघ लोक सेवा आयोग

कन्द्रीय प्रशासनिक अधिकरण

नियन्त्रण एंव महालेखा परिक्षिक

C.B.I. ( सी.बी.आई. )

केन्द्रीय सतर्कता आयोग

लोकायुक्त

लोकपाल

Haryana CET for C & D { All Haryana Exam }

सामान्य अध्ययन

Haryana

Welcome to GK247 Haryana GK (तैयारी नौकरी की). GK247.IN is India’s most trending website for free Study Material like Haryana Current Affairs, Haryana GK (General Knowledge), General Studies, Reasoning, Mathematics, English & Hindi for exam like Haryana CET, HSSC Clerk, Haryana Police, Haryana Patwari, Haryana Civil Services, Haryana Gram Sachiv, HSSC Haryana Police Constable, HSSC Canal Patwari, HSSC Staff Nurse, HSSC TGT, HSSC PGT, Haryana Police Commando, HSSC SI / Government job recruitment examinations of Haryana State.

Haryana Common Entrance Test GROUP C & D

सामान्य विज्ञान

कम्प्यूटर

अंग्रेजी

हिन्दी

This section provide General Knowledge/ General Studies Question that may be useful for General Awareness part of Prelims Examination of Haryana State Civil Services exams, Haryana CET, HSSC Clerk, Haryana Police, Haryana Patwari, Haryana Gram Sachiv, HSSC Haryana Police Constable, HSSC Canal Patwari, HSSC Staff Nurse, HSSC TGT, HSSC PGT, Haryana Police Commando, HSSC SI & Various Other Competitive Exams. 

General Studies for All One Day Haryana Exams [HPSC, HSSC, Haryana CET etc.]

Content Own GK247.IN Copy Not Allow Sorry !!

error: Content is protected !!