Final Account Concept

Final Account क्या है ?

लाभ-हानि को निर्धारित करने एवं व्यवसाय के स्थिति को प्रकट करने के लिए जो लेखा तैयार किया जाता है, उसे Final Account कहा जाता है।

अंतिम लेखा लेखांकन का एक मुख्य हिस्सा होता है जिसके अंतगर्त व्यवसाय के लाभ-हानि को निर्धारित किया जाता है और व्यवसाय के वृत्तीय स्थिति को प्रकट किया जाता है।

इसे हम ऐसे भी कह सकते है कि लाभ-हानि एवं व्यवसाय के स्थिति को जानने के लिए जो लेखा तैयार किया जाता है, उसे Final Account कहा जाता है।

एक माह, तीन माह, छः माह एवं एक वर्ष के अन्तराह पर तैयार किया जाता है। समान्यतया व्यवसायि लोग एक-एक वर्ष पर यह लेखा तैयार करता है।

Final Account तैयार करने के लिए बहुत सारे लेखा को तैयार करना पड़ता है। अंत में लाभ-हानि एवं व्यवसाय के स्थिति को

जानने के लिए यह लेखा तैयार किया जाता है। इसलिए इसे अंतिम लेखा कहा जाता है।

Final Account, Trial Balance में दिए गये सुचना के आधार पर बनाया जाता है।

Trial Balance, Ledger में दिये गए सूचनाओं के आधार पर बनाया जाता है और Ledger, Journal में दिए गये सूचनाओं के आधार पर बनाया जाता है।

अतः Final Account के लिए Trial Balance का होना जरूरी है। Trial Balance के लिए Ledger का होना जरूरी है तथा Ledger के लिए Journal का होना जरूरी है।

लेखांकन एक वृक्ष के समान है जिसके जड़ को Journal कहा जा सकता है। तना एवं शाखाओं को Ledger एवं Trial Balance कहा जाता है तथा शीर्ष भाग को जिसमे फल लगता है उसे Final Account कह देना गलती नहीं होगा।

Final Account के अंतगर्त निम्नलिखित तीन Account तैयार किया जाता है :

  1. Trading Account (व्यापार खाता)
  2. Profit And Loss Account (लाभालाभ खाता)
  3. Balance Sheet (आर्थिक चिट्ठा)

Final Account बनाने के उद्देश्य क्या है ?

एक दी गई अवधि में व्यावसायिक फर्म द्वारा अर्जित लाभ या हानि का निर्धारण करना एवं एक निश्चित समय बिंदु पर इसकी वित्तीय स्थिति का निर्धारण करना Final Account का प्रथम उद्देश्य माना गया है।

संक्षेप में Final Account के निम्नलिखित उद्देश्य है :

  • संस्था के आर्थिक संसाधनों एवं दायित्वों के बारे में वित्तीय आंकड़े उपलब्ध कराना तथा उनका वित्तीय स्थिति पर प्रभाव दर्शाना।
  • संस्था के परिचालन लाभ तथा शुद्ध लाभ के आँकड़े उपलब्ध कराना तथा उनका वित्तीय स्थिति पर प्रभाव दर्शाना।
  • वित्तीय विवरणों में हित रखने वाले पक्षकारों को पर्याप्त व विश्वसनीय सूचनाएं प्रदान करना।
  • व्यवसाय की सही एवं उचित स्थिति प्रकट करना।
  • भावी क्रियाकलापों के लिए आधार प्रस्तुत करना

Final Account के प्रयोगकर्ता कौन है ?

Final Account के प्रयोगकर्ता निम्नलिखित है :

  • व्यवसाय के स्वामी/अंशधारी :

    व्यवसाय के स्वामी या अंशधारी व्यवसाय की प्रगति एवं कल्याण में रूचि रखते हैं। व्यवसाय के स्वामी या अंशधारी वर्तमान तथा भावी लाभोपार्जन क्षमता तथा भावी संभावनाओं के मूल्यांकन के लिए का विश्लेषण करते है।

  • प्रबन्ध :

    प्रबन्धक संस्था के स्वामी के प्रति उत्तरदायी होते हैं।

  • बैंक तथा अन्य वित्तीय संस्थाएं :

    बैंक तथा अन्य वित्तीय संस्थाएँ निवेशक के रूप में कार्य करती है।

  • सरकार अथवा नियामक प्राधिकारी
  • लेनदार
  • कर्मचारी
  • अन्य प्रयोगकर्ता

Final Account का आधार क्या है ?

अंतिम खाते का आधार तलपट है। तलपट से ही व्यापर खाता, लाभ-हानि खाता व चिट्ठा तैयार किया जाता है।

अतः अंतिम खाते तैयार करने के लिए यह आवश्यकता शर्त है की पहले खाता-बही के शेषों या बाकियों से तलपट तैयार कर लिया जाए।

Final Account बनाने के नियम क्या है ?

एकाकी व्यवसाय के अंतिम खातों (Final Account) में निम्नलिखित वित्तीय विवरणों को सम्मिलित किया जाता है :

  1. Trading Account (व्यापार खाता)
  2. Profit And Loss Account (लाभालाभ खाता)
  3. Balance Sheet (आर्थिक चिट्ठा)

Notes :

निर्माणी कम्पनी या निर्माणी व्यवसायी उपर्युक्त के अतिरिक्त निर्माण खाता (Manufacturing Account) भी तैयार करते हैं।

Trading Account (व्यापार खाता) क्या है ?

प्रत्यक्ष लाभ व हानि को निर्धारित करने के लिए जो लेखा तैयार किया जाता है। उसे Trading Account (व्यापार खाता) कहा जाता है।

एक निश्चित अवधि के अंतगर्त व्यापार से होने वाले सकल लाभ या सकल हानि की जानकारी प्राप्त करने के लिए व्यापारी जो खाता तैयार करता है, उसे व्यापार खाता या व्यापारिक खाता कहते हैं।

तो इस तरह व्यापारिक खाते का आशय एक ऐसे खाते से है जिससे माल के क्रय-विक्रय के द्वारा सकल लाभ या हानि का ज्ञान होता है।

व्यापारिक खाता को माल खाता भी कहा जा सकता है क्योंकि इसमें केवल माल संबंधी लेन-देनों का लेखा किया जाता है।

व्यापार खाते (Trading Account)का महत्व/लाभ क्या है ?

व्यापार खाते (Trading Account)का महत्व/लाभ निम्नलिखित हैं :

  • यह सकल लाभ या सकल हानि की सूचना प्रदान करता है।
  • व्यापर खाता शुद्ध क्रय तथा रहतिये की सूचना प्रदान करता है।
  • व्यापार खाते से क्रय तथा प्रत्यक्ष व्ययों के बीच संबंध का निर्धारण किया जा सकता हैं।
  • यह प्रत्यक्ष व्यय तथा सकल लाभ के अनुपात के निर्धारण में सहायता प्रदान करता है।
  • व्यापार खाते से बेचे गए माल की लागत की गणना की जा सकती हैं।
  • सकल लाभ का प्रतिशत व्यापार के काम-काज की सफलता के मूल्यांकन तथा तुलनात्मक अध्ययन में मदद करता हैं।

व्यापार खाते की कुछ प्रमुख महत्वपूर्ण मदों का स्पष्टीकरण।

  • प्रारम्भिक रहतिया (Opening Stock)
  • क्रय (Purchase)
  • क्रय समायोजित (Purchase Adjusted)
  • क्रय वापसी (Purchase Return)
  • क्रय से संबंधित व्यय (Purchase Expenses)
  • भाड़ा तथा ढुलाई ()

Trading Account (व्यापार खाता) बनाने के नियम क्या है ?

Trading Account में Debit तरफ निम्नलिखित मदों को लिखा जाता है :-

  1. Opening Stock (प्रारंभिक रहतिया ) : वर्ष के शुरू में जो वस्तुएं बची होती है उसे Opening Stock कहा जाता है।
  2. Purchase (क्रय ) : व्यवसाय करने के लिए जो वस्तुएँ खरीदी जाती है उसे Purchase (क्रय) कहते हैं । Purchase में से Purchase Return को घटा लिया जाता है।
  3. Cost Of Purchase : वस्तु खरीद कर लाने मे जो खर्च होता है, उसे Cost Of Purchase कहा जाता है।

    Cost Of Purchase में निम्नलिखित खर्चों को शामिल किया जा सकता है :

    • Coolie Charges (कुली खर्च)
    • Freight (भारा)
    • Carriage (भाड़ा या ढुलाई)
    • Octroi Duty (चुंगी कर )
    • Import Tax (आयत कर)
  4. Cost Of Production : वस्तु उत्पादन करने में जो खर्च होता है उसे Cost Of Production कहा जाता है।

    Cost Of Production में निम्नलिखित खर्चों को शामिल किया जा सकता है :

    • Wages (मजदूरी)
    • Factory Rent (कारखाना का किराया )
    • Factory Lighting (कारखाना का रोशनी)
    • Factory Insurance (कारखाना का बीमा )
    • Fuel (ईंधन)
    • Power (शक्ति)
    • Coal (कोयला)
    • Gas ( गैस)
    • Water ( पानी)
    • Manufacturing (निर्माण व्यय)
    • Excise Duty (उत्पादन कर)

**********************************************

Trading Account में Credit तरफ निम्नलिखित मदों को लिखा जाता है :-

  1. Sales (विक्रय ) : जिस वस्तु की व्यवसाय की जाती है उसे बेचे जाने को Sales कहा है। Sales में से Sales Return को घटा लिया जाता है।
  2. Closing Stock (अंतिम रहतिया ) : वर्ष के अंत में जो वस्तुएँ बची होती है उसे Closing Stock कहा जाता है।

Notes :

Trading Account में Credit तरफ कम होने पर Loss होती है ओर Debit तरफ कम होने पर Profit होता है।

लाभ को शकल लाभ (Gross Profit) तथा हानि को शकल हानि (Gross Loss) के नाम से जाना जाता है।

Gross Profit (सकल लाभ ) क्या है और इसे कैसे निकाला जाता है ?

निर्माण की लागत से आय की अधिकता सकल लाभ कहलाता है। व्यापार खाते से सकल लाभ ज्ञात होता है। निर्माण लागत में उत्पाद का क्रय मूल्य तथा प्रत्यक्ष व्यय शामिल होते हैं।

सकल लाभ के संदर्भ में आय से अभिप्राय वस्तुओं के विक्रय तथा सेवाओं के प्रदान करने से प्राप्त आय से है और

लागत से आशय बेचे गए माल व प्रदान की गई सेवाओं की लागत से है।

Gross Profit = Net Sales – Cost of Goods Sold

Net Sales = Cash Sales + Credit Sales – Sales Return

निम्नलिखित सूचनाओं से सकल लाभ की गणना कीजिए :

Purchase3,00,000
Sales5,00,000
Sales Return10.000
Wages35,000
Carriage And Freight5,000
Opening Stock25,000
Closing Stock35,000

Solution

Gross Profit = Net Sales – Cost of Goods Sold

Net Sales = Total Sales – Sales Return

Net Sales = 5,00,000 – 10,000 = 4,90,000

Cost of Goods Sold = Opening Stock + Purchase + Direct Expenses – Closing Stock

Cost of Goods Sold = 25,000 + 3,00,000 + (35,000 + 5,000) – 35,000 = 3,30,000

Gross Profit = 4,90,000 – 3,30,000 = Rs. 1,60,000

एक Solve किया हुआ Trading Account Question ?

निम्नलिखित विवरण से एक व्यापारिक खाता (Trading Account) बनाइए :

 

 Rs.
Purchases2,00,000
Purchases Returns30,000
Carriage Inward2,000
Duty Paid10,000
Wages22,000
Gas, Water, etc.6,000
Sales4,00,000
Sales Return40,000
Opening Stock50,000
Closing Stock30,000

Profit And Loss Account (लाभालाभ खाता) क्या है ?

सभी खर्चों के आपूर्ति के बाद होने वाले लाभ या हानि को निर्धारित करने के लिए जो लेखा तैयार किया जाता है उसे Profit And Loss Account (लाभालाभ खाता) कहा जाता है।

लाभ-हानि खाता बनाने का प्रमुख उद्देश्य व्यवसाय के शुद्ध लाभ या शुद्ध हानि की जानकारी प्राप्त करना है। चूँकि व्यापार खाते से सकल लाभ या सकल हानि का ही पता चलता है, अतः लाभ-हानि खाता बनाना आवश्यक है।

यह वर्ष के अंत में व्यापार खाता बनाने के पश्चात तथा चिट्ठा बनाने के पहले बनाया जाता है।

Profit And Loss Account (लाभालाभ खाता) का उद्देश्य, आवश्यकता एवं महत्व क्या है ?

Profit And Loss Account के निम्नलिखित उद्देश्य है :

  • लाभ-हानि खाते को तैयार करने का प्रमुख उद्दैश्य व्यवसाय के शुद्ध लाभ या हानि को जानकारी प्राप्त करनी है।
  • लाभ-हानि खाता प्रत्येक वर्ष तैयार किया जाता है, फलतः चालू वर्ष के लाभ-हानि की तुलना गत वर्षों के लाभ-हानि से करके व्यापार की वास्तविक स्थिति की जानकारी होती है।
  • चालू लाभ-हानि खाते के व्ययों की तुलना पिछले वर्षों के व्ययों से की जा सकती है, इसी प्रकार प्रत्येक व्यय का शुद्ध लाभ से प्रतिशत भी ज्ञात किया जा सकता है। व्यय की राशि के अधिक होने पर उस पर नियंत्रण लगाया जा सकता है।

Notes :

चूँकि व्यापार खाते से सकल लाभ या सकल हानि का ही पता चलता है, अतः लाभ-हानि खाता बनाना आवश्यक है।

Profit And Loss Account (लाभालाभ खाता) बनाने के नियम क्या है ?

Profit And Loss Account के Debit Side में निम्नलिखित मदों को लिखा जाता है :

  1. Office Expense (कार्यालय व्यय ) : कार्यालय से सम्बंधित खर्चों को Office Expense कहा जाता है।

    Office Expense में निम्नलिखित खर्चों को शामिल किया जाता है :

    • Salaries (वेतन)
    • Office Rent (कार्यालय का किराया )
    • Office Lighting (कार्यालय का रौशनी)
    • Printing Charges (छपाई व्यय)
    • Stationery ( लेखन सामग्री)
    • Telephone Expenses ( दूर भाष व्यय )
    • Audit Fees (अंकेक्षण शुल्क)
  2. Selling Expenses (विक्रय व्यय ) : विक्रय से सम्बंधित खर्चों को Selling Expenses कहा जाता है।

    Selling Expenses में निम्नलिखित खर्चों को शामिल किया जाता है :

    • Carriage Out Ward (वाहरी भाड़ा)
    • Advertising Expense(विज्ञापन व्यय)
    • Commission (कमीशन)
    • Sales Tax (विक्रय कर)
  3. Other Expenses (अन्य व्यय ) : कार्यालय एवं विक्रय से सम्बंधित खर्चों के अतिरिक्त होने वाले खर्चों को Other Expenses कहा जाता है।

    Other Expenses में निम्नलिखित खर्चों को शामिल किया जाता है :

    • Legal Expense (कानूनी व्यय)
    • Interest On Loan ( ऋण पर ब्याज)
    • Interest On Bank Loan ( बैंक ऋण पर ब्याज )
  4. Losses (हानियाँ) : धन में होने वाली क्षति को Losses कहा जाता है ।

    Losses में निम्नलिखित खर्चों को शामिल किया जाता है :

    • Bad Debts (अप्राप्य ऋण)
    • Depreciation (ह्रास)
    • Discount Allowed (छुट दिया गया)
  5. Expected Losses (संभावित हानियाँ) : भविष्य में होने वाले हानियों को Expected Losses कहा जाता है।

    Expected Losses में निम्नलिखित खर्चों को शामिल किया जाता है :

    • Reserve For Taxation (करो के लिए संचित)
    • Reserve For Bad Debts (अप्राप्य ऋणों के लिए संचित )
    • Reserve For Repairs ( मरम्मत के लिए संचित)

**********************************************

Profit And Loss Account के Credit Side में निम्नलिखित मदों को लिखा जाता है :

    1. Gross Profit ( सकल लाभ)
    2. Incomes (आमदनी )

Incomes में निम्नलिखित मदों को शामिल किया जाता है :

    • Rent Received (प्राप्त किराया )
    • Interest Received (प्राप्त ब्याज)
    • Discount Received ( प्राप्त छुट )
    • Commission (प्राप्त कमीशन)
    • Apprentice Premium (नवसिखिया प्रब्याज)

Notes :

Profit And Loss Account में Debit तरफ कम होने पर लाभ होता है, इसे Net Profit कहा जाता है।

Profit And Loss Account में Credit तरफ कम होने पर हानि होता है, इसे Net Loss कहा जाता है।

संचालन लाभ (Operating Profit) क्या है ?

सकल लाभ में से संचालन व्यय घटाने पर संचालन लाभ की राशि प्राप्त होती है। संचालन व्यय उन व्ययों को कहते हैं जो व्यवसाय की सामान्य क्रियाओं से संबंधित होते हैं।

संचालन लाभ की गणना निम्न प्रकार की जाती है :

  1. Operating Profit = Net Sales – Operating Cost
  2. Operating Profit = Net Sales – Cost Of Goods Sold + Administrative And Office Expenses + Selling and Distributive Expenses
  3. Operating Profit = Gross Profit – Operating Expenses
  4. Operating Profit = Net Profit + Non-operating Expenses – Non-operating Income

Notes :

Net Sales = कुल विक्रय – विक्रय वापसी

Cost Of Goods Sold = बेचे गए माल की लागत

Administrative Expenses = प्रशासनिक व्यय

शुद्ध लाभ (Net Profit) क्या है ?

सकल लाभ में से संचालन तथा गैर-संचालन दोनों के व्ययों को घटाने और गैर-संचालन आयों को जोड़ने पर जो राशि आती है, उसे शुद्ध लाभ कहा जाता है।

Net Profit की गणना निम्न प्रकार की जाती है :

  • Net Profit = Gross Profit – Operating and Non – operating Expenses + Non-operating Incomes
  • Net Profit = Operating Profit + Non – operating Incomes – Non-operating Expenses

गैर-संचालन आय (Non Operating Revenue) क्या है ?

गैर-संचालन आय वह आय है जो किसी अन्य स्त्रोत से प्राप्त होती है अथवा जो व्यावसायिक क्रियाओं के संचालन

से नहीं प्राप्त होती है। जैसे किराया प्राप्त, अंशों पर लाभांश, विनियोगों पर ब्याज, बैंक जमा पर ब्याज, स्थायी

सम्पतियों के विक्रय पर लाभ आदि।

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व्यापारी खाते को कैसे तैयार किया जाता जाता है ? एक Solve किया हुआ Trading Account Question ?
Topics

गैर-संचालन व्यय (Non Operating Expenses) क्या है ?

ऐसा व्यय जिनका स्त्रोत व्यावसायिक क्रियाओं में नहीं वर्गीकृत किया जा सकता है तथा जिनकी प्रकृति

गैर-व्यावसायिक हानि की होती है गैर-संचालन व्यय कहलाते हैं। जैसे ऋणों पर ब्याज चुकाया, स्थायी सम्पतियों

के विक्रय पर हानि।

बेचे गए माल की लागत(Cost Of Goods Sold) क्या होता है और इसे कैसे निकालते है ?

बेचे गए माल की लागत से आशय सामग्री के उपभोग तथा प्रत्यक्ष व्ययों के योग से हैं।

इस प्रकार

बेचे गए माल की लागत = प्रारम्भिक रहतिया + शुद्ध क्रय + प्रत्यक्ष खर्चे – अंतिम रहतिया

निम्नलिखित सूचनाओं बेचे गए माल की लागत की गणना कीजिए :

Purchase3,00,000
Wages35,000
Carriage And Freight5,000
Opening Stock25,000
Closing Stock35,000

Solution

Cost of Goods Sold = Opening Stock + Purchase + Direct Expenses – Closing Stock

Cost of Goods Sold = 25,000 + 3,00,000 + (35,000 + 5,000) – 35,000 = Rs. 3,30,000

एक Solve किया हुआ Profit And Loss Account Question

निम्नलिखित विवरणों से एशिया ट्रेडर्स का 31 मार्च, 2009 को समाप्त होने वाले वर्ष के लिए एक लाभ-हानि खाता बनाइए :

 Rs.
Salaries60,000
Discount Allowed8,000
Discount Received5,000
Bad Debts2,000
Rent And Rates2,000
Insurance2,500
Interest On Investment2,000
Depreciation1,200
Commission Dr.4,000
Gross Profit transferred From Trading A/c1,60,000

Balance Sheet (आर्थिक चिट्ठा) क्या है ?

व्यवसाय के स्थिति को प्रकट करने के लिए जो लेखा तैयार किया जाता है, उसे Balance Sheet कहा जाता है।

दूसरे शब्दों में इसे हम ऐसे भी कह सकते है कि सम्पत्ति एवं दायित्वों के स्थिति को प्रकट करने के लिए जो लेखा तैयार किया जाता है। उसे Balance Sheet (आर्थिक चिट्ठा) कहा जाता है।

Balance Sheet (आर्थिक चिट्ठा) कोई खाता नहीं है केवल विवरण-पत्र है जिसमें व्यापार की पूँजी, ऋण, सम्पति एवं जायदाद के साथ-साथ समस्त देनदारों व लेनदारों के खातों का शेष लिखते हैं इसलिए इसे व्यापार का संक्षिप्त आर्थिक विवरण कहा गया है।

स्थिति विवरण एक निश्चित समय पर किसी चालू व्यवसाय की वित्तीय की तस्वीर है।

Balance Sheet में बायें पक्ष को Capital And Liabilities (पूंजी व दायित्व पक्ष) कहा जाता है तथा दायें पक्ष को Assets And Properties (सम्पत्ति व जायदाद)कहा जाता हैं।

Balance Sheet की मुख्य विशेषता क्या है ?

Balance Sheet की निम्नलिखित विशेषताएँ है :

  • Balance Sheet एक खाता नहीं है अपितु एक विवरण-पत्र है।
  • Balance Sheet इसमें पूंजी एवं दायित्वों और सम्पत्ति एवं जायदादों को दिखाया जाता है।
  • Balance Sheet को दो भागों में विभाजित किया जाता है – बायें भाग को दायित्व भाग (Liabilities Side) तथा दायें भाग को सम्पत्ति भाग(Assets Side) कहा जाता है।
  • इसमें और का प्रयोग नहीं लिखा जाता है।
  • Balance Sheet के दोनों पक्षों के योग बराबर होते हैं।

Balance Sheet बनाने का लाभ अथवा उद्देश्य क्या है ?

Balance Sheet बनाने के निम्नलिखित मुख्य उद्देश्य या लाभ है :

  • Balance Sheet से व्यापारी की आर्थिक स्थिति का ज्ञान होता है।
  • Balance Sheet से सम्पतियों की प्रवृत्ति तथा मूल्य का ज्ञान प्राप्त हो जाता है।
  • Balance Sheet से दायित्वों की प्रकृति तथा सीमा की जानकारी होती है।
  • Balance Sheet से पूँजी में वृद्धि अथवा कमी की जानकारी हो जाती है।
  • Balance Sheet चिट्ठे की सहायता से व्यापार का मूल्य तथा ख्याति का मूल्य निर्धारित किया जा सकता है।
  • Balance Sheet से फर्म की ऋणों के भुगतान करने की क्षमता का ज्ञान प्राप्त हो जाता है।
  • Balance Sheet से व्यापार की लाभप्रदता का ज्ञान होता है।
  • Balance Sheet द्वारा व्यावसायिक शुद्ध लाभ/हानि तथा व्यवसायी के आहरण का ज्ञान होता है।

सम्पत्तियाँ (Assets) क्या है और इसका वर्गीकरण कैसे किया जाता है ?

सम्पत्तियाँ से आशय उद्यम के आर्थिक स्त्रोत से है जिन्हें मुद्रा में व्यक्त किया जा सकता है, जिनका मूल्य होता है और जिनका उपयोग व्यापर के संचालन व आय अर्जन के लिए किया जाता है।

इस प्रकार हम कह सकते हैं कि सम्पत्तियाँ वे स्त्रोत्र हैं जो भविष्य में लाभ पहुँचाते हैं।

उदाहरण के लिए, मशीन, भूमि, भवन, ट्रक, आदि।

इस तरह सम्पत्तियाँ व्यवसाय के मूलयवान साधन हैं जिन पर व्यवसाय का स्वामित्व है तथा जिन्हें मुद्रा में मापी जाने वाली लागत पर प्राप्त किया गया है।

 

सम्पत्तियों के निम्नलिखित प्रकार है :-

 

  • स्थायी सम्पत्तियाँ (Fixed Assets)

    स्थायी सम्पत्तियों से आशय उन सम्पत्तियों से है जो व्यवसाय में दीर्घकाल तक रखी जाने वाली होती हैं और जो पुनः विक्रय के लिए नहीं हैं।

     

    उदाहरण – भूमि, भवन, मशीन, उपस्कर आदि।

     

  • चालु सम्पत्तियाँ (Current Assets)

    चालु सम्पत्तियाँ से आशय उन सम्पत्तियों से है जो व्यवसाय में पुनः विक्रय के लिए या अल्पावधि में रोकड़ में परिवर्तित करने के लिए रखी जाती हैं। इसलिए इन्हें चालू सम्पत्तियाँ, चक्रीय सम्पत्तियाँ और परिवर्तनशील सम्पत्तियाँ भी कहा जाता है।

    उदाहरण :

    देनदार, पूर्वदत्त व्यय, स्टॉक, प्राप्य बिल, आदि।

     

  • अमूर्त सम्पत्तियाँ (Intangible Assets)

    अमूर्त सम्पत्तियाँ वे सम्पत्तियाँ हैं जिनका भौतिक अस्तित्व नहीं होता है, किन्तु मौद्रिक मूल्य होता है।

    उदाहरण – ख्याति, ट्रेड मार्क, पेटेण्ट्स, इत्यादि।

  • मूर्त सम्पत्तियाँ (Tangible Assets)

    मूर्त सम्पत्तियाँ वे सम्पत्तियाँ हैं जिन्हें देखा तथा छुआ जा सकता हो अर्थात जिनका भौतिक अस्तित्व हो।

    उदाहरण –

    भूमि, भवन, मशीन, संयंत्र, उपस्कर, स्टॉक, आदि।

     

  • क्षयशील सम्पत्तियाँ (Wasting Assets)

    क्षयशील सम्पत्तियाँ वे सम्पत्तियाँ हैं जो प्रयोग या उपभोग के कारण घटती जाती हैं या नष्ट हो जाती हैं।

    उदाहरण –

    खानें, तेल के कुँए, आदि।

दायित्व (Liabilities) क्या है और इसका वर्गीकरण कैसे किया जाता है ?

वह, धन जो व्यावसायिक उपक्रम को दूसरों को देना है, दायित्व कहा जाता है ; जैसे लेनदार, देय बिल, ऋण एवं अधिविकर्ष इत्यादि।

इस प्रकार दायित्व देयताएँ हैं, ये सभी राशियाँ हैं, जो लेनदारों को भविष्य में देय हैं।

दायित्व के निम्नलिखित प्रकार है :-

 

  • स्थायी दायित्व – दीर्घकालिक या स्थायी दायित्वों से अभिप्राय ऐसे दायित्वों से है जिनका भुगतान एक लम्बी अवधि के पश्चात होना है।

    उदाहरण के लिए ऋण-पत्र दीर्घकालिक ऋण, दीर्घकालिक जमाएँ।

  • चालू ऋण -चालू ऋण वे ऋण कहलाते हैं जिनका भुगतान अल्प अवधि में किया जाना है। जैसे देय विपत्र, विविध लेनदार, बैंक अधिविकर्ष, अदत्त व्यय आदि।

Balance Sheet बनाने का नियम क्या है ?

Balance Sheet में बायें पक्ष को Capital And Liabilities (पूंजी व दायित्व पक्ष) कहा जाता है तथा दायें पक्ष को Assets And Properties (सम्पत्ति व जायदाद)कहा जाता हैं।

Capital And Liabilities Side में आने वाले मदों को निम्न पांच शीर्षकों के अंतर्गत दिखाया जाता है :

  1. Share Capital (अंश पूंजी )

    इस शीर्षक के अंतर्गत निम्नलिखित तरह के पूंजी को दिखाया जाता है :

    • Equity Share Capital (समता अंश पूंजी )
    • Preference Share Capital (पूर्वाधिकार अंश पूंजी )
  2. Reserve And Sur-Plus Income (संचित एवं आधिक्य)

    इस शीर्षक के अंतगर्त निम्नलिखित तरह के लाभों को लिखा जाता है :

    • General Reserve (सामान्य संचित)
    • Capital Reserve ( पूंजी संचित)
    • P/L (Cr.) (लाभ-हानि जमा)
    • Security Premium (प्रतिमूर्ति प्रब्याज)
    • Share Forfeiture (अंशों का हरण)
  3. Secured Loans (सुरक्षित ऋण)

    इस शीर्षक के अंतर्गत निम्नलिखित तरह के दायित्वों को दिखाया जाता है :

    • Debenture (ऋणपत्र)
    • Bonds (बंधन)
    • Bank Loan (अधिकोष ऋण)
    • Mortgage Loan ( बन्धक ऋण )
  4. Current Liabilities (चालु दायित्व)

    इस शीर्षक के अंतर्गत निम्नलिखित अल्पकालीन दायित्वों को लिखा जाता है :

    • Creditor (लेनदार)
    • B/P (देय विपत्र )
    • Bank Overdraft ( बैंक अधिविकर्ष)
    • Outstanding Expense (अदत्त व्यय)
    • Advance Income (अग्रिम आय)
  5. Provisions ( प्रावधान)

    इस शीर्षक के अंतर्गत निम्नलिखित प्रावधानों को लिखा जाता है :

    • Provision For Bad Debts (अप्राप्य ऋण के लिए प्रावधान )
    • Provision For Taxation (करो के लिए प्रावधान )
    • Provision For Repairs ( मरम्मती के लिए प्रावधान )

********************************************************************

Assets And Properties Side में आने वाले मदों को निम्न तीन शीर्षकों के अंतर्गत दिखाया जाता है :

  1. Fixed Assets (स्थायी सम्पत्ति)

    जिस सम्पत्ति में बराबर परिवर्तन नहीं होता है, उसे इस शीर्षक के अंतर्गत दिखाया जाता है। इसमें आने वाले मदों का नाम इस प्रकार है :

    • Land And Building
    • Plant And Machinery
    • Furniture And Fixture
    • Loose Tools
    • Goodwill
    • Patent Right
    • Trade Marks
  2. Current Assets (चालू सम्पत्ति)

    जिस संपत्ति में बराबर परिवर्तन होता रहता है, उसे इसमें दिखाया जाता है। इसके मदों का निम्नलिखित नाम है :

  3. Cash
  4. Bank
  5. Debtors
  6. B/R
  7. Investment
  8. Stock
  9. Prepaid Expense
  10. Accrued Income
  11. Miscellaneous Expenditure (विविध व्यय )

    इस शीर्षक के अंतगर्त अवास्तविक सम्पतियों को दिखाया जाता है। कुछ खर्च एवं हानियों को तत्काल सम्पत्ति के रूप में दिखाया जाता है परन्तु धीरे-धीरे इसे P/L Account में जाकर समाप्त कर दिया जाता है। निम्न मदों को इसमें दिखाया जाता है :

    • Preliminary Expense (प्रारंभिक व्यय)
    • Discount On Issue Of Shares (अंशो के निर्गमन पर कटौती)
    • Discount On Issue Of Debentures (ऋणपत्रों के निर्गमन पर कटौती )
    • Expense On Issue Of Shares (अंशो के निर्गमन पर व्यय)
    • Expense On Issue Of Debentures (ऋणपत्रों के निर्गमन पर व्यय)
    • P/L (Dr.)

Balance Sheet (आर्थिक चिट्ठा) कैसे बनाया जाता है ?

निम्न सूचनाओं से 30 सितंबर 2009 को Balance Sheet (आर्थिक चिट्ठा) बनाइए :

Debit BalanceRs.Credit BalanceRs.
Computer Set43,500Capital66,600
Furniture And Fixture16,500Creditors22,700
Bills Receivable1,500Bills Payable1,800
Debtors20,000Loan From Ajay10,000
Cash In Hand2,500
Cash at Bank7,650
Net Loss2,950
Closing Stock6,500



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Final Account कैसे बनाया जाता है ?

निम्नलिखित विवरणों से 31मार्च, 2009 को समाप्त होने वाले वर्ष के लिए मैसर्स मंगल एण्ड सन्स के लिए अंतिम खाता तैयार कीजिए :

 Rs.
Opening Stock12,500
Bills Receivable2,000
Sales70,000
Purchases37,500
Creditors20,000
Salaries3,850
Insurance200
Debtors32,500
Carriage1,450
Commission Dr.750
Interest Dr.900
Printing250
Bills Payable3,150
Returns Inward1,300
Returns Outward500
Bank5,250
Rent and Taxes1,300
Furniture1,000
Capital7,100
Closing Stock15,000



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Topic

लेख एवं अंकन दो शब्दों के मेल से वने लेखांकन में लेख से मतलब लिखने से होता है तथा अंकन से मतलब अंकों से होता है । किसी घटना क्रम को अंकों में लिखे जाने को लेखांकन (Accounting) कहा जाता है ।

किसी खास उदेश्य को हासिल करने के लिए घटित घटनाओं को अंकों में लिखे जाने के क्रिया को लेखांकन कहा जाता है । यहाँ घटनाओं से मतलब उस समस्त क्रियाओं से होता है जिसमे रुपय का आदान-प्रदान होता है ।

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