भारतीय सविधान मूल कर्तव्य

मूल कर्तव्य

परिचय:
  • भारत के संविधान, 1950 (Constitution of India- COI) का अनुच्छेद 51A मूल कर्तव्यों से संबंधित है। यह अनुच्छेद 42वें संशोधन अधिनियम, 1976 द्वारा भाग IV-A में जोड़ा गया था और इसमें ग्यारह मूल कर्त्तव्य शामिल हैं।
COI का अनुच्छेद 51A:
  • इस अनुच्छेद में कहा गया है कि यह भारत के प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य होगा-
  • (a) संविधान का पालन करे और उसके आदर्शों, संस्थाओं, राष्ट्र ध्वज और राष्ट्रगान का आदर करे;
  • (b) स्वतंत्रता के लिये हमारे राष्ट्रीय आंदोलन को प्रेरित करने वाले उच्च आदर्शों को हृदय में संजोए रखे और उनका पालन करे;
  • (c) भारत की प्रभुता, एकता और अखंडता की रक्षा करे और उसे अक्षुण्ण बनाए रखे;
  • (d) देश की रक्षा करे और आह्वान किये जाने पर राष्ट्र की सेवा करे;
  • (e) भारत के सभी लोगों में समरसता और समान भ्रातृत्व की भावना का निर्माण करे जो धर्म, भाषा और प्रदेश या वर्ग पर आधारित सभी भेदभाव से परे हो, ऐसी प्रथाओं का त्याग करे जो स्त्रियों के सम्मान के विरुद्ध हैं;
  • (f) हमारी सामासिक संस्कृति की गौरवशाली परंपरा का महत्त्व समझे और उसका परिरक्षण करे;
  • (g) प्राकृतिक पर्यावरण की, जिसके अंतर्गत वन, झील, नदी व वन्य जीव हैं, रक्षा करे और उसका संवर्द्धन करे तथा प्राणिमात्र के प्रति दयाभाव रखे;
  • (h) वैज्ञानिक दृष्टिकोण, मानववाद और ज्ञानार्जन तथा सुधार की भावना का विकास करे;
  • (i) सार्वजनिक संपत्ति को सुरक्षित रखे और हिंसा से दूर रहे;
  • (j) व्यक्तिगत एवं सामूहिक गतिविधियों के सभी क्षेत्रों में उत्कर्ष की ओर बढ़ने का सतत् प्रयास करे जिससे राष्ट्र निरंतर बढ़ते हुए प्रयत्न और उपलब्धि की नई ऊँचाइयों को छू ले;
  • (k) यदि माता-पिता या संरक्षक है, छह वर्ष से चौदह वर्ष तक की आयु वाले अपने, यथास्थिति, बालक या प्रतिपाल्य के लिये शिक्षा के अवसर प्रदान करे।
  • इसे 2002 के छियासीवें संशोधन अधिनियम द्वारा जोड़ा गया था।
मूल कर्तव्यों की आवश्यकता:
  • मूल कर्तव्यों का उद्देश्य प्रत्येक नागरिक को एक निरंतर अनुस्मारक के रूप में यह बताना है , कि संविधान ने विशेष रूप से उन्हें कुछ मूल अधिकार प्रदान किये हैं, लेकिन नागरिकों को लोकतांत्रिक आचरण और लोकतांत्रिक व्यवहार के बुनियादी मानदंडों का पालन करने की भी आवश्यकता है।
  • मूल कर्तव्य ऐसे लोगों के लिये असामाजिक गतिविधियों के खिलाफ चेतावनी के रूप में कार्य करते हैं जो राष्ट्र का अपमान करते हैं; जैसे राष्ट्रीय ध्वज का अपमान, सार्वजनिक संपत्ति को नष्ट करना या सार्वजनिक शांति भंग करना आदि।
  • ये राष्ट्र के प्रति अनुशासन और प्रतिबद्धता की भावना को बढ़ावा देने में सहायता करते हैं और कानून की संवैधानिकता का निर्धारण करने में न्यायालय की मदद करते हैं।
मूल कर्तव्यों का प्रवर्तन:
  • ये कर्तव्य वैधानिक प्रकृति के हैं और विधि द्वारा प्रवर्तनीय होंगे।
  • संसद विधि द्वारा उन कर्तव्यों और दायित्वों को पूरा करने में विफलता हेतु दंड का प्रावधान करेगी।
निर्णयज विधि:
  • श्री रंगनाथ मिश्रा बनाम भारत संघ (2003), मामले में उच्चतम न्यायालय ने माना कि मूल कर्त्तव्यों को न केवल विधिक प्रतिबंधों द्वारा बल्कि सामाजिक प्रतिबंधों द्वारा भी लागू किया जाना चाहिये।
  • एम्स छात्र संघ बनाम एम्स (2001) मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा यह माना गया था कि मूल कर्त्तव्य मूल अधिकारों के समान ही महत्त्वपूर्ण हैं। यद्यपि मूल कर्त्तव्यों को मूल अधिकारों की तरह लागू नहीं किया जा सकता है, लेकिन उन्हें COI के भाग IV A में कर्तव्यों के रूप में नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता है।

मौलिक कर्तव्य

अनुच्छेद 51(क)भाग 4(क)
मौलिक कर्तव्य
 यह भारत के प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य होगा
(a) प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य होगा कि वह संविधान का पालन करे और उसके आदर्शों, संस्थाओं, राष्ट्र ध्वज और राष्ट्र गान का आदर करें;
(b) स्वतंत्रता के लिए हमारे राष्ट्रीय आंदोलन को प्रेरित करनेवाले उच्च आदर्शों को हृदय में संजोए रखे और उनका पालन करे;
(c) भारत की प्रभुता, एकता और अखंडता की रक्षा करे और उसे अक्षुण्ण रखे ;
(d) देश की रक्षा करे;
(e) भारत के सभी लोगों में समरसता और समान भ्रातृत्व की भावना का निर्माण करे;
(f) हमारी सामाजिक संस्कृति की गौरवशाली परंपरा का महत्व समझे और उसका निर्माण करे;
(g) प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा और उसका संवर्धन करे;
(h) वैज्ञानिक दृष्टिकोण और ज्ञानार्जन की भावना का विकास करे;
(i) सार्वजनिक संपत्ति को सुरक्षित रखे;
(j) व्यक्तिगत एवं सामूहिक गतिविधियों के सभी क्षेत्रों में उत्कर्ष की ओर बढ़ने का सतत प्रयास करे;
(k) माता-पिता या संरक्षक द्वार 6 से 14 वर्ष के बच्चों हेतु प्राथमिक शिक्षा प्रदान करना.

मौलिक कर्तव्य

मौलिक कर्तव्य

यह भारत के प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य होगा
 
संविधान का पालन करना और उसके आदर्शों और संस्थानों, राष्ट्रीय ध्वज और राष्ट्रगान का सम्मान करना;
उन महान आदर्शों को संजोना और उनका पालन करना जिन्होंने स्वतंत्रता के लिए हमारे राष्ट्रीय संघर्ष को प्रेरित किया;
भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को बनाए रखना और उसकी रक्षा करना;
देश की रक्षा करना और ऐसा करने के लिए बुलाए जाने पर राष्ट्रीय सेवा प्रदान करना;
धार्मिक, भाषाई और क्षेत्रीय या अनुभागीय विविधताओं से परे भारत के सभी लोगों के बीच सद्भाव और समान भाईचारे की भावना को बढ़ावा देना; महिलाओं की गरिमा के प्रति अपमानजनक प्रथाओं का त्याग करना;
हमारी समग्र संस्कृति की समृद्ध विरासत को महत्व देना और संरक्षित करना;
जंगलों, झीलों, नदियों और वन्य जीवन सहित प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा और सुधार करना और जीवित प्राणियों के प्रति दया रखना;
वैज्ञानिक स्वभाव, मानवतावाद तथा जांच एवं सुधार की भावना का विकास करना; 
सार्वजनिक संपत्ति की रक्षा करना और हिंसा का त्याग करना;
व्यक्तिगत और सामूहिक गतिविधि के सभी क्षेत्रों में उत्कृष्टता की दिशा में प्रयास करना ताकि राष्ट्र लगातार प्रयास और उपलब्धि के उच्च स्तर तक बढ़ सके;
जो माता-पिता या अभिभावक है, वह छह से चौदह वर्ष की आयु के अपने बच्चे या, जैसा भी मामला हो, प्रतिपाल्य को शिक्षा के अवसर प्रदान करेगा।

मूल कर्तव्य

मूल कर्तव्य
  • मूल संविधान में केवल मूल अधिकार थे न कि मूल कर्तव्य।
  • 1976 मेंमूल अधिकारों को 42वें संविधान संशोधन द्वारा संविधान में जोड़ा गया था। एक और मूल अधिकार को 86वें संविधान संशोधन (2002) द्वारा जोड़ा गया था।
  • मूल या मौलिक कर्तव्यों की अवधारणा को पूर्व सोवियत संघ के संविधान से लिया गया है।
  • इस समय लोकतान्त्रिक देशों में भारत एवं जापान ही ऐसे देश हैं, जहां संविधान में मूल कर्तव्यों का समावेश है।
  • सुप्रीम कोर्ट (1992) का निर्णय किसी भी कानून की संवैधानिक वैधता की दृष्टि से व्याख्या में यदि अदालत को मालूम चले कि मौलिक कर्तव्यों के संबंध में विधि में प्रश्न उठते हैं तो अनुच्छेद 14 या अनुच्छेद 19 के संदर्भ में इन्हें तर्कसंगत माना जा सकता है और इस प्रकार ऐसी विधि को असंवैधानिकता से बचाया जा सकता है।
  • कर देने का कर्तव्य (स्वर्ण सिंह समिति द्वारा अनुशंसित) और चुनाव में मतदान देने का कर्तव्य, संविधान में उल्लिखित मौलिक कर्तव्यों में शामिल नहीं हैं।
  • मौलिक कर्तव्य, न्यायालयों को किसी विधि की संवैधानिक वैधता एवं उनके परीक्षण के संबंध में सहायता करते हैं।
स्वर्ण सिंह समिति की सिफ़ारिशें
  • सर्वप्रथम 1976 में स्वर्ण सिंह समिति ने 8 मूल कर्तव्यों को संविधान में शामिल करने की सिफ़ारिश की थी। इसकी आवश्यकता आंतरिक आपातकाल (1975-77) के दौरान महसूस की गई थी।
  • 42वें संविधान संसोधन (1976) के द्वारा संविधान में एक नया भाग IV-A जोड़ा गयाजिसमें अनुच्छेद 51A है। 42वें संविधान संसोधन द्वारा इसमें 10 मूल कर्तव्यों को जोड़ा गया था, जबकि वर्तमान में इसमें 11 मूल कर्तव्य हैं।
  • स्वर्ण सिंह समिति की कुछ सिफ़ारिशों को स्वीकार नहीं किया गया था, यथा- मूल कर्तव्य के उल्लंघन पर दंड देने का प्रावधान आदि।
मूल कर्तव्यों की सूची
  1. संविधान का पालन करें और उसके आदर्शोंसंस्थाओंराष्ट्रध्वज एवं राष्ट्रीय गान का आदर करें।
  2. स्वतंत्रता के लिये राष्ट्रीय आंदोलन को प्रेरित करने वाले उच्च आदर्शों को हृदय में संजोये रखें और उनका पालन करें।
  3. भारत की संप्रभुताएकता और अखंडता की रक्षा करें तथा उसे अक्षुण्ण रखें।
  4. देश की रक्षा करें और आह्वान किये जाने पर राष्ट्र की सेवा करें।
  5. भारत के सभी लोगों में समरसता और समान भातृत्व की भावना का निर्माण करें जो धर्मभाषा और प्रदेश या वर्ग आधारित सभी प्रकार के भेदभाव से परे होऐसी प्रथाओं का त्याग करें जो स्त्रियों के सम्मान के विरुद्ध हैं।
  6. हमारी समृद्ध संस्कृति की गौरवशाली परंपरा का महत्त्व समझें और उसका परिरक्षण करें।
  7. प्राकृतिक पर्यावरण जिसके अंतर्गत वनझीलनदी और वन्य जीव आते हैं, आदि की रक्षा करें।
  8. वैज्ञानिक दृष्टिकोण से मानववाद और ज्ञानार्जन तथा सुधार की भावना का विकास करें।
  9. सार्वजनिक संपत्ति को सुरक्षित रखें और हिंसा से दूर रहें।
  10. व्यक्तिगत और सामूहिक गतिविधियों के सभी क्षेत्रों में उत्कर्ष की ओर बढ़ने का सतत प्रयास करें जिससे राष्ट्र प्रगति की और निरंतर बढ़ते हुए उपलब्धि की नई ऊँचाइयों को छू ले।
  11. जो माता-पिता या संरक्षक हों वह, छ: से चौदह वर्ष के बीच की आयु के, यथास्थिति, अपने बच्चे अथवा प्रतिपाल्य को शिक्षा प्राप्त करने के अवसर प्रदान करेगा।
मूल कर्तव्यों की विशेषताएँ
  • मूल कर्तव्य केवल भारतीय नागरिकों के लिए हैं। ये विदेशियों के लिए नहीं हैं।
  • मूल कर्तव्य न्याय-योग्य या वाद योग्य नहीं हैं। हालांकिसंसद उपयुक्त कानून के माध्यम से इन्हें लागू कर सकती है।
  • नोट: कर अदायगी और मतदान करने का कर्तव्य मूल कर्तव्यों का हिस्सा नहीं हैं।
वर्मा समिति की मूल कर्तव्यों पर टिप्पणियाँ (1999)
  • कुछ मूल कर्तव्यों की पहचान व उनके क्रियान्वयन हेतु कानूनी प्रावधानों को लागू करने की व्यवस्थाएँ की गई हैं- जैसे-वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972।
  • वर्मा समिति ने स्कूल पाठ्यक्रम और शिक्षक के शिक्षा कार्यक्रमों  हेतु पुनर्संरचना  तथा उच्च व व्यावसायिक शिक्षा में मूल कर्तव्यों को शामिल करने की सिफारिश की।

मौलिक कर्तव्य

मौलिक कर्तव्यों का प्रावधान:
  • मौलिक कर्तव्यों का विचार रूस के संविधान (तत्कालीन सोवियत संघ) से प्रेरित है।
  • इन्हें 42वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1976 द्वारा स्वर्ण सिंह समिति की सिफारिशों पर संविधान के भाग IV-A में शामिल किया गया था।
  • मूल रूप से मौलिक कर्त्तव्यों की संख्या 10 थी, बाद में 86वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2002 के माध्यम से एक और कर्तव्य जोड़ा गया था।
    • सभी ग्यारह कर्तव्य संविधान के अनुच्छेद 51-ए (भाग- IV-ए) में सूचीबद्ध हैं।
  • राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों की तरह, मौलिक कर्तव्य भी प्रकृति में गैर-न्यायिक हैं।
ौलिक कर्त्तव्यों की सूची:
  • संविधान का पालन करें और उसके आदर्शों, संस्थाओं, राष्ट्रध्वज एवं राष्ट्रीय गान का आदर करें।
  • स्वतंत्रता के लिये राष्ट्रीय आंदोलन को प्रेरित करने वाले उच्च आदर्शों को हृदय में संजोये रखें और उनका पालन करें।
  • भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता की रक्षा करें तथा उसे अक्षुण्ण रखें।
  • देश की रक्षा करें और आह्वान किये जाने पर राष्ट्र की सेवा करें।
  • भारत के सभी लोगों में समरसता और समान भातृत्व की भावना का निर्माण करें जो धर्म, भाषा व प्रदेश या वर्ग आधारित सभी प्रकार के भेदभाव से परे हो, ऐसी प्रथाओं का त्याग करें जो स्त्रियों के सम्मान के विरुद्ध हैं।
  • हमारी सामासिक संस्कृति की गौरवशाली परंपरा का महत्त्व समझें और उसका परिरक्षण करें।
  • प्राकृतिक पर्यावरण जिसके अंतर्गत वन, झील, नदी और वन्यजीव आते हैं, की रक्षा और संवर्द्धन करें तथा प्राणीमात्र के लिये दया भाव रखें।
  • वैज्ञानिक दृष्टिकोण से मानववाद और ज्ञानार्जन तथा सुधार की भावना का विकास करें।
  • सार्वजनिक संपत्ति को सुरक्षित रखें और हिंसा से दूर रहें।
  • व्यक्तिगत और सामूहिक गतिविधियों के सभी क्षेत्रों में उत्कर्ष की ओर बढ़ने का सतत् प्रयास करें जिससे राष्ट्र प्रगति की और निरंतर बढ़ते हुए उपलब्धि की नई ऊँचाइयों को प्राप्त किया जा सके।
  • छह से चौदह वर्ष की आयु के बीच के अपने बच्चे बच्चों को शिक्षा के अवसर प्रदान करना (इसे 86वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2002 द्वारा जोड़ा गया)।
मौलिक कर्तव्यों का महत्त्व:
  • लोकतांत्रिक आचरण का निरंतर अनुस्मारक:
    • मौलिक कर्तव्यों का उद्देश्य प्रत्येक नागरिक को एक निरंतर अनुस्मारक के रूप में यह बताना है , कि संविधान ने विशेष रूप से उन्हें कुछ मौलिक अधिकार प्रदान किये हैं, लेकिन नागरिकों को लोकतांत्रिक आचरण और लोकतांत्रिक व्यवहार के बुनियादी मानदंडों का पालन करने की भी आवश्यकता है।
  • असामाजिक गतिविधियों के विरुद्ध चेतावनी:
    • मौलिक कर्तव्य ऐसे लोगों के लिये असामाजिक गतिविधियों के खिलाफ चेतावनी के रूप में कार्य करते हैं जो राष्ट्र का अपमान करते हैं; जैसे राष्ट्रीय ध्वज का अपमान, सार्वजनिक संपत्ति को नष्ट करना या सार्वजनिक शांति भंग करना आदि।
  • अनुशासन और प्रतिबद्धता की भावना:
    • ये राष्ट्र के प्रति अनुशासन और प्रतिबद्धता की भावना को बढ़ावा देने में मदद करते हैं।
    • ये केवल दर्शकों के बजाय नागरिकों की सक्रिय भागीदारी से राष्ट्रीय लक्ष्यों को साकार करने में मदद करते हैं।
  • कानून की संवैधानिकता निर्धारित करने में सहायता करना:
    • यह कानून की संवैधानिकता का निर्धारण करने में न्यायालय की मदद करता है।
    • उदाहरण के लिये, विधायिका द्वारा पारित कोई भी कानून, जब संवैधानिकता जाँच के लिये न्यायालय में जाता है और उसमें मौलिक कर्तव्य के घटक निहित हैं, तो ऐसे कानून को उचित माना जाएगा।
मौलिक कर्तव्यों के संदर्भ में सर्वोच्च न्यायालय का पक्ष:
  • सर्वोच्च न्यायालय के रंगनाथ मिश्रा वाद 2003 में कहा गया कि मौलिक कर्तव्यों को न केवल कानूनी प्रतिबंधों से बल्कि सामाजिक प्रतिबंधों द्वारा भी लागू किया जाना चाहिये।
  • एम्स छात्र संघ बनाम एम्स 2001 में, सर्वोच्च न्यायालय द्वारा यह माना गया था कि मौलिक कर्तव्य मौलिक अधिकारों के समान ही महत्त्वपूर्ण हैं।
    • हालाँकि मौलिक कर्तव्यों को मौलिक अधिकारों की तरह लागू नहीं किया जा सकता है, लेकिन उन्हें भाग IV ए में कर्तव्यों के रूप में नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है
    • मूल कर्तव्यों की उपस्थिति अप्रत्यक्ष रूप से पहले से ही संविधान के भाग III में कुछ निर्बंधनों के रूप थी।
आगे की राह:
  • मौलिक कर्तव्य केवल पांडित्य या तकनीकी उद्देश्य नहीं हैं। बल्कि इन्हें सामाजिक परिवर्तन की कुंजी के रूप में शामिल किया गया था।
  • समाज में सार्थक योगदान देने के लिये नागरिकों को पहले संविधान और उसके अंगों को समझना होगा जिसके लिये “जन-व्यवस्था और उसकी बारीकियों, शक्तियों और सीमाओं को समझना अनिवार्य है”
  • इसलिये भारत में संवैधानिक संस्कृति का प्रसार बहुत ज़रूरी है।
  • प्रत्येक नागरिक को भारतीय लोकतंत्र में सार्थक हितधारक होने और संवैधानिक दर्शन को उसकी वास्तविक भावना में आत्मसात करने का प्रयास करने की आवश्यकता है।
  • मौलिक कर्तव्यों के उचित संवेदीकरण, पूर्ण संचालन और प्रवर्तनीयता” के लिये एक समान नीति की आवश्यकता है जो “नागरिकों को ज़िम्मेदार होने में काफी मदद करेगी”।

भारतीय सविधान

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