मौलिक अधिकार

  • संविधान के भाग-3 में नागरिकों के 7 मूल अधिकार प्रदान किये गये थे लेकिन वर्तमान में नागरिकों को 6 मूल अधिकार प्राप्त है यथा
  • भाग-3 को भारतीय संविधान का ‘मैग्नाकार्टा’ कहा जाता है।
  • 44वें संविधान संशोधन द्वारा 1978 में सम्पत्ति के अधिकार को मूल अधिकार के रूप में समाप्त करके ‘विधिक अधिकार’ बना दिया।
  1. समता का अधिकार (अनु. 14-18) – विधि के समक्ष सभी समान होंगे। 
  2. यह अवधारणा इग्लैण्ड से ली गई है जो कि एक नकारात्मक अवधारणा है।
  3. स्वतंत्रता का अधिकार (अनु. 19-22)
  4. शोषण के विरूद्ध अधिकार (अनु. 23-24)
  5. धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार (अनु. 25-28)
  6. संस्कृति व शिक्षा का अधिकार (अनु. 29-30)
  7. संवैधानिक उपचारों का अधिकार (अनु. 32)
नोट
  • अनु. 15 – राज्य किसी भी व्यक्ति के साथ धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग/जेण्डर, जन्म, स्थान के आधार पर कोई भेदभाव नहीं करेगा।
  • अनु. 15(3) – राज्य महिलाओं और बच्चों के लिए विशेष प्रावधान कर सकेगा।
  • अनु. 15(4) शिक्षण संस्थाओं में आरक्षण का प्रावधान कर सकेगा।
नोट –
  • अनु. 15(4) यह धारा प्रथम संविधान संशोधन द्वारा 1951 में जोड़ी गई।
  • अनु. 15(5) के द्वारा एस.सी., एस.टी. तथा पिछड़े हुये लोगों के लिए ‘उच्च शिक्षण संस्थानों में आरक्षण का प्रावधान किया गया है।
नोट
  • 93वें संविधान संशोधन के द्वारा वर्ष 2006 में यह धारा जोड़ी गई थी।
  • अनु. 16 सभी व्यक्तियों को लोकनियोजन में समान अवसर प्राप्त होंगे।
नोट
  • अनु. 16 में यह भी उल्लेखित है कि राज्य किसी भी व्यक्ति के साथ जाति, धर्म, मूलवंश, जन्म स्थान, निवास स्थान, लिंग तथा उद्भव के आधार पर कोई भेदभाव नहीं करेगा। (7 आधार है)
  • अवसर की समानता का उल्लेख प्रस्तावना में भी है।
  • अनु. 16(3) में यह उल्लेखित है कि राज्य चाहें तो निवास के आधार पर भेदभाव कर सकता है। भूमि पुत्र की अवधारणा इसी अनुच्छेद से संबंधित है।
  • अनु. 16(4) – में यह उल्लेखित है कि सरकार समाज़ में पिछड़े लोगों तथा जिनका सरकारी नौकरियों में ‘अपर्याप्त प्रतिनिधित्व’ है, के लिए आरक्षण का प्रावधान कर सकेगी।

नोट

  • भारत में पहली बार आरक्षण 1892 में
  • ओ.बी.सी. (OBC) को आरक्षण मिला – 1989 में
  • ० एस.सी. (SC) व एस.टी. (ST) को सरकारी नौकरियों में आरक्षण वर्ष 1951 से प्राप्त है।
  • मण्डल आयोग की सिफारिश पर वी.पी. सिंह सरकार द्वारा 1989 में पहली बार ओ.बी.सी. (OBC) को आरक्षण दिया।
  • पी.वी. नरसिम्हा राव की सरकार ने इसके साथ सामान्य वर्ग को आर्थिक आधार पर आरक्षण दिया।
नोट –
  • ‘इन्दिरा साहनी बनाम भारत संघ (1992) के मामले में इन दोनों आरक्षणों को चुनौती दी गई।
  • इस मामले में निम्न निर्णय दिया गया
  1. ओ.बी.सी. (OBC) का आरक्षण संवैधानिक है
  2. आर्थिक आधार पर सामान्य वर्ग को आरक्षण देना, असंवैधानिक है।
  • (आर्थिक पिछड़ापन का उल्लेख संविधान में नहीं है।)
    सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों को 10% आरक्षण देने के लिए लाया गया संविधान (124वाँ संशोधन 2019) विधेयक लोकसभा में पारित हो गया है।
  1. पदोन्नति में किसी प्रकार का कोई आरक्षण नहीं होगा।
  2. ‘क्रीमिलेयर्स’ को आरक्षण के दायरे से बाहर किया जाना चाहिए।
नोट –
  • 77वें संविधान संशोधन के द्वारा 1995 में यह प्रावधान किया गया कि एस.सी. (SC) और एस.टी. (ST) को पदोन्नति में यह आरक्षण दिया जा सकता है।
  • इस संशोधन के द्वारा 16 (4) A नामक नया अनुच्छेद जोड़ा गया।
  • 85वें संविधान संशोधन द्वारा 2001 में अनु. 16(4)A में संशोधन करके (वरिष्ठता) शब्द की भी उल्लेख कर दिया गया।
  • 81 वें संविधान संशोधन द्वारा 2000 में अनु. 16(4)B नामक नया अनु. जोड़ा गया जो कि “Backlog” से संबंधित है।
  • अनु. 17 – इसके तहत अस्पृश्यता / छुआछुत पर रोक लगाई गई है। अस्पृश्यता को समाप्त करने के लिए 1955 में ‘नागरिक अधिकार संरक्षण अधिनियम 1955 बनाया गया था।
  • इसके अलावा एस.सी./एस.टी. के विरूद्ध अत्याचारों को रोकने हेतु अनुसूचित जाति, जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम 1989 भी बनाया गया है।

अनु. 18 इसके तहत सैन्य तथा शिक्षा के अलावा सभी प्रकार की उपाधियाँ समाप्त की गई है।

कोई भी भारत का नागरिक सरकार की अनुमति के बिना किसी भी अन्य देश में उपाधियाँ नहीं ले सकता।

नोट

1954 में पहली बार ‘भारत रत्न’ दिये गये। सर्वोच्च न्यायालय के एक निर्णय के तहत कोई भी व्यक्ति भारत रत्न तथा वैध पुरस्कार का उपयोग अपने नाम के साथ नहीं कर सकता है।

अनु. 19 अनु. 19 (1) में 6 प्रकार की स्वतंत्रताओं का उल्लेख है।

मूल संविधान में सात प्रकार की स्वतंत्रताओं का उल्लेख था। 44वें संविधान संशोधन द्वारा ‘सम्पत्ति अर्जित करने की स्वतंत्रता’ को समान्त कर दिया गया है।

अनु. 19 (1) – प्रेस की स्वतंत्रता तथा सूचना का अधिकार का भारतीय संविधान में कहीं पर भी स्पष्ट रूप से उल्लेख नहीं है लेकिन इन दोनों को भाषण व अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का भाग माना जाता है।

अनु. 19 (2) से अनु. 19 (6) तक उन बातों का

उल्लेख है जिनके आधार पर इन स्वतंत्रताओं पर रोक लगाई जा सकती है। देश की एकता, अखण्डता सरक्षा विदेशी सम्बन्ध आदि ।

अनु. 20 हैं -इसके अन्तर्गत 3 बातों का उल्लेख

  1. जब किसी व्यक्ति ने अपराध किया है, उस व्यक्ति को उस समय के कानून के तहत ही सजा दी जायेगी।
  2. Back Date का कानून फायदे के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है न कि नुकसान में। एक व्यक्ति को एक अपराध के लिए दो बार सजा नहीं दी जा सकती है।
  3. किसी भी व्यक्ति को स्वयं के विरूद्ध गवाही देने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता।
नोट

० सेल्वी बनाम कर्नाटक राज्य (2010) के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने यह निर्णय दिया कि किसी व्यक्ति पर नार्को या ब्रेन मैपिंग जैसे टेस्ट नहीं किये जा सकते।

नोट
  • P.U.C.L. बनाम भारत संघ (2003) के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने ये निर्णय दिया कि उम्मीदवारों के पूर्व आचरण की जानकारी नागरिकों को देना, भाषण व अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का ही भाग है।
  • अनु. 21 इसके तहत सभी व्यक्तियों को जीवन तथा दैहिक स्वतन्त्रता प्राप्त होगी।
  • मेनका गाँधी बनाम भारत संघ (1978) के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने विदेश जाने के अधिकार को इसमें शामिल माना है।
  • Ο P.U.C.L. बनाम भारत संघ 1998 के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने निजता का अधिकार इसमें शामिल माना है।
  • राजदेव शर्मा बनाम बिहार राज्य (1998) के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने मामलों की शीघ्रता से सुनवाई को अनु. 21 में शामिल माना।
  • एम.सी. मेहता बनाम भारत संघ के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने शुद्ध पर्यावरण के अधिकार को भी अनु. 21 के अन्तर्गत मूल अधिकार माना।
नोट –
  • मरने का अधिकार अनु. 21 के अन्तर्गत नहीं है। जैनों में प्रचलित ‘संथारा’ अनु. 21 का उल्लंघन नहीं है बल्कि अनु. 25 में उल्लेखित धर्म के अनुरूप आचरण है।
  • अनु. 21(A) में 6-14 वर्ष तक सभी बच्चों को अनिवार्य व निःशुल्क प्राथमिक शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार होगा।
  • अनु. 22 – किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तार करते समय जो अधिकार प्राप्त होते है, उन अधिकारों का उल्लेख अनु. 22 में है।
  • -गिरफ्तारी के कारणों को जानने का अधिकार
  • अनु. 23 – इसके तहत बेगार प्रथा तथा मानव के व्यापार पर रोक लगाई गई है।
नोट
  • अनु. 23 में यह भी उल्लेखित है कि सरकार चाहे तो राष्ट्रहित में लोगों से काम करवा सकती है।
  • अनु. 24 – व्यवहार में 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों से किसी भी प्रकार का श्रम नहीं करवाया जा सकता है।
  • अनु. 25 – इसमें सभी व्यक्तियों को अन्तःकरण
  • की स्वतंत्रता, अपने-अपने धर्म को मानने, उसका प्रचार व प्रसार करने तथा धर्म के अनुरूप आचरण करने का अधिकार होगा।
  • अनु. 26 अपनी धार्मिक संस्थाओं को स्थापित करने का अधिकार ।
  • अनु. 27 – राज्य किसी भी व्यक्ति को एक धर्म को बढ़ावा देने हेतु कर देने हेतु बाध्य नहीं कर सकता।
  • अनु. 28 किसी भी शिक्षण संस्थान में धार्मिक शिक्षा प्रदान नहीं की जायेगी।
नोट
  • अरुणा राय बनाम भारत संघ (2003) के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने ये निर्णय दिया कि शिक्षण संस्थानों में धर्म का अध्ययन करना संविधान में उल्लेखित पंथ-निरपेक्षता का उल्लंघन नहीं है।
  • अनु. 29 सभी अल्पसंख्यकों को अपनी भाषा, लिपि तथा संस्कृति को बनाए रखने का अधिकार होगा।
  • अनु. 30 अल्पसंख्यकों को अपनी पसंद के शैक्षिक संस्थानों की स्थापना करने और उन्हें संचालित करने का अधिकार है।
  • अनु. 30 के कारण ‘अल्पसंख्यक’ शिक्षण संस्थान शिक्षा के अधिकार अधिनियम 2009 के दायरे में नहीं आते हैं।
नोट

सम्पत्ति के अधिकार का उल्लेख अनु. 31 में था। 44वें संविधान संशोधन द्वारा 1978 में इसे मूल अधिकार के रूप में समाप्त कर अनु. 300(A) के तहत ‘विधिक’ अधिकार बना दिया।

अनु. 32 यदि हमारे मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होता है तो सर्वोच्च न्यायालय इन अधिकारों की रक्षा के लिए निम्न 5 याचिकाएँ जारी कर सकता है।

1. Habeas Corpus (बन्दी प्रत्यक्षीकरण)
  • शरीर सहित उपस्थित ।
  • किसी भी व्यक्ति को अवैध रूप से बन्दी बना लेने पर उसे छुड़वाने हेतु यह याचिका जारी की जाती है।
2. Mandamus (परमादेश) देते हैं।
  • हम आदेश किसी भी संस्था द्वारा अपने निर्धारित कार्यों को नहीं करने पर उस संस्था को वे कार्य करने का आदेश देना परमादेश कहलाता है।
3. Prohibition (प्रतिषेध)
  • रोकना या किसी संस्था द्वारा अपने निर्धारित कार्य क्षेत्र से बाहर जाकर कार्य करने पर उसे रोकने हेतु ये याचिका जारी की जाती है।
4. Certiorari (उत्प्रेषण)
  • प्रमाणित करना या सूचना देना।
  • इसके अन्तर्गत उच्चतम तथा उच्च न्यायालय द्वारा अपने अधीनस्थ न्यायालयों से किसी भी विषय को अपने पास मँगवा सकता है तथा उस संबंध में सूचना प्राप्त कर सकता है।
5. Quo – Warranto (अधिकार-पृच्छा)
  • किस अधिकार से किसी भी व्यक्ति द्वारा अवैध रूप से किसी पद को ग्रहण कर लेने पर उसे हटाने हेतु यह याचिका जारी की जाती है।
नोट –
  • अनु. 32 में प्रदत्त संवैधानिक उपचारों के अधिकार को डॉ. अम्बेडकर ने ‘संविधान का हृदय और आत्मा’ कहा है।
  • सर्वोच्च न्यायालय केवल मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए याचिकाएँ जारी कर सकता है जबकि उच्च न्यायालय मौलिक अधिकारों के साथ-साथ अन्य अधिकारों की रक्षा के लिए भी याचिकाएँ जारी करने का अधिकार रखता है।
  • उच्च न्यायालय अनु. 226 के तहत 6 याचिकाएँ जारी कर सकता है
  • अनु. 226 के तहत ‘इंजक्कशन’ नामक याचिका उच्च न्यायालय जारी कर सकता है। इस याचिका के तहत उच्च न्यायालय ‘अन्तरिम राहत उपलब्ध करवाता है।
  • अनु. 33 – इसमें यह उल्लेखित है कि संसद कानून बनाकर सेना, अन्वेक्षण / खुफियागिरी तथा लोक व्यवस्था से संबंधित (पुलिस) लोगों के मौलिक अधिकारों में कमी कर सकती है।
  • अनु. 34 – यदि देश में मार्शल लॉ (सैन्य कानून) स्थापित हो जाये तो लोगों के मौलिक अधिकारों को हुए नुकसानों की क्षतिपूर्ति करने के लिए संसद कानून बना सकती है।
  • अनु. 35 – अनु. 16 (3), अनु. 33, अनु. 32(3) तथा अनु. 34 के संदर्भ में सभी कानून संसद द्वारा बनाये जायेंगे। राज्य विधान मण्डल का इस सन्दर्भ में कोई अधिकार नहीं होगा।
  • मूल अधिकार का उल्लंघन होने पर पीड़ित व्यक्ति अनु 32 जो कि स्वयं में मूल अधिकार है, उसके अन्तर्गत सीधे उच्चतम न्यायालय जा सकता है, परन्तु उपरोक्त अधिकारों के उल्लंघन के मामले में व्यक्ति इस संविधानिक उपचार को प्रयुक्त नहीं कर सकता। वह सामान्य मुकदमों या अनु. 226 के तहत केवल उच्च न्यायालय में जा सकता है।

कुछ अन्य महत्वपूर्ण जानकारी

मौलिक अधिकार

  • संविधान सभी नागरिकों के लिए व्‍यष्टि और सामूहिक रूप से कुछ बुनियादी स्‍वतंत्रता देता है। इनकी मौलिक अधिकारों की छह व्‍यापक श्रेणियों के रूप में संविधान में गारंटी दी जाती है जो न्‍यायोचित हैं। संविधान के भाग III में सन्निहित अनुच्‍छेद 12 से 35 मौलिक अधिकारों के संबंध में है। ये हैं:

 

  • समानता का अधिकार जिसमें कानून के समक्ष समानता, धर्म, वंश, जाति लिंग या जन्‍म स्‍थान के आधार पर भेदभाव का निषेध शामिल है, और रोजगार के संबंध में समान अवसर शामिल है।
  •  
  • भाषा और विचार प्रकट करने की स्‍वतंत्रता का अधिकार, जमा होने संघ या यूनियन बनाने, आने-जाने, निवास करने और कोई भी जीविकोपार्जन एवं व्‍यवसाय करने की स्‍वतंत्रता का अधिकार (इनमें से कुछ अधिकार राज्‍य की सुरक्षा, विदेशी देशों के साथ भिन्‍नतापूर्ण संबंध सार्वजनिक व्‍यवस्‍था, शालीलनता और नैतिकता के अधीन दिए जाते हैं)।
  •  
  • शोषण के विरुद्ध अधिकार, इसमें बेगार, बाल श्रम और मनुष्‍यों के व्‍यापार का निषेध किया जाता है।
  •  
  • आस्‍था एवं अन्‍त:करण की स्‍वतंत्रता, किसी भी धर्म का अनुयायी बनना, उस पर विश्‍वास रखना एवं धर्म का प्रचार करना इसमें शामिल हैं।
  •  
  • किसी भी वर्ग के नागरिकों को अपनी संस्‍कृति सुरक्षित रखने, भाषा या लिपि बचाए रखने और अल्‍पसंख्‍यकों को अपनी पसंद की शैक्षिक संस्‍थाएं चलाने का अधिकार; और
  •  
  • मौलिक अधिकार के प्रवर्तन के लिए सांवैधानिक उपचार का अधिकार।

मौलिक अधिकारों का अर्थ

  • मौलिक अधिकार उन अधिकारों को कहा जाता है जो व्यक्ति के जीवन के लिये मौलिक होने के कारण संविधान द्वारा नागरिकों को प्रदान किये जाते हैं और जिनमें राज्य द्वार हस्तक्षेप नही किया जा सकता। ये ऐसे अधिकार हैं जो व्यक्ति के व्यक्तित्व के पूर्ण विकास के लिये आवश्यक हैं और जिनके बिना मनुष्य अपना पूर्ण विकास नही कर सकता। ये अधिकार कई करणों से मौलिक हैं:-
  1. इन अधिकारों को मौलिक इसलिये कहा जाता है क्योंकि इन्हे देश के संविधान में स्थान दिया गया है तथा संविधान में संशोधन की प्रक्रिया के अतिरिक्त उनमें किसी प्रकार का संशोधन नही किया जा सकता।
  2. ये अधिकार व्यक्ति के प्रत्येक पक्ष के विकास हेतु मूल रूप में आवश्यक हैं, इनके अभाव में व्यक्ति के व्यक्तित्व का विकास अवरुद्द हो जायेगा।
  3. इन अधिकारों का उल्लंघन नही किया जा सकता।
  4. मौलिक अधिकार न्याय योग्य हैं तथा समाज के प्रत्येक व्यक्ति को समान रूप से प्राप्त होते है।
साधारण कानूनी अधिकारों व मौलिक अधिकारों में अंतर
  • साधारण कानूनी अधिकारों को राज्य द्वारा लागू किया जाता है तथा उनकी रक्षा की जाती है जबकि मौलिक अधिकारों को देश के संविधान द्वारा लागू किया जाता है तथा संविधान द्वारा ही सुरक्षित किया जाता है।
  • साधारण कानूनी अधिकारों में विधानमंडल द्वारा परिवर्तन किये जा सकते हैं परंतु मौलिक अधिकारों में परिवर्तन करने के लिये संविधान में परिवर्तन आवश्यक हैं।
मौलिक अधिकारों का वर्गीकरण
  • भारतीय संविधान में नागरिकों के मौलिक अधिकारों का वर्णन संविधान के तीसरे भाग में अनुच्छेद 12 से 35 तक किया गया है। इन अधिकारों में अनुच्छेद 12, 13, 33, 34 तथा 35 क संबंध अधिकारों के सामान्य रूप से है। 44 वें संशोधन के पास होने के पूर्व संविधान में दिये गये मौलिक अधिकारों को सात श्रेणियों में बांटा जाता था परंतु इस संशोधन के अनुसार संपति के अधिकार को सामान्य कानूनी अधिकार बना दिया गया। भारतीय नागरिकों को छ्ह मौलिक अधिकार प्राप्त है :-
  1. समानता का अधिकार : अनुच्छेद 14 से 18 तक।
  2. स्वतंत्रता का अधिकार : अनुच्छेद 19 से 22 तक।
  3. शोषण के विरुध अधिकार : अनुच्छेद 23 से 24 तक।
  4. धार्मिक स्वतंत्रता क अधिकार : अनुच्छेद 25 से 28 तक।
  5. सांस्कृतिक तथा शिक्षा सम्बंधित अधिकार : अनुच्छेद 29 से 30 तक।
  6. संवैधानिक उपचारों का अधिकार : अनुच्छेद 32
  • मूल अधिकार एक दृष्टि में
  • मूल अधिकार साधारण
  • अनुच्छेद 12 (परिभाषा)
  • अनुच्छेद 13 (मूल अधिकारों से असंगत या उनका अल्पीकरण करने वाली विधियां।)
  1. अनुच्छेद 14 (विधि के समक्ष समता)
  2. अनुच्छेद 15 (धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग या जन्मस्थान के आधार पर विभेद का प्रतिषेध)
  3. अनुच्छेद 16 (लोक नियोजन के विषय में अवसर की समता)
  4. अनुच्छेद 17 (अस्पृश्यता का अंत)
  5. अनुच्छेद 18 (उपाधियों का अंत)
  1. अनुच्छेद 19 (वाक्–स्वातंत्र्य आदि विषयक कुछ अधिकारों का संरक्षण)
  2. अनुच्छेद 20 (अपराधों के लिए दोषसिद्धि के संबंध में संरक्षण)
  3. अनुच्छेद 21 (प्राण और दैहिक स्वतन्त्रता का संरक्षण)
  1. अनुच्छेद 23 (मानव के दुर्व्यापार और बलात्श्रय का प्रतिषेध)
  2. अनुच्छेद 24 (कारखानों आदि में बालकों के नियोजन का प्रतिषेध)
  1. अनुच्छेद 25 (अंत: करण की और धर्म के अबोध रूप में मानने, आचरण और प्रचार करने की स्वतंत्रता)
  2. अनुच्छेद 26 (धार्मिक कार्यों के प्रबंध की स्वतंत्रता)
  3. अनुच्छेद 27 (किसी विशिष्ट धर्म की अभिवृद्धि के लिए करांे के संदाय के बारे में स्वतंत्रता)
  4. अनुच्छेद 28 (कुछ शिक्षा संस्थाओं में धार्मिक शिक्षा या धार्मिक उपासना में उपस्थित होने के बारे में स्वतंत्रता)
  1. अनुच्छेद 29 (अल्पसंख्यक वर्गों के हितों का संरक्षण)
  2. अनुच्छेद 30 (शिक्षा संस्थाओं की स्थापना और प्रशासन करनेका अल्पसंख्यक वर्गों का अधिकार)
  3. अनुच्छेद 31 (निरसति)
कुछ विधियों की व्यावृत्ति
  1. अनुच्छेद 31क (संपदाओं आदि के अर्जन के लिए उपबंध करने वाली विधियों की व्यावृत्ति)
  2. अनुच्छेद 31ख (कुछ अधिनियमों और विनिमयों का विधिमान्यकरण)
  3. अनुच्छेद 31ग (कुछ निदेशक तत्वों को प्रभावी करने वाली विधियों की व्यावृत्ति)
  4. अनुच्छेद 31घ (निरसित)
  1. अनुच्छेद 32 (इस भाग द्वारा प्रदत्त अधिकारों को प्रवर्तित करने के लिए उपचार)
  2. अनुच्छेद 32क (निरसति) ।अनुच्छेद 32क (निरसति) ।
  3. अनुच्छेद 33 (इस भाग द्वारा प्रदत्त अधिकारों का, बलों आदि को लागू होने में, उपांतरण करने की संसद की शक्ति)
  4. अनुच्छेद 34 (जब किसी क्षेत्र में सेना विधि प्रवृत्त है तब इस भाग द्वारा प्रदत्त अधिकारों का निर्बधन
  5. अनुच्छेद 35 (इस भाग के उपबंधों को प्रभावी करने के लिए विधान)

मौलिक अधिकार : परिभाषा, महत्व और विशेषताएं

भारतीय संविधान द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकारों की प्रमुख विशेषताएं इतनी अधिक हैं कि इनके माध्यम से यह बताया जा सकता है कि ये अधिकार कितने महत्वपूर्ण हैं:
मौलिक अधिकारों की आलोचना
मौलिक अधिकारों और नीति निर्देशक सिद्धांतों के बीच अंतर

मौलिक अधिकार: अर्थ, विशेषताएँ, महत्त्व और आलोचनाएँ

  • मौलिक अधिकार अथवा मूल अधिकार, भारतीय संविधान की सबसे महत्त्वपूर्ण विशेषताओं में से एक, भारतीय लोकतंत्र की आधारशिला है। ये अधिकार न्याय, समानता और बंधुत्व को बढ़ावा देने एवं राज्य की मनमानी कार्रवाइयों के विरुद्ध व्यक्ति की सुरक्षा के लिए महत्त्वपूर्ण है। NEXT IAS का यह लेख भारतीय संविधान के इन मौलिक अधिकारों से जुड़ी मुख्य विशेषताओं, महत्त्व, सीमाओं और आलोचनाओं पर प्रकाश डालता है।
मूल अधिकारों का अर्थ 
  • मूल अधिकार ऐसे अधिकारों का समूह है जो किसी भी नागरिक के भौतिक (सामाजिक , आर्थिक तथा राजनितिक) और नैतिक विकास के लिए आवश्यक है इसके साथ ही मौलिक अधिकार किसी भी देश के संविधान द्वारा प्रत्येक नागरिक को दी गई आवश्यक स्वतंत्रता और अधिकारों के एक समूह को संदर्भित करते हैं।
  • ये अधिकार व्यक्तिगत स्वतंत्रता की आधारशिला को भी निर्मित करते हैं तथा नागरिकों की राज्यों के मनमाने कार्यों एवं नियमों से सुरक्षा प्रदान करते हैं। ये अधिकार बुनियादी मानवाधिकारों एवं स्वतंत्रताओं को सुनिश्चित करते हैं। एक राष्ट्र के भीतर लोकतंत्र, न्याय और समानता को बनाए रखने के लिए ये अधिकार संविधान का अभिन्न अंग है।
    इन अधिकारों को मौलिक अधिकार माना जाता है, क्योंकि ये व्यक्तियों के सर्वांगीण विकास, गरिमा और कल्याण के लिए आवश्यक हैं। इनके असंख्य महत्त्व के कारण ही उन्हें भारत का मैग्ना कार्टा भी कहा गया है। ये अधिकार संविधान द्वारा गारंटीकृत और संरक्षित हैं, जो कि देश के मूलभूत शासन को संदर्भित करते है।
भारतीय संविधान के तहत मौलिक अधिकार

भारतीय संविधान के भाग III के अनुच्छेद 12 से 35 छह मूल अधिकारों का प्रावधान करते हैं। ये अधिकार निम्नलिखित है:

  • समानता का अधिकार (अनुच्छेद 14-18)
  • स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 19-22)
  • शोषण के विरुद्ध अधिकार (अनुच्छेद 23-24)
  • धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 25-28)
  • सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकार (अनुच्छेद 29-30)
  • संवैधानिक उपचारों का अधिकार (अनुच्छेद 32)
  • मूल रूप से, संविधान में सात मूल अधिकारों का प्रावधान था, जिसमें उपरोक्त छह अधिकार और संपत्ति का अधिकार शामिल था। हालाँकि, 1978 के 44वें संशोधन अधिनियम ने संपत्ति के अधिकार को मौलिक अधिकारों की सूची से हटा दिया। इसके बजाय, इसे संविधान के भाग XII के अनुच्छेद 300-A के तहत एक कानूनी अधिकार बना दिया गया। इसलिए वर्तमान में केवल छह मौलिक अधिकार है।
मूल अधिकारों की प्रमुख विशेषताएं 

भारतीय संविधान में मौलिक अधिकारों की विशेषताएं निम्नलिखित है:-

  • मौलिक अधिकारों में से कुछ अधिकार केवल नागरिकों के लिए उपलब्ध है, जबकि कुछ अन्य अधिकार सभी व्यक्तियों के लिए उपलब्ध है, चाहे वे नागरिक हों, विदेशी हों, या कानूनी व्यक्ति हों जैसे निगम, कंपनियां आदि।
  • ये अधिकार पूर्ण नहीं बल्कि सीमित है, जिसका अर्थ है कि राज्य उन पर उचित प्रतिबंध लगा सकता है। ये व्यक्तिगत स्वतंत्रता और सामाजिक आवश्यकताओं के बीच संतुलन बनाते है।
  • ये सभी अधिकार राज्य के मनमाने कार्यों के विरुद्ध उपलब्ध हैं। हालाँकि, उनमें से कुछ निजी व्यक्तियों के कार्यों के विरुद्ध भी उपलब्ध है।
  • इनमें से कुछ अधिकार प्रकृति में नकारात्मक हैं क्योंकि वे राज्य की शक्तियों पर सीमाएँ आरोपित करते हैं, जबकि अन्य सकारात्मक स्वरूप के होते हैं क्योंकि वे व्यक्तियों को कुछ विशेषाधिकार प्रदान करते हैं।
  • ये अधिकार न्यायलयों द्वारा प्रवर्तनीय हैं, जिससे नागरिक अपने अधिकारों के उल्लंघन होने पर कानूनी उपाय के लिए सीधे न्यायालय जा सकते हैं। इससे यह सुनिश्चित किया जाता है कि व्यक्तियों की न्याय तक पहुँच हो और वे सरकार को अपने कार्यों के लिए जवाबदेह ठहरा सकें।
  • ये अधिकार सर्वोच्च न्यायालय द्वारा संरक्षित और सुरक्षित हैं। इसलिए पीड़ित व्यक्ति उच्च न्यायालयों के निर्णय के विरुद्ध जरूरी अपील किये बिना सीधे सर्वोच्च न्यायालय जा सकते है।
  • इन अधिकारों को स्थायी नहीं माना गया है, अर्थात् इन्हें संसद द्वारा संविधान संशोधन प्रक्रिया के माध्यम से संशोधित किया जा सकता है, बशर्ते कि ऐसे संशोधन संविधान की मूल संरचना का उल्लंघन न करें।
  • राष्ट्रीय आपातकाल के दौरान राष्ट्रपति द्वारा कुछ अधिकारों को निलंबित किया जा सकता है, अपवादस्वरूप अनुच्छेद 20 और 21 के तहत गारंटीकृत अधिकारों को छोड़कर।
  • संसद सशस्त्र बलों, अर्ध-सैन्य बलों, पुलिस बलों, खुफिया एजेंसियों और अनुरूप सेवाओं के सदस्यों पर इन अधिकारों के प्रयोग को प्रतिबंधित या निरस्त कर सकती है (अनुच्छेद 33)।
  • किसी भी क्षेत्र में मार्शल लॉ के दौरान इन अधिकारों के प्रयोग को प्रतिबंधित किया जा सकता है (अनुच्छेद 34)।
  • उनमें से अधिकांश सीधे तौर पर लागू करने योग्य हैं, जबकि अन्य को विशेष रूप से उन्हें प्रभावी करने के लिए बनाए गए कानून के आधार पर लागू किया जा सकता है। पूरे देश में एकरूपता सुनिश्चित करने के लिए केवल संसद ही इन अधिकारों के संबंध में कानून बना सकती है (अनुच्छेद 35)।
भारतीय संविधान के अंतर्गत मौलिक अधिकार – एक विस्तृत अवलोकन
  • भारतीय संविधान के भाग III में अनुच्छेद 12 से 35 तक मौलिक अधिकारों से संबंधित प्रावधानों का उल्लेख किया गया है। इन प्रावधानों का विस्तृत अवलोकन नीचे दिया गया है:
राज्य की परिभाषा (अनुच्छेद 12)

अनुच्छेद 12 भाग III के लिए ‘राज्य’ शब्द को परिभाषित करता है। तदनुसार, राज्य में निम्नलिखित शामिल है:

  • भारत सरकार और संसद, अर्थात केंद्र सरकार के कार्यकारी और विधायी अंग,
  • राज्य सरकारें और विधायिकाएँ, अर्थात राज्य सरकार के कार्यकारी और विधायी अंग,
  • सभी स्थानीय प्राधिकरण, अर्थात् नगरपालिकाएँ, पंचायतें, जिला बोर्ड, सुधार ट्रस्ट आदि।
  • अन्य सभी प्राधिकरण, अर्थात सांविधिक या गैर-सांविधिक प्राधिकरण जैसे LIC, ONGC, SAIL आदि।

इन सभी प्राधिकरणों के कार्यों को भारतीय संविधान के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करने पर न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है।

मौलिक अधिकारों से असंगत या उनका हनन करने वाले कानून (अनुच्छेद 13)

अनुच्छेद 13 में प्रावधान है कि मौलिक अधिकारों से असंगत या कम करने वाली विधियाँ शून्य होगी।

  • अनुच्छेद 13 के तहत यह प्रावधान स्पष्ट रूप से न्यायिक समीक्षा के सिद्धांत का प्रावधान करता है।
  • न्यायिक समीक्षा की शक्ति अनुच्छेद 32 के तहत सर्वोच्च न्यायालय को और अनुच्छेद 226 के तहत उच्च न्यायालयों को प्रदान की गई है।

अनुच्छेद 13 में ‘विधि’ शब्द में निम्नलिखित शामिल है जिन्हें मौलिक अधिकार का उल्लंघन करने के आधार पर शून्य घोषित किया जा सकता है –

  • संसद या राज्य विधायिकाओं द्वारा बनाए गए स्थायी कानून,
  • राष्ट्रपति या राज्यपालों द्वारा जारी अध्यादेश जैसे अस्थायी कानून,
  • किसी भी प्रत्यायोजित विधायन, अध्यादेश, आदेश, उपविधि, नियम, विनियम या अधिसूचना जैसे वैधानिक उपकरण।
  • गैर-विधायी कानून स्रोत अर्थात् कानून के समान मान्यता रखने वाला रिवाज या प्रथाएँ।
  • अनुच्छेद 13 में प्रावधान है कि संविधान संशोधन एक कानून नहीं है और उसे किसी भी मूल अधिकार के उल्लंघन के आधार पर चुनौती नहीं दी जा सकती है। हालाँकि, सर्वोच्च न्यायालय ने केशवानंद भारती मामले (1973) में माना कि किसी संविधान संशोधन को इस आधार पर चुनौती दी जा सकती है कि वह किसी मौलिक अधिकार का उल्लंघन करता है।
समानता का अधिकार (अनुच्छेद 14 से अनुच्छेद 18)

भारतीय संविधान के ये प्रावधान विधि के समक्ष सभी नागरिकों के लिए समान व्यवहार और अवसर सुनिश्चित करते हैं। इस अधिकार में निम्नलिखित शामिल है-

  • कानून के समक्ष समानता और कानूनों से समान संरक्षण (अनुच्छेद 14) – यह प्रावधान सुनिश्चित करता है कि राज्य भारत के क्षेत्र के भीतर किसी भी व्यक्ति को कानून के समक्ष समानता या कानूनों से समान संरक्षण से वंचित नहीं करेगा। यह राज्य द्वारा मनमाने भेदभाव को प्रतिबंधित करता है और समान परिस्थितियों में समान व्यवहार की गारंटी प्रदान करता है।
  • विशिष्ट आधारों पर भेदभाव का निषेध (अनुच्छेद 15) – यह प्रावधान केवल धर्म, मूलवंश , जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव को प्रतिबंधित करता है। यह सुनिश्चित करता है कि किसी भी नागरिक को केवल इन आधारों पर किसी अयोग्यता, दायित्व या प्रतिबंध के अधीन नहीं किया जाएगा।
  • लोक नियोजन के विषय में अवसर की समानता (अनुच्छेद 16) – यह प्रावधान सार्वजनिक रोजगार या नियुक्ति के मामलों में अवसर की समानता की गारंटी प्रदान करता है। यह इन मामलों में केवल धर्म, जाति, मूलवंश, लिंग, वंश, जन्म स्थान या निवास स्थान के आधार पर भेदभाव को प्रतिबंधित करता है।
  • अस्पृश्यता का उन्मूलन (अनुच्छेद 17) – यह प्रावधान अस्पृश्यता को समाप्त करता है और किसी भी रूप में इसके अभ्यास को प्रतिबंधित करता है। यह अस्पृश्यता को एक सामाजिक बुराई के रूप में मान्यता देता है और भारतीय समाज में इस भेदभावपूर्ण प्रथा के उन्मूलन को सुनिश्चित करता है।
  • उपाधियों का अंत (अनुच्छेद 18) – यह प्रावधान राज्य को व्यक्तियों को सैन्य और शैक्षणिक विशिष्टताओं को छोड़कर उपाधियाँ प्रदान करने से प्रतिबंधित करता है। यह किसी विदेशी राज्य से या उसके अधीन कोई उपाधि, उपहार, परिलब्धियाँ या कार्यालय स्वीकार करने के संबंध में कुछ प्रावधान भी करता है।
स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 19 से अनुच्छेद 22)

भारतीय संविधान के ये प्रावधान व्यक्तिगत स्वतंत्रताओं और स्वायत्तता की रक्षा करते हैं। इन अधिकारों में निम्नलिखित शामिल है:

  • छह अधिकारों का संरक्षण (अनुच्छेद 19)– यह अनुच्छेद सभी नागरिकों को निम्नलिखित छह अधिकारों की गारंटी प्रदान करता है:
    • वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 19(1)(a)) – यह प्रावधान नागरिकों को भाषण, लेखन, मुद्रण या किसी अन्य माध्यम से अपने विचारों, रायों, विश्वासों और आस्थाओं को स्वतंत्र रूप से व्यक्त करने की स्वतंत्रता प्रदान करता है। हालाँकि, सार्वजनिक व्यवस्था, मानहानि, अपराध के लिए उकसाना आदि जैसे आधारों पर राज्य द्वारा उचित प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं।
    • सभा करने की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 19(1)(b)) – नागरिकों को बिना हथियार के शांतिपूर्वक इकट्ठा होने का अधिकार है। इसमें सार्वजनिक बैठकें, प्रदर्शन और जुलूस निकालने का अधिकार शामिल है, लेकिन हड़ताल करने का अधिकार शामिल नहीं है।
    • संघ बनाने की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 19(1)(c)) – नागरिकों को संघ, संघ या सहकारी समितियाँ बनाने का अधिकार है, जो उन्हें सामूहिक रूप से सामान्य हितों या लक्ष्यों को आगे बढ़ाने में सक्षम बनाता है। हालाँकि, सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता, या भारत की संप्रभुता और अखंडता के हित में उचित प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं।
    • आवागमन की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 19(1)(d)) – प्रत्येक नागरिक को भारत के पूरे क्षेत्र में स्वतंत्र रूप से घूमने का अधिकार है। इस अधिकार पर जनता के सामान्य हितों और किसी अनुसूचित जनजाति के हितों की सुरक्षा के आधार पर उचित प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं।
    • निवास करने की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 19(1)(e)) – नागरिकों को भारत के किसी भी हिस्से में निवास करने और बसने की स्वतंत्रता है, जिससे भौगोलिक गतिशीलता और निवास स्थान निर्धारित करने में व्यक्तिगत विकल्प का प्रयोग हो सके।
    • व्यापार करने की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 19(1)(g)) – नागरिकों को किसी भी पेशे का अभ्यास करने या अपनी पसंद के किसी भी व्यवसाय, व्यापार करने का अधिकार है, बशर्ते कि जनता के सामान्य हित में कुछ प्रतिबंध लगाए जाएं।
  • अपराधों के लिए दोषसिद्धि के संबंध में संरक्षण (अनुच्छेद 20): यह प्रावधान नागरिक, विदेशी या किसी व्यक्ति को मनमाने और अत्यधिक दंड के खिलाफ सुरक्षा प्रदान करता है।
    • भूतलक्षी दांडिक विधियों से सरंक्षण (अनुच्छेद 20(1)): किसी भी व्यक्ति को केवल उसी समय लागू कानून का उल्लंघन करने के लिए दोषी ठहराया जा सकता है, जब अपराध हुआ था। साथ ही, व्यक्ति को उस समय लागू कानून द्वारा निर्धारित दंड से अधिक दंड नहीं दिया जा सकता है।
    • दोहरे दंड से संरक्षण (अनुच्छेद 20(2)): किसी व्यक्ति को उस अपराध के लिए दोबारा दंडित नहीं किया जा सकता है जिसके लिए उसे पहले ही बरी या दोषी ठहराया जा चुका है।
    • अपने ही विरुद्ध गवाही देने से संरक्षण (अनुच्छेद 20(3)): किसी भी अपराध के लिए आरोपी व्यक्ति को अपने खिलाफ गवाह बनने के लिए बाध्य नहीं किया जाएगा।
  • जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का संरक्षण (अनुच्छेद 21): यह अनुच्छेद प्रावधान करता है कि कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अलावा किसी भी व्यक्ति को उसके जीवन या व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जाएगा। यह अधिकार नागरिकों और गैर-नागरिकों दोनों के लिए उपलब्ध है और व्यक्तिगत अधिकारों की आधारशिला के रूप में कार्य करता है।
  • शिक्षा का अधिकार (अनुच्छेद 21A): यह प्रावधान 6 से 14 वर्ष की आयु के बच्चों को निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार गारंटी देता है। यह राज्य को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक पहुँच प्रदान करने का आदेश देता है,इसके साथ ही यह भी सुनिश्चित करता है कि प्रत्येक बच्चे को बिना किसी भेदभाव के शिक्षा प्राप्त करने का अवसर मिले। इस प्रावधान को 2002 के 86वें संविधान संशोधन अधिनियम द्वारा जोड़ा गया था।
  • गिरफ्तारी और निरोध के खिलाफ संरक्षण (अनुच्छेद 22): यह प्रावधान गिरफ्तार या हिरासत में लिए गए व्यक्तियों को कुछ सुरक्षा प्रदान करता है, जिसमें गिरफ्तारी के आधारों के बारे में सूचित किया जाना, कानूनी सलाहकार से परामर्श करने और उनका बचाव करने का अधिकार और गिरफ्तारी के 24 घंटे के भीतर मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश होने का अधिकार आदि शामिल है। यह मनमाने ढंग से हिरासत को रोकता है और हिरासत में व्यक्तियों के साथ उचित व्यवहार सुनिश्चित करता है।
शोषण के विरुद्ध अधिकार (अनुच्छेद 23 से अनुच्छेद 24)

भारतीय संविधान के ये प्रावधान नागरिकों को विशेष रूप से कमजोर वर्गों को शोषण से बचाने के लिए कुछ सुरक्षा उपाय प्रदान करते हैं। इस अधिकार के अंतर्गत शामिल विभिन्न अधिकार हैं:

  • मानव तस्करी एवं बंधुआ मजदूरी का निषेध (अनुच्छेद 23): यह प्रावधान मानव तस्करी और बंधुआ मजदूरी को प्रतिबंधित करता है। यह ऐसे कृत्यों को दंडनीय अपराध घोषित करता है।
  • कारखानों में बच्चों के रोजगार का निषेध (अनुच्छेद 24): यह प्रावधान किसी भी कारखाने, खदान या अन्य खतरनाक गतिविधियों में चौदह वर्ष से कम आयु के बच्चों के रोजगार को प्रतिबंधित करता है। हालाँकि, यह उन्हें किसी भी गैर-हानिकारक कार्य में रोजगार देने पर रोक नहीं लगाता है।
धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 25 से 28)
  • भारतीय संविधान के ये प्रावधान व्यक्तियों को अन्त:करण की स्वतंत्रता और धर्म को अबाध रुप से मानने, पालन करने और उसका प्रचार करने की स्वतंत्रता की गारंटी दी जाती हैं। यह राज्य को तटस्थ रहने और सभी धर्मों के साथ समान व्यवहार के द्वारा धर्मनिरपेक्षता सुनिश्चित करने का प्रयास करता है।
  • अंतरात्मा की स्वतंत्रता तथा धर्म को मानने, आचरण एवं प्रचार करने की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 25): इस अनुच्छेद के अनुसार, सभी व्यक्तियों को अंतरात्मा की स्वतंत्रता तथा स्वतंत्र रूप से धर्म को मानने, पालन करने और उसका प्रचार करने का समान अधिकार है। इनके निहितार्थ हैं:
    • अंतरात्मा की स्वतंत्रता: सभी को अपनी इच्छा के अनुसार ईश्वर को मानने की स्वतंत्रता है।
    • अंगीकार करने का अधिकार: अपने धार्मिक विश्वासों और आस्था को स्वतंत्र रूप से घोषित करना।
    • अभ्यास करने का अधिकार: धार्मिक पूजा, अनुष्ठान, समारोह, विश्वासों और विचारों का स्वतंत्र रूप से अभ्यास करना।
    • प्रचार करने का अधिकार: किसी की धार्मिक मान्यताओं को दूसरों तक प्रसारित या प्रसारित करना। हालाँकि, इसमें किसी अन्य व्यक्ति को अपने धर्म में परिवर्तित करने का अधिकार शामिल नहीं है।
  • धार्मिक कार्यों के प्रबंधन की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 26): इस अनुच्छेद के प्रावधानों के अनुसार, प्रत्येक धार्मिक संगठन / संप्रदाय को निम्नलिखित अधिकार प्राप्त होंगे:
    • धार्मिक कार्यों / प्रयोजनों के लिए संस्थानों की स्थापना और बनाए रखने का अधिकार।
    • अपने धर्म विषयक कार्यों का प्रबंधन करने का अधिकार।
    • चल और अचल संपत्ति का स्वामित्व और अधिग्रहण करने का अधिकार।
    • ऐसी संपत्ति का विधि के अनुसार प्रबंधन करने का अधिकार।
  • किसी विशिष्ट धर्म की अभिवृद्धि के लिए करों के विषय में स्वतंत्रता (अनुच्छेद 27): यह प्रावधान किसी विशेष धर्म या धार्मिक संप्रदाय को बढ़ावा देने या बनाए रखने के लिए राज्य को कर आरोपित करने से प्रतिबंध करता है।
    • यह प्रावधान सविंधान में उल्लिखित धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत को बनाए रखता है और साथ में यह भी सुनिश्चित किया जाता है कि राज्य धर्म के मामलों में तटस्थ रहे, जिससे सभी नागरिकों के लिए समानता और धार्मिक स्वतंत्रता की भावना को बढ़ावा मिलता है।
  • कुछ शिक्षा संस्थाओं में धार्मिक शिक्षा या धार्मिक उपासना में उपस्थित होने के विषय में स्वतंत्रता (अनुच्छेद 28): यह शैक्षणिक संस्थानों की विभिन्न श्रेणियों में धार्मिक शिक्षा के लिए प्रावधान करता है, जैसा कि नीचे वर्णित है:
    • राज्य द्वारा पूर्ण रुप से संचालित संस्थान – धार्मिक शिक्षा पूर्ण रुप से प्रतिबंधित है।
    • राज्य द्वारा मान्यता प्राप्त संस्थान – धार्मिक शिक्षा स्वैच्छिक आधार पर अर्थात् व्यक्ति की सहमति से मान्य है।
    • राज्य से आर्थिक सहायता प्राप्त करने वाले संस्थान – धार्मिक शिक्षा स्वैच्छिक आधार पर यानी व्यक्ति की सहमति से मान्य है।
    • राज्य द्वारा प्रशासित लेकिन किसी ट्रस्ट के तहत स्थापित संस्थान – धार्मिक शिक्षा की अनुमति है।
सांस्कृतिक एवं शैक्षिक अधिकार (अनुच्छेद 29 से अनुच्छेद 30)

भारतीय संविधान के ये प्रावधान अल्पसंख्यकों के संस्कृति, भाषा और लिपि के संरक्षण के अधिकारों की रक्षा करते हैं।

  • अल्पसंख्यकों के हितों का संरक्षण (अनुच्छेद 29) – इस अनुच्छेद के प्रावधानों के अनुसार
    • भारत के प्रत्येक नागरिकों को , जिसकी अपनी विशिष्ट भाषा, लिपि या संस्कृति हो, उसे संरक्षित करने का अधिकार होगा।
    • किसी भी नागरिक को केवल धर्म, मूलवंश, जाति या भाषा के आधार पर राज्य द्वारा संचालित या राज्य निधि से सहायता प्राप्त करने वाले किसी भी शैक्षणिक संस्थान में प्रवेश से वंचित नहीं किया जाएगा।

जैसा कि उच्चतम न्यायालय ने निर्णय दिया है कि अनुच्छेद में ‘नागरिकों का वर्ग’ वाक्यांश के प्रयोग का अर्थ, केवल अल्पसंख्यकों तक ही सीमित नहीं है बल्कि इस अनुच्छेद के प्रावधान बहुसंख्यक समुदाय पर भी लागू होता है।

  • अल्पसंख्यकों को शिक्षण संस्थान स्थापित और संचालित करने का अधिकार (अनुच्छेद 30) – यह प्रावधान अल्पसंख्यकों (दोनों धार्मिक और भाषाई) को कुछ अधिकार प्रदान करता है, जैसे कि उनकी रूचि के शिक्षण संस्थान स्थापित करने और उनका प्रबंधन करने का अधिकार, अपने बच्चों को उनकी अपनी भाषा में शिक्षा प्रदान करने का अधिकार आदि।
    • यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि इस प्रावधान के तहत संरक्षण केवल अल्पसंख्यकों (धार्मिक या भाषाई) तक ही सीमित है और नागरिकों के किसी भी वर्ग (जैसा कि अनुच्छेद 29 के तहत है) तक विस्तारित नहीं होता है।
संवैधानिक उपचारों का अधिकार (अनुच्छेद 32)
  • यह अनुच्छेद मौलिक अधिकारों के उल्लंघन की स्थिति में उन्हें लागू कराने के लिए उपचार का अधिकार प्रदान करता है। यह उसी के संबंध में निम्नलिखित प्रावधान करता है:
  • मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होने पर कोई भी व्यक्ति अपने मौलिक अधिकारों के सरंक्षण अथवा प्रवर्तन के लिए सीधे सर्वोच्च न्यायालय में जा सकते है।
  • सर्वोच्च न्यायालय को मौलिक अधिकारों के प्रवर्तन के लिए निर्देश, आदेश या रिट जारी करने की शक्ति है।
  • संसद किसी अन्य न्यायालय को मौलिक अधिकारों को लागू करने के लिए निर्देश, आदेश या रिट जारी करने का अधिकार दे सकती है।
  • सर्वोच्च न्यायालय में जाने का अधिकार तब तक निलंबित नहीं किया जाएगा जब तक कि संविधान द्वारा अन्यथा प्रदान न किया गया हो।
  • ये प्रावधान मौलिक अधिकारों को लागू कराने का अधिकार प्रदान करते हैं, जिससे मौलिक अधिकार वास्तविक बनते हैं।
सशस्त्र बल (अनुच्छेद 33)
  • यह प्रावधान संसद को ऐसे कानून बनाने का अधिकार देता है जो सशस्त्र बलों, पुलिस बलों, खुफिया एजेंसियों या सार्वजनिक व्यवस्था के रखरखाव के लिए नियुक्त समान बलों के सदस्यों के लिए कुछ मौलिक अधिकारों के आवेदन को प्रतिबंधित या संशोधित करते हैं।
  • इस प्रावधान का उद्देश्य राष्ट्रीय सुरक्षा के हित में उनके कर्तव्यों का उचित निर्वहन तथा सशस्त्र बलों के बीच अनुशासन बनाए रखना है।
मार्शल लॉ (अनुच्छेद 34)
  • यह प्रावधान भारत के क्षेत्र के भीतर किसी भी क्षेत्र में मार्शल लॉ के संचालन के दौरान मौलिक अधिकारों पर प्रतिबंध का प्रावधान करता है।
  • हालाँकि, संविधान में कहीं भी ‘मार्शल लॉ’ शब्द को परिभाषित नहीं किया गया है।
इस भाग के प्रावधानों को लागू करने के लिए कानून (अनुच्छेद 35)
  • यह प्रावधान स्पष्ट करता है कि कुछ मौलिक अधिकारों को लागू करने के उद्देश्य से कानून बनाने का अधिकार केवल संसद के पास है। यह इन अधिकारों की प्रकृति और उनके उल्लंघन के लिए दंड के संबंध में पूरे भारत में एकरूपता सुनिश्चित करता है।
मौलिक अधिकारों का महत्त्व

भारतीय संविधान के मौलिक अधिकार निम्नलिखित दृष्टियों से महत्त्वपूर्ण हैं:

  • ये लोकतांत्रिक व्यवस्था की आधारशिला निर्मित करते हैं और लोगों को राजनीतिक-प्रशासनिक प्रक्रिया में भाग लेने का अवसर प्रदान करते हैं।
  • ये राज्यों की तानाशाही पर नियंत्रण रखकर व्यक्तिगत स्वतंत्रता और कानून के शासन की रक्षा करते हैं।
  • मौलिक अधिकार सामाजिक न्याय की नींव रखते हैं और व्यक्तियों की गरिमा सुनिश्चित करते हैं।
  • ये अल्पसंख्यकों और कमजोर वर्गों के हितों की रक्षा करते हैं, इस प्रकार सामाजिक न्याय को बढ़ावा देते हैं।
  • ये राष्ट्र के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने को सुदृढ़ीकृत करते हैं।
मौलिक अधिकारों की आलोचनाएँ और सीमाएँ

भारतीय संविधान के मौलिक अधिकारों की अवधारणा, जो संविधान के मूल सिद्धांतों में से एक है, कुछ कमियों और आलोचनाओं के साथ विद्यमान है। इनमें से कुछ महत्त्वपूर्ण बिंदु निम्नलिखित है:-

  • अत्यधिक सीमाएँ: कई मौलिक अधिकारों में अपवाद, प्रतिबंध और योग्यताएँ जुड़ी हुई हैं, जिससे उनकी परिधि और प्रभावी कार्यान्वयन सीमित हो जाता है।
  • सामाजिक और आर्थिक अधिकारों का अभाव: मौलिक अधिकारों की सूची में सामाजिक सुरक्षा, रोजगार, विश्राम, अवकाश आदि मौलिक सामाजिक और आर्थिक अधिकारों को शामिल नहीं करती है, जिससे इसकी व्यापकता प्रभावित होती है।
  • अस्पष्टता: कुछ शब्दों को स्पष्ट परिभाषा नहीं दी गई है, जिससे अस्पष्टता उत्पन्न होती है। उदाहरण के लिए, ‘सार्वजनिक व्यवस्था’, ‘अल्पसंख्यक’, ‘उचित प्रतिबंध’ आदि।
  • स्थायित्व नहीं: संसद इन अधिकारों को सीमित या समाप्त कर सकती है, जिससे इनकी स्थायित्व पर प्रश्न उठता है। उदाहरण के लिए, 1978 में संपत्ति के मौलिक अधिकार को समाप्त कर दिया गया था।
  • आपातकाल के दौरान निलंबन: राष्ट्रीय आपातकाल के दौरान मौलिक अधिकारों को निलंबित किया जा सकता है, जो लोकतंत्र के मूल सिद्धांतों के विपरीत है और लाखों लोगों के अधिकारों के लिए खतरा बन सकता है। केवल अनुच्छेद 20 और 21 को छोड़कर अन्य सभी अधिकार निलंबित किये जा सकते हैं।
  • महँगा उपाय: इन अधिकारों की रक्षा का बोझ न्यायपालिका पर होता है, लेकिन न्यायिक प्रक्रिया काफी महँगी है, जिससे जन सामान्य के लिए इन अधिकारों का उपयोग करना मुश्किल हो जाता है।
  • निवारक निरोध: निवारक निरोध (अनुच्छेद 22) का प्रावधान व्यक्तिगत स्वतंत्रता का हनन करता है और राज्य को अत्यधिक शक्ति प्रदान करता है।
  • सुसंगत दर्शन का अभाव: मौलिक अधिकारों के अध्याय में एक स्पष्ट और सुसंगत दर्शन का अभाव है। सर आइवर जेनिंग्स के अनुसार, ये अधिकार किसी सुसंगत दर्शन पर आधारित नहीं हैं, जिससे उनकी व्याख्या में न्यायपालिका को चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।

मौलिक अधिकार

परिचय 
मौलिक अधिकारों के बारे में:
  • संविधान के भाग III (अनुच्छेद 12-35 तक) में मौलिक अधिकारों का विवरण है।
  • संविधान के भाग III को भारत का मैग्नाकार्टा की संज्ञा दी गई है।
    • ‘मैग्नाकार्टा’ अधिकारों का वह प्रपत्र है, जिसे इंग्लैंड के किंग जॉन द्वारा 1215 में सामंतों के दबाव में जारी किया गया था। यह नागरिकों के मौलिक अधिकारों से संबंधित पहला लिखित प्रपत्र था।
  • मौलिक अधिकार: भारत का संविधान छह मौलिक अधिकार प्रदान करता है:
    • समता का अधिकार (अनुच्छेद 14-18)
    • स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 19-22)
    • शोषण के विरुद्ध अधिकार (अनुच्छेद 23-24)
    • धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 25-28)
    • संस्कृति और शिक्षा संबंधी अधिकार (अनुच्छेद 29-30)
    • संवैधानिक उपचारों का अधिकार (अनुच्छेद 32)
  • मूलतः संविधान में संपत्ति का अधिकार (अनुच्छेद 31) भी शामिल था। हालाँकि इसे 44वें संविधान अधिनियम, 1978 द्वारा मौलिक अधिकारों की सूची से हटा दिया गया था।
    • इसे संविधान के भाग XII में अनुच्छेद 300 (A) के तहत कानूनी अधिकार बना दिया गया है।
  • मौलिक अधिकारों से असंगत विधियाँ: भारतीय संविधान का अनुच्छेद 13 घोषित करता है कि मौलिक अधिकारों से असंगत या उनका अल्पीकरण करने वाली विधियाँ शून्य होंगी।
    • यह शक्ति सर्वोच्च न्यायालय (अनुच्छेद 32) और उच्च न्यायालयों (अनुच्छेद 226) को प्राप्त है।
      • हालाँकि सर्वोच्च न्यायालय ने केशवानंद भारती मामले (1973) में कहा कि मौलिक अधिकारों के उल्लंघन के आधार पर संवैधानिक संशोधन को चुनौती दी जा सकती है।
  • रिट क्षेत्राधिकार: यह न्यायालय द्वारा जारी किया जाने वाला एक कानूनी आदेश है।
    • सर्वोच्च न्यायालय (अनुच्छेद 32) एवं उच्च न्यायालय (अनुच्छेद 226) रिट जारी कर सकते हैं। ये हैं- बंदी प्रत्यक्षीकरण, परमादेश, प्रतिषेध, उत्प्रेषण एवं अधिकार पृच्छा। 
मौलिक अधिकारों की विशेषताएँ:
  • संविधान द्वारा संरक्षित: सामान्य कानूनी अधिकारों के विपरीत मौलिक अधिकारों को देश के संविधान द्वारा गारंटी एवं सुरक्षा प्रदान की गई है।
    • कुछ अधिकार सिर्फ नागरिकों के लिये उपलब्ध हैं, जबकि अन्य सभी व्यक्तियों के लिये उपलब्ध हैं चाहे वे नागरिक, विदेशी या कानूनी व्यक्ति हों जैसे- परिषद एवं कंपनियाँ।
  • ये स्थायी नहीं हैं। संसद इनमें कटौती या कमी कर सकती है लेकिन संशोधन अधिनियम के तहत, न कि साधारण विधेयक द्वारा।
    • ये असीमित नहीं हैं, लेकिन वाद योग्य हैं।
      • राज्य उन पर उचित प्रतिबंध लगा सकता है। हालाँकि कारण उचित है या नहीं इसका निर्णय अदालत करती है।
  • ये न्यायोचित हैं। जब भी इनका उल्लंघन होता है ये व्यक्तियों को अदालत जाने की अनुमति देते हैं।
    • मौलिक अधिकारों के उल्लंघन के मामले में कोई भी पीड़ित व्यक्ति सीधे सर्वोच्च न्यायालय की शरण में जा सकता है।
  • अधिकारों का निलंबन: राष्ट्रीय आपातकाल के दौरान (अनुच्छेद 20 और 21 प्रत्याभूत अधिकारों को छोड़कर) इन्हें निलंबित किया जा सकता है।
    • इसके अतिरिक्त अनुच्छेद 19 में उल्लिखित 6 मौलिक अधिकारों को उस स्थिति में स्थगित किया जा सकता है, जब युद्ध या विदेशी आक्रमण के आधार पर राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा की गई हो। इन्हें सशस्त्र विद्रोह (आंतरिक आपातकाल) के आधार पर स्थगित नहीं किया जा सकता है।
  • सशस्त्र बलों, अर्द्ध-सैनिक बलों, पुलिस बलों, गुप्तचर संस्थाओं और ऐसी ही अन्य सेवाओं के क्रियान्वयन पर संसद प्रतिबंध आरोपित कर सकती है (अनुच्छेद 33)।
    • ऐसे इलाकों में भी इनका क्रियान्वयन रोका जा सकता है, जहाँ फौजी कानून का मतलब ‘सैन्य शासन’ से है, जो असामान्य परिस्थितियों में लगाया जाता है।
मौलिक अधिकार (नागरिकों और विदेशियों को प्राप्त अधिकार) (शत्रु देश के लोगों को छोड़कर)
केवल नागरिकों को प्राप्त मौलिक अधिकार, जो विदेशियों को प्राप्त नहीं है
  • कानून के समक्ष समता।
  • अपराधों के दोष सिद्धि के संबंध में संरक्षण।
  • प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता का संरक्षण।
  • प्रारंभिक शिक्षा का अधिकार।
  • कुछ मामलों में गिरफ्तारी और नज़रबंदी के खिलाफ संरक्षण।
  • बलात् श्रम एवं अवैध मानव व्यापार के विरुद्ध प्रतिषेध।
  • कारखानों में बच्चों के नियोजन पर प्रतिबंध।
  • धर्म की अभिवृद्धि के लिये प्रयास करने की स्वतंत्रता।
  • धार्मिक कार्यों के  प्रबंधन की स्वतंत्रता।
  • किसी धर्म को प्रोत्साहित करने हेतु कर से छूट।
  • कुछ विशिष्ट संस्थानों में धार्मिक आदेशों को जारी करने की स्वतंत्रता।
  • धर्म, मूल वंश, लिंग और जन्म स्थान के आधार पर विभेद का प्रतिषेध।
  • लोक नियोजन के विषय में अवसर की समता।
  • अनुच्छेद 19 में उल्लिखित स्वतंत्रता के छह मौलिक अधिकारों का संरक्षण।
  • अल्पसंख्यकों की भाषा, लिपि और संस्कृति का संरक्षण।
  • शिक्षण संस्थानों की स्थापना और प्रशासन करने का अल्पसंख्यक वर्गों का अधिकार।

मौलिक अधिकार:

 

समानता का अधिकार (अनुच्छेद 14, 15, 16, 17 और 18):
  • विधि के समक्ष समताअनुच्छेद 14 में कहा गया है कि भारत के राज्य क्षेत्र में किसी व्यक्ति को विधि के समक्ष समता या विधियों के समान संरक्षण से वंचित नहीं किया जाएगा।
    • प्रत्येक व्यक्ति चाहे वह देश का नागरिक हो या विदेशी सब पर यह अधिकार लागू होता है। इसके अतिरिक्त व्यक्ति शब्द में विधिक व्यक्ति अर्थात् संवैधानिक निगम, कंपनियाँ, पंजीकृत समितियाँ या किसी भी अन्य प्रकार का विधिक व्यक्ति सम्मिलित है।
    • अपवाद: अनुच्छेद 361 के अंतर्गत भारत के राष्ट्रपति एवं राज्यपालों को शक्तियाँ प्रदान की गई हैं। राष्ट्रपति या राज्यपाल अपने कार्यकाल में किये गए किसी कार्य या लिये गए किसी निर्णय के प्रति देश के किसी भी न्यायालय में जवाबदेह नहीं होंगे। राष्ट्रपति या राज्यपाल के विरुद्ध उसकी पदावधि के दौरान किसी न्यायालय में किसी भी प्रकार की दंडात्मक कार्यवाही प्रारंभ या चालू नहीं की जा सकती है।
      • अनुच्छेद 361-A के अनुसार, कोई भी व्यक्ति यदि संसद या राज्य विधानसभा के दोनों सदनों या दोनों में से किसी एक की सत्य कार्यवाही से संबंधित विषय-वस्तु का प्रकाशन समाचार-पत्र में करता है तो उस पर किसी भी प्रकार का दीवानी या फौजदारी मुकदमा देश के किसी भी न्यायालय में नहीं चलाया जा सकता है।
      • अनुच्छेद 105 के अनुसार, संसद या उसकी किसी समिति में संसद के किसी सदस्य द्वारा कही गई किसी बात या दिये गए किसी मत के संबंध में उसके विरुद्ध न्यायालय में कोई कार्यवाही नहीं की जाएगी। 
      • अनुच्छेद 194 के अनुसार, राज्य के विधानमंडल में या उसकी किसी समिति में विधानमंडल के किसी सदस्य द्वारा कही गई किसी बात या दिये गए किसी मत के संबंध में उसके विरुद्ध न्यायालय में कोई कार्यवाही नहीं की जाएगी।
      • विदेशी संप्रभु (शासक), राजदूत एवं कूटनीतिज्ञ, दीवानी एवं फौजदारी मुकदमों से मुक्त होंगे।
  • भेदभाव पर रोकअनुच्छेद 15 में यह प्रावधान है कि राज्य द्वारा किसी नागरिक के प्रति केवल धर्म, मूल वंश, जाति, लिंग या जन्म स्थान को लेकर विभेद नहीं किया जाएगा।
    • अपवादमहिलाओं, बच्चों, सामाजिक या शैक्षणिक रूप से पिछड़े लोगों या अनुसूचित जाति या जनजाति के लोगों के उत्थान (जैसे- आरक्षण और मुफ्त शिक्षा तक पहुँच) के लिये कुछ प्रावधान किये जा सकते हैं।
  • सार्वजनिक नियोजन के विषय में अवसर की समानता: भारतीय संविधान के अनुच्छेद 16 में राज्य के अधीन किसी पद पर नियोजन या नियुक्ति से संबंधित विषयों में सभी नागरिकों के लिये अवसर की समता होगी।
    • अपवाद: राज्य नियुक्तियों में आरक्षण का प्रावधान करता है या किसी पद को पिछड़े वर्ग के पक्ष में बना सकता है जिसका कि राज्य में समान प्रतिनिधित्व नहीं है।
      • इसके अतिरिक्त किसी संस्था या इसके कार्यकारी परिषद के सदस्य या किसी भी धार्मिक आधार पर व्यवस्था की जा सकती है।
  • अस्पृश्यता का उन्मूलन: अनुच्छेद 17 अस्पृश्यता को समाप्त करने की व्यवस्था और किसी भी रूप में इसका आचरण निषिद्ध करता है। अस्पृश्यता से उपजी किसी निर्योग्यता को लागू करना अपराध होगा, जो विधि के अनुसार दंडनीय होगा।
    • अस्पृश्यता के अपराध के दोषी व्यक्ति को संसद या राज्य विधानसभा के लिये चुनाव हेतु अयोग्य घोषित किया जाता है। इन अपराधों में शामिल हैं:
      • प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से अस्पृश्यता का प्रचार।
      • किसी भी व्यक्ति को किसी भी दुकान, होटल, सार्वजनिक पूजा स्थल और सार्वजनिक मनोरंजन के स्थान में प्रवेश करने से रोकना।
      • अस्पतालों, शैक्षणिक संस्थानों या छात्रावासों में सार्वजनिक हित के लिये प्रवेश से रोकना।
      • पारंपरिक, धार्मिक, दार्शनिक या अन्य आधारों पर अस्पृश्यता को उचित ठहराना।
      • अस्पृश्यता के आधार पर अनुसूचित जाति के व्यक्ति का अपमान करना।
  • उपाधियों का उन्मूलन: भारत के संविधान का अनुच्छेद 18 उपाधियों का अंत करता है और इस संबंध में चार प्रावधान करता है:
    • यह निषेध करता है कि राज्य सेना या शिक्षा संबंधी सम्मान के अलावा और कोई उपाधि प्रदान नहीं करेगा।
    • यह निषेध करता है कि भारत का कोई नागरिक विदेशी राज्य से कोई उपाधि प्राप्त नहीं करेगा।
    • कोई विदेशी, राज्य के अधीन लाभ या विश्वास के किसी पद को धारण करने वाला कोई व्यक्ति किसी विदेशी राज्य से कोई भी उपाधि भारत के राष्ट्रपति की सहमति के बिना स्वीकार नहीं कर सकता है।
    • राज्य के अधीन लाभ या विश्वास का पद धारण करने वाला कोई व्यक्ति किसी विदेशी राज्य से या उसके अधीन किसी रूप में कोई भेंट, उपलब्धि या पद राष्ट्रपति की सहमति के बिना स्वीकार नहीं कर सकता है।
स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 19, 20, 21 और 22):
  • 6 अधिकारों का संरक्षण: अनुच्छेद 19 सभी नागरिकों को स्वतंत्रता के छह अधिकारों की गारंटी देता है:
    • वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार
      • यह प्रत्येक नागरिक को अभिव्यक्ति दर्शाने, मत देने, विश्वास एवं अभियोग लगाने की मौखिक, लिखित, छिपे हुए मामलों पर स्वतंत्रता देता है।
    • शांतिपूर्वक सम्मेलन में भाग लेने की स्वतंत्रता का अधिकार
      • किसी भी नागरिक को बिना हथियार के शांतिपूर्वक संगठित होने का अधिकार है। इसमें सार्वजनिक बैठकों में भाग लेने का अधिकार एवं प्रदर्शन शामिल है। इस स्वतंत्रता का उपयोग केवल सार्वजनिक भूमि पर बिना हथियार के किया जा सकता है।
        • यह व्यवस्था हिंसा, अव्यवस्था, गलत संगठन एवं सार्वजनिक शांति भंग करने के लिये नहीं है।
    • संगम या संघ बनाने का अधिकार
    • इसमें राजनीतिक दल बनाने का अधिकार, कंपनी, साझा फर्म, समितियाँ, क्लब, संगठन, व्यापार संगठन या लोगों की अन्य इकाई बनाने का अधिकार शामिल है।
    • अबाध संचरण की स्वतंत्रता का अधिकार
      • संचरण की स्वतंत्रता के दो भाग हैं- आंतरिक (देश में निर्बाध संचरण), (अनुच्छेद 19) और बाहरी (देश के बाहर घूमने का अधिकार तथा देश में वापस आने का अधिकार), (अनुच्छेद 21)।
    • निवास का अधिकार
      • जनजातीय क्षेत्रों में उनकी संस्कृति भाषा एवं रिवाज के आधार पर बाहर के लोगों का प्रवेश प्रतिबंधित किया जा सकता है। देश के कई भागों में जनजातियों को अपनी संस्कृति के संरक्षण एवं संवर्द्धन हेतु नियम-कानून बनाने का अधिकार है।
    • व्यवसाय आदि की स्वतंत्रता का अधिकार
      • इस अधिकार में कोई अनैतिक कृत्य शामिल नहीं है, जैसे- महिलाओं या बच्चों का दुरुपयोग या खतरनाक (हानिकारक औषधियों या विस्फोटक आदि) व्यवसाय।
  • अपराध के लिये दोषसिद्धि के संबंध में संरक्षण: अनुच्छेद-20 किसी भी अभियुक्त या दोषी करार दिये गए व्यक्ति, चाहे वह देश का नागरिक हो या या विदेशी या कंपनी व परिषद का कानूनी व्यक्ति हो, को मनमाने और अतिरिक्त दंड से संरक्षण प्रदान करता है। इस संबंध में तीन व्यवस्थाएँ की गई हैं:
    • किसी भी व्यक्ति को अपराध के लिये तब तक दोषी नहीं ठहराया जाएगा, जब तक कि ऐसा कोई कार्य करते समय, (जो व्यक्ति अपराध के रूप में आरोपित है) किसी प्रवृत्त विधि का अतिक्रमण नहीं किया है।
    • किसी भी व्यक्ति को एक ही अपराध के लिये एक से अधिक बार  अभियोजित या दंडित नहीं किया जाएगा।
    • किसी भी अपराध के लिये अभियुक्त व्यक्ति को स्वंय अपने विरुद्ध साक्षी होने के लिये बाध्य नहीं किया जाएगा।
  • प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता: अनुच्छेद 21 में घोषणा की गई है कि किसी व्यक्ति को उसके प्राण या दैहिक स्वतंत्रता से विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार ही वंचित किया जाएगा अन्यथा नहीं। यह अधिकार नागरिकों और गैर-नागरिकों दोनों के लिये उपलब्ध है।
    • प्राण या दैहिक स्वतंत्रता में अधिकार के कई प्रकार है- इसमें ‘प्राण के अधिकार’ को शारीरिक बंधनों में नहीं बाँधा गया है बल्कि इसमें मानवीय सम्मान और इनसे जुड़े अन्य पहलुओं को भी रखा गया है।
  • शिक्षा का अधिकार: अनुच्छेद 21(A) में घोषणा की गई है कि राज्य 6 से 14 वर्ष की आयु के सभी बच्चों को निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा उपलब्ध कराएगा।
    • यह प्रावधान केवल आवश्यक शिक्षा के एक मौलिक अधिकार के अंतर्गत है, न कि उच्च या व्यावसायिक शिक्षा के संदर्भ में।
    • यह प्रावधान 86वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम, 2002 के अंतर्गत किया गया था।
    • 86वें संशोधन से पहले भी संविधान में भाग IV के अनुच्छेद 45 के तहत बच्चों के लिये निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा का प्रावधान था।
  • निरोध (हिरासत) एवं गिरफ्तारी से संरक्षण: अनुच्छेद 22 किसी व्यक्ति को निरोध एवं गिरफ्तारी से संरक्षण प्रदान करता है।
    • हिरासत दो तरह की होती है- दंड विषयक और निवारक।
      • दंड विषयक हिरासत, एक व्यक्ति, जिसने अपराध स्वीकार कर लिया है और न्यायालय में उसे दोषी ठहराया जा चुका है, को दंड देती है।
      • निवारक हिरासत वह है, जिसमें बिना सुनवाई के न्यायालय में दोषी ठहराया जाए। 
    • अनुच्छेद 22 का पहला भाग साधारण कानूनी मामले से संबंधित है और इसमें निम्नलिखित शामिल हैं:
      • गिरफ्तार करने के आधार पर सूचना देने का अधिकार।
      • विधि व्यवसायी से परामर्श और प्रतिरक्षा करने का अधिकार।
      • दंडाधिकारी (मजिस्ट्रेट) के सम्मुख 24 घंटे के अंदर, यात्रा के समय को मिलाकर, पेश होने का अधिकार।
      • दंडाधिकारी द्वारा बिना अतिरिक्त निरोध के 24 घंटे में रिहा करने का अधिकार।
    • अनुच्छेद 22 का दूसरा भाग निवारक हिरासत मामले से संबंधित है। इस अनुच्छेद में नागरिक एवं विदेशी दोनों के लिये सुरक्षा उपलब्ध है और इसमें निम्नलिखित शामिल हैं:
      • किसी व्यक्ति की हिरासत अवधि तीन महीने से अधिक नहीं बढ़ाई जा सकती, जब तक कि सलाहकार बोर्ड (उच्च न्यायालयों के न्यायाधीश) इस बारे में उचित कारण न बताएँ।
      • निरोध का आधार संबंधित व्यक्ति को बताया जाना चाहिये।
      • निरोध वाले व्यक्ति को यह अधिकार है कि निरोध के आदेश के विरुद्ध अपना प्रतिवेदन प्रस्तुत करें।

मौलिक अधिकार (अनुच्छेद 12 से अनुच्छेद 35 तक) (अमेरिका से लिये)

  • मौलिक अधिकारों से तात्पर्य वे अधिकार जो व्यक्तियों के सर्वागिण विकास के लिए आवश्यक होते है इन्हें राज्य या समाज द्वारा प्रदान किया जाता है।तथा इनके संरक्षण कि व्यवस्था की जाती है।
  • संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा 10 दिसम्बर 1948 को वैश्विक मानवाधिकारो की घोषणा की गई इसलिए प्रत्येक 10 दिसम्बर को विश्व मानवाधिकार दिवस मनाया जाता है।
भारतीय संविधान में 7 मौलिक अधिकारों का वर्णन दिया गया था।
  • समानता का अधिकारा – अनुच्छेद 14 से 18 तक
  • स्वतंन्त्रता का अधिकार – अनुच्छेद 19 से 22 तक
  • शोषण के विरूद्ध अधिकार – अनुच्छेद 23 व 24
  • धार्मिक स्वतंन्त्रता का अधिकार – अनुच्छेद 25 से 28 तक
  • शिक्षा एवम् संस्कृति का अधिकार – अनुच्छेद 29 और 30
  • सम्पति का अधिकार – अनुच्छेद 31
  • सवैधानिक उपचारो का अधिकार – अनुच्छेद 32
  • अनुच्छेद – 12 राज्य की परिभाषा
  • अनुच्छेद – 13 राज्य मौलिक अधिकारों का न्युन(अतिक्रमण) करने विधियों को नहीं बनाऐंगा।
  • 44 वें संविधान संशोधन 1978 द्वारा “सम्पति के मौलिक अधिकार” को इस श्रेणी से हटाकर “सामान्य विधिक अधिकार” बनाकर ‘अनुच्छेद 300(क)’ में जोड़ा गया है।
  • वर्तमान में मौलिक अधिकारों की संख्या 6 है।
समानता का अधिकार- अनच्छेद 14 से अनुच्छेद 18
  • अनुच्छेद – 14 विधी कके समक्ष समानता ब्रिटेन से तथा विधि का समान सरंक्षण अमेरिका से लिया
  • अनुच्छेद – 15 राज्य जाती धर्म लिंग वर्ण, आयु और निवास स्थान के समक्ष भेदभाव नहीं करेगा।
  • राज्य सर्वाजनिक स्थलों पर प्रवेश से पाबन्दियां नहीं लगायेगा।
  • अनुच्छेद 15(3) के अन्तर्गत राज्य महीलाओं और बालकों को विशेष सुविधा उपलब्ध करवा सकता है।
  • अनुच्छेद – 16 लोक नियोजन में अवसर की समानता(सरकारी नौकरीयों में आरक्षण का प्रावधान)
  • अनुच्छेद 16(1) राज्य जाती, धर्म, लिंग वर्ण और आयु और निवास स्थान के आधार पर नौकरी प्रदान करने में भेदभाव नहीं करेगा लेकिन राज्य किसी प्रान्त के निवासियो को छोटी नौकरीयों में कानुन बनाकर संरक्षण प्रदान कर सकता है।
  • अनुच्छेद 16(4) के अन्तर्गत राज्य पिछडे वर्ग के नागरिको को विशेष संरक्षण प्रदान कर सकता है।
  • इसमें भुमिपुत्र का सिद्धान्त दिया गया है।
  • अनुच्छेद – 17 अस्पृश्यता/छुआ छुत का अन्त – भारतीय संसद ने अस्पृश्यता निशेध अधिनियम 1955 बनाकर इसे दण्डनिय अपराध घाषित किया है।
  • अनुच्छेद – 18 उपाधियों का अन्त किया गया है राज्य सैन्य और शैक्षिक क्षेत्र के अलावा उपाधि प्रदान नहीं करेगा(वर्तमान में समाज सेवा केा जोड़ा गया) ।उपाधि ग्रहण करने से पुर्व देश के नागरिक तथा विदेशी व्यक्तियों को राष्ट्रपति की अनुमति लेना आवश्यक है।
स्वतन्त्रता का अधिकर- अनुच्छेद 19 से 22 तक
  • अनुच्छेद – 19 में सात प्रकार की स्वतंन्त्रता दी गई थी 44 वें संविधान संशोधन 1978(सम्पति अर्जित की स्वतन्त्रता हटा दिया)
  • अनुच्छेद 19(1)(क) – भाषण या अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता
  • प्रैस और मिडिया की स्वतंन्त्रता
  • सुचना प्राप्त करने का अधिकार – 12 अक्टूबर 2005 से जोड़ा।
  • अनुच्छेद 19(1)(ख) – शान्ति पूर्वक बिना अस्त्र-शस्त्र के सम्मेलन करने की स्वतन्त्रता।
  • अपवाद – सिखों को कटार धारण करने का अधिकार।
  • अनुच्छेद 19(1)(ग) – संघ या संगम बनाने की स्वतंन्त्रता।
  • अपवाद – सैन्य संगठन और पुलिस बल संघ नहीं बना सकते है।
  • अनुच्छेद 19(1)(घ) – बिना बाधा के घुमने – फिरने की स्वतंन्त्रता ।
  • अनुच्छेद 19(1)(ड़) -व्यापार या आजिविका कमाने की स्वतन्त्रता।
  • अनुच्छेद 19(1)(च) – सम्पति अर्जन की स्वतन्त्रता(हटा दिया)
  • अनुच्छेद 19(1)(छ) – स्थायी रूप से निवास करने की स्वतन्त्रता।
  • अपवाद – जम्मू – कश्मीर।
  • अनुच्छेद – 20 अपराधों के दोषसिद्ध के सम्बन्ध में सरंक्षण प्राप्त करने का अधिकार।
  • अनुच्छेद 20(1) किसी व्यक्ति को तब तक अपराध के लिए दोषी नहीं ठहराया जाता है जब तक लागु कानुन का उल्लगन न किया हो।
  • अनुच्छेद 20(2) किसी व्यक्ति के लिए एक अपराध के लिए दण्डित किया जा सकता है।
  • अनुच्छेद 20(3) किसी व्यक्ति को स्वंय के विरूद्ध गवाही देने के लिए विवश नहीं किया जा सकता।
  • अनुच्छेद 20 और 21 आपातकाल में निलम्बित नहीं किया जाता।
  • अनुच्छेद – 21 प्राण एवं दैहिक स्वतन्त्रता का अधिकार।
  • अनुच्छेद 21(क) 86 वां संविधान संशोधन 2002, 6-14 वर्ष के बालकों को निशुल्क् अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार।
  • शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009, 1 अप्रैल 2010 से सम्पुर्ण भारत में लागु।
  • अनुच्छेद – 22 कुछ दशाओं में गिरफ्तारी से संरक्षण प्राप्त करने का अधिकार, इसमें निवारक ,निरोधक विधि भी शामिल है।
  • अनुच्छेद 22(1) गिरफ्तार किये गये व्यक्ति को उसके कारण बताने होंगे।
  • अनुच्छेद 22(2) उसे वकील से परामर्श प्राप्त करने का अधिकार।
  • अनुच्छेद 22(3) 24 घंटे में सबंधित न्यायलय में पेश करना होगा – यात्रा व अवकाश का समय शामिल नहीं।
  • निवारक निरोध विधि के अन्तर्गत – शत्रु देश के नागरिक को गिरफ्तार किया जाता है या ऐसी आशंका ग्रस्त व्यक्तियों को गिरफ्तार किया जाता है इन्हें उपर के सामान्य (22(1),(2),(3)) अधिकार प्राप्त नहीं है।
शोषण के विरूद्ध अधिकार-अनुच्छेद 23 से अनुच्छेद 24
  • अनुच्छेद – 23 इसमें मानव का अवैध व्यापार, दास प्रथा, तथा बेगार प्रथा को पूर्णतय प्रतिबन्धित किया गया है। अपवाद – राज्य किसी सार्वजनिक प्रयोजन के लिए अनिवार्य श्रम लागू कर सकता है।
  • अनुच्छेद – 24 14 वर्ष से कम आयु के बालकों को उद्योग धन्धों में काम पर नहीं लगाया जाता है। अर्थात् बाल श्रम प्रतिबन्धित किया गया है।
  • वर्तमान में ऐसी आयु के बालको को घरेलु कार्यो में भी नहीं लगाया जा सकता है।
धार्मिक स्वतन्त्रता का अधिकार – अनुच्छेद 25 से 28
  • अनुच्छेद – 25 अन्तकरण के आधार पर धर्म को मानने की स्वतन्त्रता ।
  • अनुच्छेद – 26 माने गये धर्म के प्रबंधन करने की स्वतन्त्रता(प्रबन्धन- चल और अचल सम्पति का)।
  • अनुच्छेद – 27 राज्य किसी धर्म की अभिवृदि पर धार्मिक आधार पर कोई कर नहीं लगायेगा।
  • अनुच्छेद – 28 सरकारी वित्त पोषित विद्यालयों में धार्मिक शिक्षा नहीं दि जा सकती है। लकिन किसी विन्यास(ट्रस्ट) द्वारा स्थापित विद्यालय में कुछ प्रावधानों के अन्तर्गत धार्मिक शिक्षा दी जा सकती है। लेकिन इसमें सभी को बाध्य नहीं किया जा सकता है।
शिक्षा और संस्कृति का अधिकार-अनुच्छेद 29 से अनुच्छेद 30
  • यह अधिकार अल्पसंख्यक वर्गो को प्राप्त है।
  • अनुच्छेद – 29 राज्य के अन्तर्गत रहने वाला प्रत्येक नागरिक को अपनी भाषा, लिपी और संस्कृति को सुरक्षित और संरक्षित करने का अधिकार है।
  • अनुच्छेद – 30 भाषा,लिपी और संस्कृति की सुरक्षा हेतु सभी अल्पसंख्यक वर्गो को अपनी पसन्द की शिक्षण संस्थान की स्थापना करने का अधिकार है ऐसी संस्थाओं में प्रवेश से वंचित नहीं किया जायेगा।
संवैधनिक उपचारों का अधिकार-अनुच्छेद – 32

डाॅ. अम्बेडकर ने इसे संविधान की आत्मा कहा है। मौलिक अधिकारों की रक्षा हेतु 5 प्रकार कि रिटे जारी करता है ताकि मौलिक अधिकारों को उचित संरक्षण प्रदान किया जा सके।

  1. बन्दी प्रत्यक्षीकरण – हैवस काॅरपस
  2. परमादेश – मैण्डमस
  3. प्रतिषेध – प्रोहिविजन
  4. उत्प्रेषण – सैरिसिरियो
  5. अधिकार पृच्छा – क्यू वारेन्टो
  6. इन रिटो को न्याय का झरना कहा जाता है।

 

  1. बन्दी प्रत्यक्षीकरण यह नागरिक अधिकारों की सर्वोत्तम रिट है। बंदी बनाये गये व्यक्ति को 24 घण्टे में न्यायलय बंदी बनाये गये कारणों की समीक्षा करता है।
  2. परमादेश किसी सार्वजनिक पदाधिकारी द्वारा गलत आदेश दिया जाता है तो इसके कारणों की समीक्षा न्यायलय करता है।
  3. प्रतिषेध मना करना – सर्वोच्च न्यायलय अपने अधिनस्थ न्यायलय को सीमा से बाहर जाकर कार्य करने को मना करता है।
  4. उत्प्रेषणओर अधिक सुचित करना- सर्वोच्च न्यायलय अपने अधिनस्थ न्यायलय से और अधिक सुचना मांगता है।
  5. अधिकार पृच्छा किसी अधिकार से किसी सार्वजनिक पदाधिकारी द्वारा जब कोई पद वैद्य या अवैद्य तरीके से प्राप्त किया जाता है तो उसके कारणों की समीक्षा करता है।

भारतीय सविधान

संघ सरकार

उपराष्ट्रपति

महान्यायवादी

प्रधानमंत्री एवं मंत्री-परिषद

संसद

उच्चतम न्यायलय

राज्य सरकार

पंचायती राज

जिला परिषद

शहरी स्थानीय स्वशासन

चुनाव आयोग

संघ लोक सेवा आयोग

कन्द्रीय प्रशासनिक अधिकरण

नियन्त्रण एंव महालेखा परिक्षिक

C.B.I. ( सी.बी.आई. )

केन्द्रीय सतर्कता आयोग

लोकायुक्त

लोकपाल

Haryana CET for C & D { All Haryana Exam }

सामान्य अध्ययन

Haryana

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सामान्य विज्ञान

कम्प्यूटर

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