हरियाणा की कला एंव संगीत
- कला एक व्यापक विद्या है, उसे निम्न भागों में विभाजित किया गया है जैसे-स्थापत्य कला, मूर्तिकला, चित्रकला, संगीत कला आदि ।
- ऑर्किलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया द्वारा हरियाणा में 23 स्मारकों को संरक्षित किया गया है।
- प्राचीन स्थापत्य कला में राज्य के शहरों में सबसे पुरानी हवेली फतेहाबाद में स्थित है।
- यमुनानगर में नर नारायण गुफा है।
- थानेसर में कर्ण का किला एवं करनाल में सोहना का किला अवस्थित है।
- कैथल में भारत की प्रथम महिला शासिका रजिया सुल्तान का मकबरा एवं गुम्बद मध्यकालीन वास्तुकला का उत्कृष्ट नमूना है।
- हरियाणा में आधुनिक एवं पूर्व नियोजित विधि से बनाया गया प्रथम शहर करनाल था |
मूर्तिकला
- हरियाणा राज्य में पाई जाने वाली दूसरी सदी की मूर्तियां लाल पत्थर से बनी हुई है।
- पलवल, भादसा, हथीन, फरीदाबाद में प्राप्त यक्ष-यक्षणियों की मूर्तियां प्राचीन काल के ‘शुंग तथा कुषाणकाल’ की मूर्तिकला का प्रतिनिधित्व करती है।
- श्राभूषणों से सजी युवती, फुल-तोडती कामिनी, नाचती हुई नर्तकी की मूर्तियां गुरुग्राम, मोहनबाडी, झांसवा से प्राप्त हुई है।
- शिव की दो मूर्तियां बरवाला (हिसार) और औरंगाबाद से मिली है।
- . हरियाणा में मूर्तिकला की दृष्टि से सर्वाधिक विकास गुप्त काल में हुआ ।
लोक संगीत
- हरियाणा में लोक संगीत की परम्परा काफी समृद्ध है।
- यहाँ तक कि यहाँ के गाँव के नाम भी शास्त्रीय रागों पर रखे गए है। जैसे – दादरी तहसील में सांरगपुर, वंदावन, तोडी, इसावरी, मालकोश, हिण्डीला, नंदग्राम आदि ।
- मुख्य रूप से हरियाणा का लोक संगीत दो वर्गों में भाता है।
- 1. शास्त्रीय संगीत
- 2. देहाती संगीत
चित्रकला
- मिताथल तथा बनावली से सिंधु सभ्यता के समय की अनेक चित्रित वस्तुएं प्राप्त हुई है, जो काले मृदभाण्डों पर टेढी-मेढी रेखाओं से बनी है।
- सातवी सदी के शासक हर्ष खुद एक कुशल चित्रकार थे और उसके दरबार में अच्छे चित्रकार थे।
- हरियाणा में चित्रकला से संबंधित किसी भी विद्यालय का विकास नहीं हुआ तथा न ही मुगल चित्रकला का कोई विशेष केंद्र हरियाणा में खुला है |
- 18 वी शताब्दी के उत्तरार्द्ध में हरियाणा में चित्रकला को प्रोत्साहन ‘रेवाड़ी के रावो’ द्वारा किया गया था।
- रेवाडी की चित्रकला हरियाणा की न होकर राजस्थान की चित्रकला की शाखा थी।
- रेवाडी में कृष्ण से संबंधित चित्रों का विकास हुआ है।
लोक वाद्य-यंत्र
हरियाणा में विभिन्न प्रकार के लोक वाद्य यंत्रों का प्रयोग होता है। इन्हें चार प्रकार से बाँटा गया है।
1. घनवाद्य:-
जो वाद्य धातु से बनते हैं। इसमें झाँझ, मंजीर व चिमटे आदि आते है।
2. तत् वाद्य:-
जो वाद्य तार से बनते है । तत् वाद्य में इकतारा, दुतारा, सारंगी आदि आते है।
3. सुषिर वाद्य:-
जो वाद्य फूंक कर बजाए जाते हैं। इसमें बीन, बाँसुरी व शहनाई आदि आते हैं।
4. अवनद्ध वाद्य:-
जो चमडे आदि से ढके हों जैसे घडवा, नगाडा, आदि ।
तत् वाद्य यंत्र
1. इकतारा:-
यह एक मीटर बाँस के टुकडे और उसके एक किनारे पर लगे मिट्टी या लकडी के गोले से बना होता है। इसमें एक तार होती है जिसे अँगुली के संचालन से बजाया जाता है। यह जोगियों, भाटो द्वारा प्रयोग किया जाता है।
2. दौतारा:-
यह दो तार बाला वाहा यंत्र है और यह इकतात की तरह उसी प्रयोजन की पूरा करता है।
3. सारंगी:-
यह बौत की घड़ी और लकडी के एक टुकडे को जाला कर बनाया जाता है। इसके ऊपर किनारे तक रूपी तार को धनुषहुना यंत्र से लिवर जाता आता है। यह जीमियों तथा सांग (स्वांग) प्रदर्शन के दौरान उपयोग में लाया जाता है।
अवनद्ध वाद्य यंत्र
1. घडवा/घडा:-
यह निही का, गही में पकाया गया जूता होता है जितके तुम पर बड बांध लेते है। लब और ताल के साथ अंगुलियों या हाथ की थाप देकर इले बजाया जाता है। लोकगीतों और सरसंगो ( ग्रामीण परिवेश में ) घड़ा बजाने का विशेष महत्व है।
2. नगाडा:-
यह बड़े आकार का एक और से खात से मढा हुआ वाद्य है। इसे जमीन पर रखकर बडे जोर-जोर से बजाया जाता है। इसके बडे आकार के कारण इसके नीचे छोटे-छोटे पहिए लगा लिए जाते हैं जिससे इसे लाना ले जाना आसान हो जाता है। मंजीरा नृत्य के समय इसका प्रयोग महत्वपूर्ण है। इसे नक्कारा भी कहा जाता है।
3. झील/जिल:-
यह नगाडे का छोटा रूप होता है और नगाडे के साथ ही लयबद्धता से बजाया जाता है। यह हमेशा नगाडे के बाएँ और रखा जाता है। वास्तव में यह नगाडे का एक भाग है जो तबले के जोडे की तरह 12
4. डफ:-
यह धातु के आकार का खाल से मढा हुआ एक वाद्य होता है। इसे बाएं हाथ से पकड कर और बाएं कंधे से टिका कर दाएं हाथ से बजाया जाता है। धमाल नृत्य में इसका प्रयोग होता है। यह महेन्द्रगढ़ जिले में लोकप्रिय है। यह उत्सव सम्बंधी अवसरों पर बजाया जाता है
सुषिर वाद्य यंत्र
1. बाँसुरी:-
यह प्राचीनतम सुषिर वाद्य यंत्र है। इसे मुरली के नाम से भी जाना जाता है इसे लकडी की खोखली डंडी मैं छेद करके बनाया जाता है। सामान्य प्रकार की बाँसुरी का प्रयोग लोकगायन व नृत्य के साथ किया जाता है। बाँस (लकडी) से बनी होने के कारण यह बाँसुरी कहलाती है।
2. वन:-
यह फूंक मार कर बजाया जाने वाला स्वर वाघ है। लोकगीत व लोक नृत्यों में धुन निकालने के लिए इसका प्रयोग किया जाता है।
3. शंख:-
मानव को ज्ञात सबसे प्राचीन सुषिर वाद्य यंत्र है। उपयोग में लाने के पूर्व शंख के आधार में छेद किया जाता है। इस यंत्र को प्रायः मंदिरों और तीर्थ स्थलों में उपयोग किया जाता है। श्री कृष्ण द्वारा उपयोग में लाए गए शंख को पंचजन्य कहा जाता है।
4. शहनाई:-
इसका प्रयोग शुभ अवसरों और गीतों के साथ धुन निकालने के लिए किया जाता है।
5. हारमोनियम/पेट्टी:-
एक संगीत वाद्य यंत्र है जिसमें वायु प्रवाह किया जाता है और चपटी स्वर पटलों को दबाने से अलग-अलग सुर की ध्वनियाँ निकलती है। इसमें हवा का बहाव हाथों के जरिये किया जाता है।
घन वाद्य यंत्र
1. घूँघरू:-
यह नर्तका/नर्तकी द्वारा अपने टखनों पर बाँधे जाते है ताकि नृत्य को शक्ति प्रदान कर और प्रभावी बना सके यह लय उत्पन्न करने में सहायक होते है।
2. चिमटा:-
यह लम्बे और चपटे लोहे के टुकडे होते हैं, जिसे एक तरफ से जोडा जाता है, जिन पर छोटी-छोटी घंटियाँ लगी होती है।
3. खरताल:-
ये लकड़ी के दो छोटे टुकडों पर लगे छोटे घुंघरू होते है और अन्य वाद्य यन्त्रों की ताल के अनुसार लय को बनाये रखने के लिए इन्हें एक-दूसरे को मारते हैं।
4. खंजरी:-
यह डफ की छोटी किस्म है, अंतर केवल यह है कि एक गोल रिंग के रूप में बनी होती है जिसमें खनखनाहट के लिए घुंघरू या धातु के पतले गोल टुकडे लटके रहते हैं। इसे सामान्यतः एकल-नृत्य प्रदर्शनों में उपयोग में लाया जाता है।
5. मंजीरा:-
यह धात्विक झाँझो का एक जोडा होता है। जिसे लय उत्पन्न करने के लिए प्रयोग किया जाता है प्रार्थना के दौरान इसका उपयोग किया जाता है।
6. झांझ:-
ये काँसे के दो बडे गोल टुकडे होते हैं जो नृत्य या अन्य अवसरों पर धात्वीय ध्वनि उत्पन्न करते है।
हरियाणा सामान्य ज्ञान
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