हरियाणा का प्राचीन इतिहास

1.  हरियाणा राब्द का अर्थ “भगवान का निवास” होता है जो दो शब्दों से मिलकर बना है हरि (विष्णु भगवान) + अयण (निवास) जिसका अर्थ है भगवान  विष्णु का निवास स्थान |

2. कुछ विद्वानों के अनुसार हरियाणा शब्द की उत्पति हरि (संस्कृत हरित) और अरणय  ( जंगल) से हुई है।

3. अधिकांश वैदिक साहित्य जैसे वेद,  ब्राह्मण, उपनिषद आदि की रचना हरियाणा प्रदेश से हुई अतः इन ग्रंथों में हरियाणा के भौगोलिक, आर्थिक, ऐतिहासिक और समाज की जानकारी मिलती है।

4. ऋग्वेद से हरियाणा प्रदेश की भौगोलिक जानकारी मिलती है

5. ऋग्वेद में हरियाणा के कुछ स्थानों का वर्णन किया गया है जिसमें सरयणवत है।

6. शतपथ ब्राह्मण में बताया गया है कि पहले हरियाणा क्षेत्र में रहने वाले  कुरूओ का शासन था, इसलिए इनके नाम पर कुरूक्षेत्र नाम रखा गया |

7. हरियाणा का पहला प्रादेशिक नाम ब्रह्मावर्त था।

8.  महाभारत काल में राजा कुरू के नाम पर ब्रह्मावर्त को कुरूक्षेत्र और आर्यावर्त कहा गया है।

9.  हरियाणा के प्राचीन नाम ( पुराने नाम ) ब्रह्मवर्त, ब्राह्मर्षि, ब्रह्म  की उत्तरवेदी

10.  स्कन्दपुराण में कुमारिका खण्ड में हरियाणा के लिए ‘हरियाला‘ शब्द ( का प्रयोग किया है ) का उल्लेख है।

11.  दसवीं सदी में पुष्पदंत ने महापुराण में पहली बार हरियाणाऊ शब्द का प्रयोग किया था |

12.  वामन पुराण में हरियाणा में प्रवाहित होने वाली नदियों एवं वन क्षेत्रों का उल्लेख है।

13. प्राचीन समय में हरियाणा सरस्वती नदी के किनार स्थित था लेकिन वर्तमान में यमुना नदी के किनारे स्थित है।

14. ऋग्वेद में हरियाणा की रज हरियाण, मनुस्मृति  में ब्रह्मावर्त तथा पुष्पदंत रचित महापुराण में हरियाणऊ कहा गया है।

विभिन्न विद्वानों द्वारा हरियाणा को दिए गए

  • महाराज कृष्ण – हरना
  • राहुल सांकृत्यायन – हरिधानक्या
  • बुद्ध प्रकाश – अभिय्याणा  
  • यदुनाथ सरकार – हरियाल
  • डॉ. एम. आर. गुप्प्ता – आर्यना ( आर्यों का घर ) 
  • जी.सी. अवस्थी  – ऋग्वेद से उत्पन 
  • बाणभट्ट द्वारा रचित हर्ष चरित में –  श्री  कष्ठ जनपद

बौद्ध साहित्य

  • बौद्ध साहित्य ते पता चलता है कि महाना बुद्ध ने हरियाणा में भ्रमण किया था।
  • दिव्यादान बौद्ध ग्रंथो से हरियाणा के जनजीवन का उल्लेख मिलता है।
  • दिन्यादान में उल्लेखित रोहतक और अग्रोहा बौद्ध धर्म का प्रचार केन्द्र था|

जैन साहित्य

  • श्रीधर और पुष्पदंत दो प्रमुख जैन काव्यधार के कवि
  • जैन मूर्तियों हाँसी व रानियाँ से प्राप्त हुई है।
  • जैन साहित्य में अग्रोहा  प्रमुख सांस्कृतिक केंद्र था
  • प्रथम तदी के ‘लोहाचार्य‘ नामक जैन विद्वान यही रहते थे।

सिंधु घाटी की सभ्यता

  • बनावली, सिंधु घाटी सभ्यता के राज्य में पाए गए क्षेत्रों में सर्व प्रमुख है
  • यह क्षेत्र राज्य के फतेहाबाद जिले में प्राचीन सरस्वती की घाटी में स्थित है।
  • इसकी खोज सन  1973-74 ई. में आर. एस. विष्ट ने की थी |
  • वहाँ से मि‌ट्टी का खिलौना (हल) मिला है। तथा सड़कों पर बेलगाडी के पहियों के निशान मिले है।
  • वहाँ से काफी मात्रा में जों के साक्ष्य मिले है।
  • बमावली एकमात्र स्थल है जहाँ ते मातृदेवी की दो मुर्तिया मिली है।
  • बनावली से प्राप्त एक मुद्रा पर विचित्र पशु अंकित है जिसकी घड़ सिंह की तरह और सिंग बैल की तरह है।
  • पुरापाषाण काल के बाद यहाँ नवपानाण काल की संस्कृति विकसित हुई जिसके अवशेष सीरावाली (हिसार) 1968 से प्राप्त हुए है। 
  • सीसवाल में अल्प मात्रा में ताँबे का प्रयोन होने लगा था| नाम सीसवाल होने के कारण इसे सीसवाल सभ्यता भी कहते हैं।
  • अब तक की सभी सभ्यता के सभी स्थलों का हरियाणा में पता चल चुका है। जिसमे है राखीगढ़ी  हिसार , बनवली फतेहाबाद , सीसवाल हिसार, मिताथल भिवानी है |
  • सीसवाल चोतांग नदी के किनारे स्थित है |

मौर्य काल

  • छठी शताब्दी ई. पूर्व हरियाणा में कई जनपदों की स्थापना हुई जिनमें गुरु एक महत्वपूर्ण गणराज्य था । महाभारत में मन्तयटक लोगों को उल्लेखित किया गया है।
  • जूनागढ़ के शिलालेख (150 ई.) में यौधेयगण का उल्लेख है।
  • भिवानी जिले के नौरंगाबाद नामक स्थान से मिले सिक्कों पर ‘यौधेयाना बटुधान्यम्’ अंकित था इसकी लिपि ब्राह्मी है।
  • हरियाणा के मौर्य समाज में शामिल होने का उदाहरण टोपरा (अम्बाला) में पाया गया स्तंभ लेख है।
  • यौधेयगण का आविर्भाव मौर्य वंश के बाद हुआ। युधिष्ठिर के पुत्र यौधेय ने यौधेयगण बनवाया । महाभारत के द्रोणाचार्य के इसका उल्लेख है।

गुप्तोतर काल

  • प्रतिहार शासक नागभट्ट द्वितीय (805-833 ई.) के समय हरियाणा के अधीन था।
  • महिर भोज (836-885 ई.) के समय पेहोवा भारत का व्यापार केन्द्र था।
  • महेन्द्र पाल प्रथम के पेहोवा शिलालेख से पता चलता है कि तोमरी में जाउल नामक पहला राजा था।

हडप्पा स्थल

  • बनावली (फतेहाबाद) – इस स्थल से सांस्कृतिक अवस्थाओं के अवशेष मिले है – हडप्पा पूर्व और हडप्पा कालीन
  • यहां से काफी मात्रा में जौ के साक्ष्य मिले है।
  • भगवानपुर (कुरुक्षेत्र) खुदाई जे.पी. जोशी
  • यह सरस्वती नदी के दक्षिण किनारे पर स्थित था।
  • इस स्थल में सफेद, काले तथा आसमानी रंग के कांच की चूड़ियां, ताबे की चूडियां इत्यादि प्राप्त हुए है।
  • यहां से प्राचीन धूसर और मातृभाण्ड भी प्राप्त हुए है।
  • राखीगढी (हिसार) हडप्पा सभ्यता का खोजा गया सबसे बड़ा स्थल है।
  • इसकी खोज सूरजभान ने 1969 में की। कुणाल (फतेहाबाद)- 1986 में जे.एस. खत्री तथा एम. श्राचार्य
  • यहां से ताब की वस्तुओं कुण्डलित अंगूठियों, उल्टे वी के आकार के बाणय, चपटी कुल्हाडी, मछली पकडने के काटे तथा भाले के अग्रभाग प्राप्त हुए है।
  • कुणाल में वर्तमान में सबसे बडा हडप्पाकालीन और उससे पहला 2017 का सभ्यता स्थल मिला है

महत्वपूर्ण

नोट :- 

           . यक्ष-यक्षिणियों की मूर्तियाँ (लाल पत्थर से बनी) पलवल, भादस हथीन

           . प्रतिहारों की काल की मूर्तियाँ लगभग पूरे हरियाणा से प्राप्त हुई है।

अवशेष

क्र.सं.     अवशेष                                    स्थान (जहां से प्राप्त हुए)

1.            सीने ताँबे के सिक्क                      मीताथल (भिवानी)

2.           इण्डो-ग्रीक सिक्के                          खोखराकोट (रोहतक)

3.           जैन मूतियाँ                                     हांसी व शनीला

4.            यौधेय गणराज्य की मोहरें               नौरंगाबाद (भिवानी)

5.            हर्षकालीन ताम्र मुदाएँ                      सोनीपात

6.           धुंगकालीन फलक                              सुध

7.            मि‌ट्टी की मोहरें                              दौलतपुर

8.           यज्ञ की मूर्तियाँ                               पलवल

9.          कुषाण शैली का द्वार स्तम्भ              रोहतक

10.     सिक्के ढालने के साँचे             खोखराकोट, औरंगाबाद, बोहर, माजरा

11.           हडप्पाकालीन सभ्यता के अवशेष          भिवानी

12.          मौर्यकालीन स्तूप                               फतेहाबाद

13.          टकसाले                                         बोहर माजरा, अग्रोहा, बरवाला

14.          यौधेयकालीन साँचे                       खोखरा कोट (रोहतक)

15.          विष्णु की मूर्ति                               मोहनबाडी (रोहतक)

16.          एक मात्र पंचमुखी शिव की मूर्ति          पेहीवा

पुष्यभूति वंश ( हर्ष काल )

हरियाणा के एक बडे भू-भाग को श्री कन्ठ जनपद ( कुरूक्षेत्र ) कहा जाने लगा यह नाम किसी वंश के शासक द्वारा दिया गया था।

स्थानेश्वर (धानेश्वर) मंदिर का निर्माण पुष्यभूति ने किया था इतका पूर्ननिर्माण मराठा सदाशिव राव द्वारा किया गया था।

  • थानेसर में शाह‌जहाँ के धर्मगुरु शेख चिल्ली का मकबरा है जिसे हरियाणा का ताजमहल भी कहते है।
  • 580 ई. में पुष्यभूति वंश के सबले शक्तिशाली शासक प्रभाकरवर्द्धन का राज्याभिषेक हुआ था।
  • 590 ई. में हर्षवर्धन का जन्म हुआ ।
  • 606 ई. में हर्षवर्धन राजा बना और ‘थानेसर’ को अपनी राजधानी बनाया ।
  • हर्षवर्द्धन के शासनकाल में उत्तर भारत में एक बार पुनः राजनीतिक एकता तथा सांस्कृतिक व आर्थिक विकास का युग आया था|
  • हर्षकाल में राज्य प्रांतों में विभाजित था तथा प्रांत को भूक्ति कहते थे।
  • गांव प्रशासन की सबसे छोटी इकाई थी।
  • तहसीलदार को पाटक पति कहा जाता था।  नोट – यीनी यात्री हेनसांग 629 ई. में हर्षवर्धन के  शासनकाल में भारत आया था।
  • 635 ई. से 644 ई. तक हेनसांग थानेसर में रहा था|
  • हेनसांग ने अपनी पुस्तक सी -यू-सी में थानेसर (कुरुक्षेत्र) का वर्णन किया था।
  • हर्षकालीन ताम्र मुदाएँ , इंडो-ग्रीक बैक्टीरियों के दिरहम सीनीपत में प्राप्त हुए है।
  • हर्षवर्धन को हराने वाला राजा पुलकेशिन द्वितीय था। जितने हर्ष को 634-35 ई. में नर्मदा तट पर पराजित किया।
  • दिवाकर के प्रभाव में हर्ष ने हीनयान बौद्ध धर्म अपनाया लेकिन बाद में हेनसांग के प्रभाव में महायान में आस्था व्यक्त की थी।
  • 647 में में हर्षवर्धन की मृत्यु हो गई थी। 

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