सिन्धु घाटी सभ्यता
पश्चियहडप्पा सभ्यता
- चार्ल्स मेसन 1826 ई. सबसे पहले सभ्यता की ओर ध्यान आकर्षित किया ।
- जॉन बंटन व विलियम बंटन का सर्वे किया । 1856 ई हडप्पा नगर कनिद्यम ने इस ओर दुनिया का ध्यान दिलाया, कनिधम को भारतीय पुरातात्विक विभाग का पितामह कहा जाता है।
- 1921 में सर जॉन मार्शल के निर्देशन में दयाराम साहनी ने इसका उत्खनन किया ।
- सर्वप्रथम इस स्थल की खोज होने के कारण यह स्थल हडप्पा सभ्यता कहलाया ।
अन्य नाम
- सिंधु घाटी सभ्यता
- सरस्वती नदी घाटी सभ्यता
- कांस्य युगीन सभ्यता
- नगरीय सभ्यता
नोट
- अफगानिस्तान में सिंधु घाटी सभ्यता के मात्र दो स्थल थे – सार्तगोई एवं मुंडीगॉक है।
- सार्तगोई से नहरों द्वारा सिंचाई के साक्ष्य मिले है
- सिंधु घाटी सभ्यता मेसोपोटामिया के सभ्यता से 12 गुना बडी थी जबकि मिश्र की सभ्यता से 20 गुना बडी थी ।
- आजादी से पूर्व खोजे समस्त स्थल पाकिस्तान में चले गये । भारत में केवल दो स्थल रहे, रंगपुर (गुजरात) और रोपड (पंजाब)
- भारत का सबसे बडा स्थल राखीगढी (हरियाणा) है, दूसरा बडा स्थल धौला वीरा (गुजरात) है।
- पिग्गट ने हडप्पा एवं मोहनजोदडो को सिन्धु सभ्यता की जुडवा राजधानी बताया है।
बडे नगर (पाकिस्तान)
- गनेडीवाल
- हडप्पा
- मोहनजोदडों
निवासी
यहाँ से प्राप्त कंकालों के आधार पर चार प्रजातियों में बांटा जा सकता है।
- भूमध्य सागरीय
- अल्पाईन
- मंगोलायड
- प्रोटो भास्ट्रालायड
- सर्वाधिक प्रजाति भूमध्य सागरीय प्रजाति मिली है।
नगर नियोजन
- नगर दो भागों में विभाजित पश्चिमी भाग एवं पूर्वी -भाग । पश्चिमी भाग दूर्ग था, पूर्वी भाग सामान्य नगर था ।
- पश्चिमी भाग में प्रशासनिक लोग रहते थे । तथापूर्वी भाग में जनसामान्य लोग रहते थे ।
- सिंधु घाटी सभ्यता में पक्की ईटों के मकान है।
- सिन्धु घाटी के समकालीन सभ्यताकी मे इस विशेषता का अभाव ।
- नगर परकोटे युक्त होते थे ।
- घरों के दरवाजे मुख्य सडक की तरफ न खुलकर पीछे की तरफ खुलते थे । केवल लोथल में मुख्य सडक की तरफ घरों के दरवाजे खुलते थे ।
- कालीबंगा दोहरे परकोटे युक्त है जबकि चन्हुदडो में कोई परकोटा नही ।
- धोलावीरा तीन भागों में विभक्त है । पश्चिमी, पूर्वी एवं मध्यम ।
- लोथल एवं सुरकोटडा का पश्चिमी एवं पूर्वी भाग दोनो ही एक ही परकोटे से घिरे हुए है।
- नगर बिड पद्धति पर आधारित थे अर्थात शतरंज के बोर्ड की तरह सभी नगरों को बसाया था तथा सभी मार्ग समकोण पर काटते थे ।
- सबसे चौडी सडक 10 मीटर (मोहनजोदडो) की मिलती है जो सम्भवतः राजमार्ग रहा होगा ।
- घरो मे उत्कृष्ट नाली व्यवस्था (जल निकासी हेतु
- बडी नालियो को ढक कर रखते थे ।
- भवन के अन्दर सामान्यतः 3 या 4 कक्षा, रसोईघर 1 विद्यालय स्नानागार एवं कुभां होता था । कच्ची एवं पक्की ईंटो का प्रयोग करते थे । ईट का प्रकार 1 : 2 : 4
- जल निकाली हेतु पक्की ईटों की नालियां होती थी विश्व की किसी अन्य सभ्यता में पक्की नालियों के साक्ष्य नहीं मिलते थे ।
प्रमुख नगर
1. हडप्पा
- पाकिस्तान के पंजाब के मोंटगोमरी जिले में स्थित (अब- शाहीवाल जिले मे) रावी नदी के तट पर
- उत्खननकर्ता – दयाराम साहनी
- रावी नदी के तट पर श्रमिको के आवास एवं अन्नागार मिलते है।
- R – 37 नामक कब्रिस्तान मिलता है । एक शव को ताबूत में दफनाया गया है, इसे विदेशी की कब कहते है।
- शंख का बना बैल व 18 वर्ताकार चबूतरे मिले है।
- यहाँ से सर्वाधिक अभिलेख युक्त मुहरें मिली 12
- 6 -6 की पंक्ति में कुल 12 कमरों वाला आवास स्थल मिला है।
- एक स्त्री के गर्भ से निकलता हुआ पौधा की मृणमूर्ति मिली है। सम्भवतः यह उर्वरता की देवी होगी ।
2. मोहनजोदडो
- स्थित = लरकाना (सिन्ध, PAK)
- सिन्धु नदी के तट पर
- उत्खननकर्ता = राखालदास बनर्जी
- मोहनजोदडो का शाब्दिक अर्थ = मृतकों का टीला (न्धो भाषा)
(i) विशाल स्नानागार –
- 11.88 × 7.01 X 2.43 मीटर
- सम्भवतया यहाँ धार्मिक अनुष्ठानों का आयोजन किया जाता रहा होगा ?
- सर जॉन मार्शल ने इसे तात्कालिक समय की आश्चर्यजनक इमारत कहा है।
(ii) विशाल अन्नागार सिंधु सभ्यता की सबसे बड़ी इमारत है। ल. 45.71×15.23 मीटर चौडी है।
(iii) महाविद्यालय के साक्ष्य
(iv) सूती कपडे के साक्ष्य
(v) हाथी का कपालखण्ड
(vi) कांसा की नर्तकी की मूर्ति मिली है।
(vii) पुरोहित राजा की मूर्ति जो ध्यान की अवस्था में है।
(a) इसने शॉल ओढ रखी है जिस पर कशीदाकारी का कार्य किया गया है।
(viii) यहाँ से मेसोपोटामिया की मुहर मिलती है।
(ix) योगी की मूर्ति मिली है।
(x) शिव की मूर्ति मिली है।
(xi) बाढ से पतन के साक्ष्य मिलते है।
(xii) सर्वाधिक मुहरै सिंधु घाटी सभ्यता के यहाँ मिलती है।
3. लोथल
- स्थिति = गुजरात
- भोगवा नदी के किनारे
- उत्खननकर्ता = S. R. राव (रंगनाथ राव)
- यह एक व्यापारिक नगर था ।
- यहाँ से गोदीवाडा (Dockyard) मिलता है
- यह सिन्धु घाटी सभ्यता की सबसे बडी कृति है।
- मनके (Bead) बनाने का कारखाना
- चावल के साक्ष्य
- फारस की मुहर जो गोलाकार बटननुमा है
- घोडे की मृण्मूर्तियाँ
- चक्की के दो पाट
- घरों के दरवाजे मुख्य मार्ग पर खुलते है (एकमात्र)
- छोटे दिशा सूचक यंत्र
4. सुरकोटडा / सुरकोटदा
- स्थिति = गुजरात
- घोडे की हड्डियाँ
- सिन्धु घाटी सभ्यता के लोगो को घोडे का ज्ञान नहीं था ।
5. रोजदी (गुजरात)
- हाथी के साक्ष्य
6. रोपड (PB)
- मनुष्य के साथ कुत्ते को दफनाने के साक्ष्य
7. धौलावीरा
- गुजरात – कच्छ जिला (किसी नदी तट पर नहीं)
- उत्खननकर्ता – रविन्द्र सिंह विष्ट (1990 में)
- यह सबसे नवीन नगर है जिसका उत्खनन किया गया
- कृत्रिम जलाशय के साक्ष्य ।
- संभवतः नहरों के माध्यम से खेती करते होंगे । (दुर्गभाग)
- यह नगर 3 भागों में बंटा हुआ था ।
- स्टेडियम एवं सूचना पट्ट के अवशेष मिलते है (खेल का मैदान)
8. चन्हुदडों
- उत्खननकर्ता – एन. मजूमदार (डाकुओं ने हत्या कर दी) – अर्नेस्ट मैके
- मनके बनाने के कारखाने (मणिकारी), मुहर बनाने का काम आदि ।
- श्रौद्योगिक नगर
- झाकर एवं झुकर संस्कृति के साक्ष्य मिलते है।
- कुत्ते द्वारा बिल्ली का पीछा करने के पद चिन्ह है।
- एक सौन्दर्य पेटिका मिली है। जिसमें एक लिपिस्टिक है।
कालीबंगा
- अवस्थिति- हनुमानगढ
- नदी-घग्घर/सरस्वती/दृषद्वती/चौतांग
- उत्खननकर्ता – अमलानन्द घोष (1952) अन्य सहयोगी-बी. बी. लाल , बी. के. थापर , जे. पी. जोशी , एम. डी. खरें
- कालीबंगा शाब्दिक अर्थ- काली चुडिया (पंजाबी भाषा का शब्द)
- उपनाम – दीन हीन बस्ती- कच्ची ईटों के मकान ।
सामग्री
- सात अग्नि वेदिकाएँ एवं हवन कुण्ड मिले हैं।
- युग्मित शवाधान प्राप्त हुए ।
- एक मानव कपाल खण्ड मिला है, जिसे मस्तिष्क शोधन बीमारी तथा शल्य चिकित्सा की जानकारी मिलती है।
- जूते हुए खेत के साक्ष्य मिलते है (एकमात्र स्थान) एक साथ दो फसले, उगाया करते थे, जौ एवं सरसों
- मकान कच्ची ईटों के थे बल्लियो की छत होती थी
- जल निकाली हेतु लकडी की नालियों के साक्ष्य मिले है अर्थात सृदृढ जल निकासी व्यवस्था नही थी ।
- ईटों को धूप से पकाया जाता था ।
- वृताकार चबूतरे एवं बेलनाकार मुदरे (मेसोपोटामिया) मिली है।
- लाल रंग के मिट्टी के बर्तन मिले है जिन पर काली एवं सफेद रंग की रेखाएँ खीची गई है।
- यहाँ से एक खिलौना गाडी एवं पंख फैलाए बगुले की मूर्ति मिली है।
- यहाँ से बैल व वारहसिंहा के अस्थि अवशेष मिले है।
- यहाँ का नगर भन्य हडप्पा स्थलों की तरह ही है, लेकिन यहाँ गढी एवं नगर दोनों दोहरे परकोटे युक्त है।
- यहाँ उत्खनन में पांच स्तर प्राप्त हुए है प्रथम दो स्तर प्राक हडप्पा कालीन है । अन्य तीन स्तर समकालीन हडप्पा है
- यहाँ प्राचीनतम भूकम्प के साक्ष्य प्राप्त होते है।
- इतिहाकसकार दशरथ शर्मा के अनुसार यह हडप्पा सभ्यता की तीसरी राजधानी है
हडप्पा लिपि
- लगभग 64 मूल चिह्न व 400 तक अदार
- दायी से बायीं ओर लिखते थे ।
- गोमूत्राक्षर लिपि एवं भाव-चित्रात्मक लिपि थी ।
- 375 से 400 तक भाव एवं शब्दों का प्रयोग करते थे ।
पतन के कारण
- गार्डन चाइल्ड तथा व्हीलर के अनुसार आर्यो का आक्रमण
- रंगनाथ राव तथा सर जॉन मार्शल – बाढ
- लोम्बिरिक-सिंधु नदी का मार्ग बदलता
- आरस्टाईन एवं अमलानंद घोष-जलवायु परिवर्तन
अन्य महत्वपूर्ण तथ्य
- कपास का उत्पादन सर्वप्रथम सिंधुवासियों ने किया।
- सारगोन अभिलेख में सिंधु वासियों को मेलुहा (नाविको का देश) कहा गया है।
- सिंधु वासियों का प्रिय पशु कुबड वाला बैल था ।
- दूसरा मुख्य पशु एक सींग वाला गेंडा था ।
- मातृ सत्तात्मक वाला समाज था ।
भारत का प्राचीन इतिहास
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