हरियाणा की जलवायु एवं मृदा
हरियाणा की जलवायु
- समुद से दूर होने के कारण राज्य की जलवायु उपोष्ण कटिबन्धीय शुष्क महाद्विपीय प्रकार की है।
- राज्य के उत्तरी भाग में हिमाचल प्रदेश के सीमा क्षेत्र में उपोषण आर्द जलवायु तथा राजस्थान के सीमा दक्षेत्र में शुष्क जलवायु पाई जाती है।
- ग्रीष्म काल में वर्षा का अभाव, अधिक तापमान एवं अत्यधिक वाष्पीकरण तथा शीतकाल में निम्न तापमान हरियाणा की जलवायु की विशेषताएं है।
- डॉ. व्लादीमीर कोपेन के जलवायु वर्गीकरण के अनुसार, हरियाणा में दो प्रकार की जलवायु आर्द उपोष्ण जलवायु और उपोष्ण स्टेपी जलवायु (Bsh) पाई जाती है।
हरियाणा की ऋतुएँ
- ग्रीष्म ऋतु
- वर्षा ऋतु
- शीत ऋतु
वर्षा ऋतु
- राज्य में यह ऋतु जुलाई से मध्य सितंबर तक रहती है।
- हरियाणा न्यूनतम वर्षा वाले राज्यों में आता है।
- राज्य में औसत वर्षा 40ब3 से 60 ब3 तक होती है।
- राज्य में 80% वर्षा बंगाल की खाडी से आने वाली दक्षिण-पश्चिमी मानसून से जुलाई-दिसंबर महीने में होती है।
- 20% पश्चिमी विक्षोभ के कारण जनवरी-फरवरी महीने में होती है। इसे स्थानीय भाषा में मावठ भी कहा जाता है।
- अत्यधिक वर्षा के कारण यमुनानगर के छछरौली को हरियाणा का चेरापूँजी कहा जाता है।
ग्रीष्म ऋतु
- यह ऋतु मध्य मार्च से जून अंत तक रहती है।
- राज्य का औसत तापमान 35° तथा अधिकतम तापमान 46° से 48° तक हो जाता है।
- राज्य के सर्वाधिक गर्म महीने मई व जून है।
- राज्य का सबसे गर्म जिला हिसार है।
- हरियाणा में ग्रीष्म ऋतु के दौरान दक्षिण व दक्षिणी पश्चिमी जिलों में लू नामक गर्म व शुष्क हवा चलती है।
शीत ऋतु
- राज्य में शीत ऋतु मध्य सितम्बर से मध्य मार्च तक चलती है।
- राज्य का औसत तापमान 12° रहता है तथा न्यूनतम तापमान दिसम्बर – जनवरी 3° 4° रहता है।
- राज्य का सर्वाधिक ठंडा महीना जनवरी होता है।
हरियाणा की मृदाएँ
हरियाणा राज्य का अधिकांश भाग मैदानी है। जिसका निर्माण, यमुना, घम्हार, सरस्वती आदि नदियों द्वारा निदीपित जलोढ मृदा के कारण हुआ है।
जलोढ मृदा का रंग पीला-भूरा होता है।
डॉ. जसवीर सिंह ने राज्य की मृदा 6 भाग में बांटी 12
- अति हल्की मृदा
- हल्की मृदा
- मध्यम मृदा
- सामान्य भारी मृदा
- भारी तथा बहुत भारी मृदाएँ
- शिवालिक, गिरिपादीक तथा चट्टानी तल की मृदाएँ
अति हल्की मृदा
- यह बालूका एवं दोमट प्रधान मृदा है जो सिरसा के दक्षिण भाग से फतेहाबाद, भिवानी, महेन्द्रगढ और हिसार तक फैली है।
- इस मृदा में चूने की अधिकता तथा वनस्पतियों का अभाव रहता है।
- इस मृदा के कण असंगठित होते है जिसके कारण वायु अपरदन अधिक होता है।
- इस मृदा में जल ग्रहण करने की क्षमता कम होती है तथा दाल व मोटे अनाज की कृषि होती है।
हल्की मृदा
यह दो प्रकार की होती है – 1. बालू दोमट 2.बलुई दोमट
बालू दोमट
- यह दोमट एवं बलुई दोमट मृदा का मिश्रण होता है जिसे ‘रौसली’ भी कहते हैं।
- यह भिवानी, गुरुग्राम, झज्जर, रेवाडी व हिसार मे मिलती है।
- इस मृदा में सिल्ट, मृतिका की अपेक्षा बालू अधिक पायी जाती है।
- इसमें जल धारण करने की क्षमता अधिक होती 2
- इसलिए फसल अच्छी होती है।
बलुई दोमट
- यह नर्म मृदा होती है।
- इसमें सिल्ट, मृतिका तथा बालू का अनुपात लगभग समान रहता है।
मध्यम मृदा
यह मृदा भारी दोगट, हल्की दोगट व सामान्य दोमट का सम्मिलित रूप है।
- मोटी दोमट – नूंह व फिरोजपुर झिरका
- हल्की दोमट – गुरुग्राम, अम्बाला, मुँह तथा मध्य रेवाडी
- दोमट मृदा – जीद, कैथल, सोनीपत, गुरुग्राम तथा कुरुक्षेत्र
सामान्य भारी मृदा
- यह मुख्यतया यमुनानगर, कुरुक्षेत्र, करनाल, पानीपत, सोनीपत व फरीदाबाद में पायी जाती है।
- नवीन जलोढ के जमाव के खादर तथा ऊंचे भाग पर पायी जाने वाली मृदा को बांगर कहते हैं।
- इसमें चावल, गेहूं, गन्ना की फसलें, अच्छी होती है।
भारी तथा बहुत भारी मृदाएँ
- इस मृदा को ‘डाकर’ भी कहते हैं।
- यह थानेसर, जगाधरी व फतेहाबाद में पायी जाती है।
- यह मृदा वर्षा ऋतु में चिपचिपी हो जाती है तथा शुष्क मौसम में कठोर हो जाती है।
- इसमें चावल, गेहूं, चना तथा जौ की फसल एवं कपास अच्छी होती है।
शिवालिक, गिरिपादीक तथा चट्टानी तल की मृदाएँ
- शिवालिक मृदा – यह कालका (पंचकुला), नारायणपुर (अम्बाला), जगाधरी (जमुनानगर) में पायी जाती है।
- गिरिपादीय मृदा – यह शिवांलिक के गिरिपादीय क्षेत्रों में पायी जाती है इसे घर या कंधी मृदा भी कहते हैं।
- चट्टानी मृदा – हरियाणा के दक्षिणी भाग में अरावली पर्वत के क्षेत्र में पथरीली व रेतीली मृदा पायी जाती है।
मृदा अपरदन
- मृदा अपरदन के द्वारा मृदा की ऊपरी उपजाऊ परत नष्ट हो जाती है।
- इसे निर्दयी शत्रु या रंगती मृत्यु भी कहा जाता है।
- केन्द्रीय मृदा लवणता अनुसंधान संस्थान – करनाल
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