महान्यायवादी { Attorney General }
- वर्तमान में के.के. वेणुगोपाल महान्यायवादी है।
- अनु. 76 में इस पद का उल्लेख है।
- राष्ट्रपति के द्वारा मंत्रिपरिषद् (PM) की सिफारिश पर इनकी नियुक्ति की जाती है।
- सर्वोच्च न्यायालय का न्यायाधीश बनने की योग्यता रखने वाला व्यक्ति इस पद पर नियुक्त किया जा सकता है।
- अनु. 88 में ये उल्लेखित है कि महान्यायवादी किसी भी सदन का सदस्य न होते हुए भी संसद की बैठकों में भाग ले सकता है, लेकिन मत देने का अधिकार नहीं है।
- एम. सी. सीतलवाड़ भारत के पहले महान्यायवादी थे। (1950 से 1963 तक)
कुछ अन्य महत्वपूर्ण जानकारी
केंद्र सरकार ने के.के. वेणुगोपाल के कार्यकाल को एक वर्ष के लिये बढ़ा दिया है और वेणुगोपाल को महान्यायवादी (Attorney General- AG) के रूप में नियुक्त किया है।
- यह दूसरी बार है जब केंद्र ने उनका कार्यकाल बढ़ाया है। वर्ष 2020 में वेणुगोपाल के पहले कार्यकाल को बढ़ाया गया था।
- वेणुगोपाल को वर्ष 2017 में भारत का 15वाँ महान्यायवादी नियुक्त किया गया था। उन्होंने मुकुल रोहतगी का स्थान लिया जो वर्ष 2014-2017 तक महान्यायवादी रहे।
- वह सर्वोच्च न्यायालय में लंबित कई संवेदनशील मामलों में सरकार के कानूनी बचाव की कमान संभालेंगे जिसमें संविधान के अनुच्छेद 370 और नागरिकता संशोधन अधिनियम को निरस्त करने की चुनौती शामिल है।
प्रमुख बिंदु
- परिचय:
- भारत का महान्यायवादी (AG) संघ की कार्यकारिणी का एक अंग है। AG देश का सर्वोच्च कानून अधिकारी है।
- संविधान के अनुच्छेद 76 में भारत के महान्यायवादी के पद का प्रावधान है।
- नियुक्ति और पात्रता:
- महान्यायवादी की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा सरकार की सलाह पर की जाती है।
- वह एक ऐसा व्यक्ति होना चाहिये जो सर्वोच्च न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त होने के योग्य हो, अर्थात् वह भारत का नागरिक हो, उसे उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में कार्य करने का पाँच वर्षों का अनुभव हो या किसी उच्च न्यायालय में वकालत का 10 वर्षों का अनुभव हो अथवा राष्ट्रपति के मतानुसार वह न्यायिक मामलों का योग्य व्यक्ति हो।
- कार्यालय की अवधि: संविधान द्वारा तय नहीं।
- निष्कासन: महान्यायवादी को हटाने की प्रक्रिया और आधार संविधान में नहीं बताए गए हैं। वह राष्ट्रपति के प्रसादपर्यंत पद धारण करता है (राष्ट्रपति द्वारा किसी भी समय हटाया जा सकता है)।
- कर्तव्य और कार्य:
- ऐसे कानूनी मामलों पर भारत सरकार (Government of India- GoI) को सलाह देना, जो राष्ट्रपति द्वारा उसे भेजे जाते हैं।
- कानूनी रूप से ऐसे अन्य कर्तव्यों का पालन करना जो उसे राष्ट्रपति द्वारा सौंपे जाते हैं।
- भारत सरकार की ओर से उन सभी मामलों में जो कि भारत सरकार से संबंधित हैं, सर्वोच्च न्यायालय या किसी भी उच्च न्यायालय में उपस्थित होना।
- संविधान के अनुच्छेद 143 (सर्वोच्च न्यायालय से परामर्श करने की राष्ट्रपति की शक्ति) के तहत राष्ट्रपति द्वारा सर्वोच्च न्यायालय में किये गए किसी भी संदर्भ में भारत सरकार का प्रतिनिधित्व करना।
- संविधान या किसी अन्य कानून द्वारा उसे प्रदत्त कार्यों का निर्वहन करना।
- अधिकार और सीमाएंँ:
- वोट देने के अधिकार के बिना उसे संसद के दोनों सदनों या उनकी संयुक्त बैठक और संसद की किसी भी समिति की कार्यवाही में बोलने तथा भाग लेने का अधिकार है, जिसका वह सदस्य नामित किया जाता है।
- वह उन सभी विशेषाधिकारों और उन्मुक्तियों का हकदार होता है जो एक संसद सदस्य को प्राप्त होते हैं।
- वह सरकारी सेवकों की श्रेणी में नहीं आता है, अत: उसे निजी कानूनी अभ्यास से वंचित नहीं किया जाता है।
- हालाँकि उसे भारत सरकार के खिलाफ किसी मामले में सलाह या संक्षिप्त जानकारी देने का अधिकार नहीं है।
- भारत के सॉलिसिटर जनरल (Solicitor General of India) और भारत के अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (Additional Solicitor General) आधिकारिक ज़िम्मेदारियों को पूरा करने में महान्यायवादी की सहायता करते हैं।
- महाधिवक्ता (अनुच्छेद 165): राज्यों से संबंधित ।
Key Points
- भारतीय संविधान की विभिन्न विशेषताओं को दुनिया के लगभग हर संविधान से लिया गया है।
- भारत के संविधान में कई प्रमुख विशेषताएं हैं जो इसे अन्य देशों के संविधान से अलग करती हैं।
- ब्रिटिश संविधान से ली गई अन्य विशेषताएं हैं
- संसदीय सरकार,
- कानून के नियम,
- विधायी प्रक्रिया,
- एकल नागरिकता,
- कैबिनेट प्रणाली,
- विशेषाधिकार लेखन,
- संसदीय विशेषाधिकार और द्विसदनीयता।
Important Points
- भारत का महान्यायवादी देश का सर्वोच्च कानून अधिकारी है।
- वह केंद्रीय कार्यकारिणी का एक हिस्सा है।
- संविधान का अनुच्छेद 76 भारत के एजी के कार्यालय के लिए प्रदान करता है।
- वह भारत सरकार (भारत सरकार) को ऐसे कानूनी मामलों पर सलाह देता है, जिन्हें राष्ट्रपति द्वारा उसे संदर्भित किया जाता है।
- वह एक कानूनी चरित्र के ऐसे अन्य कर्तव्यों को भी करता है जो राष्ट्रपति द्वारा उसे सौंपे जाते हैं।
भारत के महान्यायवादी (AGI)
भारत का महान्यायवादी (AGI), एक संवैधानिक निकाय, केंद्र सरकार के मुख्य कानूनी सलाहकार के रूप में यह राष्ट्र के कानूनी परिदृश्य को आकार देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
भारत के महान्यायवादी (AGI) के बारे में
- भारत का संविधान, भारत के महान्यायवादी (AGI) के पद को देश के सर्वोच्च कानूनी अधिकारी के रूप में स्थापित करता है।
- चूंकि यह पद प्रत्यक्ष रुप से संविधान के प्रावधानों के अंतर्गत स्थापित किया गया है, इसलिए यह एक संवैधानिक निकाय है।
- भारत का महान्यायवादी केंद्र सरकार के मुख्य विधि सलाहकार होता हैं तथा भारत सरकार को सभी कानूनी मामलों पर सलाह देते हैं।
- महान्यायवादी केंद्र सरकार का प्रथम वकील भी होता हैं और भारत के सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों में केंद्र सरकार का कानूनी प्रतिनिधि भी होता है।
- भारत का महान्यायवादी (AGI) संघ कार्यपालिका का एक हिस्सा है।
- संघ की कार्यपालिका में शामिल हैं:
- राष्ट्रपति
- उपराष्ट्रपति
- प्रधान मंत्री
- मंत्रिपरिषद (CoM)
- भारत का महान्यायवादी (AGI)
- संघ की कार्यपालिका में शामिल हैं:
- यह ध्यान देने योग्य है कि भारत का महान्यायवादी (AGI) केंद्रीय मंत्रिमंडल का सदस्य नहीं होता हैं। सरकार के स्तर पर कानूनी मामलों को देखने के लिए एक अलग विधि मंत्री होता है।
विधि अधिकारी (सेवा शर्तें) नियम, 1987 के अनुसार, भारत के महान्यायवादी (AGI) का मुख्यालय नई दिल्ली में होगा। |
भारत के महान्यायवादी के संबंध में संवैधानिक प्रावधान
भारत के महान्यायवादी (AGI) से संबंधित प्रमुख संवैधानिक प्रावधानों को इस प्रकार देखा जा सकता है:
अनुच्छेद | विषय – वस्तु |
---|---|
अनुच्छेद 76 | भारत का महान्यायवादी |
अनुच्छेद 88 | संसद के सदनों और उनकी समितियों के संबंध में महान्यायवादी के अधिकार |
अनुच्छेद 105 | महान्यायवादी की शक्तियाँ, विशेषाधिकार और उन्मुक्तियाँ |
भारत के महान्यायवादी की नियुक्ति (AGI)
भारत के राष्ट्रपति द्वारा महान्यायवादी की नियुक्ति की जाती हैं।
भारत के महान्यायवादी की योग्यताएँ (AGI)
- भारत के महान्यायवादी के रूप में नियुक्त होने के लिए, किसी व्यक्ति के पास उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में नियुक्त होने की योग्यता होनी चाहिए। इस प्रकार, वह
- भारत का नागरिक होना चाहिए, और
- उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में 5 वर्ष अथवा उच्च न्यायालय के अधिवक्ता के रूप में 10 वर्ष का कार्य अनुभव होना चाहिए, या
- भारत के राष्ट्रपति की राय में एक प्रतिष्ठित न्यायविद् होना चाहिए,
भारत के महान्यायवादी का कार्यकाल
भारत के संविधान में महान्यायवादी के कार्यकाल की अवधि तय नहीं है।
भारत के महान्यायवादी को पदच्युत करना
- संविधान में महान्यायवादी को हटाने की प्रक्रिया और आधार शामिल नहीं है।
- वह राष्ट्रपति के प्रसादपर्यन्त अपने पद को ग्रहण करते है।
- इस प्रकार, राष्ट्रपति द्वारा उन्हें उनके पद से किसी भी समय हटाया जा सकता है।
भारत के महान्यायवादी का त्यागपत्र
- महान्यायवादी भारत के राष्ट्रपति को अपना इस्तीफा सौंपकर अपना पद त्याग सकते हैं।
- यह एक परंपरा रही है कि वह तब अपना त्यागपत्र दे देते हैं, जब सरकार (मंत्रिपरिषद) इस्तीफा दे देती है या बदल दी जाती है, क्योंकि उन्हें मंत्रिपरिषद की सलाह पर नियुक्त किया जाता है।
भारत के महान्यायवादी का पारिश्रमिक
- भारत के संविधान में महान्यायवादी के पारिश्रमिक को तय नहीं किया गया है।
- वह राष्ट्रपति द्वारा निर्धारित पारिश्रमिक प्राप्त करता है।
भारत के महान्यायवादी के दायित्व और कार्य
- भारत सरकार के मुख्य कानूनी अधिकारी के रूप में भारत के महान्यायवादी को निम्नलिखित दायित्वों का पालन करना होता है:
- ऐसे कानूनी मामलों पर भारत सरकार को सलाह देना, जो राष्ट्रपति द्वारा उन्हें संदर्भित किये जाते हैं।
- राष्ट्रपति द्वारा सौंपे गए कानूनी स्वरूप के अन्य कार्य;
- संविधान या किसी अन्य कानून द्वारा प्रदत्त कार्यों का निर्वाह करना।
अतिरिक्त रूप से, भारत के राष्ट्रपति ने भारत के महान्यायवादी (AGI) को निम्नलिखित कार्य सौंपे हैं:
- सर्वोच्च न्यायालय में उन सभी मामलों में भारत सरकार का प्रतिनिधित्व करना जिनमें भारत सरकार शामिल है।
- संविधान के अनुच्छेद 143 के तहत राष्ट्रपति द्वारा सर्वोच्च न्यायालय को दिए गए किसी भी मामले में भारत सरकार का प्रतिनिधित्व करना।
- भारत सरकार से संबंधित किसी भी मामले में किसी भी उच्च न्यायालय में (जब भारत सरकार द्वारा आवश्यक हो) उपस्थित होना।
भारत के महान्यायवादी (AGI) के अधिकार
भारत के महान्यायवादी के निम्नलिखित अधिकार हैं:
- अपने आधिकारिक कर्तव्यों के निर्वहन में उन्हें भारत के पूरे क्षेत्र में सभी न्यायालयों में ‘उपस्थित होने का अधिकार’ है।
- उन्हें संसद के दोनों सदनों या उनकी संयुक्त बैठक तथा किसी भी संसदीय समिति, जिसके सदस्य के रूप में उन्हें नामित किया जाता है, की कार्यवाही में ‘बोलने’ और ‘भाग लेने’ का अधिकार है, लेकिन मतदान का अधिकार नहीं है।
- उन्हें संसद सदस्य को मिलने वाले सभी विशेषाधिकार और उन्मुक्तियां प्राप्त हैं।
भारत के महान्यायवादी (AGI) की सीमाएँ
कर्तव्य में किसी भी प्रकार के टकराव या जटिलताओं से बचने के लिए, भारत के महान्यायवादी (एजीआई) पर निम्नलिखित सीमाएँ लगाई गई हैं:
- उन्हें भारत सरकार के खिलाफ किसी को सलाह या वकालत नहीं करनी चाहिए।
- उन्हें ऐसे मामलों में सलाह या वकालत नहीं करनी चाहिए, जिनमें उन्हें भारत सरकार की सलाह देने या पेश होने के लिए कहा जाता है।
- उन्हें भारत सरकार की अनुमति के बिना किसी भी आपराधिक मुकदमे में अभियुक्तों का बचाव नहीं करना चाहिए।
- उन्हें भारत सरकार की किसी भी कंपनी या निगम में निदेशक के रूप में नियुक्ति स्वीकार नहीं करनी चाहिए।
- उन्हें भारत सरकार के किसी भी मंत्रालय या विभाग या किसी वैधानिक संगठन या किसी सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम को सलाह नहीं देनी चाहिए जब तक कि इस संबंध में प्रस्ताव या संदर्भ कानून और न्याय मंत्रालय, कानूनी मामलों के विभाग के माध्यम से प्राप्त न हो।
नोट: महान्यायवादी भारत सरकार का पूर्णकालिक कानूनी सलाहकार नहीं हैं। और ना ही सरकारी कर्मचारियों की श्रेणी में आते हैं तथा उन्हें निजी कानूनी प्रैक्टिस करने से भी नहीं रोका गया है। |
भारत के सॉलिसिटर जनरल
- सॉलिसिटर जनरल भारत के महान्यायवादी के बाद देश के ‘दूसरे सर्वोच्च कानून अधिकारी‘ है।
- भारत के महान्यायवादी को उनकी आधिकारिक जिम्मेदारियों को पूरा करने के लिए भारत के सॉलिसिटर जनरल द्वारा सहायता प्रदान की जाती है।
- भारत के सॉलिसिटर जनरल और अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल भी केंद्र सरकार को सलाह देते हैं तथा सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों में भारत संघ की ओर से पेश होते हैं।
नोट: भारत के संविधान में भारत के सॉलिसिटर जनरल और भारत के अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल के कार्यालयों का उल्लेख नहीं है। इस प्रकार ये पद वैधानिक हैं, संवैधानिक नहीं। |
भारत का महान्यायवादी
परिचय
भारत के महान्यायवादी को देश का सर्वोच्च विधि अधिकारी माना जाता है। भारत के संविधान, 1950 (COI) के अनुच्छेद 76 में भारत के महान्यायवादी के संबंध में प्रावधान हैं।
COI का अनुच्छेद 76
इस अनुच्छेद में कहा गया है कि –
(1) राष्ट्रपति, उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त होने के लिये अर्हत किसी व्यक्ति को भारत का महान्यायवादी नियुक्त करेगा |
(2) महान्यायवादी का यह कर्त्तव्य होगा कि वह भारत सरकार को विधि संबंधी ऐसे विषयों पर सलाह दे और विधिक स्वरूप ऐसे अन्य कर्त्तव्यों का पालन करे जो राष्ट्रपति उसको समय-समय पर निर्देशित करें या सौंपे तथा उन कृत्यों का निर्वहन करे जो उसको इस संविधान अथवा तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि द्वारा या उसके अधीन प्रदान किये गए हों |
(3) महान्यायवादी को अपने कर्त्तव्यों के पालन में भारत के राज्य क्षेत्र में सभी न्यायालयों में सुनवाई का अधिकार होगा |
(4) महान्यायवादी, राष्ट्रपति के प्रसादपर्यंत पद धारण करेगा और ऐसा पारिश्रमिक प्राप्त करेगा जो राष्ट्रपति अवधारित करे |
नियुक्ति एवं कार्यकाल
- महान्यायवादी की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।
- उसे उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त होने के लिये योग्य होना चाहिये।
- दूसरे शब्दों में, वह भारत का नागरिक होना चाहिये और राष्ट्रपति की राय में, उसे पाँच वर्षों तक किसी उच्च न्यायालय का न्यायाधीश या दस वर्षों तक किसी उच्च न्यायालय का वकील या एक प्रख्यात न्यायविद् होना चाहिये।
- महान्यायवादी के कार्यालय का समय COI द्वारा तय नहीं किया जाता है। वह राष्ट्रपति की मर्ज़ी तक पद पर बना रहता है।
- COI में उसे हटाने की प्रक्रिया और आधार शामिल नहीं हैं। इसका अर्थ यह है कि उसे राष्ट्रपति द्वारा किसी भी समय हटाया जा सकता है।
- वह राष्ट्रपति को अपना इस्तीफा सौंपकर भी अपना पद छोड़ सकता है।
- महान्यायवादी का पारिश्रमिक COI द्वारा तय नहीं किया जाता है। उसे वैसा पारिश्रमिक मिलता है जैसा राष्ट्रपति निर्धारित कर सकता है।
महान्यायवादी के कर्त्तव्य
- महान्यायवादी के कर्त्तव्यों में निम्नलिखित शामिल हैं:
- ऐसे विधिक मामलों पर भारत सरकार को सलाह देना, जो राष्ट्रपति द्वारा उसे संदर्भित किये जाते हैं।
- विधिक स्वरूप के ऐसे अन्य कर्त्तव्यों का पालन करना जो राष्ट्रपति द्वारा उसे सौंपे गए हैं।
- COI या किसी अन्य विधि द्वारा उसे प्रदत्त कार्यों का निर्वहन करना।
- उच्चतम न्यायालय में उन सभी मामलों में भारत सरकार की ओर से उपस्थित होना जिनमें भारत सरकार का संबंध हो।
- COI के अनुच्छेद 143 के तहत राष्ट्रपति द्वारा उच्चतम न्यायालय में किये गए किसी भी संदर्भ में भारत सरकार का प्रतिनिधित्व करना।
- भारत सरकार से संबंधित किसी भी मामले में किसी भी उच्च न्यायालय में (जब भारत सरकार द्वारा आवश्यक हो) उपस्थित होना।
महान्यायवादी के अधिकार
- महान्यायवादी के अधिकारों में निम्नलिखित शामिल हैं:
- अपने आधिकारिक कर्त्तव्यों के पालन में, महान्यायवादी को भारत के सभी न्यायालयों में सुनवाई का अधिकार है।
- उसे संसद के दोनों सदनों या उनकी संयुक्त बैठक और संसद की किसी भी समिति की कार्यवाही में वोट देने के अधिकार के बिना, बोलने तथा भाग लेने का अधिकार है, जिसका उसे सदस्य नामित किया जा सकता है।
- उसे वे सभी विशेषाधिकार और उन्मुक्तियाँ प्राप्त होती हैं जो एक संसद सदस्य को उपलब्ध होती हैं।
महान्यायवादी की सीमाएँ
- किसी भी जटिलता और कर्त्तव्य के टकराव से बचने के लिये महान्यायवादी पर निम्नलिखित सीमाएँ लगाई गई हैं:
- उसे भारत सरकार के विरुद्ध सलाह या संक्षिप्त जानकारी नहीं देनी चाहिये।
- उसे उन मामलों में सलाह नहीं देनी चाहिये या संक्षिप्त जानकारी नहीं देनी चाहिये जिनमें उसे भारत सरकार को सलाह देने या उसकी ओर से पेश होने के लिये कहा जाता है।
- उसे भारत सरकार की अनुमति के बिना आपराधिक मुकदमों में अभियुक्त व्यक्तियों की प्रतिरक्षा नहीं करनी चाहिये।
- उसे भारत सरकार की अनुमति के बिना किसी कंपनी या निगम में निदेशक के रूप में नियुक्ति स्वीकार नहीं करनी चाहिये।
- उसे भारत सरकार के किसी भी मंत्रालय या विभाग या किसी वैधानिक संगठन या किसी सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम को सलाह नहीं देनी चाहिये जब तक कि इस संबंध में प्रस्ताव या संदर्भ विधि एवं न्याय मंत्रालय, कानूनी मामलों के विभाग के माध्यम से प्राप्त न हो।
महान्यायवादी (भारत)
भारत का महान्यायवादी (Attorney General) भारत सरकार का मुख्य कानूनी सलाहकार तथा भारतीय उच्चतम न्यायालय में सरकार का प्रमुख वकील होता है।
भारत के महान्यायवादी (अनुच्छेद ७६) की नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। जो व्यक्ति supreme court न्यायाधीश बनने की योग्यता रखता है, ऐसे किसी व्यक्ति को राष्ट्रपति महान्यायवादी के पद पर नियुक्त कर सकते हैं।
देश के महान्यायवादी का कर्तव्य कानूनी मामलों में केंद्र सरकार को सलाह देना और कानूनी प्रक्रिया की उन जिम्मेदारियों को निभाना है जो राष्ट्रपति की ओर से उनके पास भेजे जाते हैं। इसके अतिरिक्त संविधान और किसी अन्य कानून के अंतर्गत उनका जो काम निर्धारित है, उनका भी पालन उन्हें पूरा करना होता है। अपने कर्तव्य के निर्वहन के दौरान उन्हें देश के किसी भी न्यायालय में उपस्थित होने का अधिकार है।
Attorney General of India (Name) | Tenure |
1. M.C. Setalvad (longest term) | 28 January 1950 – 1 March 1963 |
2. C.K. Daftari | 2 March 1963 – 30 October 1968 |
3. Niren de | 1 November 1968 – 31 March 1977 |
4. S.V. Gupte | 1 April , 1977 – 8 August 1979 |
5. L.N. Sinha | 9 August, 1979 – 8 August, 1983 |
6. K. Parasaran | 9 August 1983 – 8 December 1989 |
7. Soli Sorabjee (shortest tenure) | 9 December 1989 – 2 December 1990 |
8. J. Ramaswamy | 3 December , 1990 – November 23, 1992 |
9. Milon K. Banerji | 21 November 1992 – 8 July 1996 |
10. Ashok Desai | 9 July 1996 – 6 April 1998 |
11. Soli Sorabjee | 7 April 1998 – 4 June 2004 |
12. Milon K. Banerjee | 5 June 2004 – 7 June 2009 |
13. Goolam Essaji Vahanvati | 8 June 2009 – 11 June 2014 |
14. Mukul Rohatgi | 12 June, 2014 – 30 June 2017 |
15. K.K. Venugopal | 30 June 2017 till date |
महान्यावादी अनुच्छेद -76
- महान्यावादी भारत संघ का प्रथम विधि अधिकारी है। यही वह पदाधिकारी है जो संसद का सदस्य हुये बिना संसद की कार्यवाही में भाग ले सकता है अपना मत व्यक्त कर सकता है लेकिन मतदान में भाग नहीं ले सकता।
- महान्यवादी की नियुक्ति राष्ट्रपति करता है तथा वह उसके प्रसादपर्यन्त पद धारण करता है।
- महान्यवादी बनने के लिए वही अर्हताएं होनी चाहिए जो उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश बनने के लिए होती है।
- राष्ट्रपति, उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त होने के लिए अर्हित किसी व्यक्ति को भारत का महान्यायवादी नियुक्त करेगा।
- महान्यायवादी का यह कर्तव्य होगा कि वह भारत सरकार को विधि संबंधी ऐसे विषयों पर सलाह दे और विधिक स्वरूप के ऐसे अन्य कर्तव्यों का पालन करे जो राष्ट्रपति उसको समय-समय पर निर्देशित करे या सौंपे और उन कृत्यों का निर्वहन करे जो उसको इस संविधान अथवा तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि द्वारा या उसके अधीन प्रदान किए गए हों।
- महान्यायवादी को अपने कर्तव्यों के पालन में भारत के राज्यक्षेत्र में सभी न्यायालयों में सुनवाई का अधिकार होगा। महान्यायवादी, राष्ट्रपति के प्रसादपर्यंत पद धारण करेगा और ऐसा पारिश्रमिक प्राप्त करेगा जो राष्ट्रपति अवधारित करे।
भारत का पहला महान्यायवादी – एम. सी. सीतलवाड
वर्तमान – के.के. वेणुगोपाल
भारत का नियंत्रक और महालेखा परीक्षक अनुच्छेद 148 से 151
- भारत की समस्त वित्तिय प्रणाली-संघ तथा राज्य स्तरों का नियन्त्रण भारत का नियंत्रक- महालेखा परीक्षक करता है। संविधान में नियंत्रक महालेखा परीक्षक का पद भारत शासन अधिनियम 1935 के अधीन महालेखा परीक्षक के ही अनुरूप बनाया गया है। नियंत्रक महालेखा परीक्षक की नियुक्ति राष्ट्रपति करता है।
- नियंत्रक महालेखा परीक्षक की पदावधि पद ग्रहण की तिथि से छः वर्ष होगी, लेकिन यदि इससे पूर्व वह 65 वर्ष की आयु प्राप्त करलेता है तो वह अवकाश ग्रहण कर लेता है।
- अनुच्छेद 145 के अन्तर्गत सर्वोच्च न्यायालय की सिफारिश के आधार पर महावियोग जैसे प्रस्ताव से हटा सकते है। नियंत्रक महालेखा परीक्षक को उसके पद से केवल उसी रीति से और उन्हीं आधारों पर हटाया जाएगा जिस रिति से और जिन आधारों पर उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश को हटाया जाता है।
- नियंत्रक महालेखा परीक्षक का वेतन उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के बराबर होता है। – 90,000 रू मासिक। नियंत्रक महालेखा परीक्षक सार्वजनिक धन का संरक्षक होता है।
- नियंत्रक महालेखा परीक्षक सेवानिवृति के पश्चात् भारत सरकार के अधीन कोई पद धारण नहीं कर सकता।
- भारत तथा प्रत्येक राज्य तथा प्रत्येक संघ राज्य क्षेत्र की संचित निधि से किए गए सभी व्यय विधी के अधीन ही हुए हैं। इसकी संपरीक्षा करता है।
- यह सार्वजनिक धन के साथ-साथ भारत सरकार, राज्यों सरकार, तथा स्थानीय शासन के लेखाओं की जांच करता है।
पहला नियंत्रक महालेखा परीक्षक – बी. एन. राव( बेनेगल नटसिंह राव)।
भारतीय सविधान Group C and D
राज्य सरकार
पंचायती राज
जिला परिषद
शहरी स्थानीय स्वशासन
चुनाव आयोग
संघ लोक सेवा आयोग
कन्द्रीय प्रशासनिक अधिकरण
नियन्त्रण एंव महालेखा परिक्षिक
C.B.I. ( सी.बी.आई. )
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