संघ सरकार ( राष्ट्रपति ) { Federal Government }

  1. संविधान के भाग 5 में अनुच्छेद 52 से 78 तक संघ की कार्यपालिका से संबंधित उपबन्ध है। संघ की कार्यपालिका में राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मंत्रिपरिषद् तथा महान्यायवादी शामिल होते है।
  2. अनु. 52 – भारत का एक राष्ट्रपति होगा। यद्यपि अनु 52 संविधान का सबसे छोटा अनुच्छेद है किन्तु यह संविधान के सर्वाधिक महत्वपूर्ण अनुच्छेदों में से प्रमुख है।
  • नोट अनु. 71 में इस बात का उल्लेख है कि राष्ट्रपति व उपराष्ट्रपति के चुनावों से सम्बन्धित विवादों की सुनवाई केवल और केवल सर्वोच्च न्यायालय करेगा और उसका निर्णय अन्तिम होगा।
अनु. 54 – राष्ट्रपति का निर्वाचक मण्डल
  1. संसद के सभी निर्वाचित सदस्य
  2. 29 राज्यों की विधान सभाओं के सभी निर्वाचित सदस्य
  3. दिल्ली व पुदुचेरी विधानसभा के सभी निर्वाचित सदस्य

नोट – राष्ट्रपति चुनाव में मनोनीत सदस्य भाग नहीं लेते है। ज्ञात रहे 25 जनवरी, 2020 के पश्चात् लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में ऑग्ल-भारतीयों के मनोनयन के प्रावधान प्रभावी नहीं रहे। एन.वी. खरे बनाम चुनाव आयोग-1957 के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने ये निर्णय दिया कि कोई भी स्थान रिक्त होने पर भी राष्ट्रपति चुनाव समय पर ही होंगे।

अनु. 55 निर्वाचन विधि
  • एकल संक्रमणीय आनुपातिक गुप्त मतदान प्रणाली से चुनाव होता है।
  • उम्मीदवार हेतु 50 प्रस्तावक व 50 अनुमोदक होते हैं।
  • जमानत राशि 15000 होती है जो कि कुल वैध मतों का 1/6 मत प्राप्त नहीं होने पर जब्त हो जाती है।
  • वी.वी. गिरी देश के एकमात्र राष्ट्रपति है जिन्होंने वर्ष 1969 में द्वितीय वरीयता के आधार पर चुनाव जीता था।
  • इस सूत्र के आधार पर राजस्थान के एक विधायक का मत मूल्य- 129 है।
  • प्रत्येक मतदाता के मत का मूल्य निकाला जाता है।

 

नोट यहाँ जनसंख्या का आधार वर्ष 1971 की जनसंख्या है।
  • 84 वें संविधान संशोधन द्वारा वर्ष 2001 में यह प्रावधान क्रिया गया था कि वर्ष 2026 तक जनसंख्या का आधार यहीं रहेगा।
  • ज्ञात रहे यह प्रावधान अर्थात् 1971 की जनगणना का आधार सम्बन्धी अनुच्छेद 55 का स्पष्टीकरण जम्मू-कश्मीर पर लागू नहीं है।
  • जम्मू-कश्मीर में अनु0 55 के प्रयोजन के लिए जनसंख्या संविधान (जम्मू-कश्मीर राज्य को लागू होना) आदेश 1954 के तहत 63 लाख समझी जाती थी, जो 31 अक्टूबर, 2019 के पश्चात् परिवर्तित हो जाएगी। साथ ही अब आगामी राष्ट्रपति निर्वाचन से पूर्व यदि जम्मू-कश्मीर संघ राज्य क्षेत्र की विधानसभा के निर्वाचित सदस्यों को राष्ट्रपति के निर्वाचक मण्डल में सम्मिलित करने के लिए संविधान संशोधन अपेक्षित है।

नोट :इस सूत्र के आधार पर एक सांसद का मत मूल्य 708 है।

  • अनु. 60 – इसमें राष्ट्रपति की शपथ का उल्लेख है।
  • राष्ट्रपति हमेशा संविधान की रक्षा तथा लोगों के कल्याण की शपथ लेता है।
  • अनु. 56 इसमें राष्ट्रपति के कार्यकाल का उल्लेख है।
  • अनु. 57 – इसमें यह स्पष्ट उल्लेखित है कि कोई भी व्यक्ति कितनी बार भी राष्ट्रपति बन सकता है।

नोट :-  अनु. 56 के तहत राष्ट्रपति अपना इस्तीफा उपराष्ट्रपति को देता है, जिसकी सूचना सबसे पहले उपराष्ट्रपति ‘के द्वारा ही लोकसभा अध्यक्ष को दी जाती है।

राष्ट्रपति के विशेषाधिकार

  • अनु. 361 के तहत पद पर रहते हुए राष्ट्रपति के विरूद्ध कोई भी न्यायालय गिरफ्तारी का आदेश नहीं निकाल सकता है।
  • राष्ट्रपति पद पर रहते हुए फौजदारी मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है, लेकिन दिवानी मामलों में दो महीनें की पूर्व सूचना पर कार्यवाही की जा सकती है।

राष्ट्रपति के विरूद्ध महाभियोग

  • अनु 56 के तहत राष्ट्रपति को महाभियोग द्वारा हटाया जा सकता है।
  • अनु. 61 में महाभियोग का उल्लेख है। केवल संविधान के उल्लंघन के आरोप में ही ये प्रस्ताव लाया जा सकता है।
  • महाभियोग प्रस्ताव किसी भी सदन में लाया जा सकता है। प्रस्ताव लाने हेतु सदन की कुल सदस्य संख्या का 1/4 सदस्यों का समर्थन होना आवश्यक है।
  • प्रस्ताव पर चर्चा से 14 दिन पहले राष्ट्रपति को इसकी पूर्व सूचना देनी होती है। राष्ट्रपति अपना पक्ष रख सकते है।
  •  यदि कोई सदन अपनी कुल सदस्य संख्या के 2/3 बहुमत से प्रस्ताव पारित कर दे और दूसरा सदन भी इसी प्रक्रिया से प्रस्ताव को स्वीकार कर ले तो राष्ट्रपति को अपना पद छोड़ना पड़ता है।
  • संविधान के अनुसार महाभियोग की प्रक्रिया केवल राष्ट्रपति के लिए है। महाभियोग प्रक्रिया अर्द्धन्यायिक है।
  • महाभियोग प्रक्रिया में संसद के मनोनीत सदस्य भी भाग लेते है, लेकिन इस प्रक्रिया में राज्य विधानसभा सदस्यों की कोई भूमिका नहीं होती है।

नोट – राष्ट्रपति का पद निर्धारित काल से पहले रिक्त हो जाने पर 6 माह में चुनाव करवाना संवैधानिक बाध्यता है। राष्ट्रपति का चुनाव हमेशा पूरे 5 वर्षों के लिए करवाया जाता है।

राष्ट्रपति की शक्तियाँ

  • अनु. 53 – कार्यपालिका संबंधी शक्तियाँ
  • अनु. 77 में ये उल्लेखित है कि सभी कार्य राष्ट्रपति के नाम से किये जायेंगे।
  • राष्ट्रपति लोकसभा में बहुमत दल के नेता को प्रधानमंत्री नियुक्त करता है।
  • अनु. 77 में ये उल्लेखित है कि राष्ट्रपति कार्य आवंटन के नियम बनायेगा।
  • अनु. 78 में यह उल्लेखित है कि राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री से देश के प्रशासन तथा विधि निर्माण के सन्दर्भ में जानकारी प्राप्त कर सकता है।

नोट:- अनु. 78 में ये भी उल्लेखित है कि राष्ट्रपति प्रधानमंत्री से किसी भी विषय पर मंत्रिपरिषद में चर्चा करने के लिए कह सकता है।

  • अनु. 53 में ये उल्लेखित है कि केन्द्र की कार्यपालिका संबंधी शक्तियाँ राष्ट्रपति के पास होगी।
  • अनु. 74 में ये उल्लेखित है कि राष्ट्रपति को सहायता देने के लिए एक मंत्रिपरिषद् होगी, राष्ट्रपति इस मंत्रिपरिषद् के परामर्श पर कार्य करेगा।

नोट:-  42 वें संविधान संशोधन द्वारा 1976 में इस अनुच्छेद में परिवर्तन किया गया था कि राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद् के परामर्श पर ही कार्य करेगा।

  • 44वें संविधान संशोधन 1978 द्वारा ‘ही’ शब्द को हटा दिया गया और ये प्रावधान किया गया कि राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद् के परामर्श को एक बार पुनर्विचार के लिए लौटा सकता है।
  • राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद् की सिफारिश पर महान्यायवादी को नियुक्त करता है।
  • महान्यायवादी राष्ट्रपति के प्रसाद पर्यन्त पद पर बना रहता है।
  • मंत्रिपरिषद् की सिफारिश पर राष्ट्रपति CAG (नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक) की नियुक्ति करता है और इन्हें शपथ दिलाता है।
  • राष्ट्रपति दिल्ली व पुदुचेरी के मुख्यमंत्रियों व अन्य मंत्रियों को नियुक्त करता है तथा उन्हें शपथ दिलाता है।
  • अनु. 79 में ये उल्लेखित है कि संसद में राष्ट्रपति भी शामिल होगा।
  • अनु. 85 के तहत यह संसद के अधिवेशन बुलाता है तथा सत्रावसान करता है।
  • अनु. 86 के तहत राष्ट्रपति संसद को सम्बोधित कर सकते है तथा उसे सन्देश भी भेज सकते है।
  • अनु. 87 में ये उल्लेखित है कि नई लोकसभा के गठन के पश्चात् राष्ट्रपति संसद में विशेष अभिभाषण देते है।
  • अनु. 99 के तहत संसद के सभी सदस्यों को शपथ दिलाना राष्ट्रपति का कार्य है।
  • अनु. 111 में ये उल्लेखित है कि राष्ट्रपति की स्वीकृति के पश्चात् कोई विधेयक कानून बनेगा।
  • इसके तहत धन विधेयक को छोड़कर राष्ट्रपति किसी अन्य विधेयक को एक बार पुनर्विचार के लिए भेज सकता है।

नोट — 24वें संविधान संशोधन द्वारा वर्ष 1971 में

  • अनु. 368 में यह प्रावधान किया गया कि संविधान संशोधन विधेयकों को राष्ट्रपति अपनी स्वीकृति देगा।
  • अनु. 123 के तहत राष्ट्रपति अध्यादेश जारी कर सकता है।
  • अनु.13(2) – में परिभाषित विधि शब्द में अध्यादेश भी शामिल है अर्थात् अध्यादेश को भी न्यायपालिका में चुनौती दी जा सकती है।

नोट – D.C. वधवा बनाम बिहार राज्य 1987 के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने अध्यादेश को बार-बार जारी करना, संसदीय लोकतंत्र के प्रतिकूल माना।

  • अनु. 108 के तहत राष्ट्रपति संसद का संयुक्त अधिवेशन बुलाता है।
  • अनु. 72 के तहत राष्ट्रपति किसी व्यक्ति की सजा को माफ कर सकता है।
  • अनु. 124 के तहत राष्ट्रपति सर्वोच्च न्यायालय के न्यायधीशों को नियुक्त करता है।
  • अनु. 217 के तहत उच्च न्यायालय के सभी न्यायधीशों की नियुक्ति भी राष्ट्रपति करता है।
  • अनु. 222 के तहत राष्ट्रपति उच्च न्यायालय के न्यायधीशों का स्थानान्तरण कर सकता है।
  • अनु. 143 में यह उल्लेख है कि राष्ट्रपति किसी भी विषय पर सर्वोच्च न्यायालय से परामर्श ले सकता है। न को मानना जरूरी है और न ही राष्ट्रपति के लिए लिए उस परामर्श को मानना जरूरी है। पर्वोच्च न्यायालय के लिए लिए उस परामर्श
  • अनु. 109 – धन विधेयक हमेशा राष्ट्रपति की स्वीकृति के पश्चात् ही लोकसभा में रखा जाता है।
  • अनु. 280 के तहत राष्ट्रपति प्रत्येक 5 वर्ष में एक वित्त आयोग का गठन करता है।
  • अनु. 281 के तहत इस आयोग की सिफारिशों को संसद में रखता है।

आपातकालीन शक्तियाँ

ये तीन होती हैं –

अनु. 352 के तहत राष्ट्रीय आपातकाल

  1. बाह्य आक्रमण
  2. भारत द्वारा किसी युद्ध में शामिल हो जाने पर
  3. सशस्त्र विद्रोह
  • भारत में अब तक तीन बार राष्ट्रीय आपातकाल लग चुका है। (1962, 1971, 1975)
1962 – चीनी आक्रमण (सर्वपल्ली राधाकृष्णन)
1971 – पाक आक्रमण (वी.वी. गिरी)
1975  आंतरिक असन्तोष (फखरूद्दीन अली अहमद राष्ट्रपति)
अनु. 352 में ये उल्लेखित है कि यदि सशस्त्र विद्रोह के आधार पर आपातकाल लगाया जाये तो अनु. 19 भी निलम्बित नहीं होगा।

राष्ट्रपति शासन

  • अनु. 356 में यह उल्लेखित है कि यदि किसी राज्य में संवैधानिक तंत्र विफल हो जाये तो उस राज्य सरकार को हटाकर राष्ट्रपति शासन लगाया जा सकता है।
  • दिल्ली व पुदुचेरी में अनु. 356 के तहत राष्ट्रपति शासन नहीं लगाया जाता है। 
  1. वहाँ अनु. 239 AA तथा 239 AB लागू होते हैं।
  • राष्ट्रपति शासन लग जाने पर 2 महीने के भीतर संसद से अनुमति लेनी होती है।
  • संसद द्वारा एक बार अनुमति मिल जाने पर यह 6 महीने तक जारी रह सकता है।
  • किसी भी राज्य में राष्ट्रपति शासन अधिकतम 1 वर्ष तक जारी रह सकता है लेकिन निम्न दो परिस्थितियों में इसे बढ़ाकर अधिकतम 3 वर्ष किया जा सकता है।
  1. यदि अनु. 352 के तहत राष्ट्रीय आपातकाल लगा हुआ है।
  2. यदि अनु. 324 के तहत चुनाव आयोग ये लिखकर दे दे कि वर्तमान परिस्थितियों में उस राज्य में चुनाव कराना सम्भव नहीं है तो राष्ट्रपति शासन को बढ़ाकर 3 वर्ष तक किया जा सकता है।
अनु. 360 के तहत वित्तीय आपातकाल
  1. देश में आर्थिक संकट आ जाने पर राष्ट्रपति द्वारा वित्तीय आपातकाल लगाया जा सकता है।
  2. यह आपातकाल लगाये जाने पर दो महीने के भीतर संसद से अनुमति लेनी होती है।
  3. अनु. 53 के तहत राष्ट्रपति तीनों सेनाओं का सुप्रीम कमाण्डर होता है।

कुछ अन्य महत्वपूर्ण जानकारी

‘भारत’ राज्यों का संघ’
  • संविधान के अनुच्छेद 1 में स्पष्ट तौर पर उल्लिखित है कि “भारत अर्थात् इंडिया राज्यों का संघ होगा”। राज्य और राज्यक्षेत्र वे होंगे जो पहली सूची में विनिर्दिष्ट हैं।
  • भारतीय संविधान में ‘केंद्र सरकार’ पद का कहीं भी उल्लेख नहीं है। संविधान सभा ने 22 भागों के सभी 395 अनुच्छेदों में ‘केंद्र’ या ‘केंद्र सरकार’ पद का प्रयोग नहीं किया था। गौरतलब है कि मूल संविधान में 22 भाग और आठ अनुसूचियाँ थीं।
  • भारत में ‘संघ’ और राज्य हैं। संघ की कार्यकारी शक्तियों राष्ट्रपति द्वारा संचालित होती  हैं तथा वह अपनी शक्तियों का प्रयोग प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली मंत्रिपरिषद की ‘सहायता और सलाह’ पर कार्य करता है।
केंद्र सरकार की परिभाषा
  • उक्त तथ्यों के बाद प्रश्न यह उठता है कि न्यायपालिका, मीडिया और यहाँ तक कि राज्य भी केंद्र सरकार को ‘केंद्र’ के रूप में संदर्भित क्यों करते हैं?
  • भले ही हमारे संविधान में ‘केंद्र सरकार’ को कहीं भी संदर्भित नहीं किया गया है, लेकिन ‘सामान्य खंड अधिनियम,1897 (General Clauses Act, 1897) इसे परिभाषित करता है।
  • सभी व्यावहारिक उद्देश्यों के लिये ‘केंद्र सरकार’ संविधान के लागू होने के बाद प्रमुख है।
  • अतः मुख्य प्रश्न यह है कि क्या ‘केंद्र सरकार’ की ऐसी परिभाषा संवैधानिक है, क्योंकि संविधान ही ‘सत्ता के केंद्रीकरण’ की स्वीकृति नहीं देता है।
संविधान सभा का आशय
  • 13 दिसंबर, 1946 को पंडित जवाहरलाल नेहरू ने संविधान सभा में यह उद्देश्य प्रस्ताव प्रस्तुत किया कि भारत ‘प्रभुत्वसंपन्न स्वतंत्र गणराज्य’ में शामिल होने के इच्छुक राज्यक्षेत्रों का एक संघ होगा। 
  • सभा ने एक मज़बूत संयुक्त देश बनाने के लिये विभिन्न प्रांतों और राज्यक्षेत्रों के एकीकरण और संप्रवाह पर ज़ोर दिया था।
  • संविधान सभा के कई सदस्यों की राय थी कि ब्रिटिश ‘कैबिनेट मिशन’  (1946) के सिद्धांतों को अपनाया जाना चाहिये, जिसके तहत सीमित शक्तियों के साथ एक केंद्र सरकार तथा पर्याप्त स्वायत्तता के साथ प्रांतीय सरकारें हो।
  • लेकिन देश के विभाजन एवं कश्मीर में वर्ष 1947 की हिंसा ने संविधान सभा को अपने दृष्टिकोण को संशोधित करने के लिये मज़बूर किया तथा इसने एक मज़बूत केंद्र के पक्ष में प्रस्ताव पारित किया।
अलगाववाद को रोकने का प्रयास
  • संघ से राज्यों के अलग होने की संभावना ने संविधान के प्रारूपकारों को ज़्यादा मंथन करने पर विवश किया, इसके उपरांत उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि भारतीय संघ ‘विनाशी राज्यों का अविनाशी संघ होगा’।
  • संविधान सभा में प्रारूप समिति के अध्यक्ष डॉ. बी.आर. अंबेडकर ने माना कि ‘संघ’ शब्द का प्रयोग राज्यों के अलगाव के अधिकार को नकारात्मक करने के लिये किया गया था।
  • अंबेडकर ने ‘राज्यों के संघ’ के प्रयोग को यह कहते हुए उचित ठहराया कि प्रारूप समिति यह स्पष्ट करना चाहती थी कि यद्यपि भारत एक संघ है लेकिन यह किसी समझौते का परिणाम नहीं है। इस कारण से किसी भी राज्य को संघ से अलग होने का अधिकार नहीं है।  
‘राज्यों द्वारा संघ’ की आलोचना
  • अंबेडकर द्वारा ‘राज्यों के संघ’ पद के प्रयोग को सभी सदस्यों ने मंजूरी नहीं दी थी। मौलाना हसरत मोहानी ने इसकी आलोचना की थी, उन्होंने तर्क दिया कि अंबेडकर ‘संविधान की प्रकृति’ को बदल रहे हैं।
  • मोहनी ने 18 सितंबर, 1949 को संविधान सभा में तर्क दिया कि ‘राज्यों के संघ’ शब्द के प्रयोग से ‘गणतंत्र’ शब्द अस्पष्ट हो जाएगा। मोहानी ने यहाँ तक कहा कि अंबेडकर चाहते हैं कि ‘संघ’ जर्मनी के बिस्मार्क द्वारा प्रस्तावित संघ जैसा हो, जिसे बाद में कैसर विलियम तथा एडॉल्फ हिटलर द्वारा अपनाया गया था।
  • मोहनी ने आगे कहा, “वह (अंबेडकर) चाहते हैं कि सभी राज्य एक नियम के तहत आ जाएँ, जिसे हम संविधान की अधिसूचना कहते हैं। वह सभी इकाइयों, प्रांतों और राज्यों के समूहों, हर चीज को केंद्र के अधीन लाना चाहते हैं।
  • हालाँकि, अंबेडकर ने स्पष्ट किया कि “संघ राज्यों की एक लीग नहीं है, जो एक ढीले रिश्ते में एकजुट है; न ही राज्य संघ की एजेंसियाँ हैं, जो इससे शक्तियाँ प्राप्त कर रही हैं।
  • संघ और राज्य, दोनों संविधान द्वारा बनाए गए हैं, दोनों संविधान से अपने-अपने अधिकार प्राप्त करते हैं। वे अपने क्षेत्र में दूसरे के अधीन नहीं हैं तथा एक का अधिकार, दूसरे के अधिकार के साथ समन्वय पर आधारित है।
भारतीय संघ की विशेषताएँ
  • संघ और राज्यों के बीच शक्तियों का बँटवारा सरकार के कार्यकारी अंग तक ही सीमित नहीं है।
  • संविधान में न्यायपालिका के लिये यह सुनिश्चित किया गया है कि उच्चतम न्यायालय का उच्च न्यायालयों पर कोई अधीक्षण नहीं होगा है। 
  • यद्यपि उच्चतम न्यायालय का अपीलीय क्षेत्राधिकार न केवल उच्च न्यायालयों पर बल्कि अन्य न्यायालयों और न्यायाधिकरणों पर भी लागू होता है। इस कारण उन्हें इसका अधीनस्थ घोषित नहीं किया जा सकता है।
  • वस्तुतः उच्च न्यायालय के पास ज़िला और अधीनस्थ न्यायालयों के अधीक्षण की शक्ति होने के कारण ‘विशेषाधिकार रिट’ जारी करने की व्यापक शक्तियाँ होती हैं।
  • इसी प्रकार, संसद और विधानसभाएँ अपनी सीमाओं की पहचान करती हैं और जब वे किसी ‘विषय पर कानून बनाती हैं तो वे अपनी सीमाओं का ध्यान रखती हैं। हालाँकि, टकराव की स्थिति में संघीय संसद प्रबल होती है।
शब्दों का हेर-फेर
  • संविधान सभा के सदस्य संविधान में ‘केंद्र’ या ‘केंद्र सरकार’ पद का प्रयोग न करने के लिये बहुत सतर्क थे, क्योंकि उनका उद्देश्य एक इकाई में शक्तियों के ‘केंद्रीकरण की प्रवृत्ति’ को दूर रखना था।
  • ‘केंद्र सरकार’ या ‘भारत सरकार’ का एक एकीकृत प्रभाव है क्योंकि इससे यह संदेश दिया जाना चाहिये कि ‘सरकार सभी की’ है। भले ही संविधान की संघीय प्रकृति इसकी मूलभूत विशेषता है तथा इसे परिवर्तित भी नहीं जा सकता है।
  • अतः यह देखना शेष है कि क्या सत्ता संचालन करने वाले राजनेताओं का इरादा संविधान की संघीय विशेषता की रक्षा करने का है या नहीं? 
निष्कर्ष

नानी पालकीवाला ने इसी संदर्भ में कहा था कि “जटिल समस्या का एकमात्र संतोषजनक और स्थायी समाधान क़ानून की किताब में नहीं बल्कि सत्ताधीशों के विवेक में पाया जाता है”।

संघ शासित क्षेत्र एक नज़र में

संघ शासित क्षेत्र एक नज़र में
  • भारत – राज्यों का एक संघ – अनुच्छेद 1 – भारत का संविधान।
  • अद्वितीय इतिहास – भौगोलिक आकार/अवस्थिति – सांस्कृतिक धरोहर – अन्तर-राज्यीय विवाद – इन क्षेत्रों को संघ सरकार द्वारा प्रशासित किए जाने की आवश्यकता।
  • दिल्ली – भारत की राजधानी।
  • पुडुचेरी – फ्रांसिसी औपनिवेशिक एवं सांस्कृातिक धरोहर – छोटे-छोटे दूर-दराज़ के क्षेत्र।
  • दमन एवं दीव – पुर्तगाली औपनिवेशिक एवं सांस्कृितिक धरोहर – गोवा से काफी दूर।
  • दादरा एवं नगर हवेली – पुर्तगाली धरोहर – गोवा, दमन एवं दीव से काफी दूर।
  • अंडमान एवं निकोबार – बंगाल की खाड़ी में काफी दूर स्थित द्वीप समूह – मुख्य भू-भाग से दूर।
  • लक्षद्वीप – अरब सागर में काफी दूर स्थित द्वीप समूह – मुख्य भू-भाग से दूर।
  • चण्डीगढ़ – पंजाब एवं हरियाणा राज्य के बीच विवाद का मुद्दा – पंजाब समझौता – पंजाब को सौंपा गया – फिर भी अभी तक हस्तांतरित नहीं किया गया – अभी भी संघ शासित क्षेत्र है।
  • भाग VIII – भारत का संविधान – संघ शासित क्षेत्रों के सम्बन्ध में प्रावधान – पुडुचेरी के लिए विधानमंडल (अनुच्छेद 239-ए) – दिल्ली के सम्बन्ध में विशेष प्रावधान (अनुच्छेद 239-एए) लोक व्यंवस्था, पुलिस बजट के सम्बन्ध में कार्रवाई गृह मंत्रालय द्वारा।
     
क्रम
सं.
संघ शासित क्षेत्र/राजधानीक्षेत्र ( वर्ग कि.मी.)जनसंख्या  2001घनत्व 2001साक्षरता दर (%) 2001मुख्य भाषा
1.अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह/पोर्ट ब्लेयर8.243564381.18हिन्दी, अन्य
2.चण्डीगढ़/चण्डीगढ़0.11901790381.76हिन्दी,पंजाबी
3.दादरा एवं नगर हवेली/सिलवासा0.4922044960.03गुजराती,हिन्दी
4.दमन एवं दीव/दमन0.11158141381.09गुजराती
5.राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली/दिल्ली1.481385192948182हिन्दी
6.लक्षद्वीप/कावारत्ती0.0361189487.52मलयालम
7.पुडुचेरी/पुडुचेरी0.4997419808149तमिल, अन्य
क्रम संख्याशीर्षकडाउनलोड/लिंक
1दिल्ली, पर्यटकों के प्रति दलालों और कदाचारों का निवरण अध्यादेश, 2010Download 
2संयुक्त ए.जी.एम.यू. संवर्ग-2010 के आई.ए.एस/आई.पी.एस. अधिकारियों के स्थानान्तरण/तैनाती के सम्बन्ध में दिशा-निर्देश IDownload
3दिल्ली पुलिस प्रारूप विधेयक-2010Download
4दिल्ली पुलिस के निरीक्षकों की दानिप्स के प्रवेश ग्रेड में पदोन्नति IDownload 
5अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह (मूल जनजातियों का संरक्षण) प्रारूप संशोधन विनियमन, 2010Download
6पुडुचेरी बंदरगाह विकास के सम्बदन्ध में विशेष लेखा-परीक्षा रिपोर्ट IDownload
7दिल्ली पुलिस के निरीक्षकों की दानिप्स के प्रवेश ग्रेड में पदोन्नति IDownload 
8चण्डीगढ़ के सम्‍बन्ध‍ में विशेष लेखा-परीक्षा रिपोर्ट IDownload 
9संयुक्त ए.जी.एम.यू. संवर्ग-2010 के आई.ए.एस/आई.पी.एस. अधिकारियों के स्थानान्तीरण/तैनाती के सम्बन्ध‍ में प्रारूप दिशा-निर्देश।Download 
10श्री एस. के. सिंह, भूमि एवं विकास अधिकारी को एन.डी.एम.सी. का सदस्य नामांकित करने के सम्बन्ध में अधिसूचना।Download 
11माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा, रिट याचिका(सी) सं.310/1996 – प्रकाश सिंह एवं अन्य बनाम भारत संघ एवं अन्य मामले – में दिए गए दिशा-निर्देशों के अनुसरण में संघ शासित क्षेत्रों में पुलिस शिकायत प्राधिकरण गठित करना।Download 
12संघ शासित क्षेत्रों के लिए सुरक्षा आयोग।Download
13सिविल सेवाओं की स्थिति सम्बन्धी रिपोर्टें – अखिल भारतीय सेवाओं सहित दस सिविल सेवाओं के अधिकारियों द्वारा किया गया सर्वेक्षण।Download
14वर्ष 2007 से 2009 के सम्बन्ध में दानिक्स के प्रवेश ग्रेड में प्रोन्निति कोटा की रिक्तियों को भरने के लिए विभागीय प्रोन्नति समिति की बैठक आयोजित करना।Download 
15अधिसूचनाएं – आई.ए.एस. के ए.जी.एम.यू. संवर्ग की नई संवर्ग संख्या।Download
16अधिसूचनाएं – आई.पी.एस. के ए.जी.एम.यू. संवर्ग की नई संवर्ग संख्या।Download
17अधिसूचनाएं।Download
18दिल्ली पुलिस अधिनियम, 1978 में संशोधन के लिए राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली की सरकार का प्रारूप प्रस्ताव।Download 
दानिप्स संवर्ग में नियुक्तियां
 
क्रम संख्याशीर्षकडाउनलोड/लिंक
1दिनांक 19/01/2010 की अधिसूचनाएं।Download
2दिनांक 08/12/2009 की अधिसूचनाएं।Download
3दिनांक 11/06/2009 की अधिसूचनाएं।Download
4दिनांक 29/03/2010 की अधिसूचनाएं।Download
क्रम संख्याशीर्षकडाउनलोड/लिंक
1ए.जी.एम.यू. संवर्ग सिविल सूचीIयहां क्लिक करे
योजनाएं और बजट
 
क्रम संख्याशीर्षकडाउनलोड/लिंक
1योजनाएं और बजटDownload 
अधिनियम
 
  • संघ राज्य क्षेत्र शासन अधिनियम, 1963.
  • दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी राज्य क्षेत्र शासन अधिनियम, 1991.
नियम
 
क्रम संख्याशीर्षकडाउनलोड/लिंक
1दानिप्स संशोधन नियम, 2009Download
2दानिक्स् एवं दानिप्स नियम, 2003 
3दानिक्स एवं दानिप्स संशोधन नियम, 2003 दिनांक 11 जून 2009Download 
4दानिक्स एवं दानिप्स संशोधन नियम, 2003 दिनांक 1 अक्टूबर 2009Download 
5पुडुचेरी सरकार के कार्य-व्यासपार नियम, 1963 
6राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली‍ सरकार के कार्य-व्यापार नियम, 1993 
  • सामान्य तौर पर भारत में “संघ सरकार” और “केंद्र सरकार” शब्दों का उपयोग किया जाता है। हालाँकि संविधान सभा के मूल संविधान के 22 भागों में 395 अनुच्छेदों और आठ अनुसूचियों को पढ़ने के बाद यह कहा जा सकता है कि ‘केंद्र’ या ‘केंद्र सरकार’ शब्द का उपयोग कहीं भी नहीं किया गया है।
प्रमुख बिंदु 

संविधान सभा का पक्ष :

  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 1(1) में कहा गया है, “भारत, जो कि भारत है, राज्यों का एक संघ होगा।”
  • 13 दिसंबर, 1946 को जवाहरलाल नेहरू ने इस संकल्प के माध्यम से संविधान सभा के लक्ष्यों और उद्देश्यों को पेश किया था कि भारत, “स्वतंत्र संप्रभु गणराज्य” में शामिल होने के इच्छुक क्षेत्रों का एक संघ होगा।
    • एक मज़बूत संयुक्त देश बनाने के लिये विभिन्न प्रांतों और क्षेत्रों के एकीकरण और संधि पर जोर दिया गया था।
  • 1948 में संविधान का मसौदा प्रस्तुत करते समय मसौदा समिति के अध्यक्ष डॉ. बी आर अंबेडकर ने कहा था कि समिति ने ‘संघ’ शब्द का इस्तेमाल किया था क्योंकि:
    (a) भारतीय संघ इकाइयों द्वारा एक समझौते का परिणाम नहीं था और 
    (b)  घटक इकाइयों को संघ से अलग होने की कोई स्वतंत्रता नहीं थी।
  • संविधान सभा के सदस्य संविधान में ‘केंद्र’ या ‘केंद्र सरकार’ शब्द का प्रयोग न करने के लिये बहुत सतर्क थे क्योंकि उनका उद्देश्य एक इकाई में शक्तियों के केंद्रीकरण की प्रवृत्ति को दूर रखना था।
‘संघ’ और ‘केंद्र’ का अर्थ:
  • संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप के अनुसार, शाब्दिक दृष्टि से ‘केंद्र’ एक वृत्त के मध्य में एक बिंदु को इंगित करता है, जबकि ‘संघ’ संपूर्ण वृत्त है।
    • भारत में संविधान के अनुसार, ‘केंद्र’ और राज्यों के बीच का संबंध वास्तव में संपूर्ण और उसके हिस्सों के बीच का संबंध है।
  • संघ और राज्य दोनों संविधान द्वारा बनाई गई इकाइयाँ हैं और दोनों को संविधान के माध्यम से अपने-अपने अधिकार प्राप्त हैं।
    • एक इकाई अपने स्वतंत्र क्षेत्र में दूसरी इकाई के अधीन नहीं है और एक का अधिकार दूसरे के साथ समन्वित है।
  • इसी प्रकार भारतीय संविधान में न्यायपालिका को यह सुनिश्चित करने के लिये डिज़ाइन किया गया है कि सर्वोच्च न्यायालय, जो कि देश की सबसे ऊँची अदालत है, का उच्च न्यायालय पर कोई अधीक्षण नहीं है।
    • यद्यपि सर्वोच्च न्यायालय का अपीलीय क्षेत्राधिकार न केवल उच्च न्यायालयों पर बल्कि अन्य न्यायालयों और न्यायाधिकरणों पर भी है, किंतु उन्हें इसके अधीनस्थ घोषित नहीं किया जा सकता है।
    • वास्तव में उच्च न्यायालयों के पास ज़िला और अधीनस्थ न्यायालयों पर अधीक्षण की शक्ति होने के बावजूद विशेषाधिकार रिट जारी करने की व्यापक शक्तियाँ हैं।
  • सामान्य शब्दों में ‘संघ’, संघीय भावना को इंगित करता है, जबकि ‘केंद्र’ एकात्मक सरकार की भावना को इंगित करता है।
    • किंतु व्यावहारिक रूप से दोनों शब्द भारतीय राजनीतिक व्यवस्था में समान हैं।
संघीय बनाम एकात्मक सरकार
संघीय सरकार
एकात्मक सरकार

द्वैध शासन व्यवस्था (केंद्र और प्रांत)

एकात्मक सरकार- केवल केंद्र सरकार (प्रांतीय सरकार केंद्र सरकार द्वारा गठित की जाती है)

लिखित संविधान

लिखित (फ्रांँस) और अलिखित (ब्रिटेन) संविधान

केंद्र और राज्य सरकार के बीच शक्तियों का विभाजन

शक्तियों का विभाजन नहीं

संविधान की सर्वोच्चता

संविधान की सर्वोच्चता की गारंटी नहीं

कठोर संविधान 

लचीला (ब्रिटेन) और कठोर (फ्रांँस) संविधान

स्वतंत्र न्यायपालिका

न्यायपालिका स्वतंत्र हो सकती है अथवा नहीं

द्विसदनीय विधायिका

द्विसदनीय और एक सदनीय विधायिका

 केंद्र सरकार पद से संबद्ध मुद्दे
  • संविधान सभा द्वारा खारिज: संविधान में ‘केंद्र’ शब्द का प्रयोग नहीं किया गया है; संविधान निर्माताओं ने इसे विशेष रूप से खारिज कर दिया और इसके बजाय ‘संघ’ शब्द का इस्तेमाल किया।
  • औपनिवेशिक विरासत: ‘केंद्र’ औपनिवेशिक काल का अवशेष है और नौकरशाही केंद्रीय कानून, केंद्रीय विधायिका आदि शब्द का उपयोग करने की आदी हो गई है, इसलिये मीडिया सहित अन्य सभी ने इस शब्द का उपयोग करना शुरू कर दिया।
  • संघवाद के विचार के साथ संघर्ष: भारत एक संघीय सरकार है। शासन करने की शक्ति पूरे देश के लिये एक सरकार के बीच विभाजित है, जो सामान्य राष्ट्रीय हित के विषयों और राज्यों हेतु ज़िम्मेदार है, जो राज्य के विस्तृत दिन-प्रतिदिन के शासन की देखभाल करती है।
    • सुभाष कश्यप के अनुसार, ‘केंद्र’ या ‘केंद्र सरकार’ शब्द का उपयोग करने का मतलब होगा कि राज्य सरकारें इसके अधीन हैं।

भारतीय सविधान Group C and D

राज्य सरकार

पंचायती राज

जिला परिषद

शहरी स्थानीय स्वशासन

चुनाव आयोग

संघ लोक सेवा आयोग

कन्द्रीय प्रशासनिक अधिकरण

नियन्त्रण एंव महालेखा परिक्षिक

C.B.I. ( सी.बी.आई. )

केन्द्रीय सतर्कता आयोग

लोकायुक्त

लोकपाल

Haryana CET for C & D { All Haryana Exam }

सामान्य अध्ययन Group C and D

Haryana General Knowledge

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Haryana Common Entrance Test GROUP C & D

सामान्य विज्ञान

कम्प्यूटर

अंग्रेजी

हिन्दी

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