राष्ट्रीय आन्दोलन

  • 28 दिसम्बर 1885 भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना हुई इस दिन से भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन का प्रारम्भ माना जाता है।

कांग्रेस की स्थापना के पहले के राष्ट्रीय आन्दोलन के संगठन

1. बंगाल जमींदार सभा 1838
  • भारत का पहला राजनीतिक संगठन
  • द्वारिका नाथ टैगोर – संस्थापक
  • राधाकान्त देव – संस्थापक
2. बंगाल ब्रिटिश एसोसिएशन (1843)
  • द्वारिका नाथ टैगोर
3. ब्रिटिश इण्डिया एसोसिएशन (1851)
  • देवेन्द्र नाथ टैगोर
  • राधाकान्त देव
4. इण्डिया लीग – (1875)
  • शिशिर कुमार घोष
5. इण्डियन एसोसिएशन (1876)
  • सुरेन्द्र नाथ बनर्जी लिटन ने ICS की अधिकतम आयु 19 वर्ष कर दी थी तब सुरेन्द्र नाथ बनर्जी ने भान्दोलन चलाया था
6. नेशनल कॉन्फ्रेंस (1883)
  • सुरेन्द्र नाथ बनर्जी तथा आनन्द मोहन बोस
मदास
1 . मदास नेटिव एसोसिएशन (1852)
  • इस संगठन ने 1857 की क्रांति की आलोचना की इसलिए लोगों में अलोकप्रिय हो गया था ।
2. मदास महाजन सभा (1884)
  • वी. राघवाचारी
  • सुबहाण्यम अय्यर
  • आनन्द चारलू
  • बॉम्बे   –   बॉम्बे एसोसिएशन (1852)   नाम बदलकर बॉम्बे प्रेसीडेन्सी एसोसिएशन (1885)
  • बदरुद्‌दीन तैय्यबजी
  • फिरोजशाह मेहता

लंदन

  • ईस्ट इण्डिया एसोसिएशन (1866)  –  दादा भाई नौरोजी

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस

  • 1884 में थियोसोफिकल सोसाइटी का अडियार में सम्मेलन हुआ ।
  • A.O. ह्यूम ने भारतीयों को अखिल भारतीय संगठन बनाने का सुझाव दिया ।
  • इस संगठन का नाम ‘इंडियन नेशनल यूनियन’ रखा गया ।
  • इसका पहला सम्मेलन पूना में होना था लेकिन वहां पर प्लेग फैल जाने के कारण इनका पहला सम्मेलन बॉम्बे के गोकुल दास तेजपाल संस्कृत कॉलेज में हुआ ।
  • दादाभाई नौरोजी के कहने पर इसका नाम इंडियन नेशनल कांग्रेस रखा गया |
  • (कांग्रेस उत्तरी अमेरिका से लिया गया शब्द है) 
  • कांग्रेस का अर्थ – लोगों का समूह (A Group of People)

कुछ अन्य महत्वपूर्ण जानकारी

भारतीय राष्‍ट्रीय आंदोलन

  • भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन भारत के लोगों के हित से संबंधित जन आंदोलन था जो पूरे देश में फैल गया था। देश भर में कई बड़े और छोटे विद्रोह हुए थे और कई क्रांतिकारियों ने ब्रिटिशों को बल से या अहिंसक उपायों से देश से बाहर करने के लिए मिल कर लड़ाई लड़ी और देश भर में राष्ट्रवाद को बढ़ावा दिया।
  • दिसंबर 1885 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की नींव पड़ी। आगे चलकर इसी के नेतृत्व में विदेशी शासन से स्वतंत्रता के लिए भारतीयों ने एक लंबा और साहसपूर्ण संघर्ष चलाया और अंत में 15 अगस्त, 1947 को भारत मुक्त हो गया। वास्तव में देखा जाये तो भारत के राष्ट्रीय आन्दोलन का इतिहास कांग्रेस का इतिहास है। क्योंकि प्रारम्भ से अन्त तक भारत का राष्ट्रीय आन्दोलन इसी संस्था के नेतृत्व में लड़ा गया।
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना (1885 ई.)
  • एलन ऑक्टोवियन ह्युम नामक एक अवकाश प्राप्त ब्रिटिश अधिकारी ने भारतीय नेताओं के सहयोग से 28 दिसंबर, 1885 को मुंबई/बंबई (गोकुलदास तेजपाल संस्कृत कॉलेज) में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना की।
  • मुंबई में आयोजित कांग्रेस के प्रथम अधिवेशन की अध्यक्षता व्योमेश चंद्र बनर्जी ने की। इस अधिवेशन में मात्र 72 प्रतिनिधियोँ ने भाग लिया।
तथ्य
  • दादा भाई नौरोजी के कहने पर इसका नाम भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC) रखा गया।
  • कांग्रेस उत्तरी अमेरिका से लिया गया शब्द है, जिसका अर्थ होता है – लोगों का समूह
  • कांग्रेस की स्थापना के समय गवर्नर जनरल लॉर्ड डफरिन था।
  • भारत सचिव – लॉर्ड क्रॉस

प्रारंभ में ब्रिटिश सरकार ने कांग्रेस को अपना सुरक्षा कवच समझकर सहयोग दिया, किन्तु बाद जब कांग्रेस ने जब वैधानिक सुधारों की मांग रखी तो अंग्रेजों का कांग्रेस से मोह भंग हो गया।

1885 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना के साथ ही एक अखिल भारतीय राजनीतिक मंच का जन्म का हुआ।

इसी के साथ विदेशी शासन से भारत की स्वतंत्रता का संघर्ष एक संगठित के रुप से प्रारंभ हुआ।

कांग्रेस के जन्म के साथ ही भारतीय इतिहास में एक नया युग आरंभ हुआ। छोटे-छोटे विद्रोही दलों तथा स्थानीय दलों आदि सभी ने अपने को कांग्रेस में विलीन कर लिया।

कांग्रेस ने आरंभ से ही एक पार्टी नहीं वरन् एक आंदोलन का काम किया। यह आंदोलन भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के नाम से जाना जाता है।

आधुनिक राष्ट्रवाद के उदय के कारण
  • भारत एवं उपनिवेशी शासन के हितों में विरोधाभास
  • भारत का प्रशासनिक, राजनितिक एवं आर्थिक एकीकरण
  • पाश्चात्य चिंतन तथा शिक्षा का प्रभाव
  • प्रेस एवं समाचार-पत्र की भूमिका
  • भारत के अतीत का पुनःअध्ययन
  • मध्यवर्गीय बुद्धिजीवियों का अम्युदय
  • तत्कालीन विश्वव्यापी घटनाओं का प्रभाव
  • अंग्रेज शासकों की प्रक्रियावादी नीतियां एवं जातीय अहंकार
कांग्रेस के गठन से पूर्व की राजनीतिक संस्थाएं
वर्ष
संगठन
1836बंगभाषा प्रकाशक सभा
1838जमींदारी एसोसिएशन
1843बंगाल ब्रिटिश इंडिया सोसायटी
1851ब्रिटिश इंडिया एसोसिएशन
1866ईस्ट इंडिया एसोसिएशन
1867पूना सार्वजनिक सभा
1875इण्डियन लीग
1876कलकत्ता भारतीय एसोसिएशन
1884मद्रास महाजन सभा
1885बाम्बे प्रेसीडेंसी एसोसिएशन
  • भारतीय राष्ट्रवाद का पहला या आरंभिक चरण मध्यम दर्जे (नरमदल) का चरण (1885-1905) भी कहलाता है। नरमदल के नेता थे, डब्ल्यू.सी. बनर्जीगोपाल कृष्ण गोखलेआर.सी. दत्ताफीरोजशाह मेहताजॉर्ज यूल आदि
  • नरमपंथी नेताओं को ब्रिटिश सरकार में पूर्ण विश्वास था और उन्होंने पीपीपी मार्ग यानि विरोध, प्रार्थना और याचिका, को अपनाया था।
प्रारंभिक राष्ट्रवादियों (उदारवादियों) के उद्देश्य
  • संवैधानिक दायरे में रहकर प्रदर्शन एवं सभाएं करना
  • भारत के पक्ष में जनमत का निर्माण करना
  • इंग्लैण्ड में भारतीय पक्ष के प्रति समर्थन बढ़ाना
  • भारतीयों को राजनीतिक शिक्षा देना
  • ब्रिटेन से भारत के राजनीतिक सम्बंधों को बनाये रखना क्योंकि वह समय ब्रिटिश सरकार को प्रत्यक्ष चुनौती देने हेतु उपयुक्त न था
नरमपंथी राष्ट्रवादियों का योगदान
  • राष्ट्रीय आंदोलन को प्रारंभ किया एवं उसे संगठित किया।
  • उपनिवेशी शासन की आर्थिक शोषण की नीति की निंदा करना
  • धन का निष्कासन सिद्धांत को लोकप्रिय किया। इससे अंग्रेजों का आर्थिक शोषणकारी चेहरा सामने आया।
  • इसलिए इस दौर को आर्थिक राष्ट्रवाद का दौर कहते है।
  • इनके कारण अंग्रेजों को भारत में कई सुधार करने पड़े।
  • 1892 का भारत परिषद अधिनियम
  • 1896 का व्यय सुधार आयोग (वेल्बी आयोग)
  • सामान्य प्रशासनिक सुधारों हेतु अभियान चलाना
  • भारतीयों के दीवानी अधिकारों की रक्षा करना
  • राष्ट्रीय आंदोलन को धर्मनिरपेक्ष स्वरूप प्रदान किया।

काम के नरमपंथी तरीकों से मोहभंग होने के कारण, 1892 के बाद कांग्रेस में चरमपंथ विकसित होने लगा। चरमपंथी नेता थे– लाला लाजपत रायबाल गंगाधर तिलकबिपिनचंद्र पाल और अरबिंदो घोष। पीपीपी मार्ग के बजाए इन्होंने आत्म– निर्भरता, रचनात्मक कार्य और स्वदेशी पर जोर दिया।

प्रशासनिक सुविधा के लिए लॉर्ड कर्जन द्वारा बंगाल विभाजन (1905) की घोषणा के बाद, 1905 में स्वदेशी और बहिष्कार संकल्प पारित किया गया था।

बंगाल विभाजन एवं स्वदेशी आंदोलन (1905 ई. से 1906 ई.)
  • भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना के साथ ही संपूर्ण भारत के लोग ब्रिटिश शासन के विरुद्ध एक राष्ट्रीय मुख्यधारा में शामिल होते जा रहे थे। बंगाल तब भारतीय राष्ट्रवाद का प्रधान केंद्र था।
  • तत्कालिक बंगाल में आधुनिक बिहार, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल तथा बांग्लादेश आते थे। लार्ड कर्जन ने प्रशासनिक सुविधा का बहाना बनाकर बंगाल को दो भागों में बांट दिया।
  • बंगाल विभाजन की सर्वप्रथम घोषणा 3 दिसंबर 1903 को की गई। यह 16 अक्टूबर 1905 को लागू हुआ। राष्ट्रीय नेताओं ने विभाजन को भारतीय राष्ट्रवाद के लिए एक चुनौती समझा।
  • बंगाल के नेताओं ने इसे क्षेत्रीय और धार्मिक आधार पर बांटने का प्रयास माना। अतः इस विभाजन का व्यापक विरोध हुआ तथा 16 अक्टूबर को पूरे देश में शोक दिवस के रुप में मनाया गया।
  • हिंदू-मुसलमान ने अपनी एकता प्रदर्शित करते हुए एक बहुत ही तीव्र आंदोलन 7 अगस्त 1905 से चलाया।
  • स्वदेशी तथा बहिष्कार आंदोलन की उत्पत्ति बंगाल विभाग विभाजन विरोधी आंदोलन के रुप में हुई।
  • इसके अंतर्गत अनेक स्थानों पर विदेशी कपड़ों की होली जलाई गई और विदेशी कपड़े बेचने वाली दुकानों पर धरने दिए गए।
  • इस प्रकार बंगाल के नेताओं ने बंगाल विभाजन विरोधी आंदोलन को स्वदेशी और बहिष्कार आंदोलन के रुप में परिवर्तित कर इसे राष्ट्रीय स्तर पर व्यापकता प्रदान की।
उग्र और क्रांतिकारी आंदोलन (1905 ई. से 1914 ई.)
  • बंग बंग विरोधी आंदोलन का नेतृत्व तिलक, बिपिन चंद्र पाल और अरविंद घोष जैसे नेताओं के हाथों मे आना ही राष्ट्रवादियों के उत्कर्ष का प्रतीक था। सरकारी दमन और जनता को कुशल नेतृत्व देने मे नेताओं की असफलता के कारण उपजी कुंठा ने क्रांतिकारी आंदोलन को जन्म दिया।
  • क्रांतिकारी युवकों ने अनेक गुप्त संगठन, जैसे-अनुशीलन समिति, अभिनव भारत, मित्र मेला, आर्य बांधव समाज आदि बनाये।
  • बंगाल, मद्रास, महाराष्ट्र में ही नहीं वरन कनाडा, अमेरिका, जर्मनी, सिंगापुर आदि देशो में भी अनेक क्रांतिकारी दल स्थापित हो गए।
  • 1907 में ताप्ती नदी के किनारे सूरत में कांग्रेस का सत्र फिरोजशाह मेहता की अध्यक्षता में हुआ, जिसमें नरमपंथी और चरमपंथियों के बीच मतभेदों की वजह से कांग्रेस में विभाजन हो गया।
  • आगा खान III और मोहसिन मुल्क द्वारा 1906 में मुस्लिम लीग का गठन किया गया।
  • 1909 के मॉर्ले– मिंटो सुधार अधिनियम द्वारा अलग निर्वाचन मंडल प्रस्तुत किया गया था।
  • लाला हरदयाल ने 1913 में गदर आंदोलन शुरु किया था और कोटलैंड में 1 नवंबर 1913 को गदर पार्टी की स्थापना की थी। इसका मुख्यालय सैन फ्रांसिस्को के युगांतर आश्रम में था और गदर पत्रिका का प्रकाशन शुरु किया गया था।
  • कोमागाटा मारू घटना सितंबर 1914 में हुई थी और इसके लिए भारतीयों ने शोर कमिटि नाम से एक समिति बनाई थी जो यात्रियों की कानूनी लड़ाई लड़ती थी।
कोमागाटा मारू घटना
  • वर्ष 1914 में कामागाटू मारू नामक जाहज 376 भारतीयों को लेकर समुद्री रास्ते से कनाडा के ब्रिटिश कोलंबिया तट पर पहुंचा। इनमें 340 सिख, 24 मुसलमान, 12 हिंदू और बाकी ब्रिटिश थे। इस जहाज को स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल गदर पार्टी के नेता गुरदीत सिंह ने किराए पर लिया था। 23 मई, 1914 को वैंकुवर के तट पर जहाज पहुंचा तो उसे दो महीने तक वहीं खड़ा रहना पड़ा क्योंकि कनाडा की सरकार ने अलग-अलग कानूनों का हवाला देकर भारतीयों को वहां प्रवेश की अनुमति नहीं दी। सिर्फ 24 भारतीयों को कनाडा सरकार ने वैंकूवर में उतरने दिया। शेष भारतीयों को दो महीने बाद जहाज के साथ भारत वापस भेज दिया गया।

1914 में पहला विश्व युद्ध आरंभ हुआ था।

होमरुल लीग आंदोलन (1915 ई. से 1916 ई.)
  • प्रथम विश्व युद्ध के आरंभ होने पर भारतीय राष्ट्रवादी नेताओं ने सरकार के युद्ध प्रयास में सहयोग का निश्चय किया।
  • इसके लिए एक वास्तविक राजनीतिक जन आंदोलन की आवश्यकता थी। लेकिन ऐसा कोई जन-आंदोलन भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेतृत्व में संभव नहीं था, क्योंकि यह नरमपंथियो के नेतृत्व में एक निष्क्रिय और जड़ संगठन बन चुकी थी। इसलिए 1915-1916 में दो होमरूल लीगों की स्थापना हुई।
  • अप्रैल 1916 में तिलक ने होम रूल आंदोलन की शुरुआत की थी। इसका मुख्यालय पूना में था और इसमें स्वराज की मांग की गई थी।
  • होमरुल आंदोलन के दौरान तिलक ने अपना प्रसिद्ध नारा होमरुल या स्वराज्य मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और में इसे लेकर रहूँगा दिया था।
  • सितंबर 1916 में एनीबेसेंट ने होम रूल आंदोलन शुरु किया और इसका मुख्यालय मद्रास के करीब अडियार में था।
  • वर्ष 1916 में हुए कांग्रेस के लखनऊ अधिवेशन की अध्यक्षता अम्बिका चरण मौजूमदार (नरमपंथी नेता) ने की थी जहां चरमपंथी और नरमपंथी दोनों प्रकार के नेता एक जुट हुए थे।
  • 1917 का वर्ष होमरुल के इतिहास में एक मोड़ बिंदु था। जून में एनी बेसेंट तथा उसके सहयोगियों को गिरफ्तार कर लेने के पश्चात आंदोलन अपने चरम पर था।
  • सितंबर 1917 में भारत सचिव मांटेग्यू की घोषणा, जिसमें होमरुल का समर्थन किया गया था, ने इस आंदोलन में एक और निर्णायक मोड़ ला दिया।
  • लीग ने अपने उद्देश्यो की सफलता के लिए एक कोष बनाया तथा धन एकत्रित किया, सामाजिक कार्यो का आयोजन किया तथा स्थानीय प्रशासन के कार्यो में भागीदारी भी निभाई।
गांधीजी
  • गांधीजी 1893 में अब्दुल्ला भाई का केस लड़ने के लिए दक्षिण अफ्रीका गए, गांधी जी ने वहां पर रंगभेद नीति के खिलाफ सत्याग्रह किया था।
  • गांधीजी ने वहां पर टॉलस्टॉय तथा फिनिक्स आश्रम की स्थापना की।
  • इंडियन ओपिनियन नामक समाचार पत्र निकाला।
  • 9 जनवरी 1915 को गांधी जी 46 वर्ष की उम्र में दक्षिण अफ्रीका से भारत वापस आए थे।
  • 1916 में गांधी जी ने सत्य और अहिंसा के विचार के प्रचार के लिए अहमदाबाद (गुजरात) में साबरमती आश्रम की स्थापना की।
  • चंपारण सत्याग्रह– 1917
  • खेड़ा सत्याग्रह– 1917
  • अहमदाबाद मिल हड़ताल– 1918
  • गांधीजी ने प्रथम विश्व युद्ध में भारतीय युवाओं को ब्रिटिश फौज में साथ शामिल होने के लिए कहा। इसलिए गांधीजी को भर्ती करने वाला सार्जेंट (Recruitment Sargent) कहा जाने लगा। इसलिए गांधीजी को अंग्रेजों ने केसर-ए-हिंद पदक दिया था।
रौलेट एक्ट और जलियांवाला बाग हत्याकांड (1917 ई. से 1919 ई.)
  • प्रथम विश्व युद्ध की समाप्ति पर, जब भारतीय जनता संवैधानिक सुधारो की उम्मीद कर रही थी तो ब्रिटिश सरकार ने दमनकारी रौलेट एक्ट को जनता के सम्मुख प्रस्तुत किया।
  • रौलेट एक्ट के द्वारा सरकार को यह अधिकार प्राप्त हुआ कि, वह किसी भी भारतीय पर अदालत में बिना मुकदमा चलाए और दंड दिए बिना ही जेल में बंद कर सके।
  • 1919 में रौलेट एक्ट के विरोध में गांधी जी ने पहली बार एक अखिल भारतीय सत्याग्रह आंदोलन का आरंभ किया।
  • सरकार इस जन आंदोलन को कुचल देने पर उतारु थी उसने निहत्थे प्रदर्शनकारियों को ऐसे कुचलने का प्रयास किया, जिसने दमन के इतिहास में नये अध्याय जोड़े हैं। दमनात्मक नीतियों तथा डॉ. सैफुद्दीन किचलू और डॉ. सत्यपाल जैसे लोकप्रिय नेताओं की गिरफ़्तारी के विरोध में अमृतसर के जलियाँवाला बाग़ में एक सभा का आयोजन किया गया।
  • जनरल डायर ने सभा के आयोजन को सरकारी आदेशो की अवहेलना माना तथा सभा स्थल को सशक्त सैनिको के साथ घेर लिया और बिना किसी पूर्व चेतावनी के शांतिपूर्ण ढंग से चल रही सभा पर गोलियाँ चलाने का आदेश दे दिया।
  • इस घटना में एक हजार से अधिक लोग मारे गए जिसमें युवा, महिलाएँ, बूढ़े, बच्चे सभी शामिल थे। यह घटना आधुनिक भारतीय इतिहास में जलियावाला हत्या कांड के नाम से प्रसिद्द है।
  • इस घटना के विरोध में रवींद्रनाथ टैगोर ने ब्रिटिश सरकार द्वारा प्रदान की गई नाइटहुड की उपाधि वापस कर दी तथा सर शंकरन नायर ने गवर्नर जनरल की कार्यकारिणी परिषद से त्याग पत्र दे दिया।
असहयोग आंदोलन (1920 ई.)
  • प्रथम विश्व युद्ध के पश्चात् आत्मनिर्णय की भावना को बल मिला इसके साथ ही रौलेट एक्ट, जलियांवाला बाग हत्याकांड, पंजाब में मार्शल ला तथा खिलाफत के विवाद आदि घटनाओं से अंग्रेजों के प्रति भारतीय दृष्टिकोण में व्यापक परिवर्तन आया।
  • जनता इन घटनाओं के लिए सरकार से खेद प्रकट करने की अपेक्षा कर रही थी। इसके विपरीत परिस्थितियो में आंदोलन के एक और चक्र के प्रारंभ के लिए वह तैयार थी।
  • 1920 में नागपुर में आयोजित कांग्रेस के वार्षिक अधिवेशन, जिसकी अध्यक्षता विजय राघवाचारी कर रहे थे, में असहयोग आंदोलन का अनुमोदन कर दिया गया।
  • सरकार ने इस आंदोलन को कुचलने के लिए दमनात्मक नीति का सहारा लिया आंदोलन के स्वरुप में स्थान परिवर्तन के साथ-साथ भिन्नता आई।
  • 5 फरवरी 1922 को चौरी-चौरा नामक गाँव में तीन हजार किसानो के एक कांग्रेसी जुलूस पर पुलिस ने गोली चलाई। किसानो की भीड़ ने थाने पर हमला करके थाने में आग लगा दी। जिसमें 22 पुलिसकर्मी मारे गए।
  • गांधीजी चूँकि हिंसा में विश्वास नहीं करते थे, इसलिए उनहोने 12 फरवरी 1922 को बारदोली में हुई कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में असहयोग आंदोलन को वापस लेने का निर्णय किया।
साइमन आयोग
  • भारत सरकार अधिनियम 1919 या मोंटागू– चेम्सफोर्ड रिफॉर्म एक्ट को भारत में जिम्मेदार सरकार की स्थापना के लिए पारित किया गया था।
  • 1919 के अधिनियम में इस बात की व्यवस्था की गई थी कि दस वर्षों के पश्चात मांटेग्यू चेम्सफोर्ड सुधारों की समीक्षा तथा उसमे परिवर्तन की संभावनाओं की जांच के लिए एक आयोग का गठन किया जाएगा। इस प्रावधान के तहत 1929 में एक आयोग की नियुक्ति की जानी थी।
  • तत्कालीन वायसराय लॉर्ड इरविन ने निर्धारित समय से दो वर्ष पूर्व 8 नवंबर 1927 को इंडियन इंस्टीट्यूट आयोग की नियुक्ति कर दी। सात सदस्यीय आयोग के अध्यक्ष सर जॉन साइमन थे, जिनके नाम पर यह साइमन आयोग के नाम से विख्यात हुआ।
  • कांग्रेस के मद्रास अधिवेशन में इस आयोग का बहिष्कार का निर्णय सर्वसम्मति से लिया गया।
  • 3 फरवरी 1928 को समय साइमन आयोग भारत आया। साइमन आयोग के भारत आने पर देश के सभी नगरों में हड़तालों एवं जुलूसों का आयोजन किया गया।
  • जनता के विरोध को कुचलने के लिए सरकार ने निर्मम दमन तथा पुलिस कार्यवाहियों का सहारा लिया।
नेहरु रिपोर्ट (1928)
  • साइमन आयोग की नियुक्ति और उसके विरोध के पश्चात भारत सचिव ने भारतीयों की क्षमता पर प्रश्नचिंह लगाते हुए उन्हें अपने लिए एक सर्वमांय संविधान बनाने की चुनौती दी।
  • डॉ. मुख्तार अहमद अंसारी की अध्यक्षता में एक सर्वदलीय सम्मेलन का आयोजन 19 मई, 1926 को किया गया। इस सम्मेलन के अंत में मोतीलाल नेहरु की अध्यक्षता में एक समिति गठित की गई।
  • इस समिति ने 10 अगस्त, 1928 को लखनऊ में हुए एक सर्वदलीय सम्मेलन में अपने, संविधान का प्रारुप पेश किया, जिसे नेहरु रिपोर्ट के नाम से जाना जाता है।
  • रिपोर्ट में भारत को डोमेनियन राज्य का दर्जा दिए जाने की मांग पर बहुमत था लेकिन राष्ट्रवादियों के एक वर्ग को इस पर आपत्ति थी। वह डोमेनियन राज्य के स्थान पर पूर्ण स्वतंत्रता का समर्थन कर रहे थे।
  • लखनऊ में डाक्टर अंसारी की अध्यक्षता में पुनः सर्वदलीय सम्मेलन हुआ, जिसमें ‘नेहरु रिपोर्ट’ को स्वीकार कर लिया गया।
सविनय अवज्ञा आंदोलन
  • फ़रवरी 1930 में साबरमती आश्रम में कांग्रेस कार्यकारिणी की बैठक में सविनय अवज्ञा आंदोलन चलाने की संपूर्ण शक्ति महात्मा गांधी के हाथ में सौंप दी गई।
  • गांधीजी ने 31 जनवरी, 1930 को लार्ड इरविन के समक्ष अंतिम चेतावनी के रुप में अपनी 11 सूत्री मांग रखी, जिसे अस्वीकार किए जाने पर सविनय अवज्ञा आंदोलन प्रारंभ करने की चेतावनी दी।
  • लॉर्ड इरविन द्वारा 11 सूत्री मांगो को अस्वीकार कर दिए जाने के बाद गांधी जी के समक्ष आंदोलन शुरु करने के अतिरिक्त और कोई चारा नहीं था।
  • गांधी जी ने 12 मार्च, 1930 को अपने चुने हुए 78 स्वयं सेवको के साथ दांडी के लिए यात्रा शुरु की। 24 दिनो में दांडी पहुंचकर महात्मा गांधी ने 6 अप्रैल को नमक कानून का उल्लंघन किया।
  • बंगाल में मानसून के आगमन की वजह से नमक बनाना कठिन था, अतः वहां यह आंदोलन चौकीदारी विरोधी तथा यूनियन बोर्ड विरोधी आंदोलन के रुप में चलाया गया।
  • महाराष्ट्रकर्नाटक तथा मध्य प्रांत में जंगल कानूनो तथा असम में कनिंघम सर्कुलर, जिसके अंतर्गत छात्रों तथा उनके परिजनो को चारित्रिक प्रमाणपत्र प्रस्तुत करने होते थे, का विरोध प्रारंभ हुआ।

निर्ममता पूर्वक दमन के बाद भी यहाँ आंदोलन की तीव्र गति को देख कर लार्ड इरविन ने महात्मा गांधी से समझौते का प्रयास किया। सरकार द्वारा यह आश्वासन दिए जाने पर कि हानि उठाने वालो को हर्जाना मिलेगा। 5 मार्च, 1931 को गांधी इरविन समझौते के बाद आंदोलन वापस ले लिया गया।

  • 12 नवंबर 1930 को पहला गोलमेज सम्मेलन आयोजित किया गया था।
  • 5 मार्च 1931 को गांधी – इरविन समझौते पर हस्ताक्षर।
  • 23 मार्च 1931 को भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव का ट्रायल।
  • 29 मार्च 1931, आईएनसी का कराची अधिवेशन, वल्लभ भाई पटेल ने अध्यक्षता की। इस अधिवेशन में पहली बार मौलिक अधिकारों और आर्थिक नीति का संकल्प पारित किया गया।
  • 7 सितंबर 1931 को दूसरा गोलमेज सम्मेलन हुआ जिसमें कांग्रेस की तरफ से गांधी जी ने हिस्सा लिया।
  • 16 अगस्त 1932 को सांप्रदायिक पंचाट की घोषणा।
  • 26 सितंबर 1932, पूना पैक्ट पर हस्ताक्षर किए गए।
  • नवंबर 1932 में तीसरा गोलमेज सम्मेलन आयोजित किया गया था।
गाँधी इरविन समझौता
  • 5 मार्च 1931 को गाँधी और इरविन के मध्य एक समझौता हुआ, जिसे गांधी-इरविन समझौता के नाम से जाना जाता है।
  • इस समझौता के तहत लार्ड इरविन ने निम्न आश्वासन दिया –
  • सभी राजनीतिक बंदियो को रिहा किया जाएगा।
  • आपातकालीन अध्यादेशों को वापस ले लिया जाएगा।
  • आंदोलन के दोरान जब्त की गई संपत्ति उनके स्वामियों को वापस कर दी जाएगी तथा जिनकी संपत्ति नष्ट हो गई हो, उन्हें हर्जाना दिया जाएगा।
  • समुद्र तट के निकट रहने वाले लोगो को अपने इस्तेमाल के लिए बिना कोई कर दिए नमक एकत्र करने तथा बनाने दिया जाएगा।
  • सरकार मादक द्रव्यो तथा विदेशी वस्तुओं की दुकानो पर शांतिपूर्ण धरना देने वालो को गिरफ्तार नहीं करेगी।
  • जिन सरकारी कर्मचारियो ने आंदोलन के दौरान नौकरी से त्यागपत्र दिया था, उन्हें नौकरी में वापस लेने में सरकार उदार नीति अपनायेगी।
पूना समझौता (1932 ई.)
  • 16 अगस्त 1932 को ब्रिटिश प्रधानमंत्री रैमसे मैकडोनाल्ड ने साम्र्पदायिक पंचाट की घोषणा की जिसमें दलितो सहित 11 समुदायों को पृथक निर्वाचक मंडल प्रदान किया गया।
  • इसके तहत मुसलमान केवल मुसलमानो द्वारा, सिख केवल सिक्खों द्वारा तथा अन्य अल्पसंख्यक समुदाय केवल अपने समुदाय द्वारा चुने जा सकते थे।
  • दलितों के लिए की गई पृथक निर्वाचक मंडल की व्यवस्था का गांधीजी ने विरोध किया। गांधीजी, जो उस समय यरवदा जेल मे बंदी थे, ने इसे भारतीय एकता तथा राष्ट्रवाद पर चोट की संज्ञा दी। उन्होंने इस निर्णय को वापस ना लिए जाने की स्थिति मे 20 सितंबर, 1932 को आमरण अनशन प्रारंभ कर दिया। 26 सितंबर 1932 को राजेंद्र प्रसाद व मदन मोहन मालवीय के प्रयासों से गांधी जी और अंबेडकर के मध्य पूना समझौता हुआ। इस समझौते के तहत् दलित वर्ग के लिए एक पृथक निर्वाचक मंडल की व्यवस्था वापस ले ली गयी, लेकिन दलित वर्ग के लिए आरक्षित सीटों की संख्या प्रांतीय विधानमंडलों में 71 से बढ़ाकर 147 और केन्द्रीय विधायिका में कुल सीटों की 18% तक कर दिया गया।
  • पूना समझौते के सांप्रदायिक निर्णय द्वारा हिंदुओं से हरीजनो को पृथक करने के सरकारी प्रयास को विफल कर दिया गया।
1937 का चुनाव और प्रांतो में कांग्रेसी मंत्रिमंडल
  • 1935 मेंभारत सरकार अधिनियम को अखिल भारतीय संघ, प्रांतीय स्वायत्तता और केंद्र में द्वैध शासन पद्धित होनी चाहिए, को बनाने के लिए पारित किया गया था।
  • भारत सरकार अधिनियम, 1935 के प्रावधानो के अनुकूल सरकार ने प्रांतो में फ़रवरी 1937 में चुनाव कराने की घोषणा की।
  • फ़रवरी 1937 में संपन्न हुए चुनावों में यह बात निश्चित रुप से सिद्ध हो गई की जनता का एक बड़ा भाग कांग्रेस के साथ है।
  • 1937 के चुनावों में कांग्रेस ने अधिकांश प्रांतो में भारी जीत हासिल की। 11 में से 7 प्रांतो में कांग्रेस का प्रदर्शन बहुत अच्छा रहा।
  • जुलाई 1937 में 11 में से 7 प्रांतो में कांग्रेसी मंत्रिमंडल गठित हुए। बाद में कांग्रेस ने दो प्रांतोँ मेंसाझी सरकारें भी बनाई। केवल बंगाल और पंजाब में गैर कांग्रेसी मंत्रिमंडल बन सके।
  • 3 सितंबर, 1939 को वायसराय लिनलिथगो ने प्रांतीय मंत्रिमंडलों या राष्ट्रीय भारतीय कांग्रेस के नेताओं की सलाह लिए बिना एकतरफा तौर पर भारत को जर्मनी के साथ ब्रिटेन के युद्ध में झोंक दिया।
  • इस एकतरफा निर्णय के विरोध में 29-30 अक्टूबर, 1939 को प्रांतो के कांग्रेस मंत्रिमंडल ने अपने 28 महीने के शासन के पश्चात त्याग पत्र दे दिया।
अगस्त प्रस्ताव (1940 ई.)
  • युद्ध में भारतीयों का सहयोग प्राप्त करने के उद्देश्य से 8 अगस्त, 1940 को वायसरॉय लिनलिथगो ने एक घोषणा की, जिसे अगस्त प्रस्ताव के नाम से जाना जाता है
  • वायसराय के प्रस्ताव में निन्नलिखित बातें कही गई थी –
  • वायसरॉय की कार्यकारिणी परिषद का विस्तार किया जाएगा;
  • वायसरॉय द्वारा भारतीय राज्यों, भारत के राष्ट्रीय जीवन से संबंधित अन्य हितों के प्रतिनिधियों की एकजुट परामर्श समिति की स्थापना की जाएगी;
  • भारत के लिए नए संविधान का निर्माण मुख्यत: भारतीयों का उत्तरदायित्व होगा। युद्धोपरांत भारत के लिए नवीन संविधान निर्माण हेतु राष्ट्रीय जीवन से सम्बद्ध व्यक्तियों के एक निकाय का गठन किया जाएगा;
  • युद्ध समाप्ति के एक वर्ष के भीतर औपनिवेशिक स्वराज्य की स्थापना करना ब्रिटिश सरकार की घोषित नीति है;
  • अल्पसंख्यको को पूर्ण महत्व प्रदान करने का आश्वासन दिया गया।
  • यद्यपि यह घोषणा एक महत्वपूर्ण प्रगति थी, क्योंकि इसमें कहा गया था कि, भारत का संविधान बनाना भारतीयों का अपना अधिकार है, और इसमे स्पष्ट प्रादेशिक स्वशासन की प्रतिज्ञा की गई थी।
क्रिप्स मिशन 1942 ई.
  • 1941 में सुदूर पूर्व में जापान द्वारा ब्रिटेन की पराजय तथा मार्च 1942 में जापान की भारतीय सीमा पर दस्तक, इन दो घटनाओं से ब्रिटिश युद्धकालीन मंत्रिमंडल के रुख में नरमी आ गई।
  • भारत में संवैधानिक प्रतिरोध को समाप्त करने के उद्देश्य से ब्रिटिश हाऊस ऑफ कॉमंस के नेता तथा युद्धकालीन मंत्रिमंडल के एक सदस्य स्टेफर्ड क्रिप्स को एक घोषणा के मशविरा के साथ भारत भेजा गया।
  • मार्च 1948 में यह मशविरा कार्यकारी परिषद् तथा भारतीय राजनेताओं के सम्मुख रखा गया।
  • लगभग सभी पार्टियों तथा वर्गो के असंतोष को देख यह घोषणा केवल सभी भारतीयों की युद्ध मे सहायता प्राप्त करने का एक उपाय मात्र था। इसमे भारतीय समस्या के समाधान के लिए कोई विशेष प्रयास नहीं किया गया था।
भारत छोड़ो आंदोलन 1942
  • क्रिप्स मिशन की असफलता के साथ 1942 में भारतीय नेताओं द्वारा भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत हुई और भारत छोड़ों का संकल्प गांधी जी ने तैयार किया। गांधी जी ने करो या मरो का नारा दिया था।
  • 14 जुलाई, 1942 को कांग्रेस कार्यकारिणी ने वर्धा में एक प्रस्ताव पारित किया, जिसमें अंग्रेजो को भारत से चले जाने के लिए कहा गया था, तथा यह कहा गया कि यदि यह अपील स्वीकृत नहीं होती है तो कांग्रेस एक सविनय अवज्ञा आंदोलन चलाने के लिए बाध्य हो जाएगी।
  • पूरे देश मे कारखानो, स्कूल और कॉलेजों मे हड़तालें और कामबंदी हुई, जिन पर लाठीचार्ज और गोलियां चलाई गयीं।
  • बार बार की गोलीबारी और दमन से क्रुद्ध होकर जनता ने अनेक जगहो पर हिंसक कार्यवाही भी की। जनता ने पुलिस थानों, डाकखानों, रेलवे स्टेशनों आदि ब्रिटिश शासन के तमाम प्रतीको पर हमले किए।
  • उत्तरी और पश्चिमी बिहार और पूर्वी संयुक्त प्रांत, बंगाल में मिदनापुर, महाराष्ट्र, कर्नाटक तथा उड़ीसा के कुछ हिस्से आन्दोलन के प्रमुख केंद्र रहे, जिसमे बलिया, तामलुक, सतारा आदि स्थानों पर समानांतर सरकारों की स्थापना की गई, जो प्रायः दीर्घजीवी सिद्ध नहीं हुई।
सुभाष चंद्र बोस और आजाद हिंद फौज
  • रास बिहारी बोस ने जापान में इंडियन इंडिपेंडेंस लीग की स्थापना की। इसके बाद 11 सितंबर 1941 को उन्होंने इंडियन नेशनल आर्मी की स्थापना की।
  • 18 फरवरी, 1942 को मोहन सिंह इस सेना के जनरल बनाये गए। जब सुभाष चंद्र बोस अप्रैल, 1943 मेँ पहुंचे तो जुलाई, 1943 को राज बिहारी बोस ने इंडियन इंडिपेंडेंस लीग और आजाद हिंद फौज की अध्यक्षता से इस्तीफा दे दिया और सुभाष चंद्र बोस को इनका दायित्व सौंप दिया गया।
  • सुभाष चंद्र बोस सिंगापुर लौट गए वहां उन्होंने 21 अक्टूबर 1943 को स्वतंत्र भारत की अस्थाई सरकार(आजाद हिंद सरकार) की स्थापना की तथा रंगून और सिंगापुर को मुख्यालय बनाया गया। बोस इस सरकार के राष्ट्रपतिप्रधानमंत्री तथा सेनाध्यक्ष तीनों थे। इसमें एक महिला रेजिमेंट भी थी जिसका नाम रानी झांसी रखा गया था।
  • 1945 में, द्वितीय विश्व युद्ध समाप्त हुआ।
  • 1945 में जापान की युद्ध में पराजय ने भारत को आजाद कराने की आशाओं पर पानी फेर दिया। फ़ौज के अधिकांश सेनिक बंदी बना लिया गए। जब इन सैनिकों पर मुकदमे चलने लगे तो इन्हें जनता का भारी समर्थन मिला।
  • जवाहरलाल नेहरु, तेज बहादुर सप्रू तथा भूलाभाई देसाई ने इन सैनिकों की पैरवी की। जनदबाव में सरकार को झुकना पड़ा।
  • सुभाष चंद्र बोस ने दिल्ली चलो का विख्यात नारा तथा अपने अनुयायियो को जय हिंद का मूल मंत्र दिया।
  • द्वितीय विश्व युद्धोत्तर भारत में लोगो की चेतना और राष्ट्रीय भावना का उद्वेलन करने मे आजाद हिंद फौज की महत्वपूर्ण भूमिका रही।

विदेशों में भारतीय संगठन

संगठनसंस्थापकवर्षदेश
इण्डिया हाउसश्यामजी कृष्ण वर्मा1904लंदन (इंग्लैण्ड)
अभिनव भारतवी.डी.सावरकर1906लंदन (इंग्लैण्ड)
ग़दर पार्टीलाला हरदयाल1907सेन फ्रांसिस्को (अमेरिका)
इंडियन इंडिपेंडेंस लीगलाला हरदयाल1914बर्लिन (जर्मनी)
इंडियन इंडिपेंडेंस लीग एंड गवर्नमेंटराजा महेंद्र प्रताप1915काबुल (अफगानिस्तान)
इंडियन इंडिपेंडेंस लीगरास बिहारी बोस1942टोकियो (जापान)
शिमला समझौता तथा वेवेल योजना
  • अक्टूबर 1940 में लॉर्ड लिनलिथगो के स्थान पर लार्ड वेवेल भारत के वायसराय तथा गवर्नर बने। उन्होंने भारतीय संवैधानिक गतिरोध को समाप्त करने के उद्देश्य से एक विस्तृत योजना बनाई, जो उनके नाम पर वेवेल योजना के नाम से जानी जाती है। वेवेल योजना की घोषणा 14 जून, 1945 को की गई। योजना के मुख्य प्रावधान निंलिखित थे।
  • ब्रिटिश शासन राजनीतिक गतिरोध को समाप्त करके भारत को स्वशासन के लक्ष्य की ओर अग्रसर करना चाहता है।
  • वायसराय कार्यकारिणी परिषद का गठन इस तरह किया जाए कि, वायसराय तथा प्रधान सेनापति को छोडकर शेष सदस्य भारतीय हों।
  • कार्यकारी परिषद में हिंदू तथा मुसलमान सदस्यो की संख्या बराबर होगी।
  • विदेश विभाग भारतीय सदस्यो के हाथ में होगा।
  • एक ब्रिटिश उच्चायुक्त की नियुक्ति की जाएगी, जो भारतीय वाणिज्य तथा दूसरे हितो की देखभाल करेगा।
  • नई कार्यकारिणी परिषद 1935 के अधिनियम के तहत कार्य करेगी।
  • भारत सचिव शक्ति को सीमित किया जाएगा, जबकी वायसराय के वीटो के अधिकार को बरकरार रखा जाएगा।
कैबिनेट मिशन योजना 1946
  • वेवेल योजना और शिमला शिमला समझौता दोनो के विफल हो जाने के पश्चात भारत में राजनीतिक गतिरोध को दूर करने के लिए कैबिनेट मिशन को भारत भेजा गया।
  • इस शिष्टमंडल में तीन सदस्य थे – पैथिक लॉरेंससर स्टेफोर्ड क्रिप्स और ए. वी. अलेक्जेंडर। यह शिष्टमंडल 24 मार्च, 1946 को दिल्ली पहुंचा।
  • भारत के विभिन्न राजनीतिक दलो से लंबी बातचीत के बाद एक त्रिपक्षीय सम्मेलन, सरकार, कांग्रेस तथा मुस्लिम लीग के बीच शिमला में आयोजित किया गया।
  • कैबिनेट मिशन ने इस बात को स्पष्ट कर दिया था कि उसका उद्देश्य संविधान का निर्धारण करना नहीं है, बल्कि उस तंत्र को सक्रिय बनाना है, जिसके द्वारा भारतीयों के लिए संविधान तय किया जा सके।
  • कैबिनेट मिशन योजना का महत्व इस बात में नहीं था कि इसमें भारतीय एकता को सुरक्षित रखा गया था तथा पाकिस्तान की मांग को स्पष्ट रुप से अमान्य कर दिया गया था।
अंतरिम सरकार का गठन (1946 ई.)
  • जवाहरलाल नेहरु के नेतृत्व में उनके 11 सहयोगियो के साथ 2 सितंबर 1946 को अंतरिम सरकार का गठन किया गया। इसमें मुस्लिम लीग के सदस्य शामिल नहीं हुए।
  • मुस्लिम लीग ने कांग्रेस लीग की समानता पर बल दिया। ऐसा न करने पर उसने कैबिनेट मिशन योजना को ठुकरा दिया।
  • आरंभ में मुस्लिम लीग सरकार में शामिल नहीं हुई थी, परन्तु वायसराय के प्रयासों से वह 26 अक्टूबर 1946 को सरकार में शामिल हुई। सरकार में उसके 5 सदस्य थे – लियाकत अली, गजनफ़र अली, चंद्रीगर, अब्दुल, खनश्तर, तथा योगेंद्र नाथ मांडल।
एटली की घोषणा
  • कांग्रेस-लीग टकराव संविधान सभा की बैठक में लीग के भाग न लेने तथा उसके द्वारा चलाए जा रहे प्रत्यक्ष कार्यवाही दिवस के परिणाम स्वरुप भारत में दंगे विकराल रुप धारण करते जा रहे थे।
  • राजनीतिक गतिरोध को दूर करने के लिए ब्रिटेन के तत्कालीन प्रधानमंत्री एटली ने 20 फरवरी, 1947 को घोषणा की, कि ब्रिटिश सरकार जून 1947 के पूर्व सत्ता भारतीयों को सौंप देगी।
  • ब्रिटिश संसद में यद्यपि इस घोषणा की काफी आलोचना हुई परंतु अंततः स्वीकृत हो गई।
  • इसी घोषणा के साथ सत्ता का सफलतापूर्वक हस्तांतरण करने के लिए लॉर्ड माउंटबेटन को भारत भेजा गया।
माउंटबेटन योजना (जून 1947)
  • मार्च 1947 में लार्ड माउंटबेटन को भारत का वायसराय बनाकर भेजा गया।
  • लार्ड माउंटबेटन ने भारत और पाकिस्तान के बीच बंटवारे के प्रश्न पर कांग्रेस और मुस्लिम लीग के नेताओं के साथ बातचीत करके एक योजना तैयार की जिसे माउंटबेटन योजना के नाम से जाना जाता है।
  • माउंटबेटन द्वारा इस योजना की घोषणा 3 जून, 1947 को की गई, जिसमे हस्तांतरण की प्रक्रिया को सुगम बनाने तथा दोनों मुख्य संप्रदायों का समायोजन करने के लिए देश को दो भागो – भारत और पाकिस्तान में विभाजित करने का परामर्श दिया गया।
  • इस योजना के द्वारा यह निर्णय लिया गया कि 15 अगस्त, 1947 को भारत और पाकिस्तान को सत्ता का हस्तांतरण डोमिनियन स्टेटस के आधार पर कर दिया जाएगा।
  • कांग्रेस तथा मुस्लिम लीग सहित सभी दलो ने इस योजना को अपनी स्वीकृति दे दी। इसके उपरांत ब्रिटिश संसद में किस योजना को कार्य रुप देने के लिए एक विधेयक पारित किया गया।
  • सत्ता का हस्तांतरण भारत स्वतंत्रता अधिनियम, 1947 
  • माउंटबेटन की योजना के आधार पर ब्रिटिश संसद में एक विधेयक 4 जुलाई, 1947 को प्रस्तुत किया गया।
  • यह विधेयक 18 जुलाई 1947 को भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम के रुप में पारित हुआ।

इसकी प्रमुख बाते निम्नलिखित थी-

  • 15 अगस्त 1947 को दो स्वतंत्र अधिराज्यों भारत तथा पाकिस्तान की स्थापना की जाएगी।
  • नए संविधान के बनने और लागू होने तक वर्तमान संविधान सभायें ही विधानसभाओं के रुप में 1935 के एक्ट के तहत ही कार्य करेंगी।
  • ब्रिटिश क्राउन का भारतीय रियासतों पर प्रभुत्व समाप्त हो जाएगा।
  • भारत सचिव का पद समाप्त कर उसके स्थान पर एक राष्ट्रमंडलीय मामलो के सचिव की नियुक्ति करने की व्यवस्था की गई।
  • दोनों राज्यो के लिए राज्य मंत्रिमंडल के सुझाव पर पृथक गवर्नर जनरल की नियुक्ति की जाएगी।
  • इस अधिनियम द्वारा 15 अगस्त 1947 को भारत को दो स्वतंत्रता डोमिनियनों – भारत तथा पाकिस्तान में बांट दिया गया। पाकिस्तान के प्रथम गवर्नर जनरल मोहम्मद अली जिन्ना बने तथा भारत के लिए माउंटबेटन को ही गवर्नर जनरल बने रहने को कहा गया।
तथ्य
  • ग्रैंड ओल्ड मेन ऑफ इंडिया के नाम से प्रसिद्ध दादा भाई नौरोजी तीन बार 1886 ई., 1893 ई., 1906 ई. में कांग्रेस के अध्यक्ष बने थे।
  • भारतीय क्रांति की माँ (मदर ऑफ इंडियन रेवोलुशन) के नाम से मैडम कामाजी प्रसिद्ध हैं। बाल गंगाधर तिलक को फादर ऑफ इंडियन अनरेस्ट (भारतीय अशांति के पितावैलेंटाइन शिरोल ने कहा।
  • 1932 के सांप्रदायिक पंचाट (कम्युनल अवार्ड) की घोषणा प्रधानमंत्री रैमसे मैकडोनाल्ड ने की थी।
  • व्यक्तिगत सत्याग्रह आन्दोलन के दौरान सबसे पहले गिरफ्तार होने वाले सत्याग्रही विनोबा भावे थे।
  • जयप्रकाश नारायण, डॉ राम मनोहर लोहिया एवं श्रीमती अरुणा आसफ़ अली ने भूमिगत होकर भारत छोड़ो आंदोलन का संचालन किया था।
  • 4 मार्च 1931 के गांधी इरविन समझौते में महत्वपूर्ण भूमिका तेज बहादुर सप्रू, डॉ जयंकर व भोपाल के नवाब ने अदा की।

भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन - 1857 के विद्रोह से लेकर 1947 के भारत छोड़ो आंदोलन

भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन

यह देखा गया है कि भारत में स्वतंत्रता संघर्ष कई राजनीतिक, सामाजिक– सांस्कृतिक और आर्थिक कारकों के श्रृंखला का मेल था जिसने राष्ट्रवाद को बढ़ाने का काम किया।

28 दिसंबर 1885 को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (आईएनसी) का गठन गोकुलदास तेजपाल संस्कृत स्कूल, बॉम्बे में किया गया। इसकी अध्यक्षता डब्ल्यू.सी. बैनर्जी ने की थी और इसमें 72 प्रतिनिधियों ने भाग लिया था। ए.ओ. ह्यूम ने आईएनसी के गठन में अहम भूमिका निभाई थी और इनका उद्देश्य था ब्रिटिश सरकार को सेफ्टी वॉल्व प्रदान करना। 

  • ए.ओ. ह्यूम ने आईएनसी के पहले महासचिव के तौर पर काम किया।
  • कांग्रेस का मुख्य उद्देश्य भारतीय युवाओं को राजनीतिक आंदोलन में प्रशिक्षित करना और देश में जनता की राय बनाना था। इसके लिए इन्होंने वार्षिक सत्र पद्धति को अपनाया जहां वे समस्याओं पर चर्चा करते थे और संकल्प पारित करते थे।
  • भारतीय राष्ट्रवाद का पहला या आरंभिक चरण मध्यम दर्जे (नरमदल) का चरण (1885-1905) भी कहलाता है। नरमदल के नेता थे, डब्ल्यू.सी. बनर्जी, गोपाल कृष्ण गोखले, आर.सी. दत्ता, फीरोजशाह मेहता, जॉर्ज यूल आदि
  • नरमपंथी नेताओं को ब्रिटिश सरकार में पूर्ण विश्वास था और उन्होंने पीपीपी मार्ग यानि विरोध, प्रार्थना और याचिका, को अपनाया था। 
  • काम के नरमपंथी तरीकों से मोहभंग होने के कारण, 1892 के बाद कांग्रेस में चरमपंथ विकसित होने लगा। चरमपंथी नेता थे– लाला लाजपत राय, बाल गंगाधर तिलक, बिपिनचंद्र पाल और अरबिंदो घोष। पीपीपी मार्ग के बजाए इन्होंने आत्म– निर्भरता, रचनात्मक कार्य और स्वदेशी पर जोर दिया।
  • प्रशासनिक सुविधा के लिए लॉर्ड कर्जन द्वारा बंगाल विभाजन (1905) की घोषणा के बाद, 1905 में स्वदेशी और बहिष्कार संकल्प पारित किया गया था।
  1. 1905 – बनारस में कांग्रेस सत्र। गोपाल कृष्ण गोखले ने अध्यक्षता की।
  2. 1906– कलकत्ता में कांग्रेस सत्र। दादाभाई नैरोजी ने अध्यक्षता की।
  3. 1907– ताप्ती नदी के किनारे सूरत में कांग्रेस का सत्र। फिरोजशाह मेहता ने अध्यक्षता की जिसमें नरमपंथी और चरमपंथियों के बीच मतभेदों की वजह से कांग्रेस में विभाजन हो गया।
    • आगा खान III और मोहसिन मुल्क द्वारा 1906 में मुस्लिम लीग का गठन किया गया।
    • 1909 के मॉर्ले– मिंटो सुधार अधिनियम द्वारा अलग निर्वाचन मंडल प्रस्तुत किया गया था।
    • लाला हरदयाल ने 1913 में गदर आंदोलन शुरु किया था और कोटलैंड में 1 नवंबर 1913 को गदर पार्टी की स्थापना की थी। इसका मुख्यालय सैन फ्रांसिस्को के युगांतर आश्रम में था और गदर पत्रिका का प्रकाशन शुरु किया गया था।
    • कोमागाटा मारू घटना सितंबर 1914 में हुई थी और इसके लिए भारतीयों ने शोर कमिटि नाम से एक समिति बनाई थी जो यात्रियों की कानूनी लड़ाई लड़ती थी।
    • 1914 में पहला विश्व युद्ध आरंभ हुआ था।
    • अप्रैल 1916 में तिलक ने होम रूल आंदोलन की शुरुआत की थी। इसका मुख्यालय पूना में था और इसमें स्वराज की मांग की गई थी।
    • सितंबर 1916 में एनीबेसेंट ने होम रूल आंदोलन शुरु किया और इसका मुख्यालय मद्रास के करीब अडियार में था।
    • वर्ष 1916 में हुए कांग्रेस के लखनउ अधिवेशन की अध्यक्षता अम्बिका चरण मौजूमदार (नरमपंथी नेता) ने की थी जहां चरमपंथी और नरमपंथी दोनों प्रकार के नेता एक जुट हुए थे।
    • भारत सरकार अधिनियम 1919 या मोंटागू– चेम्सफोर्ड रिफॉर्म एक्ट को भारत में जिम्मेदार सरकार की स्थापना के लिए पारित किया गया था।
    • 9 जनवरी 1915 को गांधी जी 46 वर्ष की उम्र में दक्षिण अफ्रीका से भारत वापस आए थे।
    • 1916 में गांधी जी ने सत्य और अहिंसा के विचार के प्रचार के लिए अहमदाबाद (गुजरात) में साबरमती आश्रम की स्थापना की।
    • चंपारण सत्याग्रह– 1917
    • खेड़ा सत्याग्रह– 1917
    • अहमदाबाद मिल हड़ताल– 1918
  • रॉलेक्ट एक्ट सत्याग्रह– फरवरी, 1919
  • गांधी जी ने फरवरी, 1919 में सत्याग्रह सभा की स्थापना की। इस आंदोलन में छात्र, मध्यम वर्ग, मजदूर और पूंजीपतियों ने हिस्सा लिया और संगठन के तौर पर कांग्रेस कहीं नहीं थी। यह गांधी जी का पहला जन आंदोलन था।
  • जलियांवाला बाग नरसंहार – 13 अप्रैल 1919। 13 अप्रैल 1919 को लोग अमृतसर के जलियांवाला बाग में सैफुद्दीन किचलू और सत्यपाल की गिरफ्तारी का विरोध करने के लिए इक्ट्ठा हुए थे।
  • 1 अगस्त 1920 को खिलाफत समिति ने तीन मुद्दों– पंजाब में हुई बेइंसाफी, खिलाफत का मुद्दा और स्वराज की मांग, पर असहयोग आंदोलन की शुरुआत की।
  • इसके बाद 1920 में असहयोग – आंदोलन की शुरुआत हुई।
  • अक्टूबर 1920 में एन.एम. जोशी, राय चौधरी ने बॉम्बे में अखिल भारतीय व्यापार संघ कांग्रेस की स्थापना की। अध्यक्षता लाला लाजपत राय ने की थी।
  • अकाली आंदोलन 1920 में शुरु हुआ था।
  • सी.आर दास और मोतिलाल नेहरू ने कांग्रेस खिलाफत स्वराज पार्टी का गठन किया था। यह कांग्रेस में दूसरे विभाजन के नाम से भी जाना जाता है।
  • वर्ष 1927 में, श्रमिक और किसान पार्टी (डब्ल्यूपीपी) का गठन एस.एस. मिराजकर, के. एन. जुगलेकर और एस. वी. घाटे ने बॉम्बे में किया था।
  • वर्ष 1924 में, एच.आर.ए. (हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन) का कानपुर में गठन हुआ था। सी.एस आजाद, सचिन सान्याल और रामप्रसाद बिस्मिल इसके सदस्य थे।
  • वर्ष 1929 में, एचएसआरए ( हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन) का फिरोजशाह कोटला दिल्ली में गठन हुआ। भगत सिंह एचएसआरए में शामिल हुए।
  • 9 अगस्त 1925 को, काकोरी रेल डकैती हुई, इस षड़यंत्र में राम प्रसाद बिस्मिल, राजेन्द्र लाहिड़ी, रौशन लाल और अशफाकुल्लाह खान को फांसी की सजा दी गई।
  • 23 मार्च 1931 को भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को लाहौर षड़यंत्र मामले में फांसी की सजा दी गई।
  • 8 नवंबर 1927 को स्टेनली बाल्डविन के तहत ब्रिटिश कंजर्वेटिव सरकार  द्वारा साइमन कमिशन बनाया गया था।
    कमिशन का गठन 1919 के सुधार अधिनियम के बाद देश में सरकार की कार्य प्रणाली की जांच करने के लिए किया गया था।
    • नेहरू रिपोर्ट– 1928, राष्ट्र का दर्जा, सार्वभौमिक व्यस्क मताधिकार आदि के लिए।
    • जिन्ना का 14 सूत्री कार्यक्रम– 31 मार्च 1929
    • आईएनसी का 1929 में हुआ लाहौर अधिवेशन, अध्यक्षता जवाहरलाल नेहरू ने की। इसमें पूर्ण स्वराज का संकल्प कांग्रेस द्वारा पारित किया गया और गांधी जी के नेतृत्व में सविनय अवज्ञा आंदोलन करने का फैसला किया गया।
    • 26 जनवरी 1930 को पहली बार स्वतंत्रता दिवस मनाया गया। 
    • दांडी मार्च के साथ सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरु किया गया था। 12 मार्च से  6 अप्रैल 1930 तक गांधी जी ने अपने 78 अनुयायियों के साथ साबरमती आश्रम से दांडी तक की यात्रा की और  6 अप्रैल 1930 को नमक बनाकर नमक कानून को तोड़ा।
    • 12 नवंबर 1930 को पहला गोलमेज सम्मेलन आयोजित किया गया था।
    • 5 मार्च 1931 को गांधी – इरविन समझौते पर हस्ताक्षर।
  • 23 मार्च 1931 को भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव का ट्रायल।
  • 29 मार्च 1931, आईएनसी का कराची अधिवेशन, वल्लभ भाई पटेल ने अध्यक्षता की। इस अधिवेशन में पहली बार मौलिक अधिकारों और आर्थिक नीति का संकल्प पारित किया गया।
  • 7 सितंबर 1931 को दूसरा गोलमेज सम्मेलन हुआ जिसमें कांग्रेस की तरफ से गांधी जी ने हिस्सा लिया।
  • 16 अगस्त 1932 को सांप्रदायिक या रामसे मैकडोनाल्ड पुरस्कार की घोषणा हुई।
  • 26 सितंबर 1932, पूना पैक्ट पर हस्ताक्षर किए गए।
  • नवंबर 1932 में तीसरा गोलमेज सम्मेलन आयोजित किया गया था।
  • 1935 में, भारत सरकार अधिनियम को अखिल भारतीय संघ, प्रांतीय स्वायत्तता और केंद्र में  द्वैध शासन पद्धित होनी चाहिए, को बनाने के लिए पारित किया गया था।
भारत छोड़ो आंदोलन की ओर महत्वपूर्ण कांग्रेस सत्रः
    1. 1936 – लखनउ (उ.प्र.)– अध्यक्षता – जे.एल.नेहरू
    2. 1937 – फैजपुर (महाराष्ट्र)– अध्यक्षता– जे.एल.नेहरू (गांव में आयोजित पहला अधिवेशन)
    3. 1938 –हरीपुरा (गुजरात)– एस.सी.बोस ने अध्यक्षता की
    4. 1939 –त्रिपुरी (एम.पी.)– एस.सी. बोस ने अध्यक्षता की 
  • सितंबर 1939 में द्वितीय विश्व युद्ध छिड़ा और भारत की सहमति के बिना उसका सहयोगी घोषित कर दिया गया ।
  • 1939 में एस. सी. बोस ने फॉर्वाड ब्लॉक की स्थापना की। यह एक वाम पार्टी (left party) थी।
  • 10 अगस्त 1940– द्वितीय विश्व युद्ध में भारतीयों के समर्थन पाने के लिए लॉर्ड लिनलिथगो वायसराय ने अगस्त प्रस्ताव की घोषणा की थी।
  • 11 मार्च 1942 को प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल ने भारतीयों के संवैधानिक गतिरोध और समस्याओं का समाधान ढूंढ़ने के लिए सर स्टाफोर्ड क्रिप्स की अध्यक्षता में मिशन भेजने की घोषणा की।
  • क्रिप्स मिशन की असफलता के साथ 1942 में भारतीय नेताओं द्वारा भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत हुई और भारत छोड़ों का संकल्प गांधी जी ने तैयार किया। गांधी जी ने करो या मरो का नारा दिया था।
  • 1942 में कैप्टन मोहन सिंह और निरंजन गिल द्वारा सिंगापुर में इंडियन नेशनल आर्मी की स्थापना की गई। एस.सी. बोस ने सिंगापुर और रंगूनन के दूसरे मुख्यालय का पदभार संभाला।
  • 21 अक्टूबर 1943 को– एस.सी. बोस के अधीन सिंगापुर में आजाद हिंद सरकार बनी। इसमें एक महिला रेजिमेंट भी थी जिसका नाम रानी झांसी रखा गया था।
  • 1945 में, द्वितीय विश्व युद्ध समाप्त हुआ।
  • 1945 में, राजनीतिक गतिरोध को दूर करने के लिए लॉर्ड वावेल द्वारा वावेल योजना या शिमला सम्मेलन का प्रस्ताव किया गया था।
  • 1946 में, पीएम क्लिमेंट एट्टली द्वारा कैबिनेट मिशन प्लान की घोषणा।
  • 2 सितंबर 1946 को, जे.एल. नेहरू के नेतृत्व में अंतरिम सरकार का गठन हुआ।
  • मार्च 1947 – लॉर्ड माउंटबेटन को सत्ता के हस्तांतरण के लिए रास्ता ढूंढ़ने के उद्देश्य के साथ भारत भेजा गया। इसे बालकन योजना के नाम से भी जाना जाता है।
  • 3 जून को इंडिपेंडेस ऑफ इंडिया एक्ट 1947 पारित किया गया जिसके द्वारा सत्ता को दो प्रभुत्व राष्ट्रों – भारत और पाकिस्तान, को सौंपा गया।

भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन 1885 से 1947 तक

भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन भारत की आजादी से संबंधित एक जन आंदोलन था। जिसका अंतिम उद्देश्य भारत में ब्रिटिश शासन का अंत करना था। यद्यपि सन 1857 के विद्रोह को ‘स्वतन्त्रता का प्रथम संग्राम’ कहा जाता है, किंतु भारतीय स्वाधीनता आंदोलन उससे भी बहुत पहले शुरू हो गया था। बताना चाहेंगे यह आंदोलन सन 1947 तक ही नहीं बल्कि उसके बाद गोवा की मुक्ति तक चला था। 
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना28 दिसंबर 1885
स्वदेशी और बहिष्कार संकल्प1905
मुस्लिम लीग की स्थापना1906
गदर आंदोलन1913
होम रूल मूवमेंटअप्रैल 1916
चंपारण सत्याग्रह1917
खेड़ा सत्याग्रह1917
अहमदाबाद मिल स्ट्राइक1918
रॉलेट एक्ट सत्याग्रह फरवरी1919
असहयोग आंदोलन1920
सविनय अवज्ञा आंदोलन1930
भारत छोड़ो आंदोलन1942
कांग्रेस के गठन से पूर्व की राजनीतिक संस्थायें

कांग्रेस के गठन से पूर्व की राजनीतिक संस्थाओं की सूची नीचे दी गई है :

  • 1836 बंगभाषा प्रकाशक सभा
  • 1838 जमींदारी एसोसिएशन
  • 1843 बंगाल ब्रिटिश इंडिया सोसायटी
  • 1851 ब्रिटिश इंडिया एसोसिएशन
  • 1866 ईस्ट इंडिया एसोसिएशन
  • 1867 पूना सार्वजनिक सभा
  • 1875 इण्डियन लीग
  • 1876 कलकत्ता भारतीय एसोसिएशन
  • 1884 मद्रास महाजन सभा
  • 1885 बाम्बे प्रेसीडेंसी एसोसिएशन
भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन 1885 से 1947
  • भारत की स्वतंत्रता के लिए पूरी लड़ाई के दौरान यहां महत्वपूर्ण घटनाएं हैं:
1857 का विद्रोह
  • 1857 का विद्रोह भारतीय स्वतंत्रता के लिए पहला युद्ध था। इसकी शुरुआत 10 मई, 1857 को मेरठ में हुई थी। यह ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ पहला बड़े पैमाने पर विद्रोह था। विद्रोह असफल रहा लेकिन इसने जनता पर एक बड़ा प्रभाव डाला और भारत में पूरे स्वतंत्रता आंदोलन को उभारा। मंगल पांडे क्रांति के प्रमुख हिस्सों में से एक थे क्योंकि उन्होंने अपने कमांडरों के खिलाफ विद्रोह की घोषणा की और ब्रिटिश अधिकारी पर पहली गोली चलाई।
स्वदेशी बहिष्कार आंदोलन
  • 20वीं शताब्दी की शुरुआत में, ब्रिटिशों ने राष्ट्रवाद की एकता को कमज़ोर करने के उद्देश्य से बंगाल के विभाजन की घोषणा की। प्रमुख Indian National Movement in Hindi के बीच, स्वदेशी बॉयकॉट आंदोलन वर्ष 1903 में बंगाल के विभाजन के खिलाफ एक प्रतिक्रिया के रूप में सामने आया, लेकिन जुलाई 1905 में औपचारिक रूप से घोषणा की गई और पूरी तरह से अक्टूबर 1905 से लागू हुआ। इसके दो प्रमुख चरणों में विभाजित किया गया था।
विभाजन विरोधी आंदोलन
  • सुरेन्द्रनाथ बेनर्जी, के.के. मित्रा और दादा भाई नारोजी जैसे नरमपंथियों के नेतृत्व में, इस Indian National Movement in Hindi का प्रारंभिक चरण 1903-1905 तक हुआ। विभाजन विरोधी आंदोलन सार्वजनिक बैठकों, ज्ञापन, याचिकाओं आदि के माध्यम से किया गया था।
स्वदेशी और बहिष्कार आंदोलन
  • 1905 से 1908 तक, बिपिन चंद्रा पाल, लाला लाजपत राय और अरबिंदो घोष जैसे क्रांतिकारियों द्वारा स्वदेशी और बहिष्कार आंदोलन शुरू किया गया था। आम जनता को विदेशी वस्तुओं के उपयोग से परहेज करने के लिए कहा गया और उन्हें भारतीय घर के सामान के साथ स्थानापन्न करने के लिए प्रेरित किया गया। भारतीय त्योहारों, गीतों, कविताओं और चित्रों जैसी प्रमुख घटनाओं का उपयोग इस Indian National Movement in Hindi को प्रचारित करने के लिए किया गया था।
होम रूल लीग मूवमेंट

आम आदमी में स्व-शासन की भावना को व्यक्त करने और प्रचारित करने के लिए, यह Indian National Movement in Hindi भारत में किया गया था क्योंकि यह आयरलैंड में एक साथ हुआ था। मुख्य रूप से, नीचे दिए गए लीगों ने समाचार पत्रों, पोस्टरों, पैम्फलेट्स आदि का उपयोग करके होम रूल लीग मूवमेंट के समूह में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

  • बाल गंगाधर तिलक लीग अप्रैल 1916 में शुरू हुई थी और महाराष्ट्र, कर्नाटक, बरार और मध्य प्रांतों में फैल गई थी।
  • एनी बेसेंट लीग सितंबर 1916 में देश के विभिन्न अन्य हिस्सों में शुरू हुई।
सत्याग्रह
  • पहला सत्याग्रह आंदोलन का नेतृत्व वर्ष 1917 में बिहार के चंपारण जिले में महात्मा गांधी ने किया था। चंपारण जिले में दसियों हज़ार भूमिहीन सर्फ़ थे। दबाए गए खेती करने वालों में से एक, पंडित राज कुमार शुक्ला ने गांधी को इस आंदोलन का नेतृत्व करने के लिए राज़ी किया। इसके कारण सत्याग्रह आंदोलन हुए।
खिलाफत असहयोग आंदोलन

असहयोग आंदोलन ब्रिटिशों के खिलाफ भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष में सबसे प्रसिद्ध और महत्वपूर्ण चरणों में से एक था। जिन प्रमुख कारणों से यह आंदोलन हुआ, वे इस प्रकार हैं।

  • खलीफा को सत्ता से हटाए जाने पर, ब्रिटिशों द्वारा मुसलमानों के आध्यात्मिक नेता ने भारत और दुनिया भर में पूरे मुस्लिम समुदाय में रोष पैदा कर दिया।
  • देश में बिगड़ती आर्थिक स्थिति के साथ-साथ जलियावाला बाग़ नरसंहार, रॉलेट अधिनियम आदि जैसी प्रमुख घटनाएं मुख्य कारण थीं कि यह एक महत्वपूर्ण भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन कैसे बन गया।

असहयोग आंदोलन को आधिकारिक तौर पर अगस्त 1920 में खलीफा समिति द्वारा शुरू किया गया था। साथ ही, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने दिसंबर 1920 में अपने नागपुर सत्र के बाद आंदोलन को अपनाया। जिसके बाद सरकारी सामानों, स्कूलों, कॉलेजों, भोजन, कपड़ों आदि का पूरा बहिष्कार हुआ और राष्ट्रीय स्कूलों में अध्ययन पर जोर दिया गया और खाड़ी उत्पादों का उपयोग किया गया। 5 फरवरी, 1922 को, चौरी चौरा घटना हुई, जिसमें 22 पुलिसकर्मियों के साथ पुलिस स्टेशन को जला दिया गया था। इसके कारण महात्मा गांधी द्वारा इस भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन को बंद कर दिया गया।

साइमन कमिशन

यह बात भारत की स्वतंत्रता से पहले वर्ष 1928 की है, जब 7 सांसदों का एक समूह ब्रिटेन से भारत आया था। उनका मुख्य उद्देश्य और भारत का दौरा करने का उद्देश्य कॉन्स्टिट्यूशनल रिफॉर्म्स पर एक व्यापक अध्ययन करना था, ताकि तत्काल रूलिंग गवर्मेंट को सिफारिशें दी जा सके। इसे मूल रूप से भारतीय संवैधानिक आयोग इंडियन स्टैच्युटरी कमीशन कहा जाता था। इसके अध्यक्ष सर जॉन साइमन सर जॉन साइमन के नाम के बाद, साइमन कमीशन का नाम रखा गया। यह सर जॉन साइमन के नेतृत्व में था, एक अंग्रेजी आधारित समूह भारत का दौरा कर रहा था। साइमन कमीशन के इन प्रतिनिधियों ने जमीन पर लहर प्रभाव पैदा किया, जवाहरलाल नेहरू, गांधी, जिन्ना, मुस्लिम लीग और इंडियन नेशनल कांग्रेस जैसे प्रसिद्ध राजनेताओं से मज़बूत प्रतिक्रिया देखी गईं। रिपोर्ट तैयार करते समय उन्हें विश्वास में नहीं लिया गया। 

सविनय अवज्ञा आंदोलन

सबसे प्रमुख Indian National Movement in Hindi में से एक, सविनय अवज्ञा आंदोलन के चरण को दो चरणों में वर्गीकृत किया गया है।

  • पहला सविनय अवज्ञा आंदोलन

12 मार्च 1930 को महात्मा गांधी द्वारा दांडी मार्च के साथ सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू किया गया था। अंतर, यह 6 अप्रैल को समाप्त हुआ जब गांधी ने दांडी में नमक कानून को तोड़ दिया। बाद में, आंदोलन को सी राजगोपालाचारी द्वारा आगे बढ़ाया गया। महिलाओं, किसानों और व्यापारियों की बड़े पैमाने पर भागीदारी हुई और देश भर में फैले इस Indian National Movement in Hindi के रूप में नमक सत्याग्रह, नो-टेक्स आंदोलन और नो-रेंट आंदोलन द्वारा सफल हुआ। बाद में, यह मार्च 1931 में गांधी-इरविन संधि के कारण वापस ले लिया गया।

  • दूसरा सविनय अवज्ञा आंदोलन

दूसरे गोलमेज सम्मेलन की असफल संधि के कारण दिसंबर 1931 से अप्रैल 1934 तक दूसरे नागरिक अवज्ञा आंदोलन की शुरुआत हुई। इससे शराब की दुकानों, नमक सत्याग्रह, वन कानून के उल्लंघन जैसे विभिन्न व्यवहार हुए। लेकिन ब्रिटिश सरकार आगामी घटनाओं से अवगत थी, इस प्रकार, इसने गांधी के आश्रमों के बाहर सभाओं पर प्रतिबंध के साथ मार्शल लॉ लागू किया।

भारत छोड़ो आंदोलन

1942 में क्विट इंडिया मूवमेंट के लॉन्च के पीछे मुख्य कारण यह है कि यह शक्तिशाली भारतीय राष्ट्रीय आंदोलनों में से एक बन गया है:।

  • क्रिप्स प्रस्ताव की विफलता भारतीयों के लिए जागृत कॉल बन जाती है।
  • विश्व युद्ध द्वारा लाई गई कठिनाइयों के साथ आम जनता का असंतोष।
कांग्रेस के महत्वपूर्ण अधिवेशन
 कांग्रेस अधिवेशन    
  महत्वपूर्ण तथ्य
1887 मद्राससर्वप्रथम देशी भाषाओँ में भाषण
1888 इलाहबादप्रथम बार कांग्रेस संविधान का  निर्माण,अध्यक्ष जॉर्ज यूल, प्रथम ईसाई अध्यक्ष
1889  मुंबईमताधिकार की आयु 21 वर्ष, सार्वभौम मताधिकार की मांग
1891 नागपुरकांग्रेस ने अपना संविधान पारित किया
1893 लाहौरभारत में सिविल सेवा परीक्षा के आयोजन की मांग
1896 कलकत्ताप्रथम बार वन्दे मातरम का गायन
1905 बनारसस्वराज्य प्राप्ति का संकल्प पारित, अनिवार्य शिक्षा पर बल
1907 सूरतकांग्रेस का प्रथम विभाजन
1909 लाहौरकांग्रेस का रजत जयंती अधिवेशन
1911 कलकत्ताराष्ट्रगान का प्रथम बार गायन
1916 लखनऊप्रथम विभाजन समाप्त, कांग्रेस लीग समझौता
1918 दिल्लीकांग्रेस का दूसरा विभाजन, उदारवादी कांग्रेस से अलग हो गए
1920 नागपुरतिलक द्वारा स्वराज पार्टी का गठन,भाषाई अधार पर प्रान्तों के गठन की मांग
1920 कलकत्ता (विशेष अधिवेशन)असहयोग कार्यक्रम को स्वीकृति
1921 अहमदाबादप्रथम बार राष्ट्रीय ध्वज का आरोप,अध्यक्ष चितरंजन दास, लेकिन जेल में होने के कारण अध्यक्षता हकीम अजमल खां ने की
1924 बेलगाम (कर्नाटक)अध्यक्षता महात्मा गाँधी ने की
1925 कानपुरअध्यक्ष हसरत मोहानी, पूर्ण स्वधीनता का प्रस्ताव रखा गया
1926 गुवाहाटी-कांग्रेसियों के लिए खद्दर पहनना अनिवार्य
1927 मद्राससाइमन आयोग के बहिष्कार का प्रस्ताव रखा गय
1929 लाहौरअध्यक्ष जवाहरलाल नेहरु, पूर्ण स्वराज्य का प्रस्ताव रखा गया
  
क्रांतिकारी आंदोलन के मुख्य कारण (काण्ड)

क्रांतिकारी आंदोलन के मुख्य कारण निम्नलिखित है :-

  • 1909-1910 में नासिक काण्ड वी.डी. सावरकर को आजीवन कारावास
  • अलीपुर काण्ड- अरविन्द घोष पर मुकदमा
  • 1908मे ढाका काण्ड- पुलिन दास को 7 साल की सजा
  • 1915 में दिल्ली काण्ड- लार्ड हार्डिंग पर बम फेंकने का मामला
  • 1916 में रेशमी पत्र काण्ड
  • 1925 में काकोरी काण्ड- लखनऊ के पास रेल लूट
  • 1930 में लाहौर काण्ड- भगतसिंह, सुखदेव, राजगुरु को फांसी
  • 1922-1924 में पेशावर काण्ड- भारत में साम्यवादियों को पकड़ना
  • 1924 में कानपुर काण्ड- साम्यवादियों की गिरफ़्तारी
  • 1929-1933 में मेरठ काण्ड- श्रमिकों एवं साम्यवादियों पर मुकदमा
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
  • भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना 28 दिसंबर 1885 को हुई थी। इसकी स्थापना बॉम्बे के गोकुलदास तेजपाल संस्कृत स्कूल के परिसर में हुई थी। अध्यक्ष डब्ल्यू.सी. बैनर्जी, इसमें 72 प्रतिनिधियों ने भाग लिया। ए.ओ. ह्यूम ने INC की नींव में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
मुस्लिम लीग
  • मुस्लिम लीग की स्थापना 1906 में आगा खान और मोहशिन मुल्क ने 1906 में की थी। इसका गठन भारतीय मुसलमानों के अधिकारों की रक्षा के लिए किया गया था।
भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन का इतिहास (1857-1947 ई.) 

भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के इतिहास की विषय सूचि निम्नलिखित है :-

  1. भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन का इतिहास जानने के साधन
  2. अंग्रेजी शासन का प्रतिरोध एवं 1857 ई. का प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम
  3. भारत में सामाजिक-धार्मिक आन्दोलन
  4. 1858 ई., 1861 ई. व 1892 ई. के अधिनियम
  5. राजनीतिक जागृति, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना एवं उदारवादी आन्दोलन
  6. स्वदेशी आन्दोलन
  7. उग्रवादी आन्दोलन
  8. युद्ध के वर्ष एवं भारतीय राष्ट्रवाद का विकास
  9. क्रान्तिकारी आन्दोलन
  10. 1909 ई. एवं 1919 ई. के भारतीय अधिनियम
  11. खिलाफत आन्दोलन
  12. जलियांवाला काण्ड एवं असहयोग आन्दोलन
  13. स्वराज्य दल का उदय एवं 1929 ई. तक प्रमुख राजनीतिक घटनाएं
  14. सविनय अवज्ञा आन्दोलन एवं गोलमेज सम्मेलन
  15. 1935 ई. का अधिनियम व प्रान्तों में कांग्रेसी मन्त्रिमण्डल
  16. मुस्लिम साम्प्रदायिकता का विकास
  17. भारत में वामपन्थी आन्दोलन
  18. कृषक संगठन तथा व्यापार संघ आन्दोलन
  19. क्रिप्स योजना तथा भारत छोड़ो आन्दोलन
  20. सुभाषचन्द्र बोस, आजाद हिन्द फौज एवं जल एवं वायु सेना में विद्रोह
  21. विभाजन की भूमिका, विभाजन एवं स्वतन्त्रता प्राप्ति
  22. रियासतों का विलय एवं भारतीय संविधान की प्र्रमुख विशेषताएं
  23. आधुनिक भारत के प्रमुख व्यक्तित्व

किताबें

भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन जान्ने में सहायक किताबों की सूची निम्नलिखित है :-

प्रमुख पुस्तकेंलेखक
द इंडियन डायरी मांटेग्यु
द इंडियन स्ट्रगलसुभाष चन्द्र बोस
पीजेंट्री ऑफ़ बंगाल  आर.सी. दत्त
इकोनोमिक हिस्ट्री ऑफ़ इंडिया  आर.सी. दत्त
फालेन फ्लावर्सकुमार आसन
दुर्गेश नंदिनीबंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय
आनंद मठबंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय
भवानी मंदिरअरविन्द घोष
न्यू लैम्प्स कार ओल्डअरविन्द घोष
हिन्द स्वराजमहात्मा गाँधी
गोरा      रविन्द्र नाथ टैगोर
राइज ऑफ़ द मराठा पॉवर  एम.जी. रानाडे
एसेज ईद इंडियन इकॉनमी      एम.जी. रानाडे
गीता रहस्यबाल गंगाधर तिलक
द पावर्टी एंड अन ब्रिटिश रुल इन इंडिया  दादा भाई नैरोजी
सोज-ए-वतन  प्रेमचंद
कर्मयोग     विवेकानंद
इंडियन मुस्लिम डब्ल्यू हंटर गण देवताताराशंकर बंधोपाध्याय
गाँधी वर्सेज लेनिन  एस.ए. डांगे
इंडिया इन ट्रांजिशन      एम.एन. रॉय
इण्डिया विन्स फ्रीडमअब्दुल कलम आजाद
इंडिया टुडेआर. पी. दत्त
पाथेर पंचालीविभूति भूषण बनर्जी
 
 
  1. किस अधिनियम को ‘ब्लैक-बिल’ के नाम से जाना जाता है?  Ans.  रौलट एक्ट
  2. कूका आंदोलन निम्नलिखित में से किस राज्य से संबंधित है?  Ans.  पंजाब
  3. स्वराज की मांग 1929 के ऐतिहासिक लाहौर अधिवेशन की अध्यक्षता में की थी?  Ans. जवाहरलाल नेहरू
  4. उस समय ब्रिटेन के प्रधानमंत्री कौन थे जब साइमन कमिशन को भारत में 1928 में भेजा गया था? Ans. स्टेनले ब्लैडविन
  5. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना के समय में वायसराय कौन था?Ans. लॉर्ड डफरिन
  6. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना कब हुई? Ans. 28 दिसंबर 1885
  7. 1857 का विद्रोह कब हुआ था? Ans . 10 मई, 1857 
  8. भारत के प्रथम महिला विश्वविद्यालय की स्थापना किसके द्वारा की गई थी ? Ans. डीके कर्वे
  9. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (1916) के लखनऊ अधिवेशन के अध्यक्ष कौन थे?Ans. अंबिका चरण मजूमदार
  10. दांडी साल्ट मार्च की शुरुआत कब हुई? Ans. 12 मार्च 1930
भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन MCQ

1.भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना के समय निम्नलिखित में कौन वायसराय था?
(A) लॉर्ड कैनिंग
(B) लॉर्ड डफरिन
(C) लॉर्ड मेयो
(D) लॉर्ड लिटन

Ans B लॉर्ड डफरिन

2.दांडी साल्ट मार्च का नेतृत्व किसने किया था? 
(A) महात्मा गांधी
(B) जवाहर लाल नेहरू
(C) सुभाष चंद्र बोस
(D) बाल गंगाधर तिलक

Ans A महात्मा गांधी

3.”यंग इंडिया” के रचियता कौन थे?
(A) महात्मा गाँधी
(B) लाला लाजपत राय
(C) बाल गंगाधर तिलक
(D) मोतीलाल नेहरु

Ans A महात्मा गाँधी

4.बंगाल का विभाजन कब हुआ?
(A)1904
(B)1905
(C)1907
(D)1911

Ans (B) 1905

5. ग़दर पार्टी के संस्थापक कौन थे?
(A) बरकत उल्ला
(B) भगत सिंह
(C) मदन लाल धींगरा
(D) लाला हरदयाल

Ans (D) लाला हरदयाल

6.खिलाफत आंदोलन किसके द्वारा शुरू किया गया था:
(A) मुहम्मद अली जिन्ना
(B) डॉ. जाकिर हुसैन
(C) फखरुद्दीन अली अहमद
(D) अली ब्रदर्स

Ans (D) अली ब्रदर्स

7. हिंदू और मुसलमानों के लिए अलग निर्वाचक मंडल का प्रावधान किया गया था:
(A) भारत सरकार अधिनियम, 1935
(B) मोंटेग्यू चेम्सफोर्ड सुधार
(C) मिंटो-मॉर्ले सुधार
(D) माउंटबेटन योजना

Ans (C)मिंटो-मॉर्ले सुधार

8. किस सत्र में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने पूर्णा स्वराज (पूर्ण स्वतंत्रता) को अपना लक्ष्य घोषित किया?
(A) लाहौर, 1929
(B) लखनऊ, 1916
(C) त्रिपुरी, 1939
(D) लाहौर, 1940

Ans (A) लाहौर, 1929

9.जलियांवाला बाग हत्याकांड से पहले कौन सी महत्वपूर्ण घटना हुई थी?
(A) सांप्रदायिक पुरस्कार
(B) साइमन कमीशन का आगमन
(C) गैर-सहयोग आंदोलन
(D) रौलट एक्ट अधिनियमन

Ans (D) रौलट एक्ट अधिनियम

10. ब्रिटिश द्वारा हंटर कमीशन की नियुक्ति की गई:
(A) चौरी-चौरा की घटना
(B) जलियाँवाला बाग त्रासदी
(C) खिलाफत आंदोलन
(D) गैर-सहयोग आंदोलन

Ans (B) जलियाँवाला बाग त्रासदी

  1. भारत में कितने राष्ट्रीय आंदोलन हुए हैं? इनमें नील आंदोलन, पाबना आंदोलन, दक्कन विद्रोह, किसान सभा आंदोलन, एका आंदोलन, मोपला विद्रोह, बारदोली सत्याग्रह, तेभाग आंदोलन, तेलंगाना आंदोलन आदि।
  2. राष्ट्रीय आंदोलन के जनक कौन थे? 1919 में रौलेट एक्ट के विरोध में गांधी जी ने पहली बार एक अखिल भारतीय सत्याग्रह आंदोलन का आरंभ किया।
  3. 1947 में कौन सा आंदोलन हुआ था? लेकिन खेड़ा सत्‍याग्रह, चंपारण सत्‍याग्रह, स्‍वदेशी आंदोलन, असहयोग आंदोलन, सविनय अवज्ञा आंदोलन, भारत छोड़ो आंदोलन के बल पर भारत को आजाद कराने में अहम भूमिका निभाई।
  4. भारत का प्रथम स्वतंत्रता आंदोलन कब हुआ था? 10 मई 1857 – 8 जुल॰ 1859  / 1857 का भारतीय विद्रोह, जिसे प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम, सिपाही विद्रोह और भारतीय विद्रोह के नाम से भी जाना जाता है ब्रिटिश शासन के विरुद्ध एक सशस्त्र विद्रोह था।
  5. स्वतंत्रता आंदोलन कहाँ से प्रारंभ हुआ? गांधीजी के नेतृत्व में बिहार के चम्पारण जिले में सन् 1917-18 में एक सत्याग्रह हुआ। इसे चम्पारण सत्याग्रह के नाम से जाना जाता है। गांधीजी के नेतृत्व में भारत में किया गया यह पहला सत्याग्रह था।

  6. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC) का गठन कब हुआ था?  भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना 28 दिसंबर 1885 को की गई थी। 

  7. नमक सत्याग्रह (Salt March) क्या था?  नमक सत्याग्रह सन 1930 में महात्मा गांधी द्वारा ब्रिटिश नमक कानूनों के खिलाफ शुरू किया गया था। 

  8. असहयोग आंदोलन का समाप्ति कब हुई?  असहयोग आंदोलन 1922 में चौरी चौरा कांड के बाद स्थगित कर दिया गया था। गांधीजी ने अहिंसा के सिद्धांत के पालन के लिए आंदोलन को समाप्त कर दिया था।

  9. असहयोग आंदोलन के दौरान प्रमुख नेता कौन थे?  असहयोग आंदोलन के दौरान महात्मा गांधी के अलावा पंडित जवाहरलाल नेहरू, चितरंजन दास, सुभाष चंद्र बोस, मोतीलाल नेहरू, सी. राजगोपालाचारी, और लाला लाजपत राय जैसे प्रमुख नेताओं ने योगदान दिया था।

  10. असहयोग आंदोलन का भारतीय स्वतंत्रता संग्राम पर क्या प्रभाव पड़ा?  इस आंदोलन ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को एक नई दिशा दी। यह जन जागृति, राष्ट्रीय एकता और स्वतंत्रता संग्राम में लोगों की भागीदारी बढ़ाने में सफल रहा। 

भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के उद्भव के कारकों की चर्चा करें।

भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन, जो 19वीं सदी के अंत में उभरा और 20वीं सदी की शुरुआत में गति पकड़ी, ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन से आजादी के लिए भारत के संघर्ष में एक महत्वपूर्ण मोड़ था। इस आंदोलन की विशेषता कई कारकों से थी जिसने इसके उद्भव को बढ़ावा दिया और बाद में स्वतंत्रता संग्राम को दिशा प्रदान की।
 

भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन का उद्भव निम्नलिखित कारकों से महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित था:

  • ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन: भारत में ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन ने राष्ट्रीय आंदोलन के उद्भव के लिए उत्प्रेरक के रूप में कार्य किया। दमनकारी नीतियां भारतीय लोगों की कीमत पर अपने स्वयं के हितों को लाभ पहुंचाने के लिए डिज़ाइन किए गए थे, और इससे व्यापक गरीबी और शोषण हुआ। इसके अलावा, आर्थिक शोषण, और सांस्कृतिक हाशिए पर जाना ब्रिटिश राज द्वारा लागू किए गए इस कानून ने भारतीयों में असंतोष फैलाया।
  • सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन: 19वीं सदी के अंत में भारत में गहन सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन देखे गए। पश्चिमी शिक्षा, रेलमार्गों की शुरूआत और भारतीय प्रेस के उदय के साथ-साथ बढ़ते मध्यम वर्ग के विकास ने एक बौद्धिक जागृति पैदा की। पश्चिमी राजनीतिक विचारों के संपर्क ने, भेदभावपूर्ण ब्रिटिश नीतियों पर नाराजगी के साथ मिलकर, राष्ट्रवादी भावनाओं की जड़ें जमाने की नींव रखी।
  • सांस्कृतिक एवं धार्मिक जागृति: भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन सांस्कृतिक और धार्मिक जागृति से भी प्रेरित था। भारत के प्राचीन अतीत की पुनः खोज, इसके साथ ही स्वदेशी संस्कृति और परंपराओं को बढ़ावा देना, भारतीयों में गर्व और पहचान की भावना पैदा की। स्वामी विवेकानन्द, बंकिम चन्द्र चटर्जी और रवीन्द्रनाथ टैगोर जैसी हस्तियों ने भारतीय सभ्यता की समृद्धि पर जोर दिया, एक सामूहिक चेतना को बढ़ावा दिया जिसने आंदोलन को और मजबूत किया।
  • पश्चिमी विचारों का प्रभाव: भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन का उद्भव भी पश्चिम से निकले विचारों और विचारधाराओं से प्रभावित था। की अवधारणाएँ स्वतंत्रता और समानता, प्रबोधन-युग के दौरान प्रचारित किया गया जो भारतीय बुद्धिजीवियों के साथ प्रतिध्वनित हुआ और उनकी उपनिवेशवाद-विरोधी आकांक्षाओं के लिए एक वैचारिक ढांचे के रूप में कार्य किया। के विचार उदारवाद, राष्ट्रवाद और समाजवाद, जैसे विचारकों के कार्यों के साथ जॉन लॉक, कार्ल मार्क्स और थॉमस पेन ने बौद्धिक गोला-बारूद प्रदान किया आंदोलन।
  • मध्यवर्ग I का उदयबुद्धिजीवी: शिक्षित मध्यम वर्ग के उदय ने भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वकील, शिक्षक, पत्रकार और नौकरशाह सहित शिक्षित पेशेवर, आंदोलन के अगुआ बन गए। इससे संगठनों का गठन हुआ, जैसे कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (1885), जो राष्ट्रवादी मांगों को व्यक्त करने और जनमत जुटाने का एक मंच बन गया। मध्यम वर्ग ने अभिजात वर्ग और जनता के बीच एक पुल के रूप में काम किया, जिससे पूरे भारतीय समाज में राष्ट्रवादी विचारों के प्रसार में सुविधा हुई।

स्वतंत्रता संग्राम की दिशा भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन से निम्नलिखित माध्यमों से प्रभावित हुई:

  • जन लामबंदी: भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन ने भारतीय समाज के विभिन्न वर्गों में जागरूकता बढ़ाने और एकता को बढ़ावा देने के लिए कई प्रभावशाली कार्यों के माध्यम से जनता को सफलतापूर्वक संगठित किया। इनमें जैसे आंदोलन शामिल हैं स्वदेशी आंदोलन, जिसने ब्रिटिश वस्तुओं के बहिष्कार और स्वदेशी उत्पादों को बढ़ावा देने का आह्वान किया, ने भारतीय समाज के व्यापक स्पेक्ट्रम को प्रेरित किया। असहयोग आंदोलन, जिसमें बड़े पैमाने पर लोकप्रिय भागीदारी देखी गई, जिसने एकजुट भारतीय आबादी की ताकत का प्रदर्शन किया। नमक मार्च 1930 में महात्मा गांधी के नेतृत्व में, एक बड़े पैमाने पर लामबंदी कार्यक्रम का नेतृत्व किया गया, जब जीवन के सभी क्षेत्रों से हजारों भारतीय स्वतंत्रता के आंदोलन में शामिल हुए।
  • राजनीतिक दलों का गठन: राजनीतिक दलों का उद्भव, विशेषकर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (आईएनसी), ने राष्ट्रवादी ताकतों को एकजुट करने और भारतीय आकांक्षाओं की अभिव्यक्ति के लिए एक मंच प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 1885 में स्थापित आईएनसी, राजनीतिक सुधारों, संवैधानिक सुरक्षा उपायों और अंततः पूर्ण स्वतंत्रता की मांग करते हुए भारतीय हितों के लिए एक प्रमुख आवाज बन गई।
  • रणनीतियों और युक्तियों का विकास: भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन ने समय के साथ अपनी रणनीतियों और रणनीति में अनुकूलनशीलता का प्रदर्शन किया। आंदोलन का प्रारंभिक चरण मुख्य रूप से संवैधानिक तरीकों पर केंद्रित था, जिसकी मांगें थीं अधिक प्रतिनिधित्व और विधायी सुधार. हालाँकि, ब्रिटिश नीतियों से मोहभंग और वादों को पूरा करने में विफलता के कारण इसे अपनाया गया अधिक मुखर दृष्टिकोण. इनमें शामिल हैं सविनय अवज्ञा आंदोलन 1930-1934 का, कहाँ बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शनबहिष्कार, और सविनय अवज्ञा के कार्य ब्रिटिश सत्ता को चुनौती देने और भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों के संकल्प को उजागर करने के लिए नियुक्त किया गया था।
  • अंतर्राष्ट्रीय समर्थन और एकजुटता: भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन ने सक्रिय रूप से अंतरराष्ट्रीय समर्थन मांगा और दुनिया भर के अन्य उपनिवेशवाद-विरोधी आंदोलनों के साथ गठबंधन बनाया। भारतीय नेता जैसे जवाहर लाल नेहरू और सुभाष चंद्र बोस वैश्विक मंचों पर भारत का प्रतिनिधित्व किया, भारतीय हितों के लिए सहानुभूति और एकजुटता हासिल की। इसके अलावा, जैसे संगठन ईस्ट इंडिया एसोसिएशन में लंडन और यह इंडियन होमरूल सोसायटी, आंदोलन की पहुंच और प्रभाव को और बढ़ाया।
  • जन चेतना का जागरण: भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के सबसे गहन योगदानों में से एक इसकी जन चेतना जगाने की क्षमता थी राजनीतिक जागरूकता पैदा करें भारतीय आबादी के बीच. के माध्यम से जन लामबंदीजमीनी स्तर पर अभियान, और यह राष्ट्रवादी विचारों का प्रसार विभिन्न माध्यमों से, आंदोलन ने व्यक्तियों और समुदायों को सशक्त बनाया, उनमें एक भावना पैदा की एकता, गरिमा, स्वाभिमान और आत्मविश्वास. आंदोलन में महिलाओं की भागीदारी, जैसे भारत छोड़ो आंदोलन 1942 का, लैंगिक समानता और स्वतंत्रता संग्राम में समावेश की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था।

भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन का उद्भव सामाजिक-आर्थिक, बौद्धिक और राजनीतिक कारकों की जटिल परस्पर क्रिया से प्रेरित था। इसने जन लामबंदी, राजनीतिक दलों के गठन, विकसित रणनीतियों, एकता और राष्ट्रीय पहचान को बढ़ावा देने के माध्यम से भारत के स्वतंत्रता संग्राम को एक दिशा प्रदान की जिससे अंततः जन जागृति हुई। आंदोलन का प्रभाव भारत से बाहर तक बढ़ा, अंतर्राष्ट्रीय समर्थन प्राप्त हुआ और ब्रिटिश उपनिवेशवाद के अन्याय के बारे में जागरूकता बढ़ी। भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन ने अपनी अदम्य भावना और अटूट प्रतिबद्धता के माध्यम से, 1947 में भारत की अंततः स्वतंत्रता का मार्ग प्रशस्त किया और दुनिया भर में उपनिवेशवाद-विरोधी प्रतिरोध का एक शक्तिशाली प्रतीक बन गया।

भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन (प्रथम चरण)

आन्दोलन का प्रथम चरण (1885-1905)
  • भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन के इस काल में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना हुई। लेकिन इस समय तक कांग्रेस का लक्ष्य पूरी तरह से अस्पस्ट ही था। उस समय इस आन्दोलन का प्रतिनिधित्व अल्प शिक्षित, बुद्धिजीवी मध्यम वर्गीय लोगों के द्वारा किया जा रहा था। यह वर्ग पश्चिम की उदारवादी एवं अतिवादी विचार धारा से काफ़ी प्रभावित था।
उदारवादी राष्ट्रीयता का युग
  • 1885 ई. में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना के साथ ही इस पर उदारवादी राष्ट्रीय नेताओं का वर्चस्व स्थापित हो गया। तत्कालीन उदारवादी राष्ट्रवादी नेताओं में प्रमुख थे- दादाभाई नौरोजी, महादेव गोविन्द रानाडे, फ़िरोजशाह मेहता, सुरेन्द्रनाथ बनर्जी, दीनशा वाचा, व्योमेश चन्‍द्र बनर्जी, गोपाल कृष्ण गोखले, मदन मोहन मालवीय आदि। कांग्रेस की स्थापना के आरम्भिक 20 वर्षो में उसकी नीति अत्यन्त ही उदार थी, इसलिए इस काल को कांग्रेस के इतिहास में ‘उदारवादी राष्ट्रीयता का काल’ माना जाता है। कांग्रेस के संस्थापक सदस्य भारतीयों के लिए धर्म और जाति के पक्षपात का अभाव, मानव में समानता, क़ानून के समक्ष समानता, नागरिक स्वतंत्रताओं का प्रसार और प्रतिनिधि संस्थओं के विकास की कामना करते थे। उदारवादी नेताओं का मानना था कि संवैधनिक तरीके अपना कर ही हम देश को आज़ाद करा सकते है।
कांग्रेस की मांगें
  • इस समय कांग्रेस पर समृद्धशाली, मध्यमवर्गीय, बुद्धिजीवियों, जिनमें वकील, डॉक्टर, इंजीनियर, पत्रकार एवं साहित्यकार सम्मिलित थे, का प्रभाव था। उदारवादी नेताओं को अंग्रेज़ों की न्यायप्रियता में पूर्ण निष्ठा थी और ये अंग्रेज़ों को अपना शत्रु नहीं मित्र मानते थे। ये नेता प्रार्थना पत्रों, प्रतिवेदों, स्मरण पत्रों एवं शिष्ट मण्डलों के द्वारा सरकार के सामने अपनी मांगों को रखते थे। इस काल में कांग्रेस ने देश की स्वतंत्रता की नहीं, अपितु कुछ रियायतों की मांग की। कांग्रेस की प्रमुख मांगे निम्नलिखित थीं-
  1. विधान परिषदों का विस्तार किया जाए।
  2. परीक्षा की न्यूनतम आयु में वृद्धि की जाए।
  3. परीक्षा का भारत और इंग्लैण्ड में का आयोजन हो।
  4. अधिक भर्ती निकाली जाएँ।
  5. वायसराय तथा गवर्नर की कार्यकारणी में भारतीयों को अधिक प्रतिनिधित्व दिया जाए।
  • ये सभी मांगे हीन से हीन शब्दों में याचना के रूप में संवैधानिक ढंगों से प्रस्तुत की जाती थीं। इनके इसी लचीलेपन एवं संचत व्यवहार के कारण ही लोकमान्य तिलक जैसे उग्रपंथी नेताओं ने इसे ‘राजनीतिक भिक्षावृति’ की संज्ञा दी थी।
कांग्रेस की लोकप्रियता
  • कांग्रेस की लोकप्रियता धीरे-धीरे काफ़ी बढ़ गई थी। पहले इस संस्था का प्रतिनिधित्व बौद्धिक वर्ग के लोग ही करते थे, लेकिन कालान्तर में यह संस्था जन साधारण की संस्था बन बई। अपनी लोकप्रियता के कारण ही इस संस्था ने तत्कालीन संस्थाओं में सर्वाधिक बड़ी राजनीतिक संस्था का आकार ग्रहण कर लिया। प्रतिवर्ष होने वाले अधिवेशनों में प्रतिनिधियों की संख्या में अभूतपूर्व वृद्धि होने लगी।
कांग्रेस की लोकप्रियता
वर्ष
स्थान
सदस्य संख्या
अध्यक्ष
1885 ई.बम्बई72व्योमेश चन्‍द्र बनर्जी
1886 ई.कलकत्ता434दादाभाई नौरोजी
1887 ई.मद्रास607बदरुद्दीन तैयब जी
1888 ई.इलाहाबाद1248जॉर्ज यूल
1889 ई.बम्बई1880विलियम वेडरबर्न
सरकार का दृष्टिकोण
  • कांग्रेस के प्रति सरकार का आरम्भिक दृष्टिकोण उदारवादी था, परन्तु जैसे-जैसे कांग्रेस की स्थिति मज़बूत होने लगी, उसने मांगों को सरकार के सामने अधिक मज़बूती से रखना आरम्भ कर दिया, जिसका परिणाम यह हुआ कि सरकार कांग्रेस की आलोचना करने लगी। 1887 ई. के पश्चात् तो कांग्रेस के प्रति सरकार का रुख़ और अधिक कठोर हो गया।
  • लॉर्ड डफ़रिन, जिसने कांग्रेस की स्थापना में सहयोग किया था, उसने इसकी आलोचना करते हुए कहा कि “मुझे उसका भारतीय जनता के प्रतिनिधित्व का दावा बेबुनियाद लगता है। कांग्रेस तो एक ऐसे नगण्य अल्पमत का प्रतिनिधित्व करती है, जिसको एक शानदार और विभिन्न रूपों वाले साम्राजय के शासन की बागडोर हर्गिज नहीं दी जाती सकती।” इस बारे में अंग्रेज़ी समाचार ने लिखा कि “यह तो छिपे वेश में एक ऐसी राजद्रोही संस्था है, जिसे न तो जनता का प्रतिनिधित्व प्राप्त है और न ही जिसका कोई मूल्य है।” ब्रिटिश भारत की सरकार ने मुस्लिमों को कांग्रेस से अलग करने के लिए उनमें विरोध की भावना को भरना शुरू किया और उसके इन प्रयासों को काफ़ी सफलता तब मिली, जब 1888 ई. में सर सैय्यद अहमद ख़ाँ और बनारस के शिवप्रसाद ने सरकार की प्रेरणा में कांग्रेस के प्रतिरोध के लिए ‘यूनाइटेड इंडियन पैट्रियाटिक एसोसियेशन’ की स्थापना की।
कांग्रेस के प्रति विचार
  • 1890 ई. में सरकारी सेवकों को कांग्रेस में सम्मिलित होने की आज्ञा नहीं रही। लॉर्ड कर्ज़न ने तो यहाँ तक कह दिया कि “कांग्रेस अपने पतन की ओर लड़खड़ाती जा रही हैं।” कर्ज़न की महत्वाकांक्षाओं में एक यह भी थी कि “वह उसकी शान्तिमय मृत्यु में सहायता कर सके।” वह ‘फूट डालो राज करो’ की नीति का पालन करने लगी। सरकार को कांग्रेस के दमन में इसलिए सफलता नहीं मिली, क्योंकि इस संस्था को विशाल भारतीय मध्यम वर्ग का सहयोग प्राप्त था। डॉ. आर.सी. मजूमदार के अनुसार ‘ब्रिटिश सरकार तथा नौकरशाही के कांग्रेस विरोधी षड्यंत्र अपने उद्देश्य पूर्ति में इसलिए सफल नहीं हुए, क्योंकि वे वह बात जानने में असमर्थ रहे कि कांग्रेस की शक्ति का मूल आधार मध्यम वर्ग है, धनी दानी लोग नहीं।’ कर्ज़न ने कांग्रेस को ‘गंदी चीज़ और देश द्रोही संगठन’ कहा है। बंकिमचन्द्र चटर्जी ने कहा कि कांग्रेस के लोग पदों के भूखे हैं। लोकमान्य तिलक ने कहा है कि ‘यदि हम वर्ष में एक बार मेढ़क की तरह टर्रायें तो हमें कुछ भी नहीं मिलेगा।’ लाला लाजपत राय ने कांग्रेस सम्मेलनों को ‘शिक्षित भारतीयों का वार्षिक राष्ट्रीय मेला’ की संज्ञा दी। अश्विनी कुमार दत्त ने कांग्रेस के सम्मेलनों को ‘तीन दिनों का तमाशा’ कहा। विपिनचन्द्र पाल ने इसे ‘याचना संस्था’ की संज्ञा प्रदान की।
इंग्लैण्ड में प्रचार
  • ए.ओ. ह्यूम, दादाभाई नौरोजी एवं वेंडरबर्न आदि नेताओं का मानना था कि ‘भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस’ का इंग्लैण्ड से अधिक प्रचार किया जा सकता है। 1887 ई. में दादाभाई नौरोजी ने इंग्लैण्ड में ‘भारतीय सुधार समिति’ की स्थापना की। 1888 ई. में नौरोजी ने विलियम डिग्बी की अध्यक्षता में ‘इण्डियन लीग’ की स्थापना की। 1889 ई. के कांग्रेस की ‘ब्रिटिश समिति’ बनी, जिसने ‘इण्डिया’ नाम की एक मासिक पत्रिका का प्रकाशन किया। इसके माध्यम से इंग्लैण्ड के नागरिकों को भारत की यथा-स्थिति से परिचित कराया जाता था। कांग्रेस ने भारतीयों की समस्या के निवारण हेतु समय-समय पर अपने प्रतिनिधिमण्डल को ब्रिटेन भेजा। 1890 ई. में कांग्रेस की ओर से इंग्लैण्ड भेजे गये प्रतिनिधि मण्डल में सुरेन्द्रनाथ बनर्जी, व्योमेश चन्‍द्र बनर्जी, ए. ओ. ह्यूम सम्मिलित थे। 1899 ई. में विपिनचन्द्र पाल इंग्लैण्ड गये। इन समस्य प्रयासों का प्रतिफल यह रहा कि इंग्लैण्ड में भारतीय जनमानस की समस्याओं के प्रति सहानुभूति रखने वाले एक गुट का निर्माण हुआ।
  • बहुत-से आलोचकों ने उदारवादी राष्ट्रीय नेताओं की उपलब्धियों की आलोचना की है। उग्रवादियों ने उदारवादियों की आवेदन-निवेदन की नीति को ‘भिक्षा मांगने’ की नीति कहकर उसकी खिल्ली उड़ायी। इस सम्बन्ध में लाला लाजपत राय ने लिखा कि ’20 वर्षों तक रियायतों और दुःखों को दूर करने के असफल संघर्ष के पश्चात् इन्हें रोटी के बदले पत्थर प्राप्त हुए।’ इस बात में संदेह नहीं कि उनकी तात्कालिक उपलब्धियाँ नगण्य थीं और 19वीं सदी के ब्रिटिश शासन की बदलती हुई प्रकृति के कारण उनकी कई राजनीतिक धारणायें ग़लत साबित हुई, लेकिन जिन परिस्थितियों में उन्होंने यह कठिन कार्य अपने हाथों में लिया ओर जो कठिनाइयाँ उनके सम्मुख आईं, उनको देखते हुए उनकी उपलब्धियों की उपेक्षा नहीं की जा सकती। ये मध्यम वर्ग तथा निम्न मध्यम वर्ग में राष्ट्रीय एकता का भाव जागृत करने में सफल रहे। उन्होंने एक सामान्य शत्रु से भारतीयों को परिचित कराया और एक सशक्त आर्थिक समीक्षा प्रस्तुत कर यह सिद्ध कर दिया कि ग़रीबी, बेकारी और आर्थिक पिछड़ापन अंग्रेज़ों के ही कारण है।
वेल्बी कमीशन की नियुक्ति
  • यदि दादाभाई नौरोजी, सर फ़िरोजशाह मेहता, सर दीनशा वाचा, गोपाल कृष्ण गोखले, सुरेन्द्रनाथ बनर्जी के साथ न्याय करें तो यह स्वीकार करना पड़ेगा कि ये लोग समकालीन भारतीय समाज के सबसे अधिक प्रगतिवादी तत्व ओर सच्चे देशभक्त थे। इन लोगों ने 1886 ई. में एक लोक सेवा आयोग नियुक्त करवाया तथा 1862 ई. में भारतीय परिषदों का अधिनियम पारित करवाया। सरकार ने उनके अनुरोध पर भारतीय व्यय समीक्षा के लिए 1896 ई. में ‘वेल्बी कमीशन’ भी नियुक्त किया।
बंगाल विभाजन
  • विभाजन के समय बंगाल की कुल जनसंख्या 7 करोड़, 85 लाख थी तथा इस समय बंगाल में बिहार, उड़ीसा एवं बंगलादेश शामिल थे। बंगाल प्रेसीडेन्सी उस समय सभी प्रेसीडेन्सियों में सबसे बड़ी थी। 1874 ई. मे असम बंगाल से अलग हो गया। एक लेफ्टिनेंट गर्वनर इतने बड़े प्रांत को कुशल प्रशासन दे पाने में असमर्थ था। तत्कालीन गवर्नर-जनरल लॉर्ड कर्ज़न ने प्रशासनिक असुविधा को बंगाल विभाजन का कारण बताया, किन्तु वास्तविक कारण प्रशासनिक नहीं अपितु राजनीतिक था। कर्ज़न के ‘बंगाल विभाजन’ के विरोध में स्वदेशी एवं बहिष्कार आंदोलन का सूत्रपात किया गया। बंगाल उस समय भारतीय राष्ट्रीय चेतना का केन्द्र बिंदु था और साथ ही बंगालियों में प्रबल राजनीतिक जागृति थी, जिसे कुचलने के लिए कर्ज़न ने बंगाल को बांटना चाहा। उसने बंगाली भाषी हिन्दुओं को दोनों भागों में अल्पसंख्या में करना चाहा।
भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन (प्रथम चरण)
विवरणभारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन, भारत की आज़ादी के लिए सबसे लम्बे समय तक चलने वाला एक प्रमुख राष्ट्रीय आन्दोलन था।
शुरुआत1885 ई. में कांग्रेस की स्थापना के साथ ही इस आंदोलन की शुरुआत हुई, जो कुछ उतार-चढ़ावों के साथ 15 अगस्त, 1947 ई. तक अनवरत रूप से जारी रहा।
प्रमुख संगठन एवं पार्टीगरम दल, नरम दल, गदर पार्टी, आज़ाद हिंद फ़ौज, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, इंडियन होमरूल लीग, मुस्लिम लीग
अन्य प्रमुख आंदोलनअसहयोग आंदोलन, भारत छोड़ो आन्दोलन, सविनय अवज्ञा आन्दोलन, स्वदेशी आन्दोलन, नमक सत्याग्रह
परिणामभारत स्वतंत्र राष्ट्र घोषित हुआ।
संबंधित लेखगाँधी युग, रॉलेट एक्ट, थियोसॉफिकल सोसायटी, वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट, इण्डियन कौंसिल एक्ट, हार्टोग समिति, हन्टर समिति, बटलर समिति रिपोर्ट, नेहरू समिति, गोलमेज़ सम्मेलन
अन्य जानकारी

भारत के राष्ट्रीय आन्दोलन को तीन भागों में बाँटा जा सकता है-

  1. प्रथम चरण
  2. द्वितीय चरण
  3. तृतीय चरण।

Role of Mahatma Gandhi in the Indian National Movement

  • Mahatma Gandhi is universally regarded as the principal architect of India’s independence struggle, and his role in the Indian National Movement was pivotal in shaping modern Indian history.
  • Emerging as a mass leader in 1919, Gandhi took on a leadership role that would dominate the Indian political landscape for nearly three decades until his assassination in 1948.
  • He symbolised India’s determination to break free from colonial rule, leading a series of mass movements that galvanised millions of Indians in their fight for freedom.
  • Mahatma Gandhi was a fine synthesis of both the political traditions of moderates and extremists in India.
  • His approach to achieving independence blended elements from both, incorporating his own unique philosophy rooted in ahimsa (non-violence) and satyagraha (truth-force or non-violent resistance).
  • Gandhi was deeply influenced by religious and spiritual values, including Hinduism, but he also embraced ideas from other traditions, such as Christianity and Islam.
  • He believed that political struggle should be ethical, non-violent, and moral, emphasizing the need for self-discipline and inner strength.
  • Gandhi’s vision for India extended beyond political freedom; it included social reform and moral regeneration.
  • He envisioned an India where social equality, justice, and religious harmony would thrive. This approach made Gandhi not just a political leader but a reformer and a social visionary as well.
  • Under Gandhi’s leadership, the Indian National Congress (INC) transformed from a relatively elite political organisation into a mass-based political party representing a wide cross-section of Indian society.
  • Gandhi’s emphasis on self-reliance, non-violence, and inclusivity inspired millions to join the freedom struggle, especially peasants, workers, and women.
  • His insistence on removing caste discrimination, uplifting the downtrodden, and giving a voice to women enabled the INC to resonate with a vast segment of the Indian population.
  • Gandhi’s political leadership helped unify diverse ethnic, linguistic, and religious groups, fostering a collective consciousness of Indian nationalism.
  • The Non-Cooperation Movement marked Gandhi’s first major mass movement, following the Jallianwala Bagh massacre in 1919.
  • It was a direct response to the British government’s oppressive policies, and it called for Indians to boycott British goods, schools, and institutions.
  • Gandhi’s call for non-violent resistance resonated across the country, and millions of Indians—from urban elites to rural peasants—actively participated.
  • While the movement was ultimately called off in 1922 after the Chauri Chaura incident (where protesters killed policemen), it marked the first time that the entire nation came together in a large-scale resistance against British rule, establishing Gandhi as the central figure in the Indian struggle for independence.
  • In 1930, Gandhi launched the Salt March (or Dandi March), a direct act of defiance against British colonial laws that taxed salt. Gandhi, along with a group of followers, marched 240 miles to the coastal town of Dandi to produce salt from seawater, thus violating British salt laws.
  • This civil disobedience garnered international attention and drew millions of Indians into the movement for independence.
  • The Civil Disobedience Movement continued to grow, with widespread participation in protests, boycotts, and non-violent resistance.
  • The Salt March and the subsequent civil disobedience efforts were significant in mobilizing masses and weakening the British grip on India.
  • Gandhi’s method of non-violent protest, even in the face of arrest and imprisonment, inspired global movements for civil rights and freedom.
  • By 1942, it had become clear that World War II was affecting India’s position within the British Empire. Gandhi, sensing the opportunity for a greater push against British rule, launched the Quit India Movement in August 1942.
  • The movement called for the immediate withdrawal of British forces from India and demanded complete independence. Gandhi’s famous slogan, “Do or Die, galvanised the nation, and widespread protests erupted nationwide.
  • Although the British government responded by arresting Gandhi and many other leaders, the Quit India Movement marked the final stage of the Indian independence struggle, with mass participation and significant disruptions to British administration.
  • While the movement did not immediately achieve independence, it intensified the pressure on the British and set the stage for India’s eventual freedom in 1947.
  • Mahatma Gandhi’s leadership in the Indian National Movement was not limited to his political strategies and mass movements.
  • He also provided the ethical and moral foundation for the freedom struggle, emphasising non-violence, truth, and self-discipline.
  • His use of non-violent resistance as a political tool left an indelible mark on the global struggle for civil rights and social justice.
  • Through his actions, Gandhi reshaped Indian society, challenged the colonial powers, and left behind a legacy of peaceful struggle that continues to inspire movements worldwide.
  • His central role in India’s independence struggle, his unwavering commitment to social reform, and his deep belief in non-violence and truth make him one of the most influential leaders in world history.
  • In conclusion, Mahatma Gandhi’s role in the Indian National Movement was transformative, not only in leading India to independence but also in shaping its social and political landscape. Through his non-violence, truth, and self-reliance principles, he united millions of Indians across regions, religions, and social classes in the struggle for freedom. Gandhi’s innovative methods of resistance, such as Satyagraha and civil disobedience, challenged British colonial rule and inspired global movements for justice and human rights. His legacy continues influencing India and the world to pursue peace, equality, and social reform.

The Making of National Movement

“India was the people of India all the people irrespective of class, colour, caste, creed, language, or gender. And the country, its resources, and systems, were meant for all of them. With this answer came the awareness that the British were exercising control over the resources of India and the lives of its people, and until this control was ended India could not be for Indians.”

Introduction
  • Though the elements of nationalism were known to Indians, yet it practically developed in the British period. There were many reasons for it. The British ruled over India in their self-interest. Gradually Indians realized their motives. They were fed up and oppressed by alien rule. Their attempt to interfere in religion and social practices such as adoption infuriated the Indians and their anger resulted in the armed revolt of 1857.
Early Political Organization
  • Consciousness began to be clearly stated by the political associations formed after 1850, especially those that came into being in the 1870s and 1880s. Most of these were led by Englisheducated professionals such as lawyers. The more important ones were the Poona Sarvajanik Sabha, the Indian Association, the Madras Mahajan Sabha, the Bombay Presidency Association, and of course the Indian National Congress.
  • Note the name, “Poona Sarvajanik Sabha”. The literal meaning of “sarvajanik” is “of or for all the people” (sarva = all + janik = of the people). Though many of these associations functioned in specific parts of the country, their goals were stated as the goals of all the people of India, not those of any one region, community or class. They worked with the idea that the people should be sovereign-a modern consciousness and a key feature of nationalism. In other words, they believed that the Indian people should be empowered to take decisions regarding their affairs.
  • The dissatisfaction with British rule intensified in the 1870s and 1880s. The Arms Act was passed in 1878, disallowing Indians from possessing arms. In the same year the Vernacular Press Act was also enacted in an effort to silence those who were critical of the government. The Act allowed the government to confiscate the assets of newspapers including their printing presses if the newspapers published anything that was found “objectionable”. In 1883, there was a furore over the attempt by the government to introduce the Ilbert Bill.
Ilbert Bill
  • The bill provided for the trial of British or European persons by Indians and sought equality between British and Indian judges in the country. But when white opposition forced the government to withdraw the bill, Indians were enraged. The event highlighted the racial attitudes of the British in India. The need for an all-India organization of educated Indians had been felt since 1880, but the Ilbert Bill controversy deepened this desire.
Indian National Congress
  • The Indian National Congress was established when 72 delegates from all over the country met at Bombay in December 1885. The early leadership-Dadabhai Naoroji, Pherozeshah Mehta, Badruddin Tyabji, W.C. Bonnerji, Surendranath Banerji, Romesh Chandra Dutt, S. Subramania Iyer, among others – was largely from Bombay and Calcutta. Naoroji, a businessman and publicist settled in London, and for a time member of the British Parliament, guided the younger nationalists. A retired British official, A.O. Hume, also played a part in bringing Indians from the various regions together.

 

A nation in the making
  • It has often been said that the Congress in the first twenty years was “moderate” in its objectives and methods. During this period, it demanded a greater voice for Indians in the government and in administration. It wanted the Legislative Councils to be made more representative, given more power, and introduced in provinces where none existed. It demanded that Indians be placed in high positions in the government. For this purpose, it called for civil service examinations to be held in India as well, not just in London.
  • The demand for Indianisation of the administration was part of a movement against racism, since most important jobs at the time were monopolised by white officials, and the British generally assumed that Indians could not be given positions of responsibility. Since British officers were sending a major part of their large salaries home. Indianisation, it was hoped, would also reduce the drain of wealth to England. Other demands included the separation of the judiciary from the executive, the repeal of the Arms Act and the freedom of speech and expression.
  • The early Congress also raised a number of economic issues. It declared that British rule had led to poverty and famines: increase in the land revenue had impoverished peasants and zamindars, and exports of grains to Europe had created food shortages. The Congress demanded reduction of revenue, cut in military expenditure, and more funds for irrigation. It passed many resolutions on the salt tax, treatment of Indian labourers abroad, and the sufferings of forest dwellers – caused by an interfering forest administration. All this shows that despite being a body of the educated elite, the Congress did not talk only on behalf of professional groups, zamindars or industrialists.
Moderate leaders
  • The Moderate leaders wanted to develop public awareness about the unjust nature of British rule. They published newspapers, wrote articles, and showed how British rule was leading to the economic ruin of the country. They criticised British rule in their speeches and sent representatives to different parts of the country to mobilise public opinion.
  • They felt that the British had respect for the ideals of freedom and justice, and so they would accept the just demands of Indians. What was necessary, therefore, was to express these demands, and make the government aware of the feelings of Indians.

“Freedom is our birth right”

  • By the 1890s many Indians began to raise questions about the political style of the Congress. In Bengal, Maharashtra and Punjab, leaders such as Bipin Chandra Pal, Bal Gangadhar Tilak and Lala Lajpat Rai were beginning to explore more radical objectives and methods. They criticised the Moderates for their “politics of prayers” and emphasised the importance of self-reliance and constructive work. They argued that people must rely on their own strength, not on the “good” intentions of the government; people must fight for swaraj. Tilak raised the slogan, “Freedom is my birth right and I shall have it!”

 

Bengal Partition
  • In 1905 Viceroy Curzon partitioned Bengal. At that time Bengal was the biggest province of British India and included Bihar and parts of Orissa. The British argued for dividing Bengal for reasons of administrative convenience. But what did “administrative convenience” mean? Whose “convenience” did it represent?
  • Clearly, it was closely tied to the interests of British officials and businessmen. Even so, instead of removing the non-Bengali areas from the province, the government separated East Bengal and merged it with Assam. Perhaps the main British motives were to curtail the influence of Bengali politicians and to split the Bengali people.
  • The partition of Bengal infuriated people all over India. All sections of the Congress – the Moderates and the Radicals, as they may be called – opposed it. Large public meetings and demonstrations were organized, and novel methods of mass protest developed.
  • The struggle that unfolded came to be known as the Swadeshi movement, strongest in Bengal but with echoes elsewhere too – in deltaic Andhra for instance, it was known as the Vandemataram Movement.
Swadeshi movement
  • The Swadeshi movement sought to oppose British rule and encourage the ideas of self-help, swadeshi enterprise, national education, and use of Indian languages. To fight for swaraj, the radicals advocated mass mobilisation and boycott of British institutions and goods. Some individuals also began to suggest that “revolutionary violence” would be necessary to overthrow British rule.
  • Founders of the Natal Congress, Durban, South Africa, 1895 The opening decades of the twentieth century were marked by other developments as well. A group of Muslim landlords and nawabs formed the All India Muslim League at Dacca in 1906. The League supported the partition of Bengal. It desired separate electorates for Muslims, a demand conceded by the government in 1909. Some seats in the councils were now reserved for Muslims who would be elected by Muslim voters. This tempted politicians to gather a following by distributing favours to their own religious groups.
  • Meanwhile, the Congress split in 1907. The Moderates were opposed to the use of boycott. They felt that it involved the use of force. After the split, the Congress came to be dominated by the Moderates with Tilak’s followers functioning from outside. The two groups reunited in December 1915. Next year the Congress and the Muslim League signed the historic Lucknow Pact and decided to work together for representative government in the country.
The Growth of Mass Nationalism
  • The First World War altered the economic and political situation in India. It led to a huge rise in the defence expenditure of the Government of India. The government in turn increased taxes on individual incomes and business profits.
  • Increased military expenditure and the demands for war supplies led to a sharp rise in prices which created great difficulties for the common people. On the other hand, business groups reaped fabulous profits from the war.
  • Indian industries expanded during the war, and Indian business groups began to demand greater opportunities for development. The war also led the British to expand their army. Villages were pressurised to supply soldiers for an alien cause.
  • A large number of soldiers were sent to serve abroad. Many returned after the war with an understanding of the ways in which imperialist powers were exploiting the peoples of Asia and Africa and with a desire to oppose colonial rule in India.
  • Furthermore, in 1917 there was a revolution in Russia. News about peasants’ and workers’ struggles and ideas of socialism circulated widely, inspiring Indian nationalists.
Advent of Mahatma Gandhi
  • It is in these circumstances that Mahatma Gandhi emerged as a mass leader. As you may know, Gandhiji, aged 46, arrived in India in 1915 from South Africa. Having led Indians in that country in non-violent marches against racist restrictions, he was already a respected leader, known internationally. His South African campaigns had brought him in contact with various types of Indians: Hindus, Muslims, Parsis and Christians; Gujaratis, Tamils and north Indians; and upperclass merchants, lawyers and workers.
  • Mahatma Gandhi spent his first year in India travelling throughout the country, understanding the people, their needs and the overall situation. His earliest interventions were in local movements in Champaran, Kheda and Ahmedabad where he came into contact with Rajendra Prasad and Vallabhbhai Patel. In Ahmedabad he led a successful millworker’s strike in 1918.
The Rowlatt Satyagraha
  • In 1919 Gandhiji gave a call for a satyagraha against the Rowlatt Act that the British had just passed. The Act curbed fundamental rights such as the freedom of expression and strengthened police powers. Mahatma Gandhi, Mohammad Ali Jinnah and others felt that the government had no right to restrict people’s basic freedoms.
  • They criticised the Act as “devilish” and tyrannical. Gandhiji asked the Indian people to observe 6 April 1919 as a day of non-violent opposition to this Act, as a day of “humiliation and prayer” and hartal (strike). Satyagraha Sabhas were set up to launch the movement.

     

  • The Rowlatt Satyagraha turned out to be the first all-India struggle against the British government although it was largely restricted to cities. In April 1919 there were a number of demonstrations and hartals in the country and the government used brutal measures to suppress them. The Jallianwala Bagh atrocities, inflicted by General Dyer in Amritsar on Baisakhi day ( 13 April), were a part of this repression.
  • On learning about the massacre, Rabindranath Tagore expressed the pain and anger of the country by renouncing his knighthood.
  • During the Rowlatt Satyagraha the participants tried to ensure that Hindus and Muslims were united in the fight against British rule. This was also the call of Mahatma Gandhi who always saw India as a land of all the people who lived in the country – Hindus, Muslims and those of other religions. He was keen that Hindus and Muslims support each other in any just cause.
Khilafat Agitation and the Non-Cooperation Movement
  • The Khilafat issue was one such cause. In 1920 the British imposed a harsh treaty on the Turkish Sultan or Khalifa. People were furious about this as they had been about the Jallianwala massacre. Also, Indian Muslims were keen that the Khalifa be allowed to retain control over Muslim sacred places in the erstwhile Ottoman Empire.
  • The leaders of the Khilafat agitation, Mohammad Ali and Shaukat Ali, now wished to initiate a full-fledged Non-Cooperation Movement. Gandhiji supported their call and urged the Congress to campaign against “Punjab wrongs” (Jallianwala massacre), the Khilafat wrong and demand swaraj.
  • The Non-Cooperation Movement gained momentum through 1921-22. Thousands of students left government- controlled schools and colleges. Many lawyers such as Motilal Nehru, C.R. Das, C. Rajagopalachari and Asaf Ali gave up their practices. British titles were surrendered, and legislatures boycotted. People lit public bonfires of foreign cloth.
  • The imports of foreign cloth fell drastically between 1920 and 1922. But all this was merely the tip of the iceberg. Large parts of the country were on the brink of a formidable revolt.
People’s initiatives
  • In many cases people resisted British rule non-violently. In others, different classes and groups, interpreting Gandhiji’s call in their own manner, protested in ways that were not in accordance with his ideas. In either case, people linked their movements to local grievances.
  • In Kheda, Gujarat, Patidar peasants organised non-violent campaigns against the high land revenue demand of the British. In coastal Andhra and interior Tamil Nadu, liquor shops were picketed. In the Guntur district of Andhra Pradesh, tribals and poor peasants staged a number of “forest satyagrahas”, sometimes sending their cattle into forests without paying grazing fee. They were protesting because the colonial state had restricted their use of forest resources in various ways. They believed that Gandhiji would get their taxes reduced and have the forest regulations abolished. In many forest villages, peasants proclaimed swaraj and believed that “Gandhi Raj” was about to be established.
  • In Sind (now in Pakistan), Muslim traders and peasants were very enthusiastic about the Khilafat call. In Bengal too, the Khilafat-Non-Cooperation alliance gave enormous communal unity and strength to the national movement.
  • In Punjab, the Akali agitation of the Sikhs sought to remove corrupt mahants – supported by the British – from their gurdwaras. This movement got closely identified with the NonCooperation Movement. In Assam, tea garden labourers, shouting “Gandhi Maharaj ki Jai”, demanded a big increase in their wages. They left the Britishowned plantations amidst declarations that they were following Gandhiji’s wish. Interestingly, in the Assamese Vaishnava songs of the period, the reference to Krishna was substituted by “Gandhi Raja”.
The people’s Mahatma
  • Gandhiji wished to build class unity, not class conflict, yet peasants could imagine that he would help them in their fight against zamindars, and agricultural labourers believed he would provide them land.
  • At times, ordinary people credited Gandhiji with their own achievements. For instance, at the end of a powerful movement, peasants of Pratapgarh in the United Provinces (now Uttar Pradesh) managed to stop illegal eviction of tenants; but they felt it was Gandhiji who had won this demand for them.
  • At other times, using Gandhiji’s name, tribals and peasants undertook actions that did not conform to Gandhian ideals.
The happenings of 1922-1929

Mahatma Gandhi, as you know, was against violent movements. He abruptly called off the Non-Cooperation Movement when in February 1922 a crowd of peasants set fire to a police station in Chauri Chaura. Twenty- two policemen were killed on that day. The peasants were provoked because the police had fired on their peaceful demonstration. Once the Non-Cooperation movement was over, Gandhiji’s followers stressed that the Congress must undertake constructive work in the rural areas. Other leaders such as Chitta Ranjan Das and Motilal Nehru argued that the party should fight elections to the councils and enter them in order to influence government policies. Through sincere social work in villages in the mid1920s, the Gandhians were able to extend their support base. This proved to be very useful in launching the Civil Disobedience movement in 1930.

 

  • Two important developments of the mid-1920s were the formation of the Rashtriya Swayamsevak Sangh (RSS), a Hindu organisation, and the Communist Party of India. These parties have held very different ideas about the kind of country India should be. The decade closed with the Congress resolving to fight for Purna Swaraj (complete independence) in 1929 under the presidentship of Jawaharlal Nehru. Consequently, “Independence Day” was observed on 26 January 1930 all over the country.
  • “It takes a loud voice to make the deaf hear. Inquilab Zindabad !” Revolutionary nationalists such as Bhagat Singh, Chandra Shekhar Azad, Sukhdev and others wanted to fight against the colonial rule and the rich exploiting classes through a revolution of workers and peasants. For this purpose, they founded the Hindustan Socialist Republican Association (HSRA) in 1928 at Ferozeshah Kotla in Delhi. On 17 December, 1928, Bhagat Singh, Azad and Rajguru assassinated Saunders, a police officer who was involved in the lathi-charge that had caused the death of Lala Lajpat Rai. On 8 April, 1929, Bhagat Singh and B.K. Dutt threw a bomb in the Central Legislative Assembly. The aim, as their leaflet explained, was not to kill but “to make the deaf hear”, and to remind the foreign government of its callous exploitation. Bhagat Singh, Sukhdev and Rajguru were executed on March 23, 1931. Bhagat Singh’s age at that time was only 23.
Dandi March
  • Purna Swaraj would never come on its own. It had to be fought for. In 1930, Gandhiji declared that he would lead a march to break the salt law. According to this law, the state had a monopoly on the manufacture and sale of salt.
  • Mahatma Gandhi along with other nationalists reasoned that it was sinful to tax salt since it is such an essential item of our food. The Salt March related the general desire of freedom to a specific grievance shared by everybody, and thus did not divide the rich and the poor.
  • Gandhiji and his followers marched for over 240 miles from Sabarmati to the coastal town of Dandi where they broke the government law by gathering natural salt found on the seashore, and boiling sea water to produce salt.
  • Peasants, tribals and women participated in large

Mahatma Gandhi breaking the salt law by picking up a lump of natural salt, Dandi, 6 April 1930 numbers. A business federation published a pamphlet on the salt issue. The government tried to crush the movement through brutal action against peaceful satyagrahis. Thousands were sent to jail.

  • The combined struggles of the Indian people bore fruit when the Government of India Act of 1935 prescribed provincial autonomy and the government announced elections to the provincial legislatures in 1937. The Congress formed governments in 7 out of 11 provinces.
  • In September 1939, after two years of Congress rule in the provinces, the Second World War broke out. Critical of Hitler, Congress leaders were ready to support the British war effort. But in return they wanted that India be granted independence after the war. The British refused to concede the demand. The Congress ministries resigned in protest.
Women in the freedom struggle
  • Women from diverse backgrounds participated in the national movement. Young and old, single and married, they came from rural and urban areas, from both conservative and liberal homes. Their involvement was significant for the freedom struggle, for the women’s movement, and for themselves personally.
  • Both British officials and Indian nationalists felt that women’s participation gave the national struggle an immense force. Participation in the freedom movement brought women out of their homes. It gave them a place in the professions, in the governance of India, and it could pave the way for equality with men.
  • Ambabai of Karnataka had been married at age twelve. Widowed at sixteen, she picketed foreign cloth and liquor shops in Udipi. She was arrested, served a sentence and was rearrested. Between prison terms she made speeches, taught spinning, and organised prabhat pheris. Ambabai regarded these as the happiest days of her life because they gave it a new purpose and commitment.
  • Women, however, had to fight for their right to participate in the movement. During the Salt Satyagraha, for instance, even Mahatma Gandhi was initially opposed to women’s participation. Sarojini Naidu had to persuade him to allow women to join the movement.

A radical nationalist, with socialist leanings, Bose did not share Gandhiji’s ideal of ahimsa, though he respected him as the “Father of the Nation”. In January 1941, he secretly left his Calcutta home, went to Singapore, via Germany, and raised the Azad Hind Fauj or the Indian National Army (INA). To free India from British control, in 1944, the INA tried to enter India through Imphal and Kohima but the campaign failed. The INA members were imprisoned and tried. People across the country, from all walks of life, participated in the movement against the INA trials.

Quit India and Later
  • Mahatma Gandhi decided to initiate a new phase of movement against the British in the middle of the Second World War. The British must quit India immediately, he told them. To the people he said, “do or die” in your effort to fight the British – but you must fight non-violently. Gandhiji and other leaders were jailed at once, but the movement spread. It specially attracted peasants and the youth who gave up their studies to join it. Communications and symbols of state authority were attacked all over the country. In many areas the people set up their own governments.
  • Quit India movement, August 1942 The first response of the British was severe repression. By the end of 1943 over 90,000 people were arrested, and around 1,000 killed in police firing. In many areas orders were given to machine-gun crowds from airplanes. The rebellion, however, ultimately brought the Raj to its knees.
Towards Independence and Partition
  • Meanwhile, in 1940 the Muslim League had moved a resolution demanding “Independent States” for Muslims in the north-western and eastern areas of the country. The resolution did not mention partition or Pakistan. Why did the League ask for an autonomous arrangement for the Muslims of the subcontinent?
  • From the late 1930s, the League began viewing the Muslims as a separate “nation” from the Hindus. In developing this notion, it may have been influenced by the history of tension between some Hindu and Muslim groups in the 1920s and 1930s. More importantly, the provincial elections of 1937 seemed to have convinced the League that Muslims were a minority, and they would always have to play second fiddle in any democratic structure. It feared that Muslims may even go unrepresented. The Congress’s rejection of the League’s desire to form a joint CongressLeague government in the United Provinces in 1937 also annoyed the League.
  • The Congress’s failure to mobilise the Muslim masses in the 1930s allowed the League to widen its social support. It sought to enlarge its support in the early 1940s when most Congress leaders were in jail. At the end of the war in 1945, the British opened negotiations between the Congress, the League and themselves for the independence of India. The talks failed because the League saw itself as the sole spokesperson of India’s Muslims. The Congress could not accept this claim since a large number of Muslims still supported it. Elections to the provinces were again held in 1946. The Congress did well in the “General” constituencies but the League’s success in the seats reserved for Muslims was spectacular. It persisted with its demand for “Pakistan”.
Cabinet Mission

Cabinet Mission

  • In March 1946 the British cabinet sent a three-member mission to Delhi to examine this demand and to suggest a suitable political framework for a free India. This mission suggested that India should remain united and constitute itself as a loose confederation with some autonomy for Muslim-majority areas.
  • But it could not get the Congress and the Muslim League to agree to specific details of the proposal. Partition now became more or less inevitable. After the failure of the Cabinet Mission, the Muslim League decided on mass agitation for winning its Pakistan demand. It announced 16 August 1946 as “Direct Action Day”. On this day riots broke out in Calcutta, lasting several days and resulting in the death of thousands of people.
  • Patel hailed from an impoverished peasantproprietor family of Nadiad, Gujarat. A foremost organiser of the freedom movement from 1918 onwards. Patel served as President of the Congress in 1931.
  • A veteran nationalist and leader of the Salt Satyagraha in the south, C. Rajagopalachari, popularly known as Rajaji, served as member of the Interim Government of 1946 and as free India’s first Indian Governor-General.
  • Azad was born in Mecca to a Bengali father and an Arab mother. Well-versed in many languages, Azad was a scholar of Islam and an exponent of the notion of wahadat-i-deen, the essential oneness of all religions. An active participant in Gandhian movements and a staunch advocate of Hindu-Muslim unity, he was opposed to Jinnah’s two-nation theory.
Partition of India
  • By March 1947 violence spread to different parts of northern India. Many hundred thousand people were killed, and numerous women had to face untold brutalities during the Partition. Millions of people were forced to flee their homes. Torn asunder from their homelands, they were reduced to being refugees in alien lands. Partition also meant that India changed, many of its cities changed, and a new country – Pakistan – was born. So, the joy of our country’s independence from British rule came mixed with the pain and violence of Partition.

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