प्रमुख व्यक्तित्व

सुरेन्द्रनाथ बनर्जी

  • 1868 में उन्होंने I.C.S परीक्षा उत्तीर्ण की (IInd Indian)
  • I.C.S. परीक्षा की आयु 21 से 19 वर्ष करने पर उसका विरोध किया तथा Indian Association की स्थापना की।
  • बंगाली समाचार पत्र का भी सम्पादन किया ।
  • 1895 तथा 1902 में कांग्रेस के अध्यक्ष बने ।
  • बंगाल विभाजन का विरोध किया ।
  • 1921 में अंग्रेजी सरकार ने “सर” की उपाधि दी।

गोपाल नाथ गोखले

  • महादेव गोविन्द रानाडे के शिष्य तथा महात्मा गाँधी के गुरु थे ।
  • ये उदारवादी राष्ट्रभक्त थे ।
  • 1912-15 तक “भारतीय लोक सेवा आयोग” के अध्यक्ष रहे ।
  • 1905 में “भारत सेवक समिति” की स्थापना की ।
  • “सुधारक” का सम्पादन भी किया ।
  • “नाइटहुड” की उपाधि ठुकरा दी ।
  • तिलक के अनुसार “भारत का हीरा”, “महाराष्ट्र का लाल” तथा कार्यकताओं का राजा ।

अरविन्द घोष

  • I.C.S. परीक्षा उत्तीर्ण की ।
  • “वन्दे मातरम्” में बंगाल विभाजन की घोषणा की ।
  • “New Lamps for old” में नरमपंथियों की आलोचना की।
  • इन्हें “माणिकतल्ला बम षंड्यत्र में फँसा कर जेल में डाल दिया बाद में ये योगी बनकर पांडुचेरी चले गये
  • रचनायें – “The Life divine, The Ideal of Human Unity, The Essay on the Gita, The Superman”

जोगेश चन्द्र चटर्जी

  • ये अनुशीलन समिति से जुडे हुये थे ।
  • काकोरी काण्ड मे गिरफ्तार करके इन्हें सजा दी गई ।
  • इन्होंने “क्रांतिकारी समाजवादी पार्टी की स्थापना की।
  • अपने 24 वर्ष के कारावास के दौरान 142 दिन की सबसे लम्बी भूख हडताल की ।

सी. वाई चिन्तामणि

  • प्रतिष्ठित सम्पादक तथा उदारवादी नेता ।
  • The Indian People तथा Hindustan Review के सम्पादक ।
  • गोलमेज सम्मेलन में उदारवादी दल का प्रतिनिधित्व किया ।

नारायण मल्हार राव जोशी

  • ये भारत में ट्रेड यूनियन भान्दोलन के जन्मदाता थे।
  • इन्होंने 1921 में “भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस की स्थापना की ।

हेनरी लुई विवियन डेरोजियो

  • ये बंगाल में पुनर्जागरण के अग्रदूत थे ।
  • “यंग बंग आन्दोलन” के प्रवर्तक
  • ये फ्रांस की क्रांति एव टॉमस पेन से प्रभावित थे ।
  • East India का सम्पादन किया ।
  • इन्हें आधुनिक भारत का प्रथम राष्ट्रवादी कवि माना जाता है।

रमेशचन्द्र दत्त

  • ये धन के बहिर्गमन की विचारधारा के प्रवर्तक तथा महान शिक्षा शास्त्री थे । 1899 के कलकत्ता कबित अधिवेशन की अध्यक्षता की ।
  • रचनाएँ – ब्रिटिश भारत का अार्थिक इतिहास विक्टोरिया युग में भारत ” प्राचीन भारतीय सभ्यता का आर्थिक इतिहास आदि ।

महादेव देसाई

  • ये गाँधीजी के सचिव थे । 
  • भारत छोडो आन्दोलन के समय इन्हें गिरफ्तार करके गाँधीजी के साथ आगा खाँ पैलेस में कैद किया गया ।

सरोजनी नायडू

  • “नाइटिंगेल ऑफ इण्डिया”
  • 1925 के कानपुर कांग्रेस अधिवेशन की अध्यक्षता करे।
  • द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में भाग लिया ।
  • स्वतंत्र भारत की प्रथम राज्यपाल ।
  • Book ” द ब्रोकेन विंग” “गोल्डन थ्रेशहोल्ड”
  • “The World of Time”, “The Father of Don”

कुछ अन्य महत्वपूर्ण जानकारी

आधुनिक भारत के प्रसिद्ध व्यक्तित्व

आगरकर, गोपाल गणेश (1856.95) — महाराष्ट्र के चितपावन ब्राह्मण, पत्राकार, समाज सुधारक तथा महान राष्ट्रवादी थे। ये मराठा और केसरी के संपादक रहे। 1888 में इन्होंने समाज सुधार के अपने विचारों को लोकप्रिय । नाने के लिए साप्ताहिक सुधारक नामक पत्रा निकालना प्रारंभ किया। इन्होंने जाति और अस्पृश्यता की निन्दा की तथा लड़के और लड़कियों के विवाह की न्यूनतम उम्र । ढ़ाने के लिए संघर्ष किया। इन्होंने तिलक, एम. जी. रानाडे तथा इस काल के अन्य समाज सुधारकों के साथ कार्य किया।
    अणे, माधव श्री हरि (1880.1968) — ये । रार के राजनेता तथा दक्षिणपन्थी कांग्रेसी थे। उच्च शिक्षा प्राप्त कर इन्होंने अध्यापक के रूप में अपना जीवन प्रारम्भ किया। ये कांग्रेस कार्यकारी समिति के सदस्य भी रहे और सविनय अवज्ञा आन्दोलन के अन्तर्गत 1930 में गिरफ्तार कर लिये गये। ये 1924 से 1930 तक इण्डियन होम रूल लीग के उपाध्यक्ष रहे तथा 1935 मेें विधान मण्डल के सदस्य चुने गये। 1926 में स्वराज पार्टी प्रत्युत्तरदायी गुट(Responsvist Party) में शामिल हो गए। 1935 में साम्प्रदायिक अधिनिर्णय-विरोधी समिति के महासचिव । ने। 1941 में गवर्नर जनरल की कार्यकारी परिषद् के सदस्य । ने, किन्तु महात्मा गाँधी के आमरण अनशन के प्रति सरकार के दृष्टिकोण के विरोध में 1943 में त्यागपत्रा दे दिये। 1943.47 तक सीलोन (अब श्रीलंका) में भारत के प्रतिनिधि रहे। ये संविधान सभा के सदस्य रहे तथा स्वाधीनता के बाद संसद के भी सदस्य रहे।
    अम्बेडकर,  बी.आर. (1891.1956) — ये जीवन भर दलित वर्गों के नेता रहे और सदा अछूतों की नैतिक तथा भौतिक उन्नति के लिए कार्य किये। ये महान विद्वान थे तथा लन्दन से एम.एस.सी. तथा डी.एस.सी. की उपाधियाँ प्राप्त कीं। ये पेशे से विधिवेत्ता और समान रूप से महान सामाजिक कार्यकर्ता, राजनीतिज्ञ, लेखक तथा शिक्षाविद् थे। 1924 में इन्होंनेे दलित वर्ग संस्थान की स्थापना की तथा 1927 में समाज समता संघ की स्थापना की, ताकि अछूतों और सवर्ण हिन्दुओं में सामाजिक समानता के संदेश का प्रसार किया जा सके। निम्न जातियों को समानता का स्तर दिलाने के लिए इन्होंने अनेक आंदोलन चलाए। ये अंतरिम सरकार में विधि मंत्राी तथा संविधान सभा के प्रारूप समिति के अध्यक्ष भी चुने गए थे।
    अमीर चन्द(1869.1915) — उद्भट क्रांतिकारी। फरवरी 1914 में लाहौर ये । म कांड तथा दिल्ली षड्यन्त्रा केस (वाइसराय लार्ड हार्डिंग की हत्या करने की योजना) के संदर्भ में गिरफ्तार किये गये। मृत्यु-दण्ड दिए जाने पर 8 मई, 1915 को इन्हें फाँसी दे दी गई।
    अन्सारी, एम.ए.डाॅ.(1880.1936) — चिकित्सा के क्षेत्रा में ख्याति प्राप्त डाॅ. अंसारी ने 1912.13 में टर्की के अखिल भारतीय चिकित्सा मिशन का संयोजन किया। बाद में इन्होंने होम रूल लीग के आन्दोलन में प्रमुख भूमिका निभाई। 1920 में ये मुस्लिम लीग के अध्यक्ष चुने गए। इन्होंने खिलाफत, होम रूल तथा असहयोग आन्दोलनों में भाग लिया। 1920 में इन्होंने राष्ट्रवादी शैक्षिक संस्थान, जामिया मिलिया इस्लामिया की स्थापना की।
    अय्यर, एस. सुब्रह्मण्यम(1842.1924) — सुप्रसिद्ध वकील, न्यायाधीश तथा 1885 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के संस्थापकों में थे। इन्हें सामान्यतया ‘दक्षिण’ भारत के ‘महान वयोवृद्ध व्यक्ति’ के रूप में जाना जाता है। इन्होंने सितम्बर, 1916 में श्रीमती एनी । ेसेन्ट द्वारा स्थापित अखिल भारतीय होम रूल लीग के अध्यक्ष पद पर कार्य किया। मद्रास विश्वविद्यालय के उप-कुलपति नियुक्त होने वाले ये प्रथम भारतीय थे।
    अली, आसफ(1888.1953) — एक राष्ट्रवादी मुसलमान और स्वतन्त्राता सेनानी थे। ये अनेक बार गिरफ्तार किया गया। ये कांग्रेस कार्यकारिणी समिति के सदस्य भी रहे। 1935.1947 तक केन्द्रीय विधान मण्डल के सदस्य, 1946.1947 में भारत की अन्तरिम सरकार की कार्यकारी परिषद के सदस्य, 1947.48 में संयुक्त राज्य अमेरिका में प्रथम भारतीय राजदूत तथा उड़ीसा के राज्यपाल भी रहे।
    आजाद, अबुल कलाम(1888.1958) — इनका जन्म मक्का में हुआ था। इनके पिता महान रहस्यवादी तथा प्रसिद्ध विद्वान थे और इनकी अरबी माता, मदीना के मुफ्ती की पुत्राी थीं। इन्होंने परम्परावादी शिक्षा प्राप्त की थी तथा ये अरबी, फारसी, उर्दू और इस्लामी शिक्षा के प्रकाण्ड विद्वान थे। 16 वर्ष की अवस्था में उन्होंने आज़ाद का उपनाम धारण किया। 1909 में उन्होंने पत्राकारिता का कार्य शुरू किया तथा अल-नदवाह्, दी वकील, अल-हिलाल तथा अल-बलघ जैसे । हुत से समाचार-पत्रों का प्रकाशन किया। 35 वर्ष की आयु में आज़ाद भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए। यह पद ग्रहण करने वाले वे सबसे कम उम्र के व्यक्ति थे। 1940 में वे दूसरी बार अध्यक्ष पद पर चुने गए तथा जून 1946 तक इस पद पर । ने रहे। स्वतन्त्राता के बाद तथा 22 फरवरी, 1958 को अपनी मृत्यु होने तक आज़ाद नेहरू मंत्राीमंडल में शिक्षा मंत्राी रहे। आज़ाद की आत्मकथात्मक पुस्तक इण्डिया विन्स फ्रीडम प्रसिद्ध और विवादास्पद पुस्तक है।
    आज़ाद, चन्द्रशेखर(1906.31) — ये आधुनिक उत्तर प्रदेश के सुप्रसिद्ध क्रांतिकारी थे। इन्हें असहयोग आंदोलन के दौरान गिरफ्तार किया गया तथा मुकदमे के दौरान पूछे जाने पर इन्होंने अपना नाम आज़ाद, अपने पिता का नाम स्वतन्त्रा तथा अपना घर जेलखाना । ताया था। अदालत का इस तरह अपमान करने के कारण इन्हें कोड़े लगाए गए। तभी से यह आज़ाद के रूप में प्रसिद्ध हुए। ये हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी एसोशिएसन के साथ सक्रियता से जुड़ेे हुए थे तथा काकोरी षड्यंत्रा केस, लाहौर षड्यन्त्रा केस आदि । हुत से क्रांतिकारी तथा आतंकवादी काण्डों से संबद्ध थे। एल्फ्रेड पार्क, इलाहाबाद में पुलिस के साथ अकेले लड़ते हुए जब इनकी पिस्तौल की सारी गोलियाँ समाप्त हो र्गइं तो अपनी पिस्तौल की अंतिम गोली से आत्मोत्सर्ग कर लिया।
    आयंगर, एस. कस्तूरी रंगा(1859.1923) — ये मद्रास के एक प्रमुख पत्राकार तथा राजनीतिक नेता थे। इन्होंने 1905 में दि हिन्दू समाचार पत्रा में कार्य करना प्रारंभ किया, जिसका 1923 तक जीवनपर्यन्त संपादन किया। इनके संपादकत्व में दि हिन्दू भारत का सर्वाधिक लोकप्रिय तथा अत्यंत प्रभावशाली समाचार-पत्रा । न गया था। इसने राष्ट्रीय आंदोलन का समर्थन किया। हालाँकि कस्तूरी रंगा कट्टर ब्राह्मण थे, फिर भी इन्होंने उदारवादी समाज सुधारों जैसे अस्पृश्यता-निवारण, बाल-विवाह -निषेध और महिलाओं के उद्धार का सदैव समर्थन किया।
    इकबाल, मुहम्मद, सर(1873.1938) — उर्दू के प्रख्यात शायर तथा व्यवसाय से वकील इकबाल अपने जीवन के प्रारंभ में महान राष्ट्रवादी थे। इन्होंने ही प्रसिद्ध राष्ट्रप्रेमी गीत सारे जहाँ से अच्छा हिन्दुस्तान हमारा लिखा लेकिन बाद में वे मुस्लिम लीग की ओर आकर्षित हुए। इन्होंने 1930 में लीग के इलाहाबाद अधिवेशन की अध्यक्षता की जिसमें इन्होेंने उत्तर-पश्चिम भारत में पृथक् मुस्लिम राज्य का विचार प्रस्तुत किया। इसी धारणा को आगे चलकर गति मिली और उसकी परिणति 1947 में पाकिस्तान राष्ट्र के सृजन में हुई। इसलिए इकबाल को पाकिस्तान के विचार का जनक माना जाता है।
    इमाम, सैयद हसन(1871.1933) — ये राष्ट्रवादी कांग्रेसी नेता थे। 1918 में कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए। इन्होंने रौलेट एक्ट के विरुद्ध सत्याग्रह में सक्रिय रूप से भाग लिया।
    एण्ड्रूज, चाल्र्स फ्रीयर (दीनबन्धु एण्ड्रूज)- ये अंग्रेज ईसाई धर्मप्रचारक तथा सेन्ट स्टिफेन काॅलेज, दिल्ली में प्राध्यापक थे। भारतीयों से इनका गहरा लगाव था और हर तरह से ये भारतीय । नना चाहते थे। रवीन्द्रनाथ टैगोर, गोपल कृष्ण गोखले, महात्मा गाँधी तथा अन्य नेताओं से इनका घनिष्ठ संबंध था। ये दक्षिण अफ्रीका के फीनिक्स आश्रम में गाँधीजी के साथ रहे तथा दक्षिण अफ्रीका, पूर्वी अफ्रीका, पश्चिमी द्वीपों, फीज़ी आदि में रहने वाले भारतीयों की दशा सुधारने का प्रयास किया। इन्होंने मजदूर संघ की गतिविघियों में भी सक्रियता से भाग लिया तथा 1925 और 1927 में दो बार टेªड यूनियन कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए। ये अस्पृश्यता निवारण के लिए चलाए गए आंदोलनों में भी भाग लिये। इसी उद्देश्य से 1925 में वैकोम सत्याग्रह में भाग लिया तथा 1933 में हरिजनों की माँगों की रूपरेखा तैयार करने में डाॅ. अम्बेडकर के साथ काम किया। गरीबों के प्रति निरन्तर चिन्ता को देखते हुए ही महात्मा गाँधी ने इन्हें दीनबन्धु की उपाधि से सम्मानित किया।
    कर्वे, घोंडो केशव (उर्फ अन्नासाहेब महर्षि कर्वे)(1858.1962) — समाज सुधारक, सामाजिक कार्यकर्ता और शिक्षाशास्त्राी कर्वे ने अपना पूरा जीवन विधवाओं के उत्थान और स्त्राी शिक्षा के प्रसार के लिए समर्पित कर दिया। 1893 में इन्होंने विधवा विवाहोत्तेजक मण्डली (विधवाओं के पुनर्विवाह  को । ढ़ावा देने वाली समिति) । नाई, जो विधवाओं के जरूरतमंद । च्चों की सहायता करती थी तथा उनकी शिक्षा की देखभाल करती थी। 1895 में इस संस्था का नाम । दलकर विधवा विवाह प्रतिबंध निवारक मण्डली (विधवाओं के पुनर्विवाह की बाधाओं का निवारण करने वाली समिति) कर दिया गया। 1898 में इन्होंने पूना में महिलाश्रम खोला। इन्होंने 1907 में महिला विद्यालय प्रारम्भ किए और अगले वर्ष निष्काम कर्म मठ खोला जो विधवा गृह और महिला विद्यालय के लिए कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षित करने की स्वैच्छिक संस्था थी। 1916 में इन्होंने भारतीय महिला विश्वविद्यालय की स्थापना की। इन्होंने स्त्रिायों की स्वतन्त्राता, सामाजिक समता, जाति विहीन समाज तथा राष्ट्रीय शिक्षा का समर्थन किया। 1958 में इन्हें भारत रत्न प्रदान किया गया। 
    कामा, खरशेदजी रुस्तमजी(1831.1909) — वे एक पारसी व्यापारी थे। इनकी सार्वजनिक कार्यों तथा सामाजिक सुधारों में गहरी रुचि थी। इन्होंने पारसियों में सामाजिक-धार्मिक सुधारों का समर्थन किया। 1858 में कामा ने साप्ताहिक पारसी पत्रा रस्त गोफ्तार का स्वामित्व ग्रहण कर लिया जो नए प्रगतिशील समाज सुधारों का अंग था। सुविख्यात महिला क्रांतिकारी मैडम भीखाजी कामा उनकी पुत्रावधु थीं।
    कामा, मैडम भीखाजी(1861.1936) . ये भारत की प्रथम सुुविख्यात महिला क्रांतिकारी थीं। इन्होंने । हुत से सुप्रसिद्ध राष्ट्रवादी तथा, वीर सावरकर, सरदार सिंह राना आदि के साथ मिल कर कार्य किया। ये रूसी क्रांतिकारियों के संपर्क में भी आईं तथा लेनिन के साथ इन्होंने पत्राचार भी किया, जिसने इन्हें मास्को आने का आमंत्राण दिया।
    1909 से पेरिस इनका मुख्यालय हो गया तथा यह हरदयाल और शकलबाला जैसे युवा क्रांतिकारियों का मिलन-स्थल हो गया। स्वतन्त्राता के प्रति इनकी भावना इतनी प्रबल थी कि उग्र क्रांतिकारी तरीके इन्हें सहज प्रतीत होते थे। 

ये यूरोप में रहने वाले भारतीयों की अभिनव भारत समिति की प्रेरक शक्ति भी थीं। जब इन्होंने विदेशी शासकों को बाहर निकालने के अपरिहार्य तरीके के रूप में हिंसा को स्वीकार किया, तब इन्होंने । म । नाने के लिए युवा क्रांतिकारियों के प्रशिक्षण की व्यवस्था की। इन्होंने यूरोप तथा अमेरिका की यात्राएँ कीं ताकि लोगों को भारत की स्थिति के बारे में पता चल सके और उनका समर्थन समाप्त हो सके। 1907 में इन्होंने स्टुटगार्ट की समाजवादी कांग्रेस में भाग लिया जहाँ इन्होंने प्रथम भारतीय राष्ट्रीय झण्डे को फहराया, जिसकी डिजाइन इन्होंने स्वयं ही तैयार की थी। यही वास्तव में स्वतन्त्रा भारत के झण्डे का मूल रूप तथा अग्रदूत था। केवल रंग में अंतर था। इसमें केसरिया के स्थान पर लाल रंग था। इसी सम्मेलन में इन्होंने अपनी पूरी शक्ति के साथ स्वतन्त्राता के लिए संघर्ष करने के अपने संकल्प की उद्घोषणा की। इन्होंने यह घोषणा की कि भारत एक गणराज्य होगा तथा हिन्दी उसकी राष्ट्रभाषा तथा राष्ट्रीय लिपि देवनागरी होगी।
    सरदार सिंह राना के साथ ये क्रांतिकारी साहित्य तथा विस्फोटक पदार्थों को तस्करी के द्वारा भारत लाती थीं। भारत की स्वतन्त्राता के लिए इनकी गतिविधियाँ प्रथम विश्व युद्ध तक अबाध गति से चलती रहीं। बाद में फ्रंासीसी सरकार ने इन्हें गिरफ्तार करके विश्व युद्ध के अंत तक तीन वर्ष जेल में कैद रखा। तीस वर्षों तक वे पेरिस में भारत की स्वतन्त्राता के लिए काम करती रहीं। 1935 में 74 वर्ष की अवस्था में वे मुम्बई लौट आईं तथा उसी वर्ष उनकी मृत्यु हो गई। इन्हें ”भारतीय क्रांतिकारियों की माता“ कहकर सम्बोधित करना उनका सही सम्मान है।
    काटजू, कैलाश नाथ(1887.1969) — विधिशास्त्राी और राष्ट्रीय नेता थे। ये 1933 के मेरठ षड्यंत्रा काण्ड में कैदियों की वकालत की। गोविन्द वल्लभ पन्त के अधीन संयुक्त प्रांत के कांग्रेस मंत्रिमण्डल में न्याय, उद्योग तथा विकास मंत्राी रहे। अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के सदस्य रहे। ‘भारत छोड़ो’ आंदोलन के दौरान इन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। ये भारतीय संविधान सभा में भी रहे। 1951 में भी भारत सरकार के केन्द्रीय गृहमंत्राी रहे और बाद में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्राी । ने।
    किदवई, रफी अहमद(1894.1954) — ये एक राष्ट्रवादी नेता तथा वीर स्वतन्त्राता सेनानी थे। स्वतन्त्राता के उपरान्त वे खाद्य और कृषि मंत्राी । ने और बाद में इन्होंने संचार मंत्रालय का नेतृत्व संभाला।
    केलकर, नरसिंह चिंतामणि(1872 -1947) . लोकमान्य तिलक के प्रमुख अनुयायी और सहयोगी, मराठा के संपादक(1897-1919), केसरी के संपादक(1897-99) और(1901 -31), अध्यक्ष, बम्बई प्रांतीय सभा(1920), सदस्य केन्द्रीय विधानसभा(1923 -26) कई वर्षों तक कांग्रेस कार्यकारिणी समिति के सदस्य रहे।
    कैरों, प्रतापसिंह(1901.65) — स्वतन्त्राता सेनानी, प्रशासक और संगठनकर्ता थे। 1929 तक संयुक्त राज्य अमेरिका में अध्ययन करने के उपरान्त ये भारत आए और पंजाब में सशक्त किसान आंदोलन का संगठन किया। ये शीघ्र ही देश भगत परिवार सहायक कमेटी (राजनीतिक कार्यकताओं को सहायता तथा राहत पहुँचाने के लिए गठित एक राष्ट्रवादी समिति) के कार्यकत्र्ता हो गए। इन्होंने न्यू एरा नामक पत्रिका प्रारम्भ की। अकाली दल की राजनीति में सक्रियता से भाग लिया, लेकिन एक कट्टर कांग्रेसी । ने रहे। स्वाधीनता के बाद पंजाब मंत्रिमंडल में मंत्राी और बाद में मुख्यमंत्राी रहे। 1964 में त्यागपत्रा दिया, 6 फरवरी, 1965 को गोली मारकर इनकी हत्या कर दी गई।
    खाँ, अजमल, हकीम (1865.1927) — सच्चे राष्ट्रवादी जिन्होंने भारतीय कांग्रेस के उद्देश्य का प्रचार किया। 1921 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के 36वें अधिवेशन के अध्यक्ष रहे।
    खाँ, अब्दुल गफ्फार (सीमांत गाँधी) — ब्रिटिश भारत के उत्तर-पश्चिमी सीमा प्रांत के पेशावर जिले (अब पाकिस्तान में) के एक गांव में इनका जन्म हुआ था। अपनी किशोरावस्था से ही ये राष्ट्रीय आंदोलन में भाग लेने लगे थे तथा इन्होेंने पठानों के मन में राष्ट्रवादी विचारों का प्रचार किया। इन्होंने रौलेट एक्ट का प्रबल विरोध किया तथा खिलाफत आंदोलनों में सक्रियता से भाग लिया। सर्वाधिक विशिष्ट बात यह है कि 1930.47 के दौरान कांग्रेस द्वारा चलाए गए सभी राजनीतिक आंदोलनों में इनकी प्रमुख भूमिका रही। 1929 में इन्होंने खुदाई खिदमतगार (जिसका तात्पर्य है ईश्वर के सेवक) की स्थापना की, जो समर्पित कार्यकर्ताओं का एक शांतिवादी समूह था। इसने इन्हें फख्र-ए-अफगान (अर्थात् अफगानों के गौरव) की उपाधि दी थी। इस नव बंधुत्व का उद्देश्य अपने अनुयायियों में भगवान के नाम पर अपने देश और जनता की सेवा की भावना जगाना था। मुस्लिम लीग की कट्टरपंथी विचारधारा से कभी सहमत नहीं हुए और धर्म निरपेक्षवाद के प्रति कटिबद्ध रहे। ये भारत विभाजन के प्रबल विरोधी थे। विभाजन के उपरान्त इन्होंने पख्तूनिस्तान । नाने का सक्रिय अभियान चलाया और इसलिए पाकिस्तानी प्रशासकों ने इन्हें कई बार जेल में बंद रखा। सामान्यतः ये सीमान्त गाँधी, बादशाह खाँ, फख्र-ए-अफगान आदि नाम से जाने जाते हैं। इन्हें 1987 में भारत रत्न की उपाधि से सम्मानित किया गया।
    खाँ, फैजली हुसैन (1877.1936) — राजनेता और 1920 में पंजाब में यूनियनिस्ट (संघवादी) पार्टी के संस्थापक जिसने ब्रिटिश भारतीय सरकार के हितों के प्रति सहानुभूति रखी। अपने जीवन के अंत में इन्हें सांप्रदायिक राजनीति में विश्वास न रहा और इन्होंने हिन्दू-मुस्लिम एकता के लिए कार्य किया।
    खाँ, लियाकत अली (1895.1951) — मुस्लिम लीग के प्रमुख सदस्य। इन्होंने 1944 में कांग्रेस और लीग के । ीच समझौते के लिए भूलाभाई देसाई से निजी बातचीत की, जिससे वे बाद में मुकर गए। अन्तरिम केन्द्रीय सरकार में वित्तमंत्राी रहे। पाकिस्तान के प्रधानंत्राी रहे। अक्टूबर, 1951में रावलपिंडी में इनकी हत्या कर दी गई।
    खाँ, सर सैयद अहमद (1817 – 99) — ये अलीगढ़ आंदोलन और मुसलमानों के पहले आधुनिक नेता थे। इन्होंने मुसलमानों को (प) उदारवादी शिक्षा के महत्त्व और (पप) ब्रिटिश साम्राज्य के प्रति निष्ठा । नाए रखने के बारे में प्रबोधित किया। महान शिक्षाशास़्त्राी के रूप में इन्होंने अलीगढ़ में मोहम्मडन एँग्लो-ओरिएण्टल काॅलेज की स्थापना की जो आगे चलकर अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय । ना।
    गाँधी, कस्तूरबा (1869 -1944) — बा, महात्मा गाँधी की पत्नी थीं। अपने पति के साथ-साथ इन्होंने भी स्वतंत्राता आंदोलन में भाग लिया। इन्हें 9 अगस्त, 1942 को गिरफ्तार किया गया। 22 फरवरी, 1944 को जेल में ही इनकी मृत्यु हो गई।
    गाँधी, मोहनदास करमचन्द (1869.1948) — इन्हें बापू तथा राष्ट्रपिता के नाम से भी जाना जाता है। ये भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के अग्रणी व्यक्ति थे।
    गैडिनलियु, रानी (1915-81) — ये नागा महिला राष्ट्रवादी नेता और नागा नेता जदोनाँग (1905.31) द्वारा प्रारंभ किए गए राजनीतिक आंदोलन की उत्तराधिकारी थीं। इन्होंने मणिपुर से अंग्रेजों को खदेड़ने का प्रयास किया। इन्होंने अपने राजनीतिक प्रचार में महात्मा गाँधी के नाम का इस्तेमाल किया। जदोनाँग को फाँसी दिए जाने के पश्चात इन्होंने सत्राह वर्ष की अल्पायु में ब्रिटिश सरकार के विरूद्व नागाओं के लोक प्रचलित विद्रोह का संगठन किया। इनका उग्रवादी राजनीतिक विद्रोह ऐसी शक्ति । न गया था कि इनके अनुयायियों को परास्त करने तथा उन्हें पकड़ने के लिए अंग्रेज सरकार को नियमित सैनिक टुकड़ियाँ तैनात करनी पड़ी। 1934 में इन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और इन्हें चैदह वर्ष जेल में व्यतीत करने पड़े। 1937 में जब जवाहर लाल नेहरू असम गए तो वे इनकी गतिविधियों से इतने अधिक प्रभावित हुए कि उन्होंने इन्हें नागाओं की रानी कहकर पुकारा। तभी से गैडिनलियु के साथ सामान्यतया रानी की उपाधि जुड़ी हुई है। अन्ततः उन्हें भारत की स्वतंत्राता के बाद जेल से रिहा कर दिया गया।
    गोखले, गोपाल कृष्ण (1866.1915) — शिक्षाविद्, मानवतावादी समाज  सुधारक तथा महान देशपे्रमी थे। ये कांग्रेस की उदारवादी राजनीति से संबद्ध थे। 1905  में इन्होंने भारत सेवक समाज (ैमतअंदजे व िप्दकपं ैवबपमजल) की स्थापना की और स्वतंत्राता के लिए भारतीय संघर्ष के कार्य को आगे । ढ़ाने हेतु इंगलैण्ड तथा दक्षिण अफ्रीका की यात्रा की। 1915 में इनकी मृत्यु पर तिलक ने उन्हें ‘भारत का हीरा’ कहा था।
    घोष, अरविन्द (1872.1950) — ये प्रमुख बंगाली क्रांतिकारी थे जो बाद में योगी । न गए। लगभग तेरह वर्षों तक ये अपनी शिक्षा के लिए इंगलैंड में रहे। लगभग दस वर्षों (1901.10) तक, विशेषकर बंगाल विभाजन के दौरान, राजनीतिक क्षेत्रा में सक्रिय । ने रहे तथा स्वदेशी और । हिष्कार के कार्यक्रमों का प्रतिपादन करने वालों में शामिल रहे। इन्होंने यह विचार व्यक्त किया कि राजनीतिक स्वतंत्राता ”हमारे राष्ट्र का जीवन और प्राण है“ और औपनिवेशिक स्व-शासन को इन्होंने ”राजनीतिक राक्षसपन“ की संज्ञाा दी 1908.9 में सरकार ने इन्हें माणिकतल्ला । म षड्यंत्रा काण्ड में फँसाकर एक वर्ष की कैद की सजा दी, लेकिन अंततः इन्हें छोड़ दिया गया। 1910 में ये पाण्डिचेरी चले गए, जहाँ इन्होंने अपना जीवन ध्यान और आध्यात्मिक कार्यों में व्यतीत किया।
    घोष, बारीन्द्र कुमार (1880 – 1959) — ये क्रांतिकारी आतंकवाद के प्रथम चरण के प्रमुख नेता थे और अरविन्द घोष के द्रांतिकारी विचारों से अत्यधिक प्रभावित थेब स्वेदशी आंदोलन के परिणामस्वईप बारीन्द्र ने द्रांतिकारी विचारों का प्रचार करने के लिए बंगाली साप्ताहिक युगान्तर का प्रकाशन शुरू किया। द्रांतिकारी आतंकवाद की गतिविधियों का संयोजन करने के लिए इन्होंने माणिकतल्ला पार्टी का गठन कियाब 1908 में इन्हें 34 अन्य द्रांतिकारियों के साथ गिरर्तिार किया गया तथा इन पर मुकदमा चलाकर इन्हें मृत्युदंड दिया गया । अण्डमान जेल में दस वर्ष व्यतीत करने के उपरान्त इन्होंने अपना समय पत्र कारिता में लगाया तथा प्राचीनतम बंगाली दैनिक स्टेट/समैन और । सुमति के संपादक रहे ।
    घोष, रास । बीहारी(1845 – 1921) — प्रख्यात वकील, शिक्षाविद/, मानवतावादी और बंगाल से भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के एक प्रमुख उदारवादी नेता थे । इन्होंने उग्रपंथियों को घातक जनोभोजक तथा अनुभारदायी आन्दोलकारी कहा । इन्हें अंग्रजों की न्याय भावना में पूर्ण विश्वास था तथा ये उदारवादी थे । इन्होंने 1907 में सूरत अधिवेशन की अध्यक्षता की ।
    घोष, लाल मोहन(1849 – 1909) — ये महान वक्ता तथा देशभक्त थे । इन्होंने 1879 में ब्रिटिश भारतीय संघ, कलकभाा का इंगलैंड में प्रतिनिधित्व किया ताकि सिविल सेवा में भारतीयों को प्रवेश दिलाया जा सके । ये प्रमुख उदारवादी नेता थे । इन्होंने 1903 में मद्रास(चेन्नई)में आयोजित भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के 19वें अधिवेशन की अध्यक्षता की ।
    चटर्जी, जोगेश चन्द्र(1895 – 1969) — ये एक द्रांतिकारी थे बंगाल में इनका संबंध अनुशीलन समिति की 
गतिविधियों से था लेकिन आगे चलकर इन्होंने कानपुर को अपने संगठन का केन्द्र । नाया । ये हिन्दुस्तान समाजवादी गणतन्त्र ीय संघ के संस्थापकों में थे । इन्हें काकोरी षड/यंत्र काण्ड में गिरर्तिार किया गया और आजीवन कारावास की सजा दी गई । अपनी रिहाई के उपरान्त इन्होंने 1940 में द्रांतिकारी समाजवादी पार्टी के नाम से अनुशीलनवादियों का पृथक/ संगठन स्थापित किया । लेकिन ळभारत छोड।ो्आंदोलन के अवसर पर 1942 में इन्हें गिर गिरर्तिार कर लिया गया । जोगेश चन्द्र चटर्जी ने विभिन्न जेलों में लगभग 24 वर्ष व्यतीत किए । इनमें से लगभग ढाई वर्ष इन्होंने विभिन्न अवसरों पर भूख हड।ताल में । िताए, जिसमें सबसे लम्बी भूख हड।ताल 142 दिनों की थी ।  
    चटर्जी, बंकिम चन्द्र(1838 -1894) — ये 19वीं शताब्दी के बंगाल के प्रकाण्ड विद्वान, महान कवि और आधुनिक बंगाली साहित्य के सुविख्यात उपन्यासकार तथा राष्ट‘वादी थे । इन्होंने देशभक्ति के विचार को धर्म के आवश्यक अंग के ईप में प्रस्तुत कियाब ये महान सामाजिक दर्शनशास्त्री भी थे । इन्होंने 1865 में अपना पहला उपन्यास दुर्गेशनन्दिनी लिखा । इन्होंने अपने प्रसि’ गीत । न्दे मातरम/ की रचना 1874 में की थी जिसे बाद में अपने उपन्यास आनन्द मठ  में शामिल किया ।
    चापेकर । न्धु द्य दामोदर(1870.1897द्ध, बालट्टष्ण(1873.1897द्ध और बासुदेव(1879.1899द्ध. महाराष्ट‘ के इन तीनों चापेकर । न्धुओं ने बाल गंगाधर तिलक के प्रभाव में आकर शारीरिक तथा सैनिक प्रशिक्षण के लिए एक संघ । नाया जिसे इन्होंने हिन्दू धर्म के उ’ार हेतु समिति की संज्ञा दी । बालट्टष्ण तथा दामोदर चापेकर ने जून, 1897 में रानी विक्टोरिया के हीरक जयन्ती समारोहों के अवसर पर दो ब्रिटिश अधिकारियों रैण्ड और लेृ एम्हस्र्ट की पूना में हत्या कर दी । इन्हें गिरर्तिार कर इन पर मुकदमा चलाया गया और दोनों को गाॅसी दे दी गई । तीसरे भाई वासुदेव ने दामोदर और बालट्टष्ण को गिरर्तिार करवाने के लिए उभारदायी गणेश शंकर द्रविड। की हत्या की । कुछ समय तक मुकदमा चलने के बाद इन्हें भी मृत्युदंड दिया गया और 8 मई, 1899 को गाॅसी दे दी गई । तीनों । न्धुओं को यह मालूम था कि वे पवित्र कार्य के लिए प्राण त्याग रहे हैं, अतद्य गाॅसी पर चढ।ते समय उनमें किसी भय या पश्चाताप के लक्षण नहीं दिखाई दिए ।
    चार्लू, पीृ आनंद(1843 -1908) — भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के  ्72 । हादुर ्संस्थापकों में एक थे । दक्षिण में सार्वजनिक जीवन के उन्नायक थे । कांग्रेस.पूर्व युग में मद्रास महाजन सभा को । !हद/ सार्वजनिक संस्था का ईप देने में प्रमुख भूमिका निभाई । विधान परिषद/ में इन्होंने मद्रास का प्रतिनिधित्व किया । 1891 में ये भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष । ने तथा बाद में उसके सचिव भी रहे ।
    चिन्तामणि, सी0 वाईृ(1880-1941) — ये स्वतन्त्र ता.पूर्व भारत के प्रतिष्ठित संपादकों तथा उदारवादी दल के संस्थापकों में थे । ये साप्ताहिक.पत्र दि इण्डियन पीपुल और पटना के हिन्दुस्तान रिव्यू का संपादन करते थे । चिन्तामणि ने उन्तीस वर्षों तक भावनात्मक ईप से दि लीडर का संपादन किया । उनके लिए उनका पत्र उदारवाद का एक साधन था । ये आठ वर्षों तक भारतीय राष्ट्रीय उदारवादी(दलद्ध परिसंघ के महासचिव रहे तथा 1920 और 1931 में इसके वार्षिक अधिवेशनों की अध्यक्षता की । इन्होंने गोलमेज सम्मेलन में उदारवादी दल का प्रतिनिधित्व भी किया था ।
    चैधरी, आशुतोष(1860 – 1924) — व्यवसाय से वकील तथा देश के औद्दोगिक विकास के पक्षधर थे । इन्होंने भारत के लिए बड़े व्यापक स्तर पर प्रौद्दोगिकी.उन्मुख शिक्षा प्रणाली की आवश्यकता पर । ल दिया, जो मध्यकाल से आधुनिक प्रजातांत्रिक तथा वाणिज्य युग में तेजी से परिवर्तित हो रहा था । आशुतोष राष्ट्रीय शिक्षा परिषद के संस्थापक तथा मार्गनिर्देशक मनीषी थे । इसकी स्थापना स्वदेशी आंदोलन के दौरान 1905 में सहकारी संस्थाओं तथा विश्वविद्धालयों का । हिष्कार करने वाले विद्धार्थियों के लिए की गई थी । ये कुछ समय तक आदि ब्रह्म समाज के अध्यक्ष भी रहे ।  
    जदोनाॅग(1905-31) — ये मणिपुर के नागा जनजाति के अग्रणी स्वतन्त्र ता सेनानी थे, जो नागा जनजातियों की सामाजिक तथा धार्मिक ईढि।वादिता और आपभिाजनक ब्रिटिश कानूनों, जिनके प्रति पर्वतीय जनजातियों ने भयंकर आद्रोश व्यक्त किया, के भी विरोधी थे । जदोनाॅग ने रानी गैडिनलियु सहित अपने विश्वासपात्र अनुयायियों की सहायता से सामाजिक तथा धार्मिक सुधार कार्य प्रारम्भ किए । ये परम्परागत धर्म एवं संस्ट्टति को । नाए रखते हुए नागाओं में एकता की भावना उत्पन्न करना तथा सामाजिक एकता कायम करना चाहते थे । अपने लोगों के सामाजिक उत्थान में इनकी अभिरूचि इतनी सहज थी कि ये उस समय भारत में उठ रहे स्वतन्त्र ता आंदोलन में शामिल हो गए । महात्मा गाॅधी और कांग्रेस से उन्हें प्रेरणा मिली । इनका पहला कदम राज्य के दमनात्मक कानूनों का विरोध करना और यह दावा करना था कि नागा और श्वेत व्यक्ति समान हैं । इन्होंने लोगों को सरकारी कर अदा न करने तथा राजकीय कानूनों का उल्लंघन करने के लिए प्रोत्साहित किया । इससे ब्रिटिश सरकार अत्यधिक सावधान हो गई और जदोनाॅग तथा उसके अनुयायियों को गिरर्तिार कर लिया गया । जदोनाॅग को मृत्युदंड दिया गया तथा 29 अगस्त, 1931 को उन्हें गाॅसी दे दी गई । इनकी मृत्यु के बाद इनकी शिष्या और अनुयायी रानी गैडिनलियु ने ब्रिटिश शासन के विरू’ अपनी लड़ा ई जारी रखी ।
    जयकर, मुकुन्द(1873-1959) — व्यवसाय से वकील थे तथा बम्बई विधान परिषद/ में 1923.25 में स्वराज पार्टी के नेता रहे । 1925 में इन्होंने कांग्रेस से त्यागपत्र दे दिया । 1926.30 में केन्द्रीय विधानसभा के सदस्य रहे तथा 1927 में विधानसभा में राष्ट‘वादी पार्टी के उपनेता रहे । इन्होंने भारतीय गोलमेज सम्मेलन के प्रतिनिधि के ईप में भाग लिया । 1937 में ये संघीय न्यायालय के न्यायाधीश रहे । 1939.42 में प्रिवी परिषद/ के सदस्य रहे । 1947 में त्यागपत्र देने तक भारतीय संविधान सभा के सदस्य भी रहे ।
    जिन्ना, मोहम्मद अली(1875-1948) — ये प्रमुख वकील, मुस्लिम लीग के नेता तथा पाकिस्तान के संस्थापक थे । इन्होंने अपना राजनीतिक जीवन कांग्रेस से प्रारंभ किया, लेकिन असहयोग आंदोलन का कड़ा विरोध करते हुए कांग्रेस से त्यागपत्र दे दिया और उसके बाद ये पूर्णतद्य लीग की सांप्रदायिक राजनीति से संब’ हो गए । 1929 में इन्होंने नेहई रिपोर्ट को अस्वीकार कर दिया और अपने चैदह सूत्रों को प्रस्तुत किया, जिसमें मुसलमानों के पृथक/ साम्प्रदायिक राजनीतिक हितों के विस्तार की माॅग की गई । इन्होंने अपने कुख्यात द्वि राष्ट‘ सिद्वांत का प्रतिपादन किया और 20 मार्च, 1940 को लीग के लाहौर अधिवेशन में पाकिस्तान प्रस्ताव को पारित कराने के लिए प्रमुख ईप से ये ही उभारदायी थे । इन्होंने मुसलमानों को भारत छोड़ो आंदोलन से दूर रहने के लिए कहा । 1940 से 1947 तक इन्होंने पाकिस्तान । नाने के लिए विभेदक नीति का अनुसरण किया । भारत के विभाजन के उपरान्त ये पाकिस्तान के गवर्नर जनरल  बने । इन्हें कायदे.आजम  के नाम से भी जाना जाता है ।
    जोशी, नारायण मल्हार(1875-1955) — भारत में ट्रेड यूनियन आन्दोलन के जन्मदाता थे । इन्होंने 1921 में अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस की स्थापना की और 1929 तक उसके सचिव । ने रहे । ट्रेड यूनियन कांग्रेस में साम्यवादियों का प्रभुत्व होने पर इन्होंने यह कांग्रेस छोड। दी तथा ट्रेड यूनियन परिसंघ । नाया । 1921 के बाद 26 वर्षों तक ये केन्द्रीय विधान सभा, दिल्ली के निर्वाचित सदस्य रहे और इन्हें  ”सभा का जनक“ कहा गया । श्रम कल्याण संबंधी कई कानूनों के निर्माण में इनका प्रमुख योगदान रहा ।  
    टैगोर, रवीन्द्रनाथ(1861-1941) — विश्व के महानतम कवि, लघु कहानियों, उपन्यास, नाटकों आदि के लेखक जिन्हें 1913 में साहित्य का नोबेल पुरस्कार मिला बंगाल के शांति निकेतन(बोलपुर ) में इन्होंने अन्तर्राष्ट्रीय शान्तिनिकेतन विश्वविद्धालय की स्थापना की ।
    ठक्कर बापा(उर्ग अमृत लालद्ध(1869-1951) — प्रमुख गाॅधीवादी सामाजिक कार्यकर्ता तथा स्वतंत्र ता सेनानी जिन्होंने जनजाति कल्याण के लिए पथ.प्रदर्शक का कार्य किया । ये हरिजन सेवक संघ के महासचिव थे । 1933.34 के दौरान इन्होंने गाॅधीजी के साथ हरिजनों की दशा देखने.जानने के लिए भारत भ्रमण किया । ये सर्वेंट्स आरुग इण्डिया सोसाइटी के निष्ठावान सदस्य थे । इन्होंने जनजातियों के कल्याण के अनेक कार्य किए तथा
मध्य प्रदेश के मण्डला जिले में गोण्ड सेवा संघ का गठन किया जिसे अब वनवासी सेवा मण्डल कहा जाता है ।
    डेरोजियो, हेनरी लुई विवियन(1809-1831) — प्रतिभावान यूरेशियाई(उनके पिता पुर्तगाली थे और माॅ भारतीय थीं)और बंगाल में पुनर्जागरण के अग्रदूत थे । ये कवि तथा हिन्दू कारुलेज कलकभाा में साहित्य और इतिहास के प्रवक्ता थे । डेरोजियो और उनके साथी सामान्यतया डेरोजियन अथवा यंग बंगाल के नाम से प्रसि’ थे । ये अतिवादी विचारों तथा कार्यद्रमों के प्रारम्भिक अग्रदूत थे । इनके प्रगतिशील विचारों से समाज के अभिजात वर्गों के लिए गंभीर खतरा उत्पन्न हो गया था । इनके आलोचनात्मक द!ष्टिकोण का प्रभाव उनके युवा शिष्यों के मन को उदार । नाने तथा उनमें राष्ट‘वादी भावनाओं का प्रसार करने पर पड़ा ।
    दभा, रमेश चन्द्र(1848-1909) — विद्धाविद/, अर्थशास्त्री तथा राष्ट‘वादी थे । इन्होंने 1899 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के लखनऊ अधिवेशन की अध्यक्षता की । इनकी रचनाओं में ब्रिटिश भारत का आर्थिक इतिहास, विक्टोरिया युग में भारत और प्राचीन भारतीय सभ्यता का इतिहास शामिल है । आर्थिक  क्षेत्र में इनकी रचनाओं का संभवतया अति विशिष्ट योगदान रहा, जिसने  राष्ट‘वादी आंदोलन की भावी दिशा को अत्यधिक प्रभावित किया । धन के । हिर्गमन(क्तंपद व िॅमंसजीद्ध की विचार.
धारा के एक महान प्रवर्तक थे ।
    दत्ता, कल्पना (1913-78) — बंगाल की प्रसिद्ध महिला क्रांतिकारी तथा चटगाँव शस्त्रागार आक्रमण के नेता सूर्य सेन के नेतृत्व वाले क्रांतिकारी गुप्त संगठन की सक्रिय सदस्या थीं। इन्होंने विभिन्न क्रांतिकारी क्रियाकलापों में भाग लिया तथा चटगाँव शस्त्रागार आक्रमण के अपराध में उन्हें आजीवन कारावास की सजा दी गई। 1939 में अपनी रिहाई के उपरांत ये भारत के साम्यवादी दल में शामिल हो गईं तथा साम्यवादी नेता पी. सी. जोशी से विवाह किया।
    दास, चितरंजन (देशबंधु) (1870-1925) — ये महान राष्ट्रवादी तथा प्रसिद्ध विधिशास्त्राी थे। ये अलीपुर षड्यंत्रा काण्ड में प्रतिवादी पक्ष के वकील रहे। इन्होंने असहयोग आंदोलन के अवसर पर अपने अधिक लाभप्रद कानूनी व्यवसाय को छोड़ दिया। 1921में अहमदाबाद में हुए कांग्रेस के अधिवेशन में इन्हें अध्यक्ष चुना गया। ये स्वराज पार्टी के संस्थापक थे। इन्होंने 1923 में लाहौर में तथा 1924 में अहमदाबाद में अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस की अध्यक्षता की। सामाजिक क्षेत्रा में इनकी वाक्पटुता लोकप्रिय हो चुकी थी।
    दास, जतिन्द्र नाथ (1904.29) — ये महान क्रांतिकारी थे। इन्हें लाहौर षड्यंत्रा में सह-अपराधी होने के कारण 14 जून, 1929 को गिरफ्तार किया गया। 63 दिनों तक उपवास रखने के उपरान्त 13 सितम्बर, 1929 को लाहौर जेल में इनकी 64वें दिन मृत्यु हो गई।
    देव, आचार्य नरेन्द्र (1889-1956) प्रसिद्ध शिक्षाविद्, देशभक्त और समाजवादी थे। इन्होंने अनेक पुस्तकें भी लिखीं। ये कांग्रेस समाजवादी पार्टी के संस्थापक सदस्य थे। कई वर्षों तक ये लखनऊ तथा । नारस हिन्दू विश्वविद्यालयों के उप-कुलपति भी रहे। ये भारतीय स्वतन्त्राता संग्राम के अति प्रमुख सेनानियों में गणनीय हैं।
    देशमुख, गोपाल हरि (लोकहितवादी) (1823-92) ये पश्चिमी भारत के महान समाज सुधारक थे। इन्होंने मराठी की मासिक पत्रिका लोकहितवादी का संपादन किया, जिसने विधवा पुनर्विवाह तथा महिलाओं की सामाजिक स्थिति को ऊपर उठाने का समर्थन किया तथा हर तरह से बाल विवाह, जाति प्रथा और दासता की निंदा की। इन्होंने अहमदाबाद में पुनर्विवाह मण्डल (विधवा पुनर्विवाह संस्थान) की शुरुआत की। लोकहितवादी ने [1]क्रमशः बम्बई और पूना में इन्दू प्रकाश तथा ज्ञान प्रकाश नामक मराठी समाचार-पत्रों के प्रकाशन में सहयोग दिया।
    देसाई, भूलाभाई (1877-1946) — व्यवसाय से वकील तथा कांग्रेसी नेता थे। इनका जन्म सूरत में हुआ था। ये बम्बई के महाधिवक्ता थे। सविनय अवज्ञा आंदोलन में भाग लेने के कारण एक वर्ष तक जेल में रहे। इन्होंने केन्द्रीय विधानसभा में नौ वर्ष तक कांग्रेस पार्टी का नेतृत्व किया। 1944 में कांग्रेस तथा मुस्लिम लीग के । ीच समझौता कराने के प्रयत्न में इन्होंने नवाबजादा लियाकत अली खाँ के साथ निजी तौर पर बातचीत करके अन्तरिम-सरकार के संबंध में देसाई-लियाकत समझौता संपन्न कराया। मई 1946 में अपनी मृत्यु के पहले इनका अंतिम महान कार्य भारतीय राष्ट्रीय सेना के कैदियों का । चाव करना था।
    देसाई, महादेव (1892.1942) — ये 25 वर्षों तक महात्मा गाँधी के सचिव रहे तथा इन्होंने चम्पारन सत्याग्रह (1917) से लेकर भारत छोड़ो आंदोलन (1942) तक सभी आंदोलनों में भाग लिया। भारत छोड़ो आंदोलन के अवसर पर गाँधीजी के साथ गिरफ्तार करके इन्हें आगा खाँ पैलेस में कैद रखा गया जहाँ 15 अगस्त, 1942 को इनकी मृत्यु हो गई। महादेव देसाई ने इलाहाबाद से प्रकाशित दि इण्डिपेनडेण्ड और अहमदाबाद के नवजीवन का संपादन किया।
    धींगरा, मदन लाल (1887.1909) — ये पंजाब के महान क्रांतिकारी थे। ये इंजीनियरी में उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए 1906 में इंगलैंड गए थे, जहाँ वे श्यामजी कृष्ण वर्मा तथा वी.डी. सावरकर जैसे क्रांतिकारी भारतीय नेताओं के घनिष्ठ संपर्क में आए। ये लन्दन में भारतीय होम रूल सोसायटी, अभिनव भारत सोसायटी तथा इण्डिया हाउस से भी संबद्ध रहे। भारत में अंग्रेजों द्वारा किए गए अत्याचारों का । दला लेने के लिए इन्होंने 1 जुलाई, 1909 को लंदन में भारतीय राष्ट्रीय संघ की बैठक में भारत के सचिव के सलाहकार कर्जन वायली तथा कोवास लोलक्का को मार डाला।
    अपने मुकदमे के दौरान लार्ड वायली की हत्या की जिम्मेवारी अपने ऊपर ले ली। जब उन्हें मृत्युदण्ड की सजा दी गई, तब उन्होंने न्यायाधीश से कहा: ”मुझे अपना तुच्छ जीवन समर्पित करने का गर्व है…….मुझ जैसे पुत्रा के पास अपनी माता को अपना रक्त अर्पित करने के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं है और इसलिए उसकी । लिवेदी पर मैंने उसकी आत्माहुति दे दी है।“ इन्होंने अपने जीवन के महान आदर्श को संक्षेप में । ताते हुए कहा, ”आज भारत को केवल एक सबक सीखना है कि कैसे प्राणोत्सर्ग किया जाए तथा इसे सिखाने का एकमात्रा तरीका अपना प्राणोत्सर्ग करना है। अतः मैं मातृभूमि की । लिवेदी पर प्राणोत्सर्ग कर रहा हूँ।“ 
    नायडू, सरोजनी (1879-1949) — प्रख्यात कवयित्राी और राष्ट्रवादी नेता थीं। 1925 में कानपुर में हुए भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के 40वें वार्षिक अधिवेशन की प्रथम भारतीय महिला अध्यक्ष । नीं। महात्मा गाँधी की विश्वासपात्रा और निष्ठावान सहयोगी रहीं। स्वतन्त्राता संग्राम में भाग लेने पर इन्हें कई बार जेल की सजा हुई। 1947.48 में ये उत्तर प्रदेश की राज्यपाल भी रहीं।
    नायकर, ई.वी. रामास्वामी (1879-1973) — ये निम्न जातियों और द्रविड़ आंदोलन के प्रतिष्ठित नेता थे। इन्होंने अपना राजनीतिक जीवन कांग्रेस के सदस्य के रूप में प्रारम्भ किया और असहयोग आंदोलन में इनकी गिरफ्तारी भी हुई। 1923 में इन्होंने निम्न जातियों के हितों की रक्षा के लिए आत्म सम्मान (ैमस ित्मेचमबज) आंदोलन चलाया। 1944 में ये जस्टिस पार्टी के अध्यक्ष । ने, जो आगे चलकर द्रविड़ मुनेत्रा कड़गम (द्रविड़ परिसंघ) में परिवर्तित हो गई। यह पार्टी प्रभुता सम्पन्न तथा जातिविहीन द्रविड़नाडु की स्थापना की पक्षधर थी। ये उग्र विचारक थे तथा इन्होंने हिन्दुत्व की यह कहकर भत्र्सना की कि यह ब्राह्मणों के हाथ का खिलौना मात्रा है, मनु के नियम अमानवीय हैं। इन्होंने हिन्दूू देवी-देवताओं तथा जाति प्रथा पर कड़ा प्रहार किया। इन्होंने द्रविड़ों पर हिन्दी थोपने का भी विरोध किया। ये पेरियार की लोकप्रिय उपाधि से प्रसिद्ध हैं।
    नेहरू, जवाहर लाल (1889-1964) — राजनीतिज्ञ, राजेनता, धारा-प्रवाह वक्ता, धर्मनिरपेक्षता के कट्टर समर्थक तथा शांति के अग्रदूत थे। इन्होंने भारत के राजनीतिक आंदोलन में सक्रियता से भाग लिया। ये 1947 से 1964 तक भारत के प्रथम प्रधानमंत्राी रहे। ये पंचशील नीति के प्रणेता तथा क्षेत्राीय समझौते के प्रबल विरोधी और गुट निरपेक्षता में विश्वास रखने वाले थे। इनकी रचनाओं में भारत की खोज, विश्व इतिहास की झलक और पुराने पत्रों का संकलन शामिल है।
    नेहरू, मोतीलाल (1861-1931) — वे प्रख्यात वकील तथा जवाहरलाल नेहरू के पिता थे। ये महान देशभक्त और स्वतन्त्राता सेनानी थे और स्वराज पार्टी के संस्थापक नेता थे। ये सर्वदलीय नेहरू कमेटी के अध्यक्ष थे, जिसने ‘नेहरू कमेटी रिपोर्ट’ के नाम से प्रसिद्ध संवैधानिक प्रारूप तैयार किया।
    नौरोजी, दादाभाई (1825.1917) — ये पारसी पुरोहित परिवार में पैदा हुए थे और ”ग्रैण्ड ओल्ड मैन आॅफ इण्डिया“ के रूप में समादृत हुए। इंगलैण्ड में अपने प्रवास के दौरान इन्हें अपने देश के हितार्थ संघर्ष करने वाला भारत का गैर-सरकारी राजदूत माना गया। इन्होंने डब्ल्यू. सी. । नर्जी के साथ मिलकर लंदन इंडिया सोसायटी का गठन किया, जिसका कार्य भारत के दुख-दर्दों का प्रचार करना था। 1892 में लिबरल पार्टी की टिकट पर ‘ब्रिटिश हाउस आफ कामन्स’ के लिए चुने जाने वाले ये पहले भारतीय थे। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना में इनकी प्रमुख भूमिका रही तथा ये तीन बार (1886ए 1893 तथा 1906 में) इसके अध्यक्ष चुने गए थे। इन्होंने अपने लम्बे निबंध पावर्टी एण्ड अन-ब्रिटिश रूल इन इंडिया में स्पष्ट रूप से ब्रिटिश शासन के दौरान भारत की आर्थिक दुरावस्था पर प्रकाश डाला तथा धन के । हिर्गमन के सिद्धांत का सर्वप्रथम प्रतिपादन किया।
    पटवर्धन, अच्युत एस. (1905.71) — 1934 में कांग्रेस समाजवादी पार्टी के संस्थापक सदस्य थे। इन्होंने 1942 में महाराष्ट्र में ‘भारत छोड़ो’ आंदोलन का नेतृत्व किया। स्वतन्त्राता के बाद इन्होंने राजनीति छोड़ दी।
    परमानन्द, भाई (1874.1947) — ये पंजाब के सुप्रसिद्ध आर्य समाजी नेता तथा संयुक्त राज्य अमेरिका में गदर पार्टी के प्रमुख कर्ता-धर्ताओं में से थे। ये लाला हरदयाल के निकट सहयोगी थे तथा इन्होंने गदर पार्टी की गतिविधियों को संगठित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। 1913 में भारत लौटने पर इन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और प्रथम लाहौर षड्यंत्रा काण्ड में इन पर मुकदमा चलाया गया। इन्हें मृत्युदंड दिया गया था, किन्तु वाइसराय लार्ड हार्डिंग ने इनकी सजा को आजीवन कारावास में । दल दिया। 1920 में अपनी रिहाई के बाद ये ‘नेशनल काॅलेज’ लाहौर के कुलपति । न गए। कांग्रेस की मुसलमान समर्थक नीति के कारण तथा हिन्दू-राष्ट्रवाद के पक्षधर होने के नाते 1930 में ये कांग्रेस के कटु आलोचक । न गए और इस कारण ये हिन्दू महासभा की ओर आकर्षित हुए। 1933 में ये हिन्दू महासभा के अजमेर अधिवेशन के अध्यक्ष चुने गए।
    पटेल, वल्लभ भाई, सरदार (1875.1950) — ये गुजराती बैरिस्टर थे। 1918 में खेड़ा सत्याग्रह में भाग लेकर इन्होंने राजनीति में प्रवेश किया। ये सत्याग्रह, फसल खराब होने पर किसानों से लगान वसूल न किए जाने की माँग को लेकर किये थे। 1922 में इन्होंने गुजरात के बारदोली तालुका में एक अन्य कृषक आन्दोलन को संचालित किया जो सामान्यता बारदोली सत्याग्रह के नाम से प्रसिद्ध हुआ। इस आंदोलन के संचालन में मिली प्रभावशाली सफलता की वजह से गाँधीजी ने इन्हें सरदार की उपाधि से विभूषित किया। महात्मा गाँधी के नेतृत्व में प्रारम्भ किए गए सभी आंदोलनों में इन्होंने । ढ़चढ़ कर हिस्सा लिया।
    स्वतंत्राता प्राप्ति के बाद सरदार पटेल स्वतन्त्रा भारत के उप प्रधानमंत्राी । ने। उसके अलावा उनके पास गृह मंत्रालय, भारतीय रियासत तथा सूचना और प्रसारण मंत्रालय का भार भी था। इनके राजनीतिक जीवन की सबसे महान उपलब्धि भारत के लगभग 562 रजवाड़ों का भारतीय संघ में विलय था।
    पटेल, विट्ठल भाई (1873.1933) — ये भी राष्ट्रवादी नेता थे। कानून की पढ़ाई के बाद बम्बई में ही वकालत प्रारंभ की। ये 1917 में बम्बई विधानसभा के लिए चुने गए और भारत शासन अधिनियम के संबंध में इन्होंने लंदन सम्मेलन (1919) में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का प्रतिनिधित्व किया। 1920 में ये असहयोग आंदोलन में शामिल हुए। ये बंबई के मेयर भी । ने लेकिन शीघ्र ही इन्हें इस पद से त्यागपत्रा देने के लिए बाध्य होना पड़ा। ये कई बार जेल गए और 1933 में स्विटजरलैण्ड के प्रवास के दौरान इनकी मृत्यु हो गई।
    पाठक, सोहन लाल (1883.1916) — प्रमुख क्रांतिकारी और लाला लाजपत राय के अधीन बंदेमातरम् नामक पत्रिका के संपादक श्री पाठक कैलिफोर्निया में गदर पार्टी में शामिल होने के लिए 1914 में अमेरिका गए। विद्रोह के संचालन का प्रयास करते हुए इन्हें । र्मा में गिरफ्तार कर लिया गया। सरकार के विरूद्ध षड्यंत्रा करने के लिए इन पर मुकदमा चलाया गया और फाँसी की सजा दी गई।
    पाल, । िपिन चन्द्र (1858.1932) — प्रतिष्ठित नेताओं की त्रायी-लाल, बाल और पाल में से एक श्री पाल सामान्यता भारत में क्रांतिकारी विचारधारा के जनक माने जाते हैं। इन्होंने अपना राजनीतिक जीवन 1886 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल होकर प्रारम्भ किया तथा साथ ही परिदर्शक नामक साप्ताहिक पत्रिका का प्रकाशन किया और बाद में बंगाली पब्लिक ओपिनियन तथा दि ट्रिब्यून के सहायक संपादक के रूप में कार्य किया। पाल ब्रिटिश साम्राज्य के बाहर भारतीय स्वराज के महान व्याख्याता थे। ये जाति प्रथा तथा अन्तर्जातीय खान-पान और अन्तर्जातीय व्यवहार संबंधी कठोर नियमों के विरोधी थे। ये प्रख्यात लेखक और प्रभावशाली वक्ता थे। मेरे जीवन और समय की यादें (दो खण्डों में) उनकी अति प्रसिद्ध रचना है।
    पन्त, गोविन्द । ल्लभ (1887.1961) — इनका जन्म अल्मोड़ा (उत्तर प्रदेश) में हुआ था। यह व्यवसाय से वकील थे। स्वतंत्राता आंदोलन में इन्होंने सक्रियता से भाग लिया और साइमन कमीशन (1927) के विरुद्ध प्रदर्शन का नेतृत्व करते हुए लाठी-चार्ज में । ुरी तरह घायल हो गए थे। 1946 में ये उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्राी । ने। इन्होंने कृषि एवं अन्य । हुत से सुधारों की आधारशिला रखी। बाद में यह केन्द्रीय सरकार में गृहमंत्राी भी रहे।
    प्रकाशम, टी. (1872.1957) — स्वतंत्राता सेनानी और विख्यात राष्ट्रीय नेता जो आंध्र केसरी (आंध्र के शेर) के नाम से प्रसिद्ध हुए। 1926 में कांग्रेस पार्टी की ओर से मद्रास विधान सभा के लिए चुने गए, लेकिन उन्होंने चार वर्ष बाद नमक सत्याग्रह में भाग लेने के लिए त्यागपत्रा दे दिया। पहले 1930 में और फिर 1932 में इन्होंने अपनी गिरफ्तारी दी। आंध्र प्रान्त के कांग्रेस अध्यक्ष तथा अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के सदस्य रहे। 1937 में मद्रास सरकार में मंत्राी । ने और बाद में कांग्रेस कार्यसमिति के विरोध के बावजूद यह मद्रास के मुख्यमंत्राी भी । ने।
    प्रसाद, राजेन्द्र, डाॅ. (1884.1963) — । िहार के कांग्रेसी नेता। यह संविधान सभा के अध्यक्ष थे। संविधान लागू होने के बाद ये भारत के प्रथम राष्ट्रपति । ने।
    फड़के, वासुदेव । लवंत (1845.1883) — प्रारंभिक क्रांतिकारियों में अग्रगण्य। इन्होंने बम्बई प्रेसीडेन्सी के रामोशी जनजाति के लोगों को संगठित करके प्रशिक्षित लड़ाकू । ल में परिवर्तित किया। इन्हें काले पानी की सजा दी गई तथा 1883 में आमरण अनशन से इनकी मृत्यु हो गई।
    बजाज, सेठ जमनालाल (1889.1942) — ये मानवतावादी थे। इन्होंने 30 वर्ष की अवस्था में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में भाग लिया। भारत के प्रति ब्रिटिश सरकार की नीति के विरोध में आपने राय । हादुर की उपाधि त्याग दी। ये कांग्रेस के कोषाध्यक्ष रहे, 1920.42ए गाँधी सेवा संघ के संस्थापक रहे तथा कांग्रेस के नागपुर अधिवेशन में इन्होंने स्वागत समिति के अध्यक्ष के रूप में । हुमूल्य कार्य किया। ग्रामीण उद्योगों तथा हथकरघा वस्त्रा के विकास में इनकी गहन रुचि थी।
    बनर्जी, मनीन्द्र नाथ (मृत्यु 1934) — काकोरी षड्यंत्रा से सम्बद्ध क्रांतिकारी थे। इन्होंने काकोरी षड्यंत्रा काण्ड की जाँच-पड़ताल करने वाले पुलिस उप-अधीक्षक अपने चाचा जे. एन. । नर्जी की हत्या कर दी थी। इसमें इन्हें गिरफ्तार करके दस वर्ष कड़ी कैद की सजा हुई। पुलिस दुव्र्यवहार के विरोध में प्रारम्भ किए गए 66 दिनों की भूख हड़ताल के उपरान्त 20 जून, 1934 को फतेहगढ़ के केन्द्रीय कारागार में इनकी मृत्यु हो गई।
    बनर्जी, वोमेश चन्द्र (1844.1905) — एक सफल वकील, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रथम अध्यक्ष तथा ब्रिटिश हाउस आफ काॅमन्स के लिए चुनाव लड़ने वाले प्रथम भारतीय थे। ये भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के दो बार अध्यक्ष (1885 तथा 1891) चुने गए थे तथा राजनीति में उदारवादी । ने रहे।
    बनर्जी, सुरेन्द्र नाथ राष्ट्रवादी नेता, लोकप्रिय पत्राकार तथा समर्पित निष्ठावान शिक्षाविद् थे। ये भारतीय सिविल सेवा के लिए उत्तीर्ण घोषित किए गए, लेकिन तकनीकी आधारों पर इन्हे अयोग्य घोषित कर दिया गया। न्यायालय का निर्णय इनके पक्ष में होने पर इन्हें यथावत् सिविल सेवा में ले लिया गया। लेकिन शीघ्र ही खोखले आधारों पर इन्हें सेवा से । र्खास्त भी कर दिया गया। । र्खास्तगी के उपरान्त, इन्होंने सभी उत्पीड़ित लोगों की शिकायतों के निवारण के लिए संघर्ष करते हुए जन आंदोलनकारी की भूमिका अपनाई। इन्होंने संपूर्ण देश के राजनीतिक संगठनों के प्रतिनिधियों का राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित करने के विचार का समर्थन कियाबंगाली समाचार-पत्रा का प्रकाशन किया। ये भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के संस्थापकों में थे। भारतीय राजनीतिक मंच पर महात्मा गाँधी के आविर्भाव के उपरान्त इन्होंने 1918 में कांग्रेस को छोड़ दिया। जनवरी 1921 में बंगाल के गवर्नर ने इन्हें स्थानीय स्वशासन और स्वास्थ्य मंत्राी । नाया। इस प्रकार के पद प्राप्त करने वाले वे पहले भारतीय थे। इस पद के लिए । नर्जी की स्वीकृति का तीव्र विरोध हुआ और राष्ट्रवादियों ने बाद में इनसे कोई संबंध न रखा। यह इण्डियन एसोसिएशन एवं इण्डियन नेशनल कान्फ्रेंस के संस्थापक थे।
    बिस्मिल, राम प्रसाद (1897.1927) — इनका जन्म उत्तर प्रदेश के शाहजहाँपुर नगर में हुआ था। इन्होंने आतंकवादी गतिविधियों में सक्रियता से भाग लिया। ये हिन्दुस्तान समाजवादी गणतन्त्राीय संघ/सेना के सदस्य थे। इन्हें 9 अगस्त, 1925 को काकोरी ट्रेन डकैती में भाग लेने के अपराध में मृत्युदंड दिया गया। आजादी के प्रसिद्ध आह्वान गीत सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना है जोर कितना बाजुए कातिल में है के लेखक राम प्रसाद । िस्मिल ही थे।
    बिसेन्ट, एनी (1847.1933) — यह आयरिश अंग्रेज महिला थीं और थियोसाॅफिकल सोसाइटी के लिए काम करने हेतु 1893 में भारत आई थीं एवं वाराणसी में आकर । स गईं। यहाँ इन्होंने 1898 में सेन्ट्रल हिन्दू काॅलेज की स्थापना की। 1907 में इन्हें थियोसाॅफिकल सोसाइटी का अध्यक्ष चुना गया। इन्होंने भारत की स्वतन्त्राता के लिए । ड़ी लगन से कार्य किया। 1914 में इन्होंने काॅमनवील तथा न्यू इण्डिया पत्रों का प्रकाशन शुरू किया। इन्होंने भारत की स्वतन्त्राता के लिए तेजी से जनमत तैयार करने में । हुमूल्य भूमिका निभाई। 1915 में इन्होंने स्वदेशी आंदोलन शुरू करने के लिए होम रूल लीग की स्थापना की और 1917 में इन्हें कलकत्ता अधिवेशन में कांग्रेस का अध्यक्ष चुना गया। इसी वर्ष इन्होंने भारतीय बालचर संघ और भारतीय महिला संघ की भी स्थापना की। इन्होंने । हुत से स्कूल और काॅलेजों की स्थापना की। 1918 में इन्होंने आड्यार में राष्ट्रीय विश्वविद्यालय की स्थापना की। यह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की प्रथम महिला अध्यक्षा थीं।
    बोस, आनन्द मोहन (1847.1906) — बंगाल के अग्रणी शिक्षाविद्, समाजसुधारक तथा राष्ट्रवादी थे। इन्होंने महिलाओं में शिक्षा प्रसार करने के लिए अथक प्रयास किया। 1883 में इन्होंने कलकत्ता में भारतीय राष्ट्रीय सम्मेलन (प्दकपंद छंजपवदंस । ्वदमितमदबम) का आयोजन कर देशी भाषा प्रेस अधिनियम तथा इल्बर्ट । िल के विरोध में एक आंदोलन प्रारम्भ किया। ये भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के मद्रास अधिवेशन (1898) के अध्यक्ष थे। अपने जीवन के अंतिम वर्षों में इन्होंने बंगाल के विभाजन का विरोध किया।
    बोस, खुदीराम (1889.1908) — ये भारत के प्रारम्भिक क्रांतिकारियों में थे जिन्हें 11 अगस्त, 1908 को फाँसी दी गई। ये बारीन्द्र घोष की क्रांतिकारी समिति युगान्तर के सदस्य थे। इन्होंने प्रफुल्ल चाकी के साथ मिलकर मुजफ्फरपुर (बिहार) में अंग्रेज न्यायाधीश किंग्सफोर्ड के वाहन पर । म फेंका था। इस षड्यंत्रा के अपराध में इन्हें गिरफ्तार किया गया तथा मृत्युदंड दे दिया गया।
    बोस, रास । िहारी (1886.1945) — क्रांतिकारी आतंकवाद के पहले चरण के महान क्रांतिकारी थे। इनका संबंध युगान्तर तथा गदर पार्टी से था। 1912 में इन्होंने और । सन्त विश्वास ने चांदनी चैक दिल्ली में वाइसराय हार्डिंग के जुलूस पर एक । म फेंका। 1915 में ये भागकर जापान चले गए जहाँ इन्होंने भारतीय स्वतन्त्राता संघ (1924) और आजाद हिन्द फौज़ की स्थापना की।
    बोस, सत्येन्द्र नाथ (1882.1908) — क्रांतिकारी आतंकवादी तथा मिदनापुर की क्रांतिकारी गुप्त समिति आनन्द मठ के संस्थापक थेबंगाल में स्वदेशी आंदोलन में इनकी भूमिका के कारण अप्रैल, 1906 में इन्हें सरकारी सेवा से । र्खास्त कर दिया गया। मुज़फ्फरपुर । म काण्ड, अलीपुर । म काण्ड तथा इस काण्ड में मुखबिर नरेन्द्र गोसाई की अलीपुर जेल में हत्या करने के कारण इन्हें मृत्युदंड दिया गया।
    बोस, सुभाष चन्द्र (1897.1945) — इनका जन्म उड़ीसा में कटक में हुआ था। 1920 में ये भारतीय सिविल सेवा की परीक्षा में बैठे तथा योग्यता-क्रम में चैथा स्थान प्राप्त किये लेकिन सिविल सेवा में अपनी परिवीक्षा पूरी करने के पहले ही त्यागपत्रा दे दिया तथा अप्रैल, 1921 में कांग्रेस में शामिल हो गए और राष्ट्रीय आंदोलन में कूद पड़े। ये 1938 में हरिपुर कांग्रेस अधिवेशन के एकमत से अध्यक्ष चुने गए तथा 1939 में त्रिपुरी कांग्रेस अधिवेशन में गाँधीजी द्वारा समर्थित डाॅ. पट्टाभि सीतारमैया को पराजित कर दूसरी बार अध्यक्ष चुने गए। महात्मा गाँधी और कांग्रेस कार्यकारी समिति से मतभेद होने के कारण इन्होंने अप्रैल 1939 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्षता से त्यागपत्रा दे दिया और अखिल भारतीय फारवर्ड । ्लाक की स्थापना की। जनवरी, 1941 में ये भारत से पलायन कर । र्लिन (जर्मनी) पहुँचे जहाँ से ये 2 जुलाई, 1943 को सिंगापुर आए।
    सिंगापुर में रासबिहारी । ोस ने पूर्वी एशिया में भारतीय स्वतंत्राता आंदोलन और आजाद हिन्द फौज (भारतीय राष्ट्रीय सेना) की कमान सुभाष चन्द्र । ोस को सौंप दी। 25 अगस्त, 1943 को सुभाष इसके सर्वोच्च सेनापति । ने। जनवरी, 1944 में भारतीय राष्ट्रीय सेना का मुख्यालय सिंगापुर से रंगून स्थानान्तरित कर दिया गया। जापानी सरकार ने अण्डमान और निकोबार द्वीपों को उन्हें सुपुर्द कर दिया। 18 अगस्त, 1945 को ताइपेई, ताइवान में हवाई दुर्घटना में इनकी मृत्यु हो गई।
    भाई बालमुकुन्द (1891.1968) — इन्होंने अपना राजनीतिक जीवन लाला लाजपत राय के अनुयायी के रूप में प्रारम्भ किया, लेकिन बाद में ये लाला हरदयाल तथा रास । िहारी । ोस के क्रांतिकारी समूहों में सम्मिलित हो गए। ये 1912 में दिल्ली में वाइसराय लार्ड हार्डिंग पर । म फेंकने वाले क्रांतिकारी समूह के एक सदस्य थे। इन्हें हार्डिंग । म काण्ड में गिरफ्तार करके फाँसी दे दी गई।
    भाकना, सोहन सिंह (1870.1968) — ये नामधारी सिख थे और नौकरी की तलाश में 1909 में संयुक्त राज्य अमेरिका चले गए। वहाँ इन्होंने 1913 में हिन्द संघ (भ्पदक ।ेेवबपंजपवद व िजीम च्ंबपपिब । ्वंेज) की स्थापना की। संयुक्त राज्य अमेरिका तथा कनाडा में भारतीय निवासियों के इस संघ के संस्थापक अध्यक्ष सोहन सिंह भाकना और सचिव लाला हरदयाल थे। इस संघ ने गदर नामक पत्रा का प्रकाशन शुरू किया, जिसके उपरान्त संघ की क्रांतिकारी गतिविधियाँ गदर पार्टी के नाम से प्रसिद्ध हुईं। सोहन सिंह का संबंध 1914 की कामागाता मारू जहाज की घटना से भी था। गदर पार्टी की गतिविधियों में इनकी भूमिका के कारण इन्हें गिरफ्तार किया गया तथा मृत्युदंड सुनाया गया। लेकिन बाद में इनकी उस सजा को कारावास में । दल दिया गया। इन्होंने अण्डमान और भारत की अन्य जेलों में 16 वर्ष व्यतीत किए। 1930 में ये रिहा हुए तथा अपना शेष जीवन किसान सभाओं के संगठन में लगा दिया।
    भारती, सुब्रह्मण्यम (1882.1921) — तमिल पुनर्जागरण के विख्यात कवि सुब्रह्मण्यम जब केवल ग्यारह वर्ष के थे, तब इत्यापुरम (तमिलनाडु) के राजा ने इन्हें भारती की उपाधि से विभूषित किया था (भारती, सरस्वती का एक लोकप्रिय नाम है जो विद्या की देवी है)। ये कांग्रेस के उग्रपंथियों से संबद्ध थे। इन्होंने गाँधीजी तथा गुरु गोविन्द सिंह सहित सुप्रसिद्ध व्यक्तियों व देवी-देवताओं की प्रशंसा में गीत लिखे।
    भारद्वाज, रामचन्द्र (1886.1918) — क्रांतिकारी पत्राकार तथा आफताब, आकाश तथा भारतमाता पत्रों के संपादक थे। ये 1911 में संयुक्त राज्य अमेरिका चले गए जहाँ इन्होंने गदर पार्टी के लिए काम किया और गदर पत्रा का संपादन किया तथा बाद में लाला हरदयाल के संयुक्त राज्य अमेरिका से चले जाने पर आन्दोलन के नेता के रूप में भी काम किये। ब्रिटिश सरकार के एक गुप्त एजेन्ट ने सैन फ्रांसिस्को में 23 अप्रैल, 1918 को इनकी हत्या कर दी।
    भावे, विनायक नरहरि (विनोबा भावे) — विनोबा जी महाराष्ट्र के चितपावन ब्राह्मण परिवार में जन्मे और महात्मा गाँधी के अति विश्वासपात्रा व्यक्तियों में थे। इन्होंने नागपुर के झण्डा सत्याग्रह, केरल में मन्दिर प्रवेश आंदोलन, नमक सत्याग्रह तथा 1930 में दाण्डी मार्च में सक्रियता से भाग लिया। इन्होंने 1940 में व्यक्तिगत सत्याग्रह का नेतृत्व किया तथा भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लिया। ये पक्के गाँधीवादी थे तथा स्वतन्त्राता के बाद इन्होंने भूदान और सर्वोदय आंदोलनों का नेतृत्व किया।
    माधवन, टी. के. (1886.1930) — ये महान समाज सुधारक थे। इन्होंने केरल में मन्दिर प्रवेश आंदोलन चलाया। ये श्री नारायण गुरु के शिष्य थे और 1927 में ये श्री नारायण धर्म परिपालन योगम् के संगठन सचिव चुने गए थे। इन्होंने 1924 में वैकोम सत्याग्रह का सफल आयोजन किया, जिसके फलस्वरूप ये नेतृत्व के शिखर पर पहुँच गए। यह आंदोलन 30 मार्च, 1924 को आरम्भ होकर पूरे 20 माह तक चला। इस आंदोलन का उद्देश्य उन निम्न जातियों के हिन्दुओं के लिए मन्दिरों में प्रवेश द्वारों को उन्मुक्त कराना था, जिन्हेें यह
अधिकार अभी तक प्रदान नहीं किए गए थे। इस मन्दिर प्रवेश आंदोलन के लिए सत्याग्रहियों ने वैकोम मंदिर को चुना जिसका नेतृत्व श्री माधवन ने किया। 7 मार्च, 1925 को महात्मा गाँधी ने भी यहाँ आकर श्री माधवन के साथ डेरा डाल दिया और संघर्ष को सफल । नाने में उनका साथ दिया। अपने पूरे जीवन काल में माधवन गाँधीजी की कार्य-पद्धति से प्रेरणा लेते रहे। समाज सुधार के साथ-साथ श्री माधवन ने राजनीति में भी सक्रिय रूप से भाग लिया। ये भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की कार्यसमिति के सदस्य भी रहे। इसके अतिरिक्त इन्होंने पत्राकारिता तथा साहित्य के क्षेत्रा में भी योगदान दिया। 1917 से ये देशाभिमानी दैनिक के संपादक रहे।
    मालवीय, मदन मोहन (1861.1946) — अग्रणी राष्ट्रवादी तथा देशभक्त थे। आरम्भ में एक स्कूल अध्यापक तथा बाद में व्यवसाय से वकील रहे। इन्होंने 1909 में वकालत छोड़ दी तथा पत्राकारिता में अपनी रुचि दर्शायी। इन्होंने हिन्दी और अंग्रेजी में हिन्दुस्तान, दि इण्डियन यूनियन, अभ्युदय (साप्ताहिक), मर्यादा तथा किसान मासिक एवं अंग्रेजी दैनिक दि लीडर नामक कई पत्रा-पत्रिकाएँ प्रकाशित कीं। ये 1886 से भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्य रहे तथा 1909 में इसके अध्यक्ष भी रहे। 1921 में इम्पीरियल कौंसिल के लिए चुने गए और अंग्रजों की नीतियों के उत्कट आलोचक रहे। ये कट्टर हिन्दू तथा हिन्दू महासभा के संस्थापक सदस्य थे। इन्होंने 1916 में । नारस हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना की और 1919 से 1938 तक कुलपति । ने रहे। 
    मालाबारी, । हरामजी (1853.1912) — महान पारसी समाज सुधारक तथा दादाभाई नौरोजी, एम. जी. रानाडे, दिनशाॅ वाचा तथा अन्य समकालीन राजनीतिक नेताओं और समाज सुधारकों के निकट सहयोगी रहे। ये जाति प्रथा और बाल विवाह के विरोधी थे, विधवा पुनर्विवाह, स्त्राी पुरुष की समानता और महिलाओं की स्थिति सुधारने के पक्षधर थे। इन्होंने समाज सेवा संगठन सेवा सदन की स्थापना की तथा बाॅयस आफ इण्डिया समाचार-पत्रा के संपादक भी रहे।
    मित्रा, दीनबंधु (1830.73) — ये बंगाल के महान साहित्यकार थे। इन्होंने 1860 में ढाका से प्रकाशित अपने बंगाली नाटक नील दर्पण नाटकम् में यूरोपीय नील बागान मालिकों द्वारा नील की खेती करने वाले किसानों के शोषण का । ड़ा मार्मिक वर्णन किया है। बागान मालिकों के मनमाने अत्याचारों के हृदय दहलाने वाले चित्राण ने जनता को इस हद तक उत्तेजित किया कि नील किसानों की हित रक्षा के लिए संघर्ष का सूत्रापात हुआ। नील दर्पण का अंग्रेजी अनुवाद मधुसूदन दत्त ने प्रकाशित कराया।
    मित्रा, नव गोपाल (1842.1894) — बंगाली कवि, नाटककार तथा राष्ट्रवाद के साकार प्रतीक थे। इनके द्वारा स्थापित सभी संस्थाओं के नाम नेशनल से आरम्भ होने के कारण इन्हें सामान्यतया नेशनल मित्रा कहा जाने लगा। ये ब्रह्म समाज के अनुयायी तथा आदि ब्रह्म समाज के नेता थे। इन्होंने एक साप्ताहिक नेशनल पेपर का प्रकाशन किया और सामान्यतया राष्ट्रीय या जातीय मेला के नाम से प्रसिद्ध हिन्दू मेला को । ढ़ावा दिया। इस ‘मेला’ का उद्देश्य जनता में स्वावलम्बन, आत्मनिर्भरता की भावना का विकास और स्वदेशी उद्योग, साहित्य और कला का संवर्धन करना था।
    नव गोपाल ने । हुत सी संस्थाओं की स्थापना की। इनमें से सभी के नाम से पहले नेशनल लगा हुआ था जैसे नेशनल स्कूल, नेशनल ज़िमखाना, नेशनल सर्कस, नेशनल थिएटर (यह कलकत्ता का प्रथम सार्वजनिक थिएटर था) आदि। 
    मीरा । ेन (1892.1982) — इनका जन्म इंगलैण्ड में हुआ था और इनका वास्तविक नाम मैडेलिन स्लेड था। गाँधीजी ने इनका नाम मीरा । ेन रखा। ये गाँधीजी की शिष्या और सहयोगी थीं। इन्हें 1982 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था।
    मुखर्जी, जतिन्द्रनाथ (1879.1915) — बंगाल के क्रांतिकारी, विवेकानन्द और अरविन्द घोष के निष्ठावान अनुयायी और युगान्तर, अनुशीलन समिति तथा गदर पार्टी सरीखी क्रांतिकारी समितियों के सक्रिय सदस्य रहे। गदर पार्टी से संबद्ध लोगों के साथ इन्होंने घनिष्ठ सम्पर्क । नाए रखा तथा बंगाल और उड़ीसा में क्रांतिकारी गतिविधियों का संचालन किया। 9 सितम्बर, 1915 को बालासोर में इनकी मुठभेड़ एक सैनिक तथा पुलिस टुकड़ी से हुई, जिसमें उन्हें प्राणघातक घाव लगे। अपनी असाधारण निर्भीकता और दिव्य शारीरिक शक्ति के कारण ये सामान्यतया बाघ जतिन के नाम से प्रसिद्ध थे। 
    मुंशी के.एम. (1887.1971) — भारत के स्वतंत्राता संग्राम में इनकी सक्रिय भूमिका रही तथा स्वतन्त्राता प्राप्ति के बाद इन्होंने महत्त्वपूर्ण सरकारी पदों को सुशोभित किया। ये महान लेखक और शिक्षाविद् थे और ‘भारतीय विद्या भवन’ नामक न्यास के संस्थापक थे। उस न्यास का कार्य शैक्षिक संस्थाओं का संचालन तथा भारत विद्या संबंधी पुस्तकों का प्रकाशन करना था। स्वतंत्राता प्राप्ति के बाद ये भारत के खाद्य मंत्राी रहे। पर्यावरण के विकास के लिए ‘अधिक वृक्ष लगाओ’ का नारा दिया। ये उत्तर प्रदेश के राज्यपाल भी रहे।
    मेहता, फिरोजशाह (1845.1915) — ये अग्रणी राष्ट्रवादी थे, जिन्हें लोग ‘बम्बई का । ेताज बादशाह’ के नाम से पुकारते थे। ये मध्यमवर्गीय पारसी परिवार के थेबंबई महाप्रांतीय संघ के संस्थापक और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से संबंधित रहे। ये विशेष प्रकार के उदारवादी और ब्रिटिश राजभक्त, किन्तु सच्चे राष्ट्रवादी थे।
    मोहम्मद अली, मौलाना (1878.1931) — प्रखर राष्ट्रवादी, वक्ता तथा पत्राकार थे। ये खिलाफत आंदोलन के प्रमुख नेता थे। काकिनाडा में आयोजित भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (1923) के 38वें अधिवेशन के अध्यक्ष भी ये रहे। परवर्ती वर्षों में कांग्रेस से इनका मतभेद हो गया किन्तु अंत तक ये स्वतन्त्राता सेनानी । ने रहे।
    याज्ञिक, इन्दुलाल (1892.1972) — स्वतन्त्राता सेनानी, सामाजिक कार्यकर्ता, प्रतिभावान पत्राकार तथा गुजरात के किसान नेता। इन्होंने होम रूल आंदोलन और खेड़ा सत्याग्रह के लिए सक्रिय रूप से कार्य किया। उन्होंने नव जीवन आने सत्य तथा युग धर्म नामक दो गुजराती मासिक पत्रिकाएँ तथा एक दैनिक पत्रा नूतन गुजरात निकाला। इन्होंने भील । च्चों के लिए स्कूल खोले तथा अन्त्यज सेवा मण्डल के सचिव रहे, जिसके अध्यक्ष ठक्कर बापा थे। 1936 से आगे ये किसान सभा के साथ । ड़ी सक्रियता से जुड़े रहे और गुजरात के किसानों के । ीच सहकारी आंदोलन का संगठन किया। 1942 में इन्होंने अखिल भारत किसान सभा के वार्षिक सम्मेलन की अध्यक्षता की। ये गुजरात विद्यापीठ के संस्थापक थे।
    1956 में इन्होंने पृथक् राज्य के लिए महा-गुजरात आन्दोलन का नेतृत्व किया और महा-गुजरात जनता परिषद् के संस्थापक अध्यक्ष । ने।
    रमाबाई, पंडित — महाराष्ट्र की महान महिला सामाजिक कार्यकर्ता और समाजसुधारिका जिन्होंने 1883 में ईसाई धर्म अपना लिया और जीवन भर महिलाओं की शिक्षा तथा उनके उत्थान के लिए कार्य किया। 1889 में इन्होंने विधवाओं तथा अन्य महिलाओं की शिक्षा के लिए शारदा सदन की स्थापना की। इन्होंने । ेसहारा महिलाओं के लिए एक उद्धार गृह कृपा सदन की भी स्थापना की। इन्होंने मराठी और अंग्रेजी में अनेक पुस्तकें भी लिखीं।
    राजगुरु, शिवराम (1908.31) — महाराष्ट्रीय ब्राह्मण तथा भगत सिंह के निकट के सहयोगी। 17 दिसंबर, 1928 को लाहौर में सहायक पुलिस अधिक्षक जे.पी. साँडर्स को गोली मारने की घटना में इनका हाथ था। लाहौर षड्यंत्रा काण्ड में अपराधी के रूप में इन पर मुकदमा चलाया गया और भगतसिंह तथा सुखदेव के साथ 23 मार्च, 1931 को इन्हें भी फाँसी दे दी गई।
    राजगोपालाचारी, सी. (1878.1972) — चतुर राजनीतिक नेता तथा स्पष्ट विचारक थे। ये मद्रास के मुख्य मंत्राी (1937.39), 1947 में केन्द्र सरकार के मंत्राी, 1947 में पश्चिम बंगाल के राज्यपाल, 1948.50 में भारत के प्रथम और अंतिम भारतीय गवर्नर जनरल रहे। इन्होंने दशमलव प्रणाली पर आधारित सिक्कों के चलन तथा दक्षिण में हिन्दी लागू करने का विरोध किया। इन्होंने स्वतन्त्रा पार्टी के नाम से नई राजनीतिक पार्टी का गठन किया।
    राधा कृष्णन, सर्वपल्ली (1888.1967) — इनका जन्म तमिनलाडु के धार्मिक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। ये धर्म और दर्शन के महान विद्वान थे। लंदन, मैनचेस्टर तथा आॅक्सफोर्ड सहित चार-पाँच विश्वविद्यालयों में ये दर्शन शास्त्रा के प्रोफेसर तथा । नारस हिन्दू विश्वविद्यालय के उप-कुलपति रहे। स्वाधीनता के बाद, इन्होंने राजकीय पदों को सुशोभित किया। इनमें रूस में भारत के राजदूत, भारत के दो बार उप राष्ट्रपति (1952.57) तथा (1957.62), भारत के राष्ट्रपति (1962.67) उल्लेखनीय हैं। ये दर्शनशास्त्रा, ब्रह्म विज्ञान, शिक्षा, सामाजिक तथा संास्कृतिक विषयों की । हुत सी पांडित्यपूर्ण तथा विद्वतापूर्ण पुस्तकों के लेखक रहे, जिनमें से कुछ पुस्तकें निम्नवत् हैं — भारतीय दर्शन, सभ्यता का भविष्य तथा जीवन की आदर्शवादी दृष्टि।
    रानाडे, महादेव गोविन्द (1842.1901) — भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के संस्थापक थे। इन्होंने दक्कन शिक्षा समिति की भी स्थापना की। पूना के उप-न्यायाधीश, बम्बई विधान परिषद् के सदस्य और बाद में उच्च न्यायालय के न्यायाधीश रहे। ये कई पुस्तकों के लेखक भी थे।
    राय, मानवेन्द्र नाथ (एम.एन.राय) — साम्यवादी नेता, जो विश्व के अनेक साम्यवादी नेताओं के साथ घनिष्ठ रूप से जुडे़ रहे। लेनिन के निमंत्राण पर वे भूतपूर्व सोवियत संघ गए। 1924 में इन्हें कम्युनिस्ट इण्टरनेशनल का पूर्णकालिक सदस्य चुना गया तथा चीन सहित एशिया में यह साम्यवादी आंदोलन के संगठन प्रभारी रहे। राय ने भारत में क्रांतिकारी आंदोलन का विकास करने का भी प्रयास किया। इन्हें कानपुर साम्यवादी षड्यंत्रा काण्ड में गिरफ्तार कर 6 वर्ष की कैद की सजा दी गई। यहाँ से रिहाई के उपरान्त ये कांग्रेस में शामिल हो गए, जिसे इन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध प्रारम्भ होने के बाद छोड़ दिया। फिर इन्होंने अतिवादी प्रजातांत्रिक पार्टी (त्ंकपबंस क्मउवबतंजपब च्ंतजल) तथा भारतीय श्रमिक संघ नामक श्रमिक संघ का भी गठन किया। परवर्ती वर्षों में ये अतिवादी प्रजातांत्रिक पार्टी भंग करके उग्र मानवतावादी (त्ंकपबंस भ्नउंदपेज) । न गए। ये अन्तर्राष्ट्रीय मानवतावाद नामक संगठन के संस्थापक रहे।
    लाजपत राय, लाला (1865.1928) — पंजाब के प्रसिद्ध आर्य समाजी तथा उग्रवादी नेता लाजपत राय सामान्यतया पंजाब केसरी के नाम से जाने जाते हैं। इन्होंने अपना राजनीतिक जीवन इलाहाबाद में कांग्रेस के अधिवेशन में भाग लेकर प्रारम्भ किया। ये भारत में उग्रवादी राजनीति के तीन स्तम्भों में से एक थे; अन्य दो थे-बी. जी. तिलक और । ी. सी. पाल। 1907 में इन्होंने पंजाब में विशाल कृषक आंदोलन का संगठन और उसका नेतृत्व किया। इसी कारण इन्हें अजीत सिंह के साथ । र्मा में निर्वासित कर दिया गया। अपनी रिहाई के उपरान्त लम्बी भाषण माला के लिए यूरोप तथा संयुक्त राज्य अमेरिका भी गए। 1920 में इन्होंने कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन की अध्यक्षता की। इन्होंने असहयोग आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया और उसके स्थगन के उपरान्त ये स्वराज पार्टी में शामिल हो गए। 30 अक्टूबर, 1928 को लाहौर में साइमन आयोग विरोध जुलूस का नेतृत्व करते हुए इन पर निर्दयतापूर्वक लाठीचार्ज किया गया तथा उसकी चोटों के कारण अट्ठारह दिनों बाद 17 नवम्बर, 1928 को इनकी मृत्यु हो गई। अपने ऊपर होने वाले पुलिस प्रहारों के बारे में इन्होंने चेतावनी देते हुए कहा थाः ”मेरे शरीर पर किया गया एक-एक आघात भारत में ब्रिटिश साम्राज्यवाद के कफन में एक कील का काम करेगा।“
    लाला लाजपत राय एक । हुसर्जक लेखक थे। पत्राकारिता में इनकी गहन रुचि थी और इन्होंने एक उर्दू दैनिक । न्दे मातरम् और एक अंगे्रजी साप्ताहिक दि पीपुल निकाला। इसके पहले यह संयुक्त राज्य अमेरिका में यंग इण्डिया का प्रकाशन कर चुके थे। इनकी कुछ महत्त्वपूर्ण कृतियाँ हैंः भारत को इंग्लैण्ड का ऋण, स्वतन्त्राता के लिए भारत की इच्छा, युवा भारत का आह्वान और दुखी भारत।
    आधुनिक शिक्षा प्रसार में भी इनका योगदान रहा। महात्मा हंसराज के सहयोग से इन्होंने डी.ए.वी. काॅलेज, लाहौर की स्थापना की (सरदार भगत सिंह और सुखदेव जैसे दो सुविख्यात व्यक्ति इसी काॅलेज की देन थे)।
    लाहिरी, राजेन्द्र नाथ (1898.1927) — महान क्रांतिकारी और हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन् एसोसिएशन (एच. एस. आर. ए.) के प्रमुख सदस्य। 9 अगस्त, 1925 को काकोरी डकैती और शेरगंज, । िचपुरी तथा मैनपुरी आदि में क्रांतिकारियों द्वारा किए गए हमलों में इनकी सक्रिय भूमिका रही। इन्हें गिरफ्तार करके मृत्युदंड दे दिया गया।
    वाड्डेदार, प्रीतिलता (1911.32) — बंगाल की क्रांतिकारी महिला, युगान्तर और सूर्यसेन की चटगाँव रिपब्लिकन आर्मी की सक्रिय सदस्या थीं। इन्होंने 24 सितम्बर, 1932 को क्रांतिकारियों के एक दल का नेतृत्व करते हुए पहाड़तली में एक यूरोपीय क्लब पर हमला । ोल दिया, जिसमें । हुत से यूरोपीय मारे गए या घायल हुए। क्लब पर सफल हमले के उपरान्त इन्होंने जहर खाकर आत्महत्या कर ली। इन्होंने अपनी जेब में एक पर्चा लिख छोड़ा था कि ”विदेशी दमन के विरुद्ध हथियार उठाएँ तथा स्वतंत्राता के लिए संघर्षरत अपने बंधुओं के हाथ मजबूत करें।“
    विघासागर, ईश्वर चन्द्र (1820.1891) — ईश्वर चन्द्र । न्द्योपाघ्याय बंगाल के विद्वान तथा प्रसिद्ध समाज
सुधारक थे। विद्यासागर की उपाधि इन्हें संस्कृत काॅलेज, कलकत्ता के अधिकारी वर्ग ने प्रदान की थी। यहाँ ये
अध्यापक रहे थे। ये दृढ़ प्रतिज्ञ समाज सुधारक थे तथा इन्होंने विधवा पुनर्विवाह की आवाज उठाई व समाज से । हुविवाह प्रथा को दूर करने के लिए जोरदार संघर्ष शुरू किया। इन्होंने बंगाली तथा संस्कृत में । हुत सी पुस्तकें भी लिखीं।
    शारदा, हर । िलास (1867.1955) — ये महान समाज सुधारक, विद्वान तथा राजस्थान के आर्य समाजी नेता थे। इन्होंने केन्द्रीय विधानसभा में । हुत से सामाजिक विधानों के लिए मार्ग प्रशस्त किया। ये बाल विवाह निरोधक कानून (1929) के नियन्ता थे, जिसे सामान्यतया शारदा अधिनियम के नाम से जाना जाता है। इन्होंने कांग्रेस के ऐतिहासिक लाहौर अधिवेशन के साथ 1929 में लाहौर में आयोजित भारतीय राष्ट्रीय समाज सम्मेलन की अध्यक्षता की।
    श्रद्धानन्द, स्वामी (1856.1926) — ये पंजाब के प्रमुख आर्य समाजी, शिक्षाविद् और राष्ट्रवादी नेता थे। इन्होंने जालंधर से सत्यधर्म प्रचारक साप्ताहिक निकाला और कनखल (हरिद्वार) में गंगा के किनारे गुरुकुल की स्थापना की। ये रौलेट एक्ट के विरुद्ध प्रारम्भ किए गए राष्ट्रीय आंदोलन में शामिल हो गए तथा 1919 में कांग्रेस के अमृतसर अधिवेशन की स्वागत समिति के अध्यक्ष चुने गए। ये उदारवादी समाज सुधारक थे। इन्होंने विधवा पुनर्विवाह तथा स्त्राी शिक्षा पर । ल दिया तथा जाति-भेद और बाल-विवाह का विरोध किया। ये आर्य समाज की शुद्धि सभा के अध्यक्ष थे। इनके धर्मान्तरण कार्यक्रम से मुसलमान नाराज हो गए। इसी कारण एक धर्मान्ध मुसलमान ने 1926 में इनकी हत्या कर दी।
    श्री नारायण गुरु (1845.1928) — ये केरल के प्रख्यात सामाजिक-धार्मिक सुधारक थे। इन्होंने ब्राह्मणों के वर्चस्व के विरुद्ध अनवरत संघर्ष किया तथा केरल में शिक्षा के प्रसार के लिए अत्यधिक कार्य किया। निम्न जाति के होने के बावजूद इन्होंने 1888 में अरव्विपुरम् में शिव प्रतिमा का प्रतिष्ठापन किया। अरव्विपुरम् की मूर्ति प्राण-प्रतिष्ठा ऐतिहासिक महत्त्व की विलक्षण घटना थी क्योंकि निम्न जाति के व्यक्ति ने जिसका मंदिर में जाना भी वर्जित था, मंदिर में जाकर स्वयं शिव की प्रतिमा प्रतिष्ठापित की थी। मंदिर की दीवार पर इन्होंने ये शब्द लिखवाएः ”जाति और प्रजाति की विभाजनकारी दीवारें गिरा दो तथा मतमतान्तरों के । ीच घृणा को समाप्त करो, हम सब यहाँ भाई-बन्धु हैं।“ श्री नारायण गुरु लाखों लोगों के लिए संत, साधु, दार्शनिक, कवि और समाज सुधारक थे। स्वतन्त्राता और सामथ्र्य के इनके । हुत से नारों में शिक्षा और संगठन संबंधी नारे भी महत्त्वपूर्ण थे। इनका यह विचार था कि सभी धर्मों का निचोड़ एक तथा समान है तथा इन्होंने इस विचार का प्रतिपादन किया कि सभी
धर्मों का तुलनात्मक अध्ययन किया जाना चाहिए। अरव्विपुरम् प्राण-प्रतिष्ठा का शताब्दी वर्ष 1988 के शिवरात्रि के दिन मनाया गया था।
    सत्यमूर्ति, एस. (1887.1943) — सुप्रसिद्ध राष्ट्रवादी नेता जिन्हें ”दक्षिण भारत की मशाल“ के नाम से लोकप्रियता मिली। इन्होंने सविनय अवज्ञा तथा ”भारत छोड़ो“ आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया। भारत छोड़ो आंदोलन के कारण हुई नजरबंदी के दौरान जेल में ही इनकी मृत्यु हो गई।
    सप्रू, सर तेज । हादुर (1875.1949) — ये इलाहाबाद के अग्रणी विधिवेत्ता और कांग्रेस के नरम दल नेता थे। ये नेशनल कन्वेन्शन के संस्थापक और अध्यक्ष रहे जिसका गठन इन्होंने भारत के संवैधानिक विकास की दृष्टि से किया था। इन्होंने गोलमेज सम्मेलन में भारत का प्रतिनिधित्व किया तथा दूसरे गोलमेज सम्मेलन में गाँधीजी के भाग लेने की पृष्ठभूमि भी इन्होंने तैयार की थी। 1934 में डाॅ. सप्रू को लंदन में प्रीवी काउन्सिल की सदस्यता का उच्च पद भी प्राप्त हुआ।
    सरदार भगत सिंह (1907.31) — इनका जन्म पंजाब के एक जाट सिख किसान परिवार में हुआ था। डी.ए.वी. काॅलेज, लाहौर में अपनी शिक्षा के दौरान यह दो
अध्यापकों भाई परमानन्द और जयचन्द्र विद्यालंकार के प्रभाव में आए। इन्होंने लाला लाजपत राय द्वारा स्थापित राष्ट्रीय विद्यालय, लाहौर से स्नातक की परीक्षा पास की। 1923 में ये हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन में सम्मिलित हुए तथा उसके महासचिव चुने गए। 1925 में इन्होंने युवाओं में क्रांतिकारी भावना भरने के लिए लाहौर में नव जवान भारत सभा की स्थापना की। लाहौर में साइमन आयोग के विरोध में जुलूस का नेतृत्व करते हुए लाला लाजपत राय पर किए गए लाठी चार्ज का । दला लेने के लिए इन्होंने 18 दिसम्बर, 1928 को गोली चलाकर साण्डर्स की हत्या कर दी। 18 अप्रैल, 1929 को इन्होंने । टुकेश्वर दत्त के साथ मिलकर दिल्ली में केन्द्रीय विधानसभा में । म फेंका और इसके बाद स्वयं गिरफ्तारी के लिए उपस्थित हो गए। केन्द्रीय विधानसभा में । म फेंकने के अपराध में तथा लाहौर षड्यंत्रा केस में इन पर मुकदमा चलाया गया और फाँसी की सजा दी गई। 23 मार्च, 1931 को लाहौर की केन्द्रीय जेल में भगत सिंह, सुखदेव तथा राजगुरु को फाँसी दे दी गई। 
    सरस्वती, दयानंद (1824.99) — ये अग्रणी समाज सुधारक थे। इन्होंने आर्य समाज की स्थापना की। अपनी पुस्तक सत्यार्थ प्रकाश में इन्होंने हिन्दू धर्म की विभिन्न कर्मकाण्डीय परंपराओं की । ड़े समालोचनात्मक दृष्टि से समीक्षा की। इन्होंने अस्पृश्यता निवारण, विधवा पुनर्विवाह तथा हिन्दू समाज की अन्य । ुराइयों के समापन के लिए संघर्ष किया।
    सरस्वती, सहजानंद, स्वामी (1889.1950) — ये आजन्म संन्यासी, स्वतन्त्राता सेनानी तथा । िहार के प्रमुख किसान नेता थे। इन्होंने असहयोग आंदोलन तथा सविनय अवज्ञा आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई। 1928 से इन्होंने सामंतवादी उत्पीड़न से कृषकों को छुटकारा दिलाने के लिए अनवरत संघर्ष किया। इनके कृषि सुधार कार्यक्रम का वास्तविक लक्ष्य जमींदारी प्रथा का उन्मूलन तथा कृषकों को मालिकाना हक दिलाना था।
    इन्होंने सामंतवादी उत्पीड़न के ज्वलन्त प्रश्नों जैसे । ेगार, । लात वसूली, । ेदखली आदि को उठाते हुए किसानों के प्रतिरोध और संघर्ष का आयोजन किया। 1929 में इन्होंनेे अपने नेतृत्व में । िहार किसान सभा का गठन किया। इन्होंने अखिल भारतीय किसान सभा के विभिन्न सम्मेलनों की भी अध्यक्षता की। किसानों के प्रति इनकी समर्पित सेवाओं के कारण इन्हें किसान-प्राण (किसानों का जीवन) कहा जाने लगा।
    सान्याल, सचिन्द्र नाथ (1895.1945) — रास । िहारी । ोस के निकट सहयोगी। क्रांतिकारी आतंकवाद के प्रथम चरण में ये गदर पार्टी की गतिविधियों से जुड़े रहे और उत्तर प्रदेश स्थित 7वीं राजपूत रेजीमेंट के जवानों में विद्रोह का संयोजन किया किन्तु समय से पहले ही योजना उजागर हो जाने से इन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। इन्हें आजीवन कालेपानी की सजा हुई और अण्डमान भेज दिया गया। 1919 में आम-माफी की घोषणा हुई, तब इनकी रिहाई हुई। अपनी रिहाई के उपरांत इन्होंने दूसरे चरण की क्रांतिकारी गतिविधियों में भाग लेना प्रारम्भ कर दिया और इन्होंने हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन की स्थापना की। 1925 में काकोरी षड्यंत्रा कांड में इन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और पुनः आजीवन कारावास की सजा हुई। इनकी आत्मकथात्मक कृति बंदी जीवन भारतीय क्रांतिकारियों के लिए बाइबल । न गई।
    सावरकर, विनायक दामोदर (1883.1966) —  इनका लोकप्रिय नाम वीर सावरकर था। ये महान क्रांतिकारी थे तथा बाद में हिन्दू महासभा के नेता । ने। 1899 में इन्होंने प्रथम क्रांतिकारी सोसाइटी मित्रा मेला का गठन किया जिसका नाम 1904 में अभिनव भारत सोसाइटी पड़ गया। 1906 में ये समुुद्र के रास्ते इंगलैण्ड पहुँचे और वहाँ श्यामजी कृष्ण वर्मा के नेतृत्व वाले क्रांतिकारी गुट में शामिल हो गए। 1857 के विद्रोह की 50वीं जयन्ती पर इन्होंने एक पुस्तक लिखी, जिसमें इन्होंने इस विद्रोह को प्रथम भारतीय स्वतंत्राता संग्राम कहा था। लंदन में ये मदन लाल धींगरा, जिन्होंने कर्जन वायली की । म से हत्या की थी, के सहयोगी रहे।
    1910 में इन्हें लंदन से गिरफ्तार करके भारत लाया गया और यहाँ नासिक षड्यंत्रा काण्ड में इन पर मुकदमा चला। इन्हें दोहरे आजन्म कारावास का दण्ड दिया गया, जिसके अर्थ थे- 50 वर्ष कठोर कारावास का दण्ड।
    इन्होंने 1911 से 1921 तक 10 वर्ष अण्डमान जेल में तथा तीन वर्ष दूसरे जेलों में । िताए। 1924 में अपनी रिहाई के शीघ्र बाद ही इन्होंने समाज सुधार आंदोलन प्रारम्भ कर दिया। हिन्दू महासभा की भी सदस्यता ग्रहण की। 1937 से 1942 तक यह लगातार पाँच वर्षों तक हिन्दू महासभा के अध्यक्ष रहे।
    साहू, छत्रापति (महाराज) (1874.1922) — कोल्हापुर के महाराजा, भारत के सत्ताधारी राजाओं में सबसे पहले शासक थे, जिन्होंने तथाकथित पिछड़े वर्गों के सामाजिक और धार्मिक सुधारों में गहन रुचि ली थी। इन्होंने अपनी ओर से जातीय बंधनों की । ेड़ियों को तोड़ने का भरसक प्रयास किया और जाति भेदों पर ध्यान दिए । िना सभी के लिए शिक्षा तथा सरकारी नौकरियों के द्वार खोलने का प्रयास किया। इन्होंने बाल विवाह पर प्रतिबंध लगाने तथा विधवा पुनर्विवाह को प्रोत्साहित करने का कार्य किया। इनका सर्वाधिक उल्लेखनीय कार्य शिक्षा के क्षेत्रा में था। इन्होंने कोल्हापुर में निःशुल्क शिक्षा वाले अनेक स्कूल खोले तथा गरीबों के । च्चों के रहने के लिए कई निःशुल्क छात्रावासों का निर्माण कराया। ये पश्चिमी उदार शिक्षा के पक्षधर और आर्य समाज के अनुयायी थे। इनका विश्वास था कि आर्य समाज सामाजिक समस्याओं का सही समाधान प्रस्तुत करता है।
    मराठा मूल के होने के कारण महाराजा गैर-ब्राह्मणों की समस्याओं से पूरी तरह परिचित थे। भारतीय राजाओं में ये पहले व्यक्ति थे जिन्होंने अपने राज्य में अस्पृश्यता पर रोक लगाने का साहस किया। शीघ्र ही ये गैर-ब्राह्मण आंदोलन के नेता । न गए और इन्होंने मराठों को अपने झण्डे के नीचे इकट्ठा किया।
    सिंह, अजीत (मृत्यु 16 अगस्त, 1947) — प्रसिद्ध शहीद सरदार भगतसिंह के चाचा और सुप्रसिद्ध क्रांतिकारी थे। ये लाला लाजपत राय के निकट सहयोगी रहे। ये भी लाला लाजपत राय के साथ ही गिरफ्तार करके 1907 में माण्डले भेजा गया था। अपनी रिहाई के बाद इन्होंने पेशवा नामक पत्रा का प्रकाशन प्रारम्भ किया और क्रांतिकारी भारत माता समाज की स्थापना की। 1908 में ये भारत से पलायन कर गए और 1947 तक विभिन्न देशांे में भ्रमण करते हुए गदर पार्टी के लिए कार्य करते हुए सक्रिय रहे। स्वदेश वापस आने के शीघ्र बाद ही 16 अगस्त, 1947 को इनका निधन हो गया।
    सिंह, असूर (1872.1916) — स्वतन्त्राता सेनानी, क्रांतिकारी और आतंकवादी के रूप में ख्यात असूर सिंह ने पुलिस वालों की हत्याएँ कीं तथा रेलवे लाइनों पर धरना दिया। दिल्ली-षड्यंत्रा योजना में इनकी महत्त्वपूर्ण भूमिका रही। 18 महीनों तक ये भूमिगत भी रहे। दिसम्बर, 1916 में लाहौर जेल में इन्हें फाँसी दे दी गई।
    सिंह, ऊधम (1899.1940) — पंजाब के क्रांतिकारी नेता। जलियाँवाला बाग के नरसंहार का । दला लेने के लिए इन्होंने निर्दोष व्यक्त्यिों पर गोली चलाने का आदेश देने वाले नृशंस कप्तान माइकल ओ’ डायर की लंदन में मार्च, 1940 में हत्या कर दी थी, जिसके लिए इन्हें गिरफ्तार करके मृत्युदंड दे दिया गया।
    सीतारमैया, पट्टाभि, डाॅ. (1882.1950) — प्रमुख राष्ट्रवादी तथा भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सरकारी इतिहासकार। व्यवसाय से चिकित्सक। अखिल भारतीय कांग्रेस समिति तथा कांग्रेस कार्य समिति के लिए चुने गए। 1939 में सुभाष चन्द्र । ोस से कांग्रेस अध्यक्ष पद का चुनाव हार गए। अगस्त, 1942 में वे गाँधीजी व अन्य कांग्रेसी नेताओं के साथ गिरफ्तार कर लिए गए और लगभग तीन वर्षों तक जेल में रहे।
    सीताराम राजू, अल्लूरी (1897.1924) — जनजातीय आन्दोलन को नेतृत्व प्रदान करने वाले ये प्रथम गैर-जनजातीय नेता थे। 1923.24 में आंध्र प्रदेश के रम्पा जनजातीय विद्रोह को संगठित कर नेतृत्व प्रदान किया। इस विद्रोह को दबाने के लिए अंग्रेज सरकार को सेना तैनात करनी पड़ी। सेना के साथ मुठभेड़ में ये शहीद हो गए।
    सेन, सूर्य (1894.1934) — पूर्वी बंगाल के क्रांतिकारी नेता, जिन्होंने चटगाँव रिपब्लिकन आर्मी का गठन किया ताकि सशस्त्रा विद्रोह द्वारा चटगाँव को अंग्रेजों के चंगुल से मुक्त कराया जा सके तथा साथ ही इन्होंने साम्राज्यवादी गढ़ों पर हमला करना भी जारी रखा। योजना के अन्तर्गत 18 अप्रैल, 1930 को चटगाँव में भारतीय रिपब्लिकन आर्मी ने सूर्य सेन के नेतृत्व में दो सरकारी शस्त्रागारों पर धावा । ोला और चटगाँव की टेलीफोन, टेलीग्राफ लाइनों तथा रेल व्यवस्था को अस्त-व्यस्त करके चटगाँव को शेष भारत से । िल्कुल अलग-थलग कर दिया। इन भीषण हमलों तथा धावों के बाद सूर्य सेन ने स्वतन्त्रा राष्ट्रीय सरकार के गठन की घोषणा की। किन्तु इनका यह कार्य कम समय तक जारी रह पाया। लगातार असफल होने के बाद गुरिल्ला युद्ध का सहारा लिया और अपनी क्रांतिकारी गतिविधियाँ समीपवर्ती जिलों तक फैला दी। तीन वर्ष के साहसिक संघर्ष के उपरांत ये फरवरी, 1933 में अपने एक साथी के विश्वासघात के कारण पकड़े गए और इन्हें मृत्युदंड दे दिया गया।
    हक, एम. के. फजलुल (1873.1962) — ये व्यवसाय से वकील थे। ये ढाका में 1906 में स्थापित अखिल भारतीय मुस्लिम लीग के प्रमुख संस्थापकों में रहे और निरंतर मुस्लिम हितों के लिए संघर्ष करते रहे। 1916 से 1921 तक ये अखिल भारतीय मुस्लिम लीग के अध्यक्ष रहे। कांग्रेस और लीग के मध्य 1916 में लखनऊ समझौता कराने में इनका प्रमुख योगदान था। इन्होंने 1918.19 में कांग्रेस के महासचिव के रूप में भी काम किया। लेकिन असहयोग आंदोलन को रोक दिए जाने के पश्चात् इन्होंने कांग्रेस छोड़ दी। इन्होंने गोलमेज सम्मेलन (1930.33) में मुस्लिम लीग का प्रतिनिधित्व किया। 1937 में चुनावों के अवसर पर इन्होंने लीग से त्याग-पत्रा देकर कृषक प्रजा पार्टी के नाम से एक नई पार्टी का गठन किया और बंगाल में मुस्लिम लीग के साथ मिली-जुली सरकार । नाई। 1938.43 के दौरान ये बंगाल के प्रधानमंत्राी रहे। विभाजन के उपरान्त ये ढाका में । स गए।
    हरदयाल, लाला (1884.1939) — ये महान क्रांतिकारी तथा संयुक्त राज्य अमेरिका में गदर पार्टी के संस्थापक थे। आॅक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में अध्ययन करते समय ये श्यामजी कृष्ण वर्मा तथा वी.डी. सावरकर जैसे भारतीय क्रांतिकारियों के संपर्क में आए। 1913 में ये संयुक्त राज्य अमेरिका चले गए तथा ब्रिटिश विरोधी प्रचार शुरू करने के लिए गदर नामक पत्रा निकालने लगे। इसका प्रथम अंक 1 नवम्बर, 1913 को निकाला। मार्च, 1914 में इन्हें संयुक्त राज्य अमेरिका को छोड़कर स्विट्जरलैण्ड जाना पड़ा, जहाँ इन्होंने एक अन्य ब्रिटिश-विरोधी समाचार पत्रा । न्देमातरम् निकाला। स्विट्जरलैण्ड से ये जर्मनी गए और भारत में सशस्त्रा क्रांति लाने के लिए इन्होंने प्राच्य । ्यूरो खोला। संयुक्त राज्य अमेरिका के । र्कले विश्वविद्यालय में ये संस्कृत और दर्शन शास्त्रा के प्रोफेसर नियुक्त हुए।
    हरे, डेविड (1775.1842) — ये मूलतः स्काटवासी थे। इन्होंने पश्चिमी शिक्षा के प्रसार के लिए और उन्नीसवीं शताब्दी के पुनर्जागरण के लिए चार दशक कार्य करते हुए अपने जीवन का सर्वाेत्तम हिस्सा देश पर न्यौछावर कर दिया। यंग बंगाल आन्दोलन से इनका घनिष्ठ संबंध था। कलकत्ता में इन्होंने हिन्दू काॅलेज की स्थापना की। इन्हीं के प्रयासों से कलकत्ता मेडिकल काॅलेज की स्थापना हुई (फरवरी 1835)। इन्होंने कई स्कूल और काॅलेजों की स्थापना की तथा उन्हें उदारतापूर्वक दान दिया।
    हूसैन, डाॅ. जाकिर (1897.1969) — इन्होंने शिक्षा की वर्धा योजना तैयार की थी। जामिया मिलिया विश्वविद्यालय तथा अलीगढ़ के उप-कुलपति (1926.53) रहे। । िहार के राज्यपाल (1957.62) रहे तथा आपने भारत के उपराष्ट्रपति (1962.67) के पद पर कार्य किया। 1967 में आप भारत के राष्ट्रपति । ने। राष्ट्रपति पद पर ही इनकी मृत्यु हो गई।
    हेडगेवार, डाॅ. केशवराव । लिराम (1899.1940) — ये मेडिकल स्नातक थे। इन्होंने अपना पूरा जीवन राजनीतिक एवं राष्ट्रवादी गतिविधियों में लगा दिया। अपने जीवन के प्रारम्भ में इनका संबंध कांग्रेस से था तथा तिलक के नेतृत्व में इन्होंने होम रूल आंदोलन में सक्रियतापूर्वक भाग लिया लेकिन इनका महानतम योगदान 27 सितम्बर, 1925 को विजयादशमी के दिन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की स्थापना था।
    ह्यूम, एलेन आक्टोवियन (ए. ओ. ह्यूम) (1829.1922) — ये भारत में ब्रिटिश सिविल सेवा के सदस्य थे। 1882 में अपनी सेवा निवृत्ति के उपरान्त इन्होंने भारत के राजनीतिक अधिकारों के लिए कार्य किया। ये भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के जनक तथा संस्थापक के रूप में जाने जाते हैं। ह्यूम ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के रचनात्मक वर्षों में एक मार्गदर्शी मनस्वी का कार्य किया। इन्होंने चिकित्सा तथा शल्यक्रिया विज्ञान का अध्ययन किया था और ये सुविख्यात प्रकृति विज्ञानी तथा वनस्पतिशास्त्राी भी थे।

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